23 December 2016

350वां प्रकाशपर्व @पटना साहिब

पटना साहिब | पाटलिपुत्र की प्राचीन बस्तियों के बीच स्थित सरदार गुरु गोविन्द सिंह जी की जन्मस्थली है पटना साहिब| सिखों के 10वें गुरु की जन्म से लेकर बचपन तक का गवाह है यहाँ की गलियां| मां गंगा की लहरें बालक गुरु गोविन्द सिंह जी की अठखेलियों की प्रत्यक्ष गवाह सी प्रतीत होती है| मुख्य गुरु घर में रोजाना होने वाली गुरुवाणी या शबद कीर्तन का आनंद हर कौम, संप्रदाय को यहाँ खींच लाती है| गुरुवाणी की अलौकिक और मधुरमय संकीर्तन यहाँ आने वाले हर एक व्यक्ति को असीम शांतिदायक माहौल देता है|
                                                                                                      
गुरु गोविन्द सिंह का जन्म सन 1666 ई० में पटना साहिब में हुआ था| अपनी दिव्य और अलौकिक व्यक्तित्व से आगे चलकर उन्होंने सिखों के दशमेश गुरु की पदवी धारण की| वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। उन्होने सन १६९९ में बैसाखी के दिन उन्होने  खालसा  पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। खालसा पंथ की स्थापना उन्हें त्याग और बलिदान की मूर्ति बना गया| उनकी मूलभावना मानवता में विश्वास तो रखती ही थी, बल्कि शौर्य के उदाहरण रूप में उनकी “सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ प्रचलित है| मुगलों से उनका संघर्ष उनकी वीरता और जीवंत पराक्रम का उदाहरण है|

वर्तमान में आगामी 1 से 5 जनवरी के बीच गुरु गोविन्द सिंह जी का 350वां प्रकाशपर्व मनाया जा रहा है| देश-विदेश से आने वाले बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के लिए सरकार एवं प्रशासन ने तमाम बंदोबस्त किये गए हैं| शहर के प्रमुख चौक-चौराहे ‘वाहे गुरु जी’ के रंग में रंगा है| केंद्र सरकार, पंजाब सरकार और बिहार सरकार ने मिलकर इस 350वें प्रकाशपर्व को ऐतिहासिक बनाने के लिए हर इंतजाम किये हैं, जिसकी झलक आपको देखने मिलेगी|

वाहे गुरु जी के दर पर मैं बचपन से आते रहा हूँ| गुरुघर में बैठना, शबद-गुरुवाणी का श्रवण करना, लंगर खाना ये सब हम पटनावासियों में आदत सी देखने को बेशक मिलती है| यहाँ मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जा न केवल मेरे व्यक्तित्व पर प्रभाव डालती है बल्कि गुरु गोविन्द सिंह जी के सद्विचारों, उनके आदर्शों पर चलने के लिए प्रेरित भी करती है|

मुझे गर्व होता है की मैं भी पटना साहिब की धरती पर पला-बढ़ा और बड़ा हुआ हूँ| गुरु गोविन्द सिंह जी की धरती पर रहने का, सिख श्रद्धालुओं के गुजरते जत्थे को सत् श्री अकाल बोलने की श्रद्धा, निश्चित रूप से हमें सहिष्णु भी बनाती है और सिखों के प्रति प्यार दर्शाने का माध्यम भी बनती है...
अपनापन का भाव किसी की जन्मस्थली पर महसूस करना हो तो एक बार पटना साहिब जरूर आइये... आपका हमेशा स्वागत रहेगा...


लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...

14 December 2016

अनमोल है बचपन इसे बचाओ...

किसी मानव की जिन्दगी का सबसे अनमोल पल उसका बचपन होता है| न दुनिया की चिंता, न घर की फ़िक्र, न रिश्तों की समझ और न अपराध बोध| खेल में मिट्टी से मोहब्बत, पढाई में छुट्टी से प्यार और जिद में खिलौने लेने की प्रतिभा| अद्भुत, अतुलनीय है बचपन| बड़ों का लाड-प्यार और बुजुर्गों का दुलार उसे सारी दुनिया अपना सा दिखाती है| गोद लेने और हठ मनवाने की उसकी कला के आगे अच्छे-अच्छे कलात्मक कलाकार मंद हैं|

