14 November 2016

लूट लिया मोदी ने...

यक़ीनन मोदी ने भ्रष्टाचारियों का 70 साल का सब-कुछ लूट लिया| उन्हें नोट की जगह कागज़ थमा दी| उनकी पीढ़ियों के सुख-सुविधा के लिए जमा पूंजी बर्बाद कर दी| 8 नवम्बर की रात भारत के प्रधानमंत्री ने गुपचुप समूचे देश के बेईमानों के घर डाके डाल दिए| अमीरों का सुख-चैन छीन लिया| लोग खदबदा उठे, चिंतित हो गए लेकिन अपने प्रधानमंत्री के निर्णय, उनके इरादों का जमकर समर्थन किया| नोटबंदी का फैसला जनता के लिए भले ही तकलीफदेह हो लेकिन यह भारत की आर्थिकी में संजीवनी का काम करेगा और नए आर्थिक आयाम भी सिद्ध होंगे| लोग बैंकों की लम्बी कतारों में खड़े होकर भी देश की आर्थिकी की चिंता करने लगे हैं जो पहले राजनितिक संभावनाओं के लिए चायों की दूकान तक सीमित थी|

देश वाकई में तभी गंभीर, समझदार या ईमानदार बनता है जब उसे चलाने वाले देश के लोगों के उज्जवल भविष्य के लिए ईमानदारी दिखाए, गंभीर हो| भ्रष्टाचार, बेईमानी से कमाया धन भले ही चंद लोगों को सुकून देता हो मगर ईमानदारी की राह पर चलने वाले लोगों के वर्तमान में मोदी हैं, उनकी व्यवस्था में नोटबंदी जैसे फैसले भी हैं और भ्रष्टों को मिटा देने की सनक भी है| ये सोंच, ये गंभीरता और व्यवस्था में कायापलट की जरूरतों के बलबूते समाज बेशक नई ऊचाईयों पर जाएगा| अगर सब कुछ ऐसा ही होता रहा तो वो दिन भी दूर नहीं जब लोग अपने हक़ के लिए कमाएं, मानवता में यकीन करें और देश को अपना परिवार समझें| ये थोडा कठिन है पर असंभव भी नहीं|

नोटबंदी का व्यापक असर निश्चित तौर पर आम जन जीवन पर पड़ा है| लोग 500, 1000के नोट लेकर सड़कों पर भटक रहे हैं| घरेलु महिलाओं की बचत के बैंकों में आ जाने मात्र से ही देश की आर्थिकी में मुद्रा का प्रवाह काफी बढ़ जाएगा| बैंकों, एटीएम के बाहर लगी शांतिपूर्ण लाइनों से लोग इस फैसले को सहजता से स्वीकार भी कर रहे और मोदी को इस फैसले के लिए बधाई भी दे रहे| बड़े नोटों की जमाखोरी और नकली नोटों के चलन से न केवन हमारी विकास रफ़्तार में बाधा पहुँच रही थी बल्कि देश के अमीरों-गरीबों के बीच आय में गहरी खाई उत्पन्न हो गई थी| इसलिए भी की लोग पैसों के लिए शॉर्टकट का इस्तेमाल करते हैं| यही शॉर्टकट का प्रयोग लोगों को अथाह, अनगिनत पैसे-साधन तो उपलब्ध तो करा देता है लेकिन उनका जीवन अशांत हो जाता है| मन में पैसों का डर बैठ जाता है| सरकार और उसकी व्यवस्था को ठेंगा दिखाया जाता है और अंततः देश ऐसे लोगों से कराह उठता है और जनता मोदी जैसे को आगे लाने की जरुरत महसूस करती है|
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आम जनता में कुछ लोग बेईमान जरूर हैं पर ख़ास लोगों में नेताओं और उनकी पार्टियों का बेईमानी पर कॉपीराइट है| नेता, अफसर, जमाखोर ही सबसे ज्यादा उत्पात मचाते हैं, लोगों को लुटते हैं लेकिन इस बार उनकी लुटी है और आम जनता मज़े ले रही है, तालियाँ ठोंक रही है| नगद लेन-देन के बलबूते चल रहे नेताओं और पार्टियां औंधे मुंह गिरी है| मोदी के फैसले के साथ समूचा देश खड़ा है, उन्हें जनता से वाहवाही भी मिल रही है और ऐसा प्रधानमंत्री पाने का सौभाग्य से उन्हें आशीर्वाद भी|

देश भविष्य में और भी होने वाले सख्त निर्णयों को झेलने के लिए तैयार खड़ा है| देश बदल रहा है... यक़ीनन देश बदलेगा, हम भी बदल रहे हैं... यक़ीनन हम भी बदल जायेंगें... ईमानदार हो जायेंगे...


