18 December 2021

● युवा स्पेशल ●

ये पोस्ट उसे बहुत ध्यान से पढ़नी चाहिए जो किशोरावस्था से निकल कर युवावस्था की तरफ बढ़ रहे हैं.. मेरी योग्यता किसी दार्शनिक कि नहीं है ! जमीनी सच लिखता रहता हूँ ताकि किसी पर तो अच्छा प्रभाव पड़े.. 

देश कि वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप एकदम तैयार रहने का वक्त है ! सरकार एक के बाद एक मोनेटाइजेशन स्कीम ला रही है.. ये स्कीम है क्या, दूरगामी परिणाम क्या होंगे इसे पूरी तरह समझने का प्रयास करें ! आसपास के बैंक, रेलवे, ऑर्डिनेन्स बोर्ड, ऑयल कंपनियां, LIC जैसी संस्थाओं के कर्मचारियों का चीखना चिल्लाना महसूस करने की कोशिश करें !

देश धीरे धीरे पूंजीवाद की तरह शिफ्ट होने की प्रक्रिया में चल पड़ा है.. आप जो हर बात में भारत की तुलना चीन और अमेरिका से करते फिरते थे न, उसी चीन अमेरिका को टक्कर देने के लिए अपनी व्यवस्थाएं बदली जा रही है.. इस व्यवस्था परिवर्तन का शिकार एक तो निठल्ले कामचोर और कुर्सीतोड़ अधिकारी / कर्मचारी होंगे और इसका सबसे अधिक प्रभाव उन किशोरों पर पड़ने वाला है जो युवा बनने वाले हैं...

रोजगार कि सीमित सम्भावनाओं के बीच ये करेंगे क्या !!! गर्लफ्रैंड सेट करने, रील्स बनाने और थाना थाने के बाद कि लाइफ कैसी होगी ???

सरकारी नौकरी में अब जंगल का नियम लागू हो गया है.. जंगल के नियम में थोड़ा भी कमजोर सबसे पहले मारा जाता है, शिकार सीमित है और खाने वाले असंख्य हैं तो सोचो क्या हश्र होना है !हमारी बौद्धिक अवस्था का सबसे अधिक विकास किशोरावस्था में होता है.. आपका ब्रेन डिसाइड करता है कि आपकी एबिलिटी क्या है और आगे की जिंदगी आपका शरीर कुत्ते की तरह जियेगा या शेर की तरह !

उस मस्तिष्क की रचनात्मकता की हत्या आप स्वयं कर देते हो जब आप किसी के मोह में फंस जाते ! ये क्षणिक है, ईश्वर से हमेशा कामना करो कि इस उम्र में ये मोहपाश आपको न हो.. मिले ही नहीं, कोशिश भी करो तो वो दुतत्कार दे.. हर व्यक्ति के अंदर दो चेहरे होते हैं ! इतना काबिल बनो कि उसका असली चेहरा देखने से पहले जड़ से हटा दो !

क्योंकि ये नशा सारे मादक पदार्थों में अव्वल है.. इस नशा से बचे रहने का उपाय है कि ईश्वर के समक्ष झुके रहना है !

पढ़ाई एकदम कमांडो ट्रेनिंग की तरह करनी है ! बेहद अनुशासन में 10th से ग्रेजुएशन तक बिताना है ! पढ़ाई करने को 4 बजे सुबह उठने का मतलब 4 बजे.. 10 मिनट अलार्म स्नूज़ कर रहे तो समझो, तुमसे न हो पायेगा.. सबको धोखे दे रहे तुम..

चलो मान लेते हैं अगर सरकारी नौकरी न लगी तो कम से कम भूखे न मरोगे.. योग्यता तुममे हैं तो कॉर्पोरेट जगत कार्पेट बिछा के स्वागत करेगा.. मूर्खों की बस्ती में ठग भूखे नहीं मरते ! कुछ न कुछ तो जुगाड़ लगेगा ही, नहीं लगा तो खुद जिम्मेदार रहोगे क्योंकि शायद कहीं तुमने चूक की !

बाबू सोना से अभी दूर होना मुश्किल लगता होगा लेकिन उससे कठिन तब होगा जब वो तुम्हे दुतत्कार के इसी सोशल मीडिया पर अपने नए बाबू के साथ चिपक चिपक के फोटू डालेगी..

तुम तड़पने के सिवाय क्या करोगे, बताओ ???

