28 August 2015

आरक्षण: पिछड़ा बनने की ख्वाहिश

गुजरात की सड़कों पर पटेल समुदाय द्वारा जो रक्तपात मचाई गयी, उसने गुजरात 2002 की तस्वीरें ताज़ा कर दी। ये पटेल समुदाय अपने लिए ओबीसी का दर्ज़ा देने की मांग कर रहा है। पटेलों के दावों पर उनकी तथाकथित पिछड़ापन, कई आंकड़ें खोखले कर देते हैं। जान लें  गुजरात से सबसे ज्यादा विदेशी दौरे पटेल समुदाय के ही लोग करते हैं। कुछ महीने पहले सरकार द्वारा दिए गए जाटों का आरक्षण कोर्ट ने रद्द कर दिया था। जबकि पटेलजाट व उत्तर प्रदेश-बिहार कई जातियों से अग्रिम माने जाते हैं, वो भी काफी लम्बे अरसे से ओबीसी में शामिल करने की मांग कर रहें हैं। पटेल अपने समुदाय के लोगों के खेतिहर होने के दावे करता है लेकिन, उससे ज्यादा खेतिहर पंजाब-हरियाणा के जाट, यूपी-बिहार के भूमिहार हैं। ऐसे में अगर पटेलों को आरक्षण का फायदा दिया गया तो ये सभी जातियां मैदान में कुदेंगी और स्थिति को संभालना बिलकुल मुश्किल हो जाएगा। गुजरात में पटेलों की हिंसा सरकार के घमंड से बढ़ी। शांति से प्रदर्शन कर रहे लोगों से बात करने के बजाय लाठीचार्ज करा दिया गया। मानो हमसे लड़ोगे तो गोली खाओगे! 

आरक्षण देश के ज्वलंत मुद्दों में अहम स्थान रखता है। क्या आरक्षण से सचमुच देश के गरीब, पिछड़ों, शोषितों का भला हुआ है? कितने गरीब इससे लाभान्वित हुए, जिनके सर पर छत नहीं खाने को रोटी नहीं हैगरीबी जाति देखकर नहीं आती, जाति के आधार पर किसी को दलित या शोषित कहना बेमानी है, उसका पैमाना आर्थिक आधार पर बनाया जाना चाहिए ! जिस गरीब के घर में दो वक्त की रोटी नहीं, सर छिपाने के लिए छत नहीं, बच्चो को पहनने के लिए कपडे नहीं, उसे आरक्षण नहीं, आर्थिक मदद चाहिए!

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आरक्षण देने के लिए परिवार की निर्धनता को पैमाना नहीं बनाया गया, बल्कि थोक के भाव से विभिन्न जातियों को आरक्षण दे डाले गए। सरकार ऐसा कोई आयोग क्यों नहीं बनाती, जो समाज के विभिन्न तबकों की पिछड़ेपन का आंकड़ा तैयार करे और जो इस पैमाने से बाहर हो उन्हें इसके दायरे  बाहर का रास्ता दिखाए। अगर ऐसा होता भी है तो इससे स्थिति एकदम नहीं सुधर जायेगी।  ऐसे में सरकार सरकारी नौकरियों में वोटबैंक के हिसाब से तैयार किये गएआरक्षण के नियमों को बदल कर शिक्षा में समानता लाये, उसमें आरक्षण दे।  देश में जिन्हे दलित, महदलित व पिछड़ा माना गया वे उस ऊंचाई को नहीं हासिल कर पाये जिसका सपना देखा गया था।  जब गरीब के बच्चों को उस स्तर  शिक्षा नहीं मिल पाती जो स्तर कान्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का होता है तो वैसे लोगों के लिए आरक्षण का कोई मतलब नहीं रह जाता।  सवाल है, पायलट बनने के लिए आरक्षण क्यों नहीं दिया जाता? क्या आरक्षण के बदौलत आये पायलट के जहाज में वही नेता-मंत्री उड़ सकते हैं, जो आरक्षण को निहायती जरूरी बताते हैं?  क्या आरक्षण के दम पर आये डॉक्टरों से वही नेता अपना ईलाज करा सकता है, जो खुद को पिछड़ों-शोषितों का नेता घोषित करता है? लेकिन क्या देश चलाने वाले अफसरों के लिए प्रतिभा से ज्यादा जरूरी उनकी जाति है? आखिर ये देश आगे कैसे बढ़ेगा? जहाँ पिछड़ा बनने की होड़ लगी हो!


