07 August 2015

संसद में 'खामोश' रहने वाले शत्रुधन की नाराजगी

पटना साहिब लोकसभा सीट से बीजेपी के सांसद शत्रुधन सिन्हा हाल के दिनों में पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं। इधर वो हर एक मुद्दों पर पार्टी लाइन से हटकर बोल रहे हैं, पहले उन्होंने मोदी के DNA वाले बयान की आलोचना की, फिर याकूब की रिहाई याचिका पर अपने दस्तखत किये और अब संसद से कांग्रेस सांसदों के निष्काशन को अवैध बताया। सवाल है, शत्रुधन और बीजेपी के बीच ये दूरियां कैसे पनपी? उनका ऐसा कौन सा स्वार्थ है, जो उन्हें नीतीश और उनकी जदयू अच्छी लगने लगी? नीतीश के साथ ताबरतोड़ मुलाकातों के कई मतलब निकले जा सकते हैं। खबर तो ये भी आ रही है की सिन्हा बीजेपी छोड़कर जदयू में शामिल हो सकते हैं ऐसे में पटना साहिब में उपचुनाव होंगे और सिन्हा जदयू की तरफ से मैदान में उत्तर सकते हैं। JDU उन्हें ये भरोसा दिलाने में जुटी है की अगर वो चुनाव हार भी जाते हैं तो राज्यसभा से उन्हें दिल्ली भेजा जायेगा? पर शत्रु इसे लेकर आशंकित हैं। ऐसी स्थिति में दोनों ही अपने-अपने फायदे ढूंढने में लगे हैं। एक तरफ जहाँ जदयू को स्टारडम प्रचारक मिल जाएगा, जिसकी मदद से वो भाजपा पर हमलावर हो सकेगी। वहीँ दूसरी तरफ शत्रुधन केंद्र में मंत्री न बनाये जाने को लेकर पिछले एक साल से नाराज़ चल रहे हैं, ऐसे में वे संगठन पर दबाव बनाकर खुद मंत्री व पूनम सिन्हा को विधानसभा चुनाव में टिकट दिलाने की राजनीती पर काम कर रहे हैं।   
                                                                                                        कुल मिलाकर देखा जाए तो शत्रुधन सिन्हा 2009 लोकसभा चुनाव में भी पटना साहिब सीट से ही जीतकर संसद गए थे। लेकिन उन 5 सालों  क्षेत्र में न आने के कारण उनके 'लापता' होने के पोस्टर भी चिपकाये गए थे। बेशक, क्षेत्रीय रिकॉर्ड ख़राब रहने के बावजूद भी 16वीं लोकसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से उतरे और मोदी लहर के बदौलत बाजी मार ली, ना की शख्सियत के दम पर।  मैं भी पटना साहिब संसदीय क्षेत्र का मतदाता हूँ, और मेरा संसद महोदय के प्रति अपना अनुभव भी रहा है। संसद की कार्यवाही के दौरान उन्हें अक्सर खामोस देखा जाता रहा है। चुनाव-प्रचार के समय अपने  मशहूर डॉयलॉग 'खामोश' से निर्भीकता का प्रदर्शन करने वाले का संसद में ऐसा रवैया कितना जायज है? आखिर 6 वर्षों में सदन में उनकी उपस्तिथि कितनी रही? इन 6 सालों में अपने क्षेत्र के कितने मुद्दों के प्रति सदन का ध्यान आकृष्ट किया है? इस दौरान कितने किन अपने क्षेत्र के लोगों के बीच बिताये हैं, उन्होंने? जबकि पड़ोसी पाटलिपुत्र क्षेत्र से सांसद 'रामकृपाल यादव' सत्र के अवधि में नियमित रूप से प्रश्न पूछते देखा जाता हैं। 
                                                                                         जो भी हो, लेकिन इस तरीके की दबाव की राजनीति से न तो उनका भला होगा और न ही क्षेत्र की जनता का। उन्हें जनता ने जो जिम्मेदारी दी है उनका बेहतर ढंग से पालन करना ही श्रेष्ठ प्रतीत होगा। 
लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना सिटी, जो एक स्वतंत्र टिप्पणीकार बनना चाहता है। 
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