बच्चों की बचपन की डोर इस आधुनिकता में ढीली हो चली है| अश्लीलता का वातावरण बचपन की डोर को मैली कर रहा है| माता-पिता जिम्मेदारियों से भागकर इस डोर को किसी ‘आया’ या ‘पडोसी’ के हाथों थमा दे रहे हैं| इस बचपन की डोर में कसावट उस परिवेश से आता है जिसमें अनुशासन, संस्कार या बुजुर्गों का अनुदर्शन हो| पर लोग अब अपने बच्चे को स्मार्ट बनाना चाहते हैं| कुछ पत्थरदिल तो होस्टलों की चहारदीवारी में बंद कर बच्चों के बचपन का सार्थक भविष्य के नाम पर कत्लेआम कर दे रहे हैं|
                                                                     
क्या ये दुनिया आज भी उतनी ही वास्तविक दिखती है, जितनी पहले थी? वक्त बदला और हम आधुनिक भी हुए पर क्या हमने अपनी समझ और बुद्धि खो दी? पश्चिम दर्शन और दार्शनिकों के को हम पथप्रदर्शक मानने लगे| हमारे विद्वानों की आदर, संस्कार, सम्मान की भाषा पिछड़ी लगने लगी और उसे ही लगी जिसने इसी माध्यम को अपनाकर सफलता हासिल की| दर्द देता है ऐसे लोगों का परायापन| क्यों अपनाया हमने पश्चिमी शैक्षणिक व्यवस्था? देश की शिक्षा तंत्र में अंग्रेजी कान्वेंट स्कूलों की व्यवस्था करने वाले लोगों को खींचकर लाओ| उसे बचपन में लाकर 10 घंटे तक उसी स्कुल में बिठाओ|

Image result for child convent school boy india imageकहाँ हैं हमारे देश में बच्चों के हिमायती? 5 वर्ष का बच्चा 7-8 घंटे स्कुल में बिताता है, औसतन 2-3 घंटे बसों में गुजारता है और वापस घर लौटकर ट्यूशन टीचर को झेलता है फिर होमवर्क बनाता है| बच्चों की ये दिनचर्या उसकी मासूमियत को खाए जा रहा है| बालमन को बर्बाद कर रहा है| चार्ट-पेपर, रंग-बिरंगी तस्वीरों की स्कूलों से रोजाना डिमांड अभिभावकों पर भारी पड़ रही है| कला के नाम पर या एक्स्ट्रा एक्टिविटी प्राइवेट स्कूलों की उगाही है|

सरकार एवं तमाम एनजीओ को ‘बचपन का शैक्षणिक शोषण’ मसले पर विचार-विमर्श करके तत्काल स्कूलों को दिशा-निर्देश दिए जाने की जरूरत है| इस तरह एक आयोग बनाकर बच्चों की जरूरतों, अभिभावकों की आर्थिक सक्षमता और बालमन की मासूमियत को ध्यान में रखते हुए कड़े नियमों की दरकार है तभी देश प्रगाढ़ युवाओं के बदौलत भविष्य में विश्व-नेतृत्व का झंडाबरदार बन सकेगा|
नहीं तो हम हर वक्त ब्रिटेन, अमेरिका के मुंह ताककर नीतियाँ बनाने वाले बूढ़े से हो चलेंगे...

लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...

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मन की चंचलता...

           इस दुनिया की फिजाओं में, प्रकृति की गोद में,

          उसकी तन्हाइयों में चले जाने का मन करता है|

                भक्ति रस की अनमोल धाराओं में,

         राम-कृष्ण के भावनामृत में बह जाने का मन करता है|

                 फूलों से भंवरों की मोहब्बत में,

          मेघ से मोर की ख़ुशी में ढल जाने का मन करता है|


    
  पर क्या करूं जीवन-बंधन के मोह में, घर-परिवार की खुशियों में,

कुछ क्रांतिकारी सा ना कर पाने का दर्द आप सब से बांटने का मन करता
                          है...      
           

इसलिए ही शायद कुछ कहने का मन करता है...


05 December 2016

कौन बचा सकता है इन चोरों-बेईमानों से...