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लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...



03 November 2016

नेताओं की गद्दारी पुरानी आदत

भारत में लोकतंत्र के बुनियाद और उसके कर्ता-धर्ता, पोषक नेताओं के हवाले रखा गया| नाममात्र के जनतांत्रिक अधिकारों की झांकी से नेताओं के कारनामों और हरामखोरी के इतिहास पर पर्दा नहीं डाला जा सकता| नेताओं का चिंतन और दूरदर्शिता के पैमाने पर देश के साथ वक्त-वक्त पर की गई कायरता, गद्दारी उन्हें बुद्धिजीवी भी बनाती है और न्यूज़ से पोपुलर भी| चुनाव जीतने के लिए या फिर मुस्लिम वोट पाने के लिए इन नेताओं की टोलियाँ धीरे-धीरे देश की जडें खुरेदते चली जा रही है| राजनेताओं के संदर्भ में ऐसी कठोर शब्दों का इस्तेमाल करना मजबूरी बनती जा रही है| भारतीय राजनीति में दिग्विजय, लालू और केजरीवाल जैसे नेताओं की उपस्थिति, लोकतंत्र और नेतातंत्र दोनों के लिए धब्बा है|
                                                                                  
सरकार और प्रशासन दोनों के फैसलों में कमियां ढूंढ़कर हल निकालना बेशक विपक्ष का काम और जिम्मेदारी दोनों हैं, लेकिन राष्ट्रहित के मसलों पर वोट के लिए या मुसलमानों को खुश करने के लिए आतंकवादियों का समर्थन, देशहित का गला घोटने जैसा है| भोपाल एनकाउंटर में सही या गलत की चर्चा से या फिर उन आतंकवादियों की तरफदारी से न केवन देश के गद्दारों का मनोबल बढेगा बल्कि इन नेताओं की बयानबाजी से आतंक को पनपने का बेहतर माहौल भी मिलेगा| देश की तमाम राजनीतिक पार्टियाँ आतंक की विरूद्ध की गई कारवाई में बड़ी बाधक बनती है| कश्मीर से लेकर देश के अन्य आतंकग्रस्त क्षेत्रों में सैनिक कारवाई को धर्म से प्रेरित बताना, देश के सैनिकों का मनोबल तोड़ कर रख देता है| सुरक्षा बलों पर सवाल उठाने वाले कभी एक बार अपने आस-पास खड़े सुरक्षा कर्मियों को हटा कर देख लें की डर और आतंक क्या होता है?

सम्प्रदायवाद या धार्मिक आधार पर आतंक या गुनाह को बांटना देश तोड़ने जैसा है| कश्मीर में आज अलगाववाद की स्थिति इसलिए है की क्षेत्रीय तौर पर आतंकवादियों और पत्थरबाजों को उनका समर्थन हासिल है| देश के अन्य शहरों में बढती कट्टरपंथी उत्पात धीरे-धीरे दंगे का शक्ल ले रही है| हिन्दुओं के हर त्यौहार में बाधाएं डालकर दंगे करवाले की सोची-समझी साजिश रची जा रही है| नहीं तो क्यूँ गैर-बीजेपी शासित राज्यों में दंगों के आंकडें बेहद भयावह हैं?

Image result for bhopal encounter imageImage result for gaddar neta imageआतंकवादियों या देश के सुरक्षा के लिए खतरा बनते लोगों को ठोकना, देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त लोगों के लिए खौफ पैदा करता है| सफेदपोशों के संरक्षण में पल रहे देश के गद्दारों को मार गिरना अब भी सेना के लिए पाक से बड़ी चुनौती है| फिर भी सेना के मनोबल के जरिये उनके साहस, पराक्रम या वीरता को जीवंत रखने की कोशिश करने के लिए प्रधानमंत्री जी को आभार... कश्मीर में खुलेआम ठोकने की छुट देने के लिए आभार... और भोपाल एनकाउंटर अगर फर्जी है तो शिवराज सरकार पर फक्र... #Shoot_on_the_spot


लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा...

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