05 July 2016

कृषि का सत्यानाश

Image result for bhartiye krishi imageभारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है| देश के ग्रामीण इलाकों में रहनेवाली आबादी भारी तौर पर कृषि पर ही आधारित है| इस देश का किसान अपनी मेहनत और परिश्रम के बल पर अनाज उगाता है, उसे सींचता है फिर भी उनकी मेहनत का मूल्य उपजाने में लगी लागत से भी कम मिलता है| अब कृषि फायदे का सौदा नहीं रहा| लोग कृषि से दूसरी क्षेत्र की ओर पलायन को मजबूर हो रहे हैं| कृषि पर निर्भर रहनेवाले लोगों की तादाद तेजी से घाट रही है| देश में 45 फीसदी यानी आधे से भी कम लोग कृषि पर निर्भर है| देश का 64% क्षेत्र खेती के लिए मानसून और बारिश की मेहरबानी पर निर्भर है| आबादी बढ़ रही है, खाधान्नों की मांग बढ़ रही है, खपत में इजाफा होने से महंगाई भी बढ़ रही है तो वहीँ सबसे चिंताजनक बात ये है की देश में कृषि योग्य जमीनें काफी तेज़ी से घट रही है| बिना किसी स्पष्ट नीतिओं के देश की कृषि विकास के अन्धानुकरण में फंसकर उसकी चमक फीकी पड़ती जा रही है| क्या कृषि के साथ हो रही नजरंदाजी वैश्वीकरण या औधोगीकरण में सहायक है या फिर हम पश्चिमी भागदौड़ और उनकी सुख-सुविधाओं के पीछे भागते-भागते अपनी कृषि की पुरातन विरासत को यूँ खो देंगे? इस तरह हमें एक भीषण और व्यापक खाधान्न संकट का सामना करना पड़ सकता है|

Image result for bhartiye krishi imageभारतीय कृषि के साथ 1960 के बाद हरित क्रांति के रूप में किये गए प्रयोग काफी सफल रहे| पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों का खाधान्न उत्पादन न केवन आश्चर्यजनक रूप से बाधा, बल्कि नये-नये रासायनिक प्रयोगों से खेती पहले की तुलना में काफी सरल भी हुई| हाइब्रिड बीजों का प्रयोग शुरू हुआ, रासायनिक उर्वरक को पारम्परिक उर्वरक की जगह बेहताशा इस्तेमाल में लाया गया, सिंचाई की व्यवस्था हुई, नये-नये कृषि यंत्रों का आविष्कार हुआ| इस तरह से हमारी कृषि वैज्ञानिक तरीके से बेहतर हो हुई पर, भविष्य में उसके परिणामों की चिंता न कर सकी| नतीजा यह हुआ की कम जगह में ज्यादा पाने की ललक किसानों पर भरी साबित हुई| इसलिए की अब मिट्टी की उर्वरता, रासायनिक तत्त्वों के बेजा इस्तेमाल से घटने लगी है| मिट्टी को मिलने वाली पोषण कीटनाशकों और खरपतवार नाशी दवाओं के कारण बंद हो गई है| नदी, तालाब व कुओं पर निर्भर पुरानी सिंचाई व्यवस्था की जगह नलकूपों, मोटरपाइपों का बेजा इस्तेमाल होने लगा और इस तरह से सूखे व जलस्तर नीचे चले जाने की समस्या शुरू हो गई|

Image result for bhartiye krishi imageपुरातन कृषि परम्परा जो पूरी तरह से प्राकृतिक स्त्रोतों पर आधारित थी उसकी जगह मानवजनित यंत्रों द्वारा उन स्त्रोतों का दोहन शुरू कर दिया गया| इस तरह से भारतीय कृषि में सम्मलित पाशुपालन, मत्स्य पालन, कीटपालन और बागवानी जैसे कृषि के स्वरूप कम होते गए या विलुप्त होने के कगार पर हैं| लोगों में विलासित बढ़ रही है, मेहनत करने के बजाए मशीनों का इस्तेमाल बढ़ रहा है| इस तरह से पारिस्थितिकी से छेड़छाड़ करने का परिणाम लोगों को अब दिखने लगा है| अगर कृषि में बढ़ रही बेरोजगारी और पलायन की स्थिति को रोकने के लिए जल्द कोई कारगर कदम न उठाये गये तो ये हमारी अर्थव्यवस्था, हमारी आबादी के लिए एक भीषण संकट का कारण बन सकती है| अगर ऐसा हुआ तो हमारा भविष्य निश्चित तौर पर कृषि की विरासत से वंचित हो सकता है... इसमें कोई दो राय नहीं...

लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...


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