कुछ मेरे बारे में

मैं ब्लॉग लिखने लायक नहीं हूँ...

लेखन मेरा कभी शौक नहीं रहा| लेकिन ब्लॉग लिखना अब मेरा जूनून बन चूका है| मुझमें लेखन की प्रतिभा शुरू से है या नहीं मैं तो नहीं जानता पर स्कुल के दिनों में वर्ग में प्रथम स्थान बेशक रहता था, क्योंकि परीक्षा के वक्त मैं जो भी लिखता उसे देखकर शिक्षक कॉपी चेक करने के अगले दिन मुझे बुलाकर मेरी प्रशंसा करते थे, हौंसला बढ़ाते थे और उसके लिए अच्छे अंक भी मुलते थे| लेखन गतिविधियां शुरू करने से पहले मैंने कभी इसके बारे में सोंचा तक नहीं था| ये ऐसे हुआ की 2014 दशहरा कलश स्थापना के दिन पता नहीं कैसे, लेकिन मेरे मन में कुछ विचार आये और मैं एकाएक मैथ बनाने वाली कॉपी के पिछले हिस्से में भारत के मंगल यां के बारे में लिखने लगा| उसे लिखने में कुछ एक-डेढ़ घंटे लग गए थे| लिखने के बाद जब मैंने उसे पढ़ा तब पहली बार मां सरस्वती ने मुझे अपनी लेखन प्रतिभा से परिचय कराया| उससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा की मैं भी अपने विचारों को इस तरीके से लिख सकता हूँ| तभी से हफ्ते में एक-दो ज्वलंत मुद्दों पर लिखने लगा|

औपचारिक रूप से मैं अपनी वेबसाइट जून 2015 में बनाई| वो भी सर के कंप्यूटर पर जहाँ मैं टाइपिंग प्रैक्टिस करने जाता था, क्यूंकि उस वक्त मेरे पास लैपटॉप नहीं था| मैंने अपनी वेबसाइट मजे-मजे में बना ली वो भी इंटरनेट से सीखकर| सच कहूँ तो जिस समय से मैंने लेखन करना शुरू किया या ब्लॉग लिखने की बात जेहन में आई, मैं जिन्दगी में कभी सोंच भी नहीं सकता था की एक दिन मैं ब्लॉग लिखूंगा और उसे 10,000 से ज्यादा लोग पढने आयेंगे वो भी 8 महीनों में| उसमें भी 3,000 से ज्यादा लोग विदेशों में मेरी वेबसाइट को खोलेंगे| सचमुच ये मेरे लिए अकल्पनीय था, असंभव सा था या एक सपने जैसा था|  आप जानना चाहेंगे की मेरी लेखन प्रतिभा कैसे विकसित होती गयी? मेरे उम्मीदों, मेरे हौंसलों को किन-किन लोगों ने पंख दिए, उसे उड़ने लायक बनाया? सब बताउंगा...

लेकिन उससे पहले बता दूँ की ब्लॉगर बनने में मुझे किन तकलीफों का सामना करना पड़ा, कैसी-कैसी आलोचनाएं सुनने को मिली? ब्लॉग पर मेरा पहला पोस्ट ‘सब पढ़ें- सब बढें, मगर कैसे’ को मोबाइल से टाइप करके जब मैंने प्रकाशित किया था तो उसे लेकर हमने अपने दोस्तों को दिखाया| मुझे उनसे प्रशंसा की अपेक्षा होती थी मगर हर बार मैं चोर बना दिया जाता| मेरे मुंह पर तो नहीं लेकिन पीठ पीछे मेरी आलोचना की जाती और उनलोगों ने धारणा बना ली थी की मैं अखबारों और इंटरनेट पर से देखकर लिखा देता हूँ| मैं अंदर से टूट जाता था ये सोचकर की जब मेरे मित्र ही मेरी लेखन प्रतिभा को चोरी का नाम देकर कलंकित कर रहे हैं तो कहीं दूर बैठा व्यक्ति मेरे विचारों पर यकीन कैसे करता होगा? उसे क्यों पढता होगा?

