14 August 2016

क्या तिरंगा देशभक्ति का प्रतीक है?

तिरंगे को देशभक्ति का प्रतीक होना कई सवाल छोड़ जाता है| भारत राष्ट्रराज्य की पहचान तिरंगे से मानी जाती है| विदेशों में नेताओं और राजनयिकों की पहचान भी तिरंगे से ही है तो वही देशप्रेम की चिताओं में जलने वाले शहीद जवानों का कफ़न भी| देशद्रोहियों के लिए विरोध जताने का एकमात्र कारगर हथियार तिरंगे को जलाकर फोटोशूट करवाना है| दुनिया में हर देशों के अपने-अपने झंडे हैं और उनकी अपनी अलग-अलग उपयोगिता| पर भारत में झंडे या देशप्रेम-राष्ट्रभक्ति को झंडे से जोड़कर जितना हल्ला मचता है वो किसी और देश में नहीं|
हर बार की भांति इस बार भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तथाकथित राष्ट्रभक्त इसी तिरंगे के नीचे खड़े होकर देश का गुणगान करेंगे, जिसने तिरंगे के रंगों को धर्मों के बीच बांटा| केसरिया रंग हिन्दू का है तो हरा मुसलमान का| बीच में बचे हुए अशोक चक्र को भी तो जातियों ने अपना-अपना घोषित कर रखा है| इन्सालाह भारत तेरे टुकड़े होंगे, भारत की बर्बादी तक जंग करेंगे जैसे नारे किसी को देशभक्त या शहीद से ज्यादा मूल्यवान बना सकता है| इस आजाद भारत के डीएनए में इस वैचारिकता का जहर उस परिवेश से आया जिसमें हमारा भारत पिछले 70 सालों से आजादी का जश्न मना रहा था| पर हम भूल गए की तिरंगे को या भारत को बांटने की बात करना किसी को जबरदस्ती राष्ट्रवादी बना सकती है... ये हमारे आज के आजाद भारत की हकीकत है|

फिर बात आती है की क्या तिरंगा देशभक्ति का प्रतीक है? क्या तिरंगे को जनता के लुटे हुए पैसों से खरीदी गाड़ियों पर लगा देने से वो देशभक्त हो जाता है? या फिर देश की बर्बादी का समर्थन करने वालों के लिए इस एक दिन झंडे के नीचे आजादी का जश्न मना लेना उसके देशप्रेम का सबूत बन जाता है? अगर ऐसा है तो हमारा राष्ट्रीय ध्वज देशभक्ति का प्रतीक कम और अनैतिकता, स्वार्थ और कुकृत्य के कर्मों का पर्दा ज्यादा लगता है...  कभी असली देशभक्तों से जाकर पूछिए, हमारे वीर जवानों से जाकर सीखिए की तिरंगे को देशभक्ति और देश के आन-बान-शान का ताज कैसे बचाकर रखा जाता है...

लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...



आजादी की अपनी गाथा

देश को जब आजादी मिली तब मैं पैदा नहीं हुआ था| स्कूली किताबों से, कहानियों से, कविताओं से और देशभक्ति फिल्मों को देखकर-सुनकर आजाद होने का पता चला| हम स्वतंत्र भारत में जीने वाले लोग हैं, जहाँ स्वतंत्रता के नाम पर या आजादी के नाम पर कितनों को ठग लिया जाता है, लुटा जाता है, मारा जाता है और फिर हर 15 अगस्त या 26 जनवरी को तिरंगे के नीचे खड़े होकर उसी आजादी का जश्न भी मनाया जाता है| धर्म और जातिवाद का अफीम समाज को सदियों से मदहोश करता आया है| ये मदहोशी उस पाखंडी सम्प्रदायवाद और जातिवाद के संकीर्ण विचारधारा का परिणाम है, जिसमें लोग ईश्वरीय व्यवस्था का झूठा नारा देकर लोगों की आजादी को छिनने का प्रयास कर रहे हैं| आजादी के नाम पर अपनी व्यवस्था थोपने का ढोंग रच रहे हैं|

राष्ट्रवाद और देशप्रेम के परिभाषाओं में बड़ा अंतर पनपने लगा है| देशप्रेम के गहरी खाई के दोनों ओर खड़े विपरीत मानसिकता लिए तथाकथित राष्ट्रवादी लोग एक-दुसरे को देशद्रोही घोषित कर रहे हैं| पर कोई इंसानियत के नाते इस देशभक्ति के गड्ढों को पाटने के कोशिश भी नहीं करता| इनलोगों के झगड़ों में कई नेता और दल उसी गड्ढे की मिट्टी से अपना घर लीप कर गड्ढे को और गहरा बना दे रहे हैं| भारत राष्ट्र राज्य की बनावट इसकी ख्याति रही है| इसका सामाजिक तानाबाना दुनिया में अलग पहचान की वजह है| लेकिन इसी सामाजिक तानेबाने पर लोगों की व्यक्तिगत महत्वकांक्षा भारी पड़ रही है| हिन्दू मुसलमान को मार रहा है और मुसलमान हिन्दुओं को| दलितों को सवर्ण मार रहा है तो सवर्णों को पुलिस, नेता और व्यवस्था| पश्चिम वाले उत्तर वाले को देखना नहीं चाहते तो पूरब वाला उत्तर वाले को देखना बर्दाश्त नहीं|