तुम अगर गरीब परिवार से आते हो तो सिर्फ विद्या ही वो रास्ता है जिससे तुम अपनी पीढ़ी को इस दुष्चक्र से उबार सकते ! लाइफ में भरपूर समझ विकसित करने पर ध्यान देनी है ! माइंड को सिर्फ ट्रेंड करते रहना है, स्मार्ट तरीके से अपना लक्ष्य स्थापित करके बढ़े चलना है फिर एक दिन वही तुम्हें इस जंगल में अपना वर्चस्व स्थापित करके देगा...

❤️❤️❤️



राजनीतिक समझ

#Memorable_Journey

वाकई ये यात्रा काफी शानदार रही ! एक साथ जिंदगी के कई आयाम सिद्ध हुए !

मैं कोई रईस टाइप बैकग्राउंड से नहीं आता, ग्रेजुएशन तक रेस्टॉरेंट के खाने का स्वाद तक भी पता न था, शहर के बाहर कदम भी नहीं रखा था ! सारी पढ़ाई लिखाई राम भरोसे होती रही !

प्रकृति ने थोड़ा सा इंटेलिजेंस दिया है तब ही जीवन की नैया धीरे धीरे आगे बढ़ रही है ! यह खुद में आश्चर्य है कि कई ऐसी जगह मैं पहुंचा जहां शायद ही मेरी योग्यता हो ! मैं बहुत साधारण हूँ परंतु मेरी वह जगह प्रकृति ने नियत की..

अपनी बौद्धिकता का कभी नंगा नाच नहीं करना है ! देश और समाज में घटित हो रही हर अच्छी चीजों को समाहित करते जाओ.. एक सकारात्मक और आशावादी जिंदगी चाहिए तो राष्ट्रवाद से ओत प्रोत बने रहना है ! एक अच्छे व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए हममें राजनीतिक और रणनीतिक समझ होना चाहिए..

बिना राजनीति आप एक रीढ़ विहीन केंचुए के अलावे कुछ नहीं हो ! इसका मतलब ये भी नहीं कि किसी पार्टी के झंडे थाम लो या युवा मंडल सचिव अध्यक्ष का पद पाने, चाटूकारिता करने में खुद को नष्ट कर लो ! इस राष्ट्र को चलाने में आप सहयोग करो.. पहले खुद का भविष्य तय करना है और समानांतर रफ्तार से इस राष्ट्र का भी भविष्य संरक्षित करने का दायित्व निभाना है !

हमारे ऊपर बनाई जाने वाले नीतियों और नियमों पर सरकार से संवाद करने का प्रयास करना चाहिए ! संवाद तभी होगा जब ये सब चीजें आपको समझ आयेंगी !

कान में हैडफ़ोन ठूंसे, पॉप म्यूजिक सुनने वाले युवा क्या संवाद करेंगे.. उन्हें ये राष्ट्रवाद, देशप्रेम शब्द भी राजनीति का हिस्सा लगता है !

बिग बॉस देखने वाली आबादी से अपेक्षा रखोगे कि वह संसद में होने वाली डिबेट, प्रस्ताव आदि को समझ लेगा तो मूर्खता के अलावा कुछ नहीं है !

इनकी दुनिया रीढ़विहीन है.. जिसे उस संसद के बहस कि, कानूनों की समझ नहीं है, जिसके नियमों के बेसिस पर उन्हें नौकरियां मिलेगी.. रोजगार के स्त्रोत तय होंगे.. उनकी उच्च शिक्षा, PCS सेवा, बहाली प्रक्रिया, हमारी इकॉनमी सब कुछ नियत हो रही होती है..

वहां ये केंचुए के तरह पड़े रहकर अय्याशी काटते हैं !!

फिर चिल्लाते मिलेंगे की सरकार तो नौकरियां खा गई.. अर्थव्यवस्था डूब रहा है, नौकरियां जा रही है !

तुम्हें जिस वक्त सरकार को अपने अनुसार चलवाना था, उस पर प्रेशर बनाना था, सुझाव भेजना था तब मोबाइल में घुस के बाबू को मना रहे थे और बीबर के गानों पर थिरक रहे थे.. मजे से राजनीति बताकर हर चीज का मजाक उड़ाते रहे..

ये स्पष्ट है कि आप अपने ऊपर लागू होने वाले हर कानूनों पर बारीक नजर बनाओ.. उसके दूरगामी परिणामों को समझने की समझ विकसित करने में दिमाग खपाओ ! रोज अखबार पढ़ना सीखो.. ऑनलाइन संसद या विधानसभा के बिलों को स्टडी