अगर सरकार आरक्षण पर सचमुच गंभीर है तो उसे इसमें व्यापक सुधार करने होंगे। आरक्षण का लाभ सिर्फ उन्हें दिया जाए जो इसके वास्तविक हकदार हैं। इसका दायरा सीमित करके योग्यता को तवज्जो दिया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो उन लोगों के लिए आरक्षण कोई मायने नहीं रखती जिनका काम बस कमाना-खाना और सो जाना है। इसका असली लाभ तो रसूखदार, आर्थिक रूप से संपन्न लोग ही उठाते हैं, जो गरीबी का मुखौटा पहन गरीबों के अधिकारों को लहूलुहान करते रहते हैं..... 


लेखक:- अश्वनी कुमार (पटना), जो एक स्वतंत्र टिप्पणीकार बनना चाहता है.… 


25 August 2015

How big is the network of examination Mafia?

The question for decades educated youth of the country is concerned. Despite the good in reading and writing millions of youth can not find jobs. Government departments from the nominal vacancies is taken in 2-3 years, it is deeper look mafia examination. What is the result? Despite being qualified candidate Ayogyon worship begins. Ultimately she mentors headhunting rituals of manners which has officers. Who says money's not everything can be bought? We do the same job means everything to the students. These jobs nowadays real-estate business has become like a minor. Once the parents invest in savings in this sector, and to make life fun. Car, house, pension, Aeso-rest and the beautiful daughter that 10-15 million.
                                                                      The state has, in our country's education system. Imposition of education system of India based on the British moved their jobs, because they were non. But the same system followed by 67 years, who are our own. Perhaps he is right, the "We robbed of loved ones, where Gairon was back. The last 67 years we have been robbed of the vote in the name of the job and we are not rob, the irony. Why not upon any government its strong will show what our government has become a slave of Englishness so that foreign languages, not foreign laws can show a way out? Do not waste 10 years learning English, then in the prime of life to remember history-geography. Yet it Servicemen Khlao no guarantee you, if you have no money, then yes. The job situation has caused several epidemics. This is not just about government jobs, but private and other institutions is the same. uncontrolled population growth has started bearing, where 500 posts are being filled to form 20 million. It is reserved for the half-term mafia. There add, from India to China to further his secular policies. Only then 500 posts Form 50 million to be sold, the more revenue you will.
                                                                        Overall, given the progress of the country are constrained by unqualified officers. In various departments such as the Ministry of Interior, Ministry, Finance Ministry, for the development of the country who are in need of fast-paced bureaucracy, there is currently a glut of Bhonde officers and employees. Of whom? Commissions are appointed officials accountable government. Why not take action on such commissions should be, because of the indifference of qualified candidates are denied their rights. Recently SSC Combined Graduate Level Examination was canceled 3 times but got his fingers on the results. Bihar police recruitment exam Abhierthiyon name of the governor during the training, the number of districts that have asked for the truth surfaced. Such actions are not what the Commission had their own official examination Ghant are allied with the mafia? At times of political interference comes in. MP Vyapam scam was exposed because of a lapse, even if not many such exams and appointments have been, and will be, but you will not find anyone. Recruitment Examination Board and the Commission in the country in the name of job turnover is worth billions. As a result, young people have been born in a state of abject despair, suicide cases has increased. In this case the present government and the court should come out of this flawed system-wide reform. I do not, all experts agree that running a government job because the facilities and meet society's respect. Cut features and the 'special' from 'ordinary' way of making more accessible may be. Not possible, but it should start to our Prime Minister.



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Author: - Ashwani Kumar, a student who wants to be an independent commentator.