मैं बता दूँ की आजतक मेरे ब्लॉग लेखन की काबिलियत के बारे में मेरे घरवालों को नहीं पता है| मेरे मम्मी-पापा, दादा-दादी किसी को नहीं पता की मैं ब्लॉग लिखता हूँ| जिस डायरी में मैं यह ब्लॉग लिखता हूँ उसे कंप्यूटर पर टाइप करके अच्छी जगह छूपा देता हूँ| क्योंकि मैं नहीं चाहता की मेरी किसी प्रतिभा से किसी को कोई उम्मीद बंधें, कोई आशा करे, किसी को कोई मेरे बारे में बताये| इसलिए की मेरी उम्र देखकर वह भी चोर ही कहेगा| दैनिक भास्कर अखबार के सम्पादकीय पृष्ठ में जब बिहार की राजनीति से सम्बंधित उम्दा लेख फोटो के साथ छपा तब घरवालों को पता चलते-चलते बचा| पूछने पर यूँ ही लिखकर भेज देने की बात से घरवालों को सफाई दी| शायद आप यकीन न करें लेकिन अखबार में छपने के बाद भी कुछ ज्वलनशील परिचितों को यकीन नहीं होता था|

इन सारी चीजों को दरकिनार करते हुए मैं अपने पेज ‘कहने का मन करता है...’ पर मुखरता और बेबाकी से अपने विचार लिखता रहा| कुछ बड़े पत्रकारों, संपादकों की राय को जानता रहा| इस दौरान मैं लाइक न मिलने के बावजूद भी चुपचाप फेसबुक पर अपने ब्लॉग को मित्रों के साथ साझा करता रहा...  मैंने पहले ही कहा है की मैं उन लोगों के बारे में जरूर बताऊंगा, जिनलोगों की वजह से ही प्रतियोगिता परीक्षा की कठिन तैयारियों में से भी वक्त निकलकर ब्लॉग लिखने की ऊर्जा मिलती रही, निडरता से लोगों तक अपनी बात पहुंचता रहा...

विजय कुमार गुप्ता जी, राजेश हलवाई, मेरे मामा संतोष कुमार, दोस्त राजीव कुमार, विक्की कुमार, रौशन गुप्ता, विकास आर्यन, कृष्णा चौहान, गणेश कुमार, पारस, laxman kumar, jitu yadav, lilly sharma, shankar prasad, kalyani sir, rahul, suman और अन्य (कई का नाम नहीं ले पाया)... ये वही लोग हैं जिन्होंने लाइक और उत्साहवर्धक कमेंटों से मेरी लगातार हौंनसलाफजाई की, मेरी लेखन शैली को तीखा किया, मुझे लगातार लिखते रहने को प्रेरित किया तो मुझे एहसास कराया की मेरा लिखा भी कोई पढता है| नहीं तो मैं सोंचता था की शायद मैं ऐसा नहीं लिख पाता हूँ की कोई उसे पढ़ेगा, अपना वक्त बर्बाद करेगा...

मैं ये लेख अपने सारे मित्रों को समर्पित करता हूँ, जिन्होनें निजी जिंदगी में या फेसबुक के माध्यम से मेरे प्रति लगाव और सक्रियता दिखाकर मुझे एक ऐसा इंसान बना दिया है जो उम्र से पहले ही व्यस्क हो गया है... औरों से अलग अपने तरीके से सोंचने वाला बना दिया है... इस लायक बना दिया है की अखबार में छपने लायक लिख देता हूँ, और कई अखबारों में छपी भी है| आप सभी मित्रों को मैं जिन्दगी भर नहीं भूल सकता, जिन्होंने पश्चिम के चकाचौंध से नज़रें बचाकर मेरे ब्लॉग को अहमियत दी... बहुत-बहुत धन्यवाद...


लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना (मेरे द्वारा लिखे लेखों की संख्या 100 होने वाले हैं... कमाना शुरू करूँगा तो शौक के लिए अपने पैसे से कुछ बेहतरीन लेखों को सम्मलित करके एक किताब छपाऊंगा और उसका नाम होगा, कहने का मन करता है...  तब पुस्तक की पहली प्रति अपने घरवालों को समर्पित करूँगा...है ना!  ब्लॉग पर आते रहिएगा...)

2 comments:

  1. अतिसुन्दर लेखनी।।
    आप लिखते रहें और ये न सोचें कि कौन क्या कह रहा है लोगो की सकारात्मक कथनी आपको और प्रेरित करेगी साथ ही नकारात्मक कथनी आपकी त्रुटियों को सुधारेगी। दोनों ही स्थितियों में सम रहकर आप आगे बढ़े यही मंगलकामना करता हूँ। आपको यह भी कहना चाहूंगा कि हो सकता है कि आपको मेरी याद हो कि न हो,अतः आपको थोड़ी याद दिला दूं कि हमलोग जमालपुर से पटना ट्रेन में यात्रा के दौरान मिले थे तब आप और आपकी लेखनी से मेरा परिचय हुआ था। तब से गाहे बगाहे आपकी ब्लॉग पढ़ता रहता हूँ। अच्छा लगता है आपका कहना "आते रहना" इसलिए अक्सर आता रहता हूं। आशा करता हूँ आप आगे निरंतर निःसंकोच लिखते रहेंगे।
    आपका शुभाकांक्षी।।

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