देश के आर्थिक परिदृश्य में बड़े बदलाव की कोशिश भी इन चोरों-बेईमानों की बुद्धि के आगे नाकाम बनती जा रही है| भारत सरकार और रिज़र्व बैंक के तमाम पढ़े-लिखे बुद्धिजीवियों का ज्ञान इनलोगों के आगे फेल हो गया| नोटबंदी के फैसले में प्रधानमंत्री से ज्यादा देश की ईमानदार जनता अपना सुनहरा भविष्य देख रही थी, गर्मजोशी से बैंकों के आगे लाइन में खड़े रहकर भ्रष्टाचार को मिटा देने को अपना योगदान समझ रहा था| शुरुआत में भ्रष्टाचारियों की बेचैनी बढ़ी तो देश झूम गया| गंगा में नोट बहने की बातें आई| सरकार और रिज़र्व बैंक ने रोज नए-नए नियमें बदली, नए नोटों से बदलाव की बातें आई मोदी ने भावुक होकर समर्थन माँगा तो लगा की देश की आर्थिक हालत फिर से इसे अच्छे दिनों की तरफ ले जा सकती है|
                                                                            
Image result for black money in india imagesकालाधन वालों ने, काले कारोबारियों ने और टैक्स चोरों ने सबने मिलकर देश की उम्मीदों को धराशाई कर दिया| नेता, अफसर सभी दो-चार दिन की छुट्टी लेकर सारा माल खपा आये| नए नोटों से घूस भी लेना शुरू कर दिया मतलब इन लोगों में बदलाव की रफ़्तार नोट बदलने से भी ज्यादा तेज़ दिखी| ऊपर से सरकार का 50-50 का फार्मूला इनकी बची-खुची चिंता से निदान दिला गया| प्रधानमंत्री और वितमंत्री की काबिलियत में कैशलेस जनता का सपना तो है लेकिन इसी भविष्य की कैशलेस भारत की व्यवस्था में बेरोजगार युवाओं की एक बड़ी फ़ौज पेटीएम में बैलेंस की तलाश कर रही होगी| ऊपर से गरीब, निर्धन लोगों की स्कीम, उनके फायदे पर व्यवस्था की टेढ़ी नज़र होगी वहीँ सरकार का अमला उसे समय-समय पर परेशान करता रहेगा| प्रधानमंत्री चाहे जितने भी दावे कर लें, गरीबों के लिए गंभीर दिखें लेकिन जमीनी हकीकत उन्हें अनजान ही बना रखेगी| क्यूंकि ये सरकारी अमला कभी किसी अमीरों, रईसों के लिए बना ही नहीं| ये मासूम जनता ठगी भी जायेगी और उनके अधिकारों को सिमित भी रखा जाएगा|

गरीब पेटीएम जैसे मोबाइल वोलेट का प्रयोग करेगा ताकि फर्जीवाड़ा रुके, कालाधन समाप्त हो लेकिन कैसे? इन निर्धन लोगों की अशिक्षा का फायदा हाईटेक चोर-उचक्के आसानी से उठा लेंगे| इसलिए की एटीएम का पिन पूछ अमीरों, पढ़े-लिखों को जहाँ ठग लिया जा रहा तो हम इनलोगों के कैशलेस भारत में जीवन, उनकी दिनचर्या कैसे होगी, सोच नहीं सकते?

Image result for poor without money india imageभारत के आर्थिक सुधारों की दिशा में सरकार का हर एक कदम उन 40 करोड़ आबादी का भविष्य तय करती है जिसे कभी वोट बैंक में तब्दील कर दिया जाता रहा है तो कभी राजनीती साधने के नाम पर शोषण कर लिए जाता है| नोटबंदी वाकई एक साहसिक कदम है, लेकिन सरकार से कहाँ चूक हुई? जिसका फायदा भ्रष्टों ने भरपूर उठाया|

सवाल इसलिए भी आया क्यूंकि किसी ने अमिताभ बच्चन, सलमान, अम्बानी, लालू जैसे धनकुबेरों को बैंक के बाहर नहीं देखा| किसी ने उफ़ तक नहीं की, सब मौन साध गए| केजरीवाल, मायावती या ममता का उछलना अपवाद ही रहा| राजनीतिक मतलबों के लिए आरोप-प्रत्यारोप का मसला दूसरा है लेकिन आर्थिक सुधारों के लिए अरबपतियों पर कोई असर न पड़ना ही एक सवाल है| क्योंकि सभी को पता है की सबसे ज्यादा कालाधन कहाँ और किसके पास है? फिर भी...
प्रधानमंत्री की कोशिशों और उनके राष्ट्र के प्रति समर्पण के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार...

लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...

14 November 2016

लूट लिया मोदी ने...