देश में एक संविधान है जैसा भी है लोगों को कायदे से चलना सिखाता है| पर हकीकत बहुत भयावह है| देश के हर कोने में हर लोगों का अपना संविधान है| इसलिए की कहीं धर्म के नाम पर लोगों को उजाड़ दिया जाता है तो कहीं भाषाई आधार पर मजदूरों को पिट दिया जाता है तो कहीं संस्कृति का हवाला देकर धार्मिक कपडे न पहनने वाली महिलायों को सरेआम कूट दिया जाता है| देश के संसाधनों को अपना बताया जा रहा है, हर क्षेत्र को किसी न किसी ने उसे अपना जरूर घोषित कर रखा है| आजादी का नाम पर आजाद लोगों का शोषण हमें डरा देता है की कहीं अंग्रेज फिर से न आ गए हों| पुलिस, प्रशासन, जज या अफसर सभी का अपना संविधान, अपना कानून है| वे अपने बनाए नियम कायदे से चलते हैं| गाँधी की फोटो के नीचे मिठाई के नाम पर करोड़ों का धंधा चल रहा है| फिर तो गाँधी की विचारधारा फ़ालतू और बकवास सी भी दिखती है|

आजादी के नाम पर जनता को ठगने का इतिहास काफी पुराना है| हर वर्ष देश के प्रधानमंत्री लाल किले से वादों की फुलझड़ी से देश को रोशन करते हैं| सब बेहतर कर देने का भरोसा अतीत के सारे घोटालों पर पर्दा लगा देने जैसा है| फिर भी जनता हर वर्ष प्रधानमंत्री के भाषणों को सुनकर झूम जाती है लेकिन उसे महसूस करते-करते अगला स्वतंत्रता दिवस चला आता है|

क्या गाँधी जी ने जिस आजाद भारत की कल्पना की थी वो वाकई में यही भारत है? गाँधी के आदर्शों का बखान करते-करते उनके चापलूसों ने अपनी सहूलियत के हिसाब से संविधान बनाया, कानून बनाया और जनता पर राज करते रहे की साजिश रची| सिस्टम के नाम पर हर चौक-चौराहे से लेकर बड़ी-बड़ी इमारतों में डंडे देकर अपने पहरेदार बिठाए| उन्हें लाठी देकर जनता की आजादी को छिनने का पूरा इंतजाम किया| चुनावों के वक्त जनता के लुटे हुए पैसों से उसके उम्मीदों को सफ़ेद बनाया जाता है| बेशक, इस आजाद भारत की जनता अपनी आजादी का मूल्य जानती है, समझती है पर गरीबी और अशिक्षा के कारण सबकुछ स्वीकार कर लेना उसकी मजबूरी है| क्योंकि उसे पैसे चाहिए, शराब चाहिए और सिस्टम की मार से बचने के लिए किसी पार्टी का झंडा भी चाहिए|

आजाद भारत की गाथा इस आधुनिक दुनिया में स्कूली किताबों या नेताओं के भाषणों
के सहारे नहीं टिक सकती| झंडे लहरा देने से कोई देशभक्त नहीं हो जाता| राष्ट्रवाद और देशभक्ति का जूनून लोगों में एक दिन झंडे के नीचे खड़े हो जाने से नहीं आता| या फिर हथियारों के प्रदर्शन से कोई अपनी देशभक्ति की विचारधारा यूँ ही नहीं बदल देता| क्योंकि देश में राष्ट्रवाद की आड़ में इतनी साजिशें रची जा रही है की हमारी आनेवाली पीढ़ी तो इस एक दिन भी देश पर गर्व करने से कतराएगी...

क्या वास्तव में भारत वही धरती है जहाँ बुद्ध, महावीर जैसे शांतिदूत, चाणक्य जैसा पथप्रदर्शक या सम्राट अशोक, महाराणा प्रताप, भगत सिंह, आजाद या बोस जैसे वीर पैदा हुए थे...   अगर हाँ तो इस महान धरती की मिट्टी में जहर किसने घोला? बंजर बनाने की साजिश किसने रची? जबाव हमें पता है फिर भी ढूंढने का ढोंग करना पडेगा... क्योंकि उनके वंशज भी अभी मौजूद हैं और इन महान वीरों के भी, देखते हैं जीत किसकी होती है... 


लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’
(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...

