01 March 2016

मोदी ने मौका गंवाया

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने देश का 2016-2017 के लिए आम बजट पेश किया| नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल का तीसरा बजट प्रस्तुत किया, लेकिन इन बजटों में सरकार आर्थिकी सुधार का रोना रोने के अलावा कोई ऐसे फैसले न ले सकी जिससे देश के दूर-दराज गांवों में रहने वाली इस देश की असली आबादी झूम उठे| शाबाशी दे, वाहवाही दे या मोदी को वोट देने के फैसले से खुद पर गर्व करे| मोदी सरकार पर जनता ने लोकसभा चुनावों के वक्त जितना विश्वास दिखाया था, मोदी बदले में एक फीसदी भी इस विश्वास को हकीकत नहीं बना पाए| देश की जनता अपने नेताओं से त्याग चाहती है, बाबुओं की बाबूगिरी को ख़त्म करवाना चाहती है, जीडीपी के आंकड़ों के बजाय अपनी तरक्की चाहती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ| मैं बजट के किसी भी मुद्दे पर बात नहीं करना चाहता| क्योंकि मुझे पता है गरीबों और किसानों की बेहतरी के लिए पिछले 67 सालों से हम मुर्ख ही बने हैं| शायद इसलिए कहा जाता है की मूर्खों के देश में ठग भूखे नहीं मरते! मुझे तो हंसी आती है इस सरकार पर, की सिंचाई प्रबंधों के लिए घोषणा करके खुद ही मसीहा बनने का ताल ठोक रही है| जबकि मैंने एक अखबार में पढ़ा की पंजाब राज्य में देश के सबसे बेहतर सिंचाई प्रबंधों के बावजूद भी किसानों की आत्महत्या करने की रफ्तार दिन प्रति दिन बढती ही जा रही है|

मैंने पहले कहा था की सरकार के लिए यह बजट आखिरी मौका था और देश को भी उम्मीद थी की मोदी कोई सनसनीखेज घोषणा जरूर करेंगे| लेकिन सरकार ने देश की आर्थिकी को सुधरने की कसम खा ली है| सरकारी खर्चे कम करेंगे, लोगों की सब्सिडी कम करेंगे और राजाओं की तरह अपनी गरीब प्रजा से लगान (टैक्स) वसूलते रहेंगे, दिन पर दिन उसे बढ़ाते रहेंगे| उन पैसों से उन्हीं प्रजा के लिए तरह-तरह के इंतजाम करेंगे| उनके लिए बुलेट ट्रेन चलायेंगे, हवाई जहाज खरीदेंगे, फर्स्ट क्लास सरकारी भवनों को इंतजाम करेंगे ताकि राजकाज से जुड़े लोग ही उसकी अय्याशी करें, जनता का हक़ डकारें विदेश घूमें और मौज करें| इसलिए की सरकार को पता है की गरीब के लिए बुलेट ट्रेन के टिकट खरीदना तो दूर खाने की सोचना भी परेशानी है|
अरबों रुपये के नए संसद भवन बनायेंगे क्योंकि पुरानी भवन को गिरने का खतरा है चाहे देश के लोग मिट्टी के घरों में दबकर कीड़े-मकोड़ों की तरह मरते रहें| इनलोगों को उस तरह थोड़े न मर जाना है... कुछ अच्छा करना है...किसी का हक़ मारना है...

मोदी सरकार का ये दूसरा साल है| पिछले रिकार्डों को देखते हुए ये संभव है की अगले साल तक चुनाव के लिए लामबंदी, गन्दी बयानबाजी, आरोप-प्रत्यारोप और घटिया राजनीति का दौर शुरू हो जाएगा सिर्फ सत्ता पाने के लिए या बरकरार रखने के लिए| जब देश में बीजेपी की सरकार बनी थी तब से लोग मोदी सरकार के कुछ अच्छा कर देने की आस वक्त के साथ धूमिल होती गयी है| मोदी से त्याग करने की अपेक्षा बेमानी साबित हुई तो मंत्रियों के क्या कहने! सरकार को सबसे पहले सांसदों-मंत्रियों को दिए जाने वाली मुफ्त की सुविधायों पर डंडा चलाना चाहिए था| चूँकि देश के 100% संसद या तो लखपति होते हैं या तो करोड़पति-अरबपति| और राजनीति में तो लोग जनता की सेवा करने के लिए आते हैं फिर इन करोड़पतियों को गरीब के पसीने की कमाई से गैर-जरूरी भत्ते क्यों दिए जाएँ? मुफ्त का मकान क्यों मिले? अपनी गाडी रखने की औकात वालों को मुफ्त में गाड़ियां क्यों दें? उनके बच्चे निजी स्कूलों में क्यूँ पढ़ें, सरकारी स्कूलों में क्यूँ नहीं? वो अपना इलाज़ विदेश में क्यूँ कराएँगे, देश में क्यूँ नहीं?

कुछ नहीं होने वाला| क्योंकि जिस पर हम नाज़ करते थे वही पीएम बन जाने के बाद भव्य एसी युक्त बंगले में रहने लगे, लाव-लश्कर के साथ मर्सिडीज से संसद जाने लगे और वे सब कुछ करने लगे जो जनता को कभी नहीं सुहाती और  जिसकी आलोचना करके जनता में विश्वास पैदा किया था| फिर भी मोदी की मंशा पर मुझे तनिक भी शक नहीं हो सकता, सैकड़ों कारण हैं| बेरोजगारों, गरीबों और अशिक्षितों की बेहतरी के प्रयास किये जाने चाहिए| उन्हें इनसब के अँधेरे में जुमलों के अलावा कुछ टिमटिमाता-जगमगाता हुआ सा दिखाने की कोशिश की जानी चाहिए ताकि भरोसा बना रहे, विश्वास बरकरार रहे| यह नहीं की उसी के बहाने अगला चुनाव जितने की कोशिश करने लगें क्योंकि जनता द्वारा नकारे व्यक्ति से देश की आर्थिकी की योजना बनाना जनता से मजाक है| जनता मोदी के फैसलों से झूम ही नहीं सकती, इसलिए की मोदी लहर में भी जेटली का 2 लाख वोटों से चुनाव हारना भगवान का स्पष्ट इशारा था... फिर तो भगवान से विपरीत जाने से लुटिया डूबेगी ही...


लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना (मैंने मोदी को वोट बेशक दिया था, लेकिन वोट डालने के बाद हर किसी को सख्त हो जाना चाहिए, सवाल पूछिये| किसी पार्टी का फैन मन बनिये... क्योंकि फैन राजनीति का नया गुंडा है...) Please visit my blog:-  ashwani4u.blogspot.com

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