28 August 2015

आरक्षण: पिछड़ा बनने की ख्वाहिश

गुजरात की सड़कों पर पटेल समुदाय द्वारा जो रक्तपात मचाई गयी, उसने गुजरात 2002 की तस्वीरें ताज़ा कर दी। ये पटेल समुदाय अपने लिए ओबीसी का दर्ज़ा देने की मांग कर रहा है। पटेलों के दावों पर उनकी तथाकथित पिछड़ापन, कई आंकड़ें खोखले कर देते हैं। जान लें  गुजरात से सबसे ज्यादा विदेशी दौरे पटेल समुदाय के ही लोग करते हैं। कुछ महीने पहले सरकार द्वारा दिए गए जाटों का आरक्षण कोर्ट ने रद्द कर दिया था। जबकि पटेलजाट व उत्तर प्रदेश-बिहार कई जातियों से अग्रिम माने जाते हैं, वो भी काफी लम्बे अरसे से ओबीसी में शामिल करने की मांग कर रहें हैं। पटेल अपने समुदाय के लोगों के खेतिहर होने के दावे करता है लेकिन, उससे ज्यादा खेतिहर पंजाब-हरियाणा के जाट, यूपी-बिहार के भूमिहार हैं। ऐसे में अगर पटेलों को आरक्षण का फायदा दिया गया तो ये सभी जातियां मैदान में कुदेंगी और स्थिति को संभालना बिलकुल मुश्किल हो जाएगा। गुजरात में पटेलों की हिंसा सरकार के घमंड से बढ़ी। शांति से प्रदर्शन कर रहे लोगों से बात करने के बजाय लाठीचार्ज करा दिया गया। मानो हमसे लड़ोगे तो गोली खाओगे! 

आरक्षण देश के ज्वलंत मुद्दों में अहम स्थान रखता है। क्या आरक्षण से सचमुच देश के गरीब, पिछड़ों, शोषितों का भला हुआ है? कितने गरीब इससे लाभान्वित हुए, जिनके सर पर छत नहीं खाने को रोटी नहीं हैगरीबी जाति देखकर नहीं आती, जाति के आधार पर किसी को दलित या शोषित कहना बेमानी है, उसका पैमाना आर्थिक आधार पर बनाया जाना चाहिए ! जिस गरीब के घर में दो वक्त की रोटी नहीं, सर छिपाने के लिए छत नहीं, बच्चो को पहनने के लिए कपडे नहीं, उसे आरक्षण नहीं, आर्थिक मदद चाहिए!

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आरक्षण देने के लिए परिवार की निर्धनता को पैमाना नहीं बनाया गया, बल्कि थोक के भाव से विभिन्न जातियों को आरक्षण दे डाले गए। सरकार ऐसा कोई आयोग क्यों नहीं बनाती, जो समाज के विभिन्न तबकों की पिछड़ेपन का आंकड़ा तैयार करे और जो इस पैमाने से बाहर हो उन्हें इसके दायरे  बाहर का रास्ता दिखाए। अगर ऐसा होता भी है तो इससे स्थिति एकदम नहीं सुधर जायेगी।  ऐसे में सरकार सरकारी नौकरियों में वोटबैंक के हिसाब से तैयार किये गएआरक्षण के नियमों को बदल कर शिक्षा में समानता लाये, उसमें आरक्षण दे।  देश में जिन्हे दलित, महदलित व पिछड़ा माना गया वे उस ऊंचाई को नहीं हासिल कर पाये जिसका सपना देखा गया था।  जब गरीब के बच्चों को उस स्तर  शिक्षा नहीं मिल पाती जो स्तर कान्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का होता है तो वैसे लोगों के लिए आरक्षण का कोई मतलब नहीं रह जाता।  सवाल है, पायलट बनने के लिए आरक्षण क्यों नहीं दिया जाता? क्या आरक्षण के बदौलत आये पायलट के जहाज में वही नेता-मंत्री उड़ सकते हैं, जो आरक्षण को निहायती जरूरी बताते हैं?  क्या आरक्षण के दम पर आये डॉक्टरों से वही नेता अपना ईलाज करा सकता है, जो खुद को पिछड़ों-शोषितों का नेता घोषित करता है? लेकिन क्या देश चलाने वाले अफसरों के लिए प्रतिभा से ज्यादा जरूरी उनकी जाति है? आखिर ये देश आगे कैसे बढ़ेगा? जहाँ पिछड़ा बनने की होड़ लगी हो!


अगर सरकार आरक्षण पर सचमुच गंभीर है तो उसे इसमें व्यापक सुधार करने होंगे। आरक्षण का लाभ सिर्फ उन्हें दिया जाए जो इसके वास्तविक हकदार हैं। इसका दायरा सीमित करके योग्यता को तवज्जो दिया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो उन लोगों के लिए आरक्षण कोई मायने नहीं रखती जिनका काम बस कमाना-खाना और सो जाना है। इसका असली लाभ तो रसूखदार, आर्थिक रूप से संपन्न लोग ही उठाते हैं, जो गरीबी का मुखौटा पहन गरीबों के अधिकारों को लहूलुहान करते रहते हैं..... 


लेखक:- अश्वनी कुमार (पटना), जो एक स्वतंत्र टिप्पणीकार बनना चाहता है.… 


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