देश की राजनीति जिस गति से अपने घटियापन की जड़ें छू रही है, उससे तो अब कुछ अनहोनी की आशंका प्रबल होती दिख रही है। नेता... एक ऐसा शब्द, जिसे सुनते ही आम-आदमी क्रोध से भर आता है, कहता है...हमारी गरीबी-बदहाली के जिम्मेदार तो यही नेता हैं। अरे इन्हे तो लाइन में खड़े करके गोली मार देनी चाहिए। अनपढ़-भोंदू-तोंदू नेता अपनी अजीब हरकतों से प्रिंट मीडिया के आखों का तारा बने बैठे हैं। TRP बटोरने व दिन-रात महिमामंडन करने के आलावा इन्हे काम ही क्या बचा है? भारत एक बाज़ार है, देश नहीं। लूट सके जो लूट ले। देश की गरीब आबादी भूख से बिलबिला रही है, धुप से तड़प रही है, पर इन्हे क्या? इनके लिए चुनाव के समय बेशक इंतजाम होता है, वोट लेने के लिए नरनारायण बना दिया जाता है। जितने के बाद वे इनसब पर ध्यान क्यों दे? आखिर चुनाव में जो खर्च हुआ है, उसका सौ गुना कमाने में 5 साल तो काम ही पड़ जाते हैं!
आज हालात ये राजनीति का मतलब ही लूट-खसोट तथा एक दूसरे को गलियां देना हो गया है। नेता खेमा दो वर्ग में बँटा है, पहला- सेक्युलर व दूसरा- कम्युनल। सेकुलरो की आबादी उनके मुकाबले काफी ज्यादा है। ऐसे में ये लोग खुद को ज्यादा सेक्युलर घोषित करने के लिए एक खास धर्म के लोगों के तलवे चाटने से भी परहेज़ नहीं करते। अंतराष्ट्रीय जनसँख्या एजेंसी के अनुसार तो भारत 2050 में नहीं, बल्कि 2028 में ही जनसँख्या में चीन से आगे निकल जाएगा। बेशक इनलोगों की सेक्युलर नीतियों के चलते हम सभी एक दिन बड़ी मुश्किल में फंस जाएंगे क्योंकि इनके अनुसार बच्चे पैदा होना गॉड-गिफ्टेड है ना!
राजनीति देखनी है तो बिहार, यूपी दिल्ली के साथ साथ कश्मीर इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। जहाँ के देशद्रोही नेता, वोट के लिए पाकिस्तानी, ISIS के झंडे लहराने वालों के लिए भी धरने दिए जाते हैं। यूपी में तो एक आतंकवादी याकूब के पत्नी को सांसद बनाने की मांग होती है। इस देश का कुछ हो सकता है, इसमें भी शक है। शायद इसलिए की, अगर आज चाणक्य भी होते तो इनलोगों के दावं-पेंच के आगे बौने पड़ जाते।
लेखक:- अश्वनी कुमार, जिसका गुस्सा ना तो सिस्टम से है और ना ही इस देश के नेताओं से। गुस्सा आता है तो आज के नेताओं के व्यवहार पर, उनके कार्यकलापों पर।
No comments:
Post a Comment