04 August 2016

दलित उत्पीड़न का पाखंड

देश में उपेक्षा के शिकार दलितों के लिए आरक्षण के ढोंग से ज्यादा कुछ नहीं किया गया जिससे उनकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति बदले और बेहतर बने| बाबा साहेब आंबेडकर आजकल इतने प्रचलित हैं की देश का हर नेता अपने भाषणों में उनका नाम जरूर लेता है| इसलिए नहीं की उन्होंने दलितों, वंचितों या शोषितों की सामाजिक स्थिति को आरक्षण या अधिकार का नाम देकर बेहतर करने की कोशिश की या उन नेताओं के लिए दलित प्रेम की पटकथा लिखकर अभिनय करते रहने की विचारधारा का जन्म दिया| दलित उत्पीड़न की कोई खबर मिलते ही इनकी दलित प्रेम की भुजाएं फडकने लगती है, मन-मष्तिस्क उनके वोट को अपना बना लेने की रुपरेखा से भर आता है| पर उन्हीं लोगों की वास्तविक चरितार्थ यह भी है की उनकी कारों को धोने वाले, झंडे को ढोने वाले, बंगले की सफाई करनेवाले या गेटों पर सलामी ठोकने वाले लोग भी दलित हो सकते हैं और बेशक होते हैं|
                                                                                                   
Image result for poverty india imageगुजरात से लेकर कर्नाटक और उत्तरप्रदेश तक दलितों पर अत्याचार के मामले बढे हैं| अनुसूचित जातियां या जनजातियाँ अगड़ी जातियों के गुंडई के आगे कुछ नहीं कर पाते| एससी-एसटी एक्ट से लेकर दलित उत्पीडन जैसे कई कानूनों के तामझाम भी इन्हें सामाजिक या कानूनी सुरक्षा नहीं दे पाता| कई जगहों पर हालात अभी भी इतने भयावह हैं की ये लोग उनके सामने कुर्सी पर बैठने का साहस नहीं जुटा पाते, सलाम ठोकने और सीवरेज साफ़ करने का रिवाज उनकी पीढ़ियों की परम्परा रही है| अतीत के जितने भी राजनेताओं चाहे वो आंबेडकर हों या कांशीराम सभी ने दलित उत्थान की कोशिश राजनीतिक तकाजे से की, लोगों के बीच जाने की जगह संसद में बैठकर हकीकत जानने की कोशिश की|

आंबेडकर ने तो कानून और आरक्षण का सहारा लिया जिस कारण वे अभी भगवान की तरह पूजे भी जा रहे हैं| पर हकीकत है की इसलिए नहीं पूजे जा रहे की उन्होंने दलितों को समाज में एक नई पहचान दिलाई या उन्हें अगड़ों के साथ खड़ा कराने की लिए संविधान, कानून की मुकम्मल व्यवस्था कराई| लेकिन सच यह है की आज उनकी पूजा इसलिए की जा रही है क्योंकि उन्होंने भारत के नेताओं के लिए दलित उत्थान, शोषण मुक्त समाज के नारों में इन नेताओं के लिए एक बेहतर, स्थायी और मुकम्मल व्यवस्था की रुपरेखा तैयार की थी| शासन करते रहने के लिए आरक्षण का जुमला बनाया था| जातिवाद के चुंगुल से जनजातियों को आजाद कराने का सपना जो उन्होंने देखा था वही सपना स्वयं को उनके उत्तराधिकारी घोषित कर रखने वाले मायावती, नीतीश, मुलायम, कांग्रेस और यहाँ तक की भाजपा भी देख रही है और दलितों को दिखा भी रही है|

दलित उत्पीडन के बहाने हर बार हर एक राजनीतिक दल उस सपने को चुनावों के वक्त देश को बताती है और सपने देखते रहने का नारों के बदौलत हौंसला भी देती है| पर सवाल है की आरक्षण, विभिन्न दलित अत्याचार निवारण कानूनों, अरबों-खरबों की दलित योजनाओं पर देश का पैसा फूंक देने से भी हालात क्यूँ नहीं बदली? देश में अनुसूचित तबके के लोग ही सर्वाधिक कुपोषित और बेघर क्यूँ हैं? उनका पैसा, उनके सपने को कौन डकार जाता है?

Image result for dalit india imageदेश में दलित अत्याचार या मानसिक उत्पीडन पर समुचित व्यवस्था के बावजूद भी रोक क्यों नहीं लगाई जा सकी है? आंकडें बताते हैं की अत्याचार के विरुद्ध पुलिस शिकायत के बाद हर दुसरे दलित पर दुबारा हमले होते हैं या वो शिकायत वापस ले लेता है| कुछ मामलों में तो दलितों की तरफ से भी अगड़ों या ओबीसी जातियों पर झूठे मुकदमें दर्ज कराकर उनका उत्पीडन किया जाता है| अधिकारों के दुरूपयोग के मामलों में भी गहराई से विचार करके समुचित व्यवस्था बनाई जानी चाहिए ताकि किसी का अधिकार या आवाज न दबे|

जाति के नाम पर, छुआछुत के नाम पर या परंपरा न निभाने के नाम पर किसी को पीटना अगर अगड़ों की खुलेआम गुंडई है तो मूर्तियाँ बनाकर, घरों में भोजन करके या संसद में हंगामें करके दलितों का मसीहा बताना उससे भी बड़ी गुंडागर्दी है| दलितों की आवाज बनकर उनके आवाज को वोट बैंक में तब्दील करना अधिकारों की हत्या है, शोषण की प्राणवायु है और समाज के असल गुंडों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी...   इन सब में सबसे बड़े मुर्ख दलित ही हैं और बेशक इन नेताओं के बदौलत जीवनभर रहेंगे...

लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...