यक़ीनन मोदी ने भ्रष्टाचारियों का 70 साल का सब-कुछ लूट लिया| उन्हें नोट की जगह कागज़ थमा दी| उनकी पीढ़ियों के सुख-सुविधा के लिए जमा पूंजी बर्बाद कर दी| 8 नवम्बर की रात भारत के प्रधानमंत्री ने गुपचुप समूचे देश के बेईमानों के घर डाके डाल दिए| अमीरों का सुख-चैन छीन लिया| लोग खदबदा उठे, चिंतित हो गए लेकिन अपने प्रधानमंत्री के निर्णय, उनके इरादों का जमकर समर्थन किया| नोटबंदी का फैसला जनता के लिए भले ही तकलीफदेह हो लेकिन यह भारत की आर्थिकी में संजीवनी का काम करेगा और नए आर्थिक आयाम भी सिद्ध होंगे| लोग बैंकों की लम्बी कतारों में खड़े होकर भी देश की आर्थिकी की चिंता करने लगे हैं जो पहले राजनितिक संभावनाओं के लिए चायों की दूकान तक सीमित थी|

देश वाकई में तभी गंभीर, समझदार या ईमानदार बनता है जब उसे चलाने वाले देश के लोगों के उज्जवल भविष्य के लिए ईमानदारी दिखाए, गंभीर हो| भ्रष्टाचार, बेईमानी से कमाया धन भले ही चंद लोगों को सुकून देता हो मगर ईमानदारी की राह पर चलने वाले लोगों के वर्तमान में मोदी हैं, उनकी व्यवस्था में नोटबंदी जैसे फैसले भी हैं और भ्रष्टों को मिटा देने की सनक भी है| ये सोंच, ये गंभीरता और व्यवस्था में कायापलट की जरूरतों के बलबूते समाज बेशक नई ऊचाईयों पर जाएगा| अगर सब कुछ ऐसा ही होता रहा तो वो दिन भी दूर नहीं जब लोग अपने हक़ के लिए कमाएं, मानवता में यकीन करें और देश को अपना परिवार समझें| ये थोडा कठिन है पर असंभव भी नहीं|

नोटबंदी का व्यापक असर निश्चित तौर पर आम जन जीवन पर पड़ा है| लोग 500, 1000के नोट लेकर सड़कों पर भटक रहे हैं| घरेलु महिलाओं की बचत के बैंकों में आ जाने मात्र से ही देश की आर्थिकी में मुद्रा का प्रवाह काफी बढ़ जाएगा| बैंकों, एटीएम के बाहर लगी शांतिपूर्ण लाइनों से लोग इस फैसले को सहजता से स्वीकार भी कर रहे और मोदी को इस फैसले के लिए बधाई भी दे रहे| बड़े नोटों की जमाखोरी और नकली नोटों के चलन से न केवन हमारी विकास रफ़्तार में बाधा पहुँच रही थी बल्कि देश के अमीरों-गरीबों के बीच आय में गहरी खाई उत्पन्न हो गई थी| इसलिए भी की लोग पैसों के लिए शॉर्टकट का इस्तेमाल करते हैं| यही शॉर्टकट का प्रयोग लोगों को अथाह, अनगिनत पैसे-साधन तो उपलब्ध तो करा देता है लेकिन उनका जीवन अशांत हो जाता है| मन में पैसों का डर बैठ जाता है| सरकार और उसकी व्यवस्था को ठेंगा दिखाया जाता है और अंततः देश ऐसे लोगों से कराह उठता है और जनता मोदी जैसे को आगे लाने की जरुरत महसूस करती है|
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आम जनता में कुछ लोग बेईमान जरूर हैं पर ख़ास लोगों में नेताओं और उनकी पार्टियों का बेईमानी पर कॉपीराइट है| नेता, अफसर, जमाखोर ही सबसे ज्यादा उत्पात मचाते हैं, लोगों को लुटते हैं लेकिन इस बार उनकी लुटी है और आम जनता मज़े ले रही है, तालियाँ ठोंक रही है| नगद लेन-देन के बलबूते चल रहे नेताओं और पार्टियां औंधे मुंह गिरी है| मोदी के फैसले के साथ समूचा देश खड़ा है, उन्हें जनता से वाहवाही भी मिल रही है और ऐसा प्रधानमंत्री पाने का सौभाग्य से उन्हें आशीर्वाद भी|

देश भविष्य में और भी होने वाले सख्त निर्णयों को झेलने के लिए तैयार खड़ा है| देश बदल रहा है... यक़ीनन देश बदलेगा, हम भी बदल रहे हैं... यक़ीनन हम भी बदल जायेंगें... ईमानदार हो जायेंगे...


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लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...