05 September 2018

शिक्षक दिवस स्पेशल


आज का दिन शिक्षकों के प्रति सम्मान और आभार जताने का है! हमारे व्यक्तित्व को सामाजिक बनाने वाले, समाज में रहना सिखाने वाले और हमारी बौद्धिकता को निखारने वाले गुरुजनों का सादर आभार और कोटि कोटि वंदन!
जब भी बचपन की यादें ताजा होती है तो सबसे सुनहरा पल स्कूल ट्यूशन में दोस्तों के साथ की गई मस्तियां हमें गुदगुदाती है!
स्कूल वाले मास्टर साहब का अनुशासन बहुत खलता है!
उनकी वह खजूर की छड़ी कठिन से कठिन चैप्टर्स को याद करा देती थी!
होमवर्क नहीं बनाने पर मुर्गा बनाने की विलुप्त संस्कृति हम लोग की क्लास वर्क होती थी! ऊपर से पिछवाड़े पर छड़ी की तान लगने के बाद ऊंचा सुर खुद-ब-खुद लगता था!
दोस्तों से मारपीट करने पर कलम को दो उंगलियों के बीच फंसा कर दबाने कि मास्टर साहब की कला कंपकंपा देती थी!

स्कूल में जब भी पिटाते थे कभी घर में बताने का साहस न हुआ!
छड़ी की पिटाई से उभरी बाम को छिपाकर दर्द अपने अंदर समेटे सब कुछ नॉर्मल होने की नाकाम एक्टिंग करता था क्योंकि या तो मास्टर साहब घर आकर बता देते थे या कमीने दोस्त लोग चुगली कर देता था!
उल्टा साला घर में भी पीटते थे! जिंदगी में कुछ न कर पाने की भविष्यवाणी की जाती थी! ढेरों बातें सुनने मिलती थी!

Image may contain: one or more peopleलड़ाई किये तो आवारा का तगमा फौरन मिल जाता था! बात मास्टर साहब तक न पहुँचे इसके लिए दोस्त को अपने बढ़िया पेन या पेंसिल से लिखने देने की घूसखोरी दी जाती थी!
कभी कभी पढ़ते वक्त बदमाशी किये तो मास्टर साहब बाल के आगे की चुड़की पकड़ के हिला डालते थे!!
उद्दंडता किसे कहते हैं वो आजकल के अंग्रेजी बच्चों को देखकर पता चला! साला हमारे जमाने में मरखंड मास्टर साहब के स्कूल में इंट्री के साथ ही शांतिवन बन जाता था!
2-2, 3-3
पेज यूँ ही याद करने को दे दिए जाते थे! श्रुतिलेख का भौकाल होता था क्लास में! कठिन कठिन शब्द लिखवाये जाते थे, जितनी गलती उतना डंडा पीटने का मास्टर साहब का अपना कानून था!
पहाड़ा का अपना जलवा था उस जमाने में! 40 तक का पहाड़ा याद रखने वाला जीनियस माना जाता था!

1 से 3 क्लास तक मैं मॉनिटर था गांव वाले स्कूल में, तो कभी कभी मास्टर साहब शाम वाली घण्टी में पहाड़ा न दुहराने वाले बच्चों को डंडे से मुझे लैस कर पीटने की जिम्मेवारी देते थे! मैं सारी दुश्मनी उसी में निकालता था, मेरे से बड़े बड़े लड़के डरते थे सो मेरा भी अपना जलवा था दोस्तों के बीच!
सूसू जाने के लिए हाथ जोड़कर मास्टर साहब के सामने पूछने का नियम था! स्कूल नागा किये तो साला पीटने को तैयार रहो या घर से किसी को ले जाओ!
सब मास्टर साहब बोलते थे कि जितना पूछना उतना पूछ सकते लेकिन ज्यादा पूछने पर सर का फ्रस्ट्रेशन पिटाई में निकलता था! जुमलेबाजी क्या होती है उसकी समझ उसी वक्त हो चुकी थी!
सब पाठ्यक्रमों को अच्छे सलीके से याद करने की कला देने वाले, रोम रोम में अनुशासन का खौफ पैदा करने वाले और जिंदगी को सफल बनाने में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले गुरुजनों को सादर आभार!
अपने डंडे और तमाचे के हथियार से उद्दंड बनने से हमें बचाने वाले मास्टर साहब को मेरा वन्दन!
अपनी सभ्यता, संस्कृति और भारतीयता से परिचय करने वाले इन अनमोल समाजसेवियों को हृदय से धन्यवाद!! 
#जयहिंद

✍ अश्वनी