20 August 2015

अल्पसंख्यकों के आसरे सेक्युलर पार्टियां

बिहार विधासभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर है। अगले कुछ दिनों में चुनाव आयोग इसकी घोषणा कर सकता है। सभी पार्टियां धर्म-जातिवाद व सम्प्रदाय के नाम पर वोटों की लामबंदी में जुटे है। बिहार का पिछले दो दशक के राजनीतिक जातिवादिता का इतिहास देखें तो मंडल और कमंडल की बिसात पर दो धुरी नज़र आती थी। जातिवाद और आरक्षण जैसे नारों से गरीब सवर्णों और पिछड़ों को हाशिये पर लाने की जो खेल खेला गया, उसमें वे काफी हद तक सफल भी हुए। खुद को पिछड़ों का हितैषी बताते-बताते बिहार के पिछड़ों की उन 15 सालों में कितनी तरक्की कर दी, ये साफ़ है। पर इन अगले 10 साल में बिहार की जनता ने जिसे नकार कर राज्य की कमान दी, वह तो सिर्फ विकास की बात करते थे। नीतीश पहले मंडल खेमे के सक्रिय नेता थे, पर बड़ी आसानी से उन्होंने मंडल से कमंडल और कमंडल से मंडल तक की यात्रा कर डाली। राजनीतिक उछल-कूद के माहिर नेताओं की नज़र अल्पसंख्यक वोटों पर तो काफी पहले से ही है, पर वे इसमें सफल हो जायेँ इसकी कोई गारंटी नहीं। हम सभी ने लोकसभा चुनावों में वोटो का ध्रुवीकरण होते देखा है।


Image result for nitish lalu imageजब लोकतंत्र में वोट धर्म और जातिवाद के नाम पर माँगा जाता है तो, वो लोकतंत्र की हत्या का प्रयास होता है। लेकिन जब लोकतंत्र में मत धर्म या सम्प्रदाय देखकर दिए जाते है, तब लोकतंत्र मर जाता है। क्योकि उस वक्त उसकी आवाज सुनने वाला कोई नही होता। न जाने हमलोगों ने कितनी बार ऐसी परिस्थितियों को उत्पन्न होते देखा है । जो तरीके अल्पसंख्यक वोटों की लामबंदी के लिए अपनाये जाते है, वे सारे तरीके बिहार विधान सभा चुनाव में अपनाये जा रहें है। लोकसभा चुनाव के पहले देश के तथाकथित सेक्युलर नेताओं ने दिल्ली में एक धर्मनिरपेक्ष सभा की थी, जिसमे लालू-नितीश-मुलायम और ममता के अलावा कई बड़े नेता शामिल हुए थे। लेकिन लोकसभा चुनावों में इन सभी का पूरी तरह सफाया हो गया। अब खबर है की लालू-नीतीश और मुलायम मिलकर पटना में सभा करने वाले हैं, और केजरीवाल भी इसमें शरीक हो सकते हैं। केजरीवाल को दिल्ली चुनावों के बाद भाजपा के काट के रूप में देखा जाने लगा है।

पर लालू और नीतीश, जिस अल्पसंख्यक वोटों को अपना मानकर जीत सुनिश्चित मान रहे थे, उनकी चिंता मुसलमानों के कद्दावर नेता असदुद्दीन ओवैसी  किशनगंज में रैली करके बढ़ा दी है। माना जा रहा है की रैली में भारी भीड़ उमड़ने और सीमांचल के इलाके में 25 सीटों पर ओवैसी के चुनाव लड़ाने की संभावना से अल्पसंख्यक वोटों में भगदड़ जैसी स्थिति बनेगी। क्योकि वे सारे वोट महागठबंधन को जा सकते थे। इससे साफ़ है की फायदा किसे होगाभाजपा को! जदयू और राजद ओवैसी को बिहार लाने के पीछे बीजेपी की चाल मान रही है। इधर RJD पप्पू यादव की सक्रियता से ख़ासी आशंकित है, की कहीं  वो यादव वोटों में सेंध न लगा दें।

कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो बिहार में वोटों की सेंधमारी के तौर-तरीकों से जो तस्वीर उभर कर सामने आ रही है, वो निश्चित ही लोकतंत्र के लिए अघोषित कलंक है। भले ही कोई नेता या पार्टियां ऐसी तरकीबें अपनाकर जीत जाती हो या जनता का विश्वास अपने प्रति घोषित कर देती हो, लेकिन वैसी जीत व सत्ता हासिल कर लेने से क्या फायदा? जहाँ लोग वोट के लिए अपनी जाति बदलने से भी परहेज नहीं करते! जहाँ कोई किसी को अपना मानने को तैयार नहीं। उन्हें अपने आने वाली पीढ़ियों में वही गुण या दोष देखने के लिए तैयार रहना पड़ेगा, जिससे वे आज खुद जूझ रहे हैं। कैसा बनाएंगे हमारे ये नेता भविष्य का भारत, अपने सपनों का बिहारक्या बिहार की बोली लगा देने से इस बिहार के सारे दुःख हर लिए जा सकते हैं, या वे सोंचते हैं की एक दूसरे को कोसते रहने-पोस्टर लगा देने से मतदाताओं को आकर्षित कर लेंगे? बिल्कुल नहीं! जो भी बिहार की वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में घटित हो रहा है, वे बिलकुल गलत है। ऐसे में उच्चतम न्यायालय व चुनाव आयोग को आगे आकर जरूरी चुनाव सुधार करने की सख्त दरकार है, ताकि जाति-धर्म के नाम पर लोकतंत्र को जकड़ने का प्रयास न हो।

लेखक:- अश्वनी कुमार, ब्लॉग पर "कहने का मन करता है..." पेज के लेखक है। 
address:- ashwani4u.blogspot.in

19 August 2015

मोदी की इस्लामिक राष्ट्रों से नजदीकी कितना जरूरी

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी छवि के विपरीत अरब देशों की यात्रा की। वहां उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात के साथ वैश्विक, आर्थिक व् आतंकवाद के मुद्दे पर उसका समर्थन हासिल किया और इस दौरान पाकिस्तान को घेरने की कोई कसर नहीं छोड़ी। मोदी का एकाएक अरब दौरे को लेकर विश्लेषकों की भौं तन गयी थी क्योंकि मोदी की छवि एक कट्टर हिन्दू हृदय सम्राट की भांति है। मुस्लिम टोपी को पहनने से इंकार करना,  किसी भी मस्जिद में न जाना, मुसलमानों को चुनाव में टिकट न देना समय की मांग हो सकती है। यहाँ तक की प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने राष्ट्रपति के इफ्तार दावत से भी दुरी बनाई। क्योकि मोदी जानते हैं की गुजरात में मिली लगातार 3 जीत उनके विकास के दावे से ज्यादा  ध्रुवीकरण अहमियत रखती है। चूँकि गुजरात में विपक्षी कांग्रेस की छवि 2001 दंगों के बाद से हिन्दू-विरोधी सी हो गयी है। इसलिए सारे हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण कोई मजबूत विपक्ष न होने से बीजेपी की तरफ हो जाती है। ऐसे में अरब देश की यात्रा पर उनका मस्जिद में जान कूटनीति का एक अहम हिस्सा हो सकता है। चूँकि भारत अरब देशों समेत तमाम पश्चिमी एशियाई देशों से अपने मधुर संबंध बनाये रखना चाहता है। भारत अपनी जरूरत का अधिकतर कच्चा तेल इन्हीं देशों से खरीदता है और उनसे मित्रता रखना भारत के लिए काफी फायदेमंद रहा है। संभव है, भविष्य में आपसी सहयोग का दायरा और भी बड़ा होगा। 

यमन के मामले में हाल के दिनों में सऊदी अरब और ईरान के रिश्ते में कड़वाहट काफी बढ़ गयी है। यमन के अंदर शिया और सुन्नी के बीच चल रही गृह-युद्ध सऊदी अरब परोक्ष रूप से वहां के सुन्निओं का सहयोग कर है और उसने पाकिस्तान से मदद भी मांगी। ऐसे में ईरान ने कहा है की अगर पाकिस्तान युद्ध में सम्मलित होता है तो ईरान भी देर-सवेर इसमें कूदेगा और इससे स्थिति और भी बदतर हो जायेगी। इसके प्रभाव से भारत भी अछूता नहीं होगा। सीरिया और इराक में चरमपंथी ISIS के खिलाफ कार्रवाई के लिए अमेरिका के आग्रह के बावजूद भी भारत अपनी चुप्पी साधे हुए है। ISIS  आतंकवादी इराक के कई तेल कुओं पर कब्ज़ा जमाकर तेल की कीमतों में गिरावट की स्थिति बना दी है, क्योकि वह तेलों को बाज़ार भाव से काफी कम कीमत पर बेच देता है। 

Image result for modi visit in masjid imageसवाल है, दुनिया के सभी देश अपने फायदे के लिए कूटनीति को बढ़ावा दे रहे है, ऐसे में भारत इसका फायदा क्यों न उठाये? मोदी की अरब यात्रा पाकिस्तान के लिहाज से भी काफी संवेदनशील है। पाकिस्तान का ईरान और सऊदी अरब से संबंध वैसे ही है, जैसे भारत का रूस और इजराइल से। ऐसा नहीं है की पाकिस्तान उनसे हथियार खरीदता या बेचता है, लेकिन किसी मुद्दे के प्रति पाकिस्तान की विश्वसनीयता इन देशों के सामने बनी है। नतीजन, भारत ने भी पाकिस्तान को घेरने की समझदारी भरी चाल चली है। सीमा पर गोलीबारी के बावजूद भी भारत पाकिस्तान पर अपना आक्रामक रुख इसलिए नहीं अख्तियार कर सकता की युद्ध होने की स्थिति में अरब लीग व OPEC संगठन इस्लामिक होने के नाते पाकिस्तान का साथ दे सकते है। ऐसे में भारत संकटों से घिर जाएगा और अमेरिका साथ देने के बजाये शर्तें मनवायेगा, जैसा की उसकी फितरत रही है। कश्मीर पर भारत परस्त देशों की नज़रें पहले से ही ज़मी है। 

नरेंद्र मोदी चाहे कितने भी कट्टर  छवि रखते हों, चुनावों जितनी भी पाकिस्तान के प्रति सलाह दे डाली हो पर, वास्तविक वैश्विक, सामरिक कूटनीति के हालत बिलकुल अलग है। उन्हें वे सारे काम करने पड़ सकते हैं, वे सारे फैसले लेने पड़ सकते हैं, जो उन्होंने नहीं करने की सोची हो। यहाँ कदम-कदम पर कांटे हैं और उस काँटों से बचाकर देश को आगे बढ़ते रहना ही उन्हें एक अच्छे प्रधानमंत्री का तगमा दिलाएगा। 

लेखक:- अश्वनी कुमार, विदेशी मामलों की जितनी जानकारी रखता है उतना आपलोगों से बाटतें रहेंगे। 



13 August 2015

संभल जा मानव : कुछ नहीं बचेगा

Image result for hiroshima images atomic bombingहम मानव भले ही अपने को कितना भी बुध्दिमान समझें, सभी प्राणियों में सबसे समझदार समझे, पर हकीकत में ऐसा कुछ है नहीं। 16वी शताब्दी में औधोगिक क्रांति की शरुआत हुई। नई-नई आविष्कारों को ईजाद किया गया और वहां से प्राकृतिक सम्पदा का दोहन प्रारम्भ हो गया। इस दौरान मनुष्य ने मानव-जीवन को सहूलियत देने वाले ढेरों उपकरण बनाये, लेकिन इसी बीच हमने कुछ ऐसे अविष्कार कर दिए, जिसके कारण आज भी समूचा विश्व डर के साये में जी रहा होता है। हिरोशिमा और नागासाकी की विनाशलीला देखकर पूरी दुनिया थर्रा गयी थी, लेकिन अब तो उससे सौ गुना ज्यादा तबाही ज्यादा तबाही मचाने वाले बमों को अस्तित्व में ले आया गया है। प्राकृतिक सम्पदा का अंधाधुन दोहन, मानव प्रजाति को संकट के कगार पर ले जा चुकी है। प्रकृति ने हमें इतना कुछ दिया हवा, पानी, पेड़-पौधे, पहाड़ आदि। लेकिन हमने क्या किया? उसे बर्बाद करने की कोई कसर नहीं छोड़ी। हम नदियों में बाँध बनाकर उसकी पानी को रोक लेते हैं। जनसँख्या वृद्धि का हवाला देकर अंधाधुन तरीके से जंगलों को नष्ट कर रहे हैं। पृथ्वी के गर्भ के भीतर से कोयले, तेल निकालकर उसे व्यापर का माध्यम बना दिया हैं हमने। पहाड़ों को तोड़कर सड़कें बिछाई जाती है, आलिशान इमारतें तैयार की जाती है। नतीजा क्या होता है?  पृथ्वी के प्लेटों में असंतुलन पैदा होता है और हमें झेलना पड़ता है, भूकम्प! 
         
अकेले अमेरिका के 95% घरों में एयर कंडीशन लगा है, जिससे निकलने वाली खतरनाक गैसें ओज़ोन परत के छिद्र को दिन-प्रतिदिन बड़ा करते जा रहा है। अंटार्कटिका क्षेत्र के बर्फ इस छिद्र कारण जितनी तेजी से पिघल रही है, शायद कुछ वर्षों में समुद्र किनारी बसे शहरों को नक़्शे पर ढूँढना मुश्किल हो जाएगा। अमेरिका व चीन दुनिया के सवार्धिक कार्बन-डाई-ऑक्साइड उत्सर्जक देशों में से एक है, फिर भी पर्यावरण के प्रति उनकी शिथिलता दुनियाभर के पर्यावरण शुभचिंतकों को बेचैन कर रहा है। पर्यावरण सम्मलेन करके चिंता जताने व उनमें दुनिया के देशों को प्रवचन झाड़ने से कुछ नहीं होने वाला। अमेरिका व चीन, जिनका पृथ्वी के पारिस्थितिक संतुलन को बर्बाद करने का एक हद तक श्रेय जाता है वो आए दिन अपनी दादागिरी से दुनिया को रु-ब-रु कराते रहते हैं। 

Image result for save environment picturesविडंबना ये है की भारत भी उन्हीं देशों के नक़्शे-कदम पर चलकर पर्यावरण के प्रति वैसी इच्छाशक्ति नहीं दिखा रही जैसी राजनीति में दिखाती है। समितियाँ बना देना, आयोग गठित कर देना व कुछ बैठकें करके देशवाशियों से पेड़ न काटने की अपील कर देने से भले ही वो खुद की जिम्मेदारी को टाल देना समझतें हो. पर ऐसा करके वे जनता को मुर्ख बना सकते हैं,  प्रकृति को नहीं। देश में सुखा पड़ रहा है, फसल न होने पर किसान आत्महत्या का रास्ता अपना रहे हैं, कहीं बादल फट रहा है, कहीं बाढ़ आ रही है तो कहीं भूकम्प हो रहा है।  रोज हज़ारों जाने जा रही है इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण। ऐसा नहीं है की पर्यावरण को स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी केवल सरकार की है। ये हमारा देश है, हमारा शहर है। जब हम अपने घर को साफ़-सुथरा रख सकते हैं तो आसपास के वातावरण को क्यों नहीं?  अगर चप्पल में गंदगी लगी हो तो हम उसे वैसे ही पहनकर घर के अंदर नहीं आते, क्यों? क्योकि घर गन्दा हो जाएगा। लोग घर में पीने के पानी को ढंककर रखते हैं ताकि गंदगी न पड़ जाए। लेकिन गंदे पुराने कपडे, कचड़े, अपशिष्ट इत्यादि जाकर नदियों में डालते, हमें शर्म क्यों नहीं आती? हमारी मूर्खतापूर्ण गतिविधियों से आवोहवा दूषित हो चुकी है। हम तो किडनी, फेफड़े इत्यादि की बीमारी का तो किसी अस्पताल में जाकर बड़ी आसानी से इलाज करा लेंगे, पर ये आवोहवा कहाँ जाएगी?

मानव की मूर्खता पर प्रकृति भी हंसकर कहती होगी   "ओ आलसी मानव, याद कर जब घनघोर घटा में बारिश लेकर मैं आता था.पशु-पक्षी सब नाचकर तुम्हारे मन को बहलाता था.खेतों में हरियाली तुम्हारे मन को कितना भाता था...  पर, तुम जो ठहरे मुर्ख , प्रकृति को समझा बच्चा था...  बंज़र देखकर अपनी जमीन, पानी को क्यों तरसते हो…  लाओ अपनी विज्ञानं को जिस पर नाज़ करते हो.... 
परस्थितिकी को बिगाड़ने का दंड मानव को मिलनी भी शुरू हो गई है। बादल रूठ गया है, सूरज हमें तपा रहा है, नित्य नई-नई बीमारियां जन्म ले रही है, वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही है और उनकी कृत्रिम बारिश की तकनीक भी असफल हो रही है ।  क्या होगा जब ये अपनी पराकाष्ठा तक पहुंचेगीरोम-रोम कांप जाता है। सब मिलकर बना डालिये पृथ्वी को जंगल मुक्त, निकल डालिये सारे खनिज, तोड़ डालिये सारे पहाड़।  तब तो ये वैज्ञानिक 3D अनाज की व्यवस्था कर ही लेंगे। डिजिटल रोटी का अविष्कार ढूंढ ही लेंगे और शायद कहीं न ये इलेक्ट्रॉनिक पेट की भी व्यवस्था कर लें ताकि खाने की जरूरत ही न पड़े। बस 10 सेकंड में पेट भर गया.… 

लेखक :- अश्वनी कुमार, जो पर्यावरण के महत्व को अभी भी उतने बेहतर ढंग से नहीं जानता। क्योंकि जबतक आप वो चीज खो न दें, जो आपके पास है तबतक ये एहसास नही होता की उसके पास क्या था....