14 November 2015

प्रधानमंत्री जी मेरी भी सुनिए...

(प्रधानमंत्री जी को मेरा खुला पत्र... जिसे मैंने PMO को भेजा है...)

आपको मेरा प्यार भरा नमस्कार | आपके लिए मेरा यह पहला पत्र है| याद है, डेढ़-दो साल पहले आपका हर एक ट्वीट-शब्द करोड़ों नौजवानों में उम्मीद की ऊर्जा भर देती थी| करोड़ों दीवाने थे, जो आपकी एक आह्वाहन पर मर-मिटने को तैयार होते थे और बेशक आज भी है| लेकिन इतने दिनों में बदला क्या? वो जो आपकी फैन बना देने वाली कला 7RCR में जाकर गुम तो नहीं हुई पर, उसका रंग जरूर फीका पड़ गया है| जब आप प्रधानमंत्री बने तो लोगों ने ये उम्मीद पाली थी की आप जनता के पैसों की हो रही बर्बादी नियंत्रित करेंगे, लेकिन आपने उसे तवज्जो नहीं दी|  मन की बात में आपने लोगों से अंग दान की अपील की, जो मानवतावाद के अनुरूप है| लेकिन मेरे प्रिय प्रधानमंत्री जी आप देश के पथप्रदर्शक है, आपको सलाह देने के बजाय खुद की सारी शरीर दान करके 125 करोड़ देशवाशियों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए था, लेकिन आपने ऐसा नहीं किया|  चुनाव जीतकर शपथ-ग्रहण के तुरंत बाद रेसकोर्स आवास भी ले लिए, जबकि अगर इसे ठुकरा कर साधारण नॉन-एसी बंगले में रहते तो जनता के पैसे से मौज कर रहे नेताओं-अफसरों को शर्म जरूर आती| क्योंकि चाणक्य ने कहा था “जिस देश का राजा महलों में रहता है उस देश की जनता झोपडी में रहती है” जो कटु सत्य है|  फ़िलहाल आप टीवी, रेडिओ के माध्यम से जनता को गैस सब्सिडी छोड़ने की पहल कर रहे है, लेकिन उससे पहले अपने 99% करोड़पति-अरबपति सांसदों से सरकारी खर्चा छोड़ने को तो कहिये| मुफ्त हवाई-यात्रा, मुफ्त रेल-यात्रा, नौकर, लक्जरी गाडी, बिजली, पेंशन, भता, संसद की सब्सिडी वाली कैंटीन का लाभ उठाकर सरेआम गरीबी का मजाक उड़ाना तो बंद कीजिये| फिर एक घर क्या करोड़ों घरों में चूल्हा यूँ जलने लगेगा|  क्योंकि कोई भी पार्टी गरीबों को तो टिकट देती नहीं, जो भी नेता चुने जाते हैं वे या तो अरबपति कारोबारी होते हैं या तो करोड़ों की रंगदारी वसूलने वाले तथाकथित जनसेवक!  प्रधानमंत्री जी, इन मुद्दों पर पहल तो करके देखिये, सब्सिडी छोड़ने वालों की संख्या इतनी हो जायेगी की आप गर्व से किसी देश में जाकर कह सकेंगे “मेरे यहाँ सब्सिडी नहीं लेने वालों की आबादी आपके बराबर है”|

मेरे प्रिय प्रधानमंत्री जी, कभी समय मिले तो सरकारी क्वार्टरों में रह रहे लोगों की ठाठ-बाट जरूर देखने जाइएगा| well furnished कमरे, शानदार भवन और यहाँ तक की बाथरूम में भी पंखे लगे होते है, लेकिन किसके पैसे से? क्या सरकार इनलोगों को मिल रही गैर-जरुरी सुविधायों में कटौती करके किसी गरीब की मदद नहीं कर सकती? सरकारी योजनायों का मजाक बनते तो बहुतों ने करीब से देखा है| लेकिन पर्यावरण समस्या का मजाक बनते आपने भी देखा है की दुनिया के प्रमुख देश कैसे एसी कमरों में बैठकर ग्लोबल वार्मिंग पर चिंता जताते है! लोगों को पर्यावरण का ज्ञान बांटने से पहले खुद ही पर्यावरण की जरूरतों का ख्याल तो रखें!

लोगों को आपकी आलोचना करते देखता हूँ तो मन दुखी हो जाता है, हाँ कईयों का राजनीतिक मकसद भी होता है, फिर भी आखिर देश का युवा आपको नेता जो मानता है| पर, आप भी चुनाव जीतकर युवाओं को भूल गये|  भूल गये की कैसे ये युवा रैलियों में आपके लिए धुप की परवाह किये बिना पलक-पांवड़े बिछा देता था, खंभों पर चढ़कर मोदी-मोदी के नारे लगाता था, वो भी किसी की परवाह किये बिना|  ये युवा कौन थे? ये कोई अरबपति के बेटे नहीं थे, न ही इनका बाप किसी फैक्ट्री का मालिक था और न ही ये अपनी नौकरी से छुट्टी लेकर आपके रैलियों में आता था|  ये सारे लोग जवानी से बुढ़ापे की ओर ढलता बेरोजगार तथाकथित युवा था और अब भी बेरोजगार ही है| ये युवा अबतक राजनीतिक इस्तेमाल कर लेने के बाद फेंका हुआ सा महसूस करने लगा है...| लगा अच्छे दिन आ जायेंगे, लेकिन कैसे? आपने सरकारी वेकेंसी ही बंद कर दी| स्किल डेवलपमेंट शुरू किया अगर विश्वास न हो तो गावों में जाकर पूछिये की क्या किसी को इसका लाभ मिला? जवाब मिलेगा, ये होता क्या है?  प्रधानमंत्री जी, अपना भारत दुनिया का सबसे युवा देश है और आपसे अपेक्षा है की चुनावी रैलियां या पार्टी पॉलिटिक्स की जगह युवाओं की बेहतरी का प्रयास करें तो इसके सार्थक परिणाम मिलेंगें| जो समय की मांग भी है...

संसद सत्र के दौरान कामकाज बाधित होना काफी विचलित करता है| किसी बेतुके से मुद्दे पर जनता का पैसा और वक्त बर्बाद किया जाता है| प्रधानमंत्री जी, जब सांसद अपने वेतन दो गुने तक बढाने की मांग करते हैं तो सत्र की अवधि भी दुगनी क्यों नहीं कर दी जाए?  जब अमेरिकी कांग्रेस साल में 200 दिन काम करती है, ब्रिटिश संसद 150 दिन काम करती है तो हमारे यहाँ 67 दिन ही क्यों? कामकाज बाधित करनेवाले सांसदों पर स्पीकर अपने अधिकार का उपयोग क्यों नहीं करती, जैसे आयरलैंड में मार्शलों द्वारा उपद्रवी सांसदों को उठाकर सड़क पर फेंक दिया जाता है| इसलिए की 150 में 20 दिन का एजेंडा विपक्ष ही तय करता है, यहाँ भी ऐसी व्यवस्था करके उसे अपनी भड़ास निकालने का पूरा मौका दीजिये|

सबसे महत्वपूर्ण चुनाव सुधार की बात है| आपको पता है की बिहार में आपकी पार्टी क्यूँ हार गयी? क्योंकि BJP ने पैसे वालों का टिकट दिए, गुंडों को टिकट दिए, जिसका उस क्षेत्र से कभी कोई सरोकार नहीं रहा| बहुत सारी खामियां रही, खैर जो भी हुआ उसमें सुधार की गुन्जाइश है|  जनता का आपके प्रति मोहभंग होने के बहुत सारे कारण है... उदाहरण के तौर पर कश्मीर जैसे अहम राज्य में आपने अलगावादी के साथ सरकार बनाई, फिर भी भारतीय झंडे को जलने और पाकिस्तानी झंडे को फहरने से नहीं रोक पाए, कश्मीरी पंडितों को फिर से बसाने का वादा ख्याली पुलाव जैसा लगता है, पाकिस्तान-चीन जैसे मसले पर शेर की तरह दहाड़ने वाला व्यक्ति मौन हो जाए, खुद में एक बड़ा सवाल है...  फिर भी तो आप संसद में मौन रहने के बजाए सच बता ही सकते हैं| विदेशों में जाकर अपनी महिमामंडन करना व काला धन पर आपका अति-उत्साही भाषण अलोकप्रियता का कारण रहा है| उनसब में 60 साल बनाम 5 साल का नारा, 60 साल बनाम 25 साल में बदलता दिख रहा है|

मेरे प्रिय प्रधानमंत्री जी, आप अपने चारों तरफ मौकापरस्त चाटुकारों से घिरें है, जिसके कारण ही मुश्किलें आ जाती है| और हाँ, ये राज्यसभा या विधानपरिषद वाले चोर दरवाजे को बंद करवाइए, क्योंकि जो सांसद या विधायक बनने की भी योग्यता नहीं रखता हो वो मंत्री कैसे बन सकता है...
और हाँ आज असहिष्णुता पर कुछ भी नहीं लिखूंगा... घबराइएगा नहीं, हम सारे आप के साथ हैं, बस आप इन मुद्दों को ध्यान में रखिये... क्योंकि किसी ने भी अबतक परमवीर चक्र या अशोक चक्र नहीं लौटाए हैं, जानते हैं क्यों?  क्योंकि ये चाटुकारों को नहीं मिलते...
(अब वक्त आ गया है की हम नेताओं को उनकी आँखों में आँखें डालकर उन्हें याद दिलाएं की हमें उन्हें किसलिए चुना है? उनसे काम की अपेक्षा है न की जनता का पैसा और वक्त बर्बाद करने की...)
                                 आपका विश्वासी
                              अश्वनी कुमार, पटना(बिहार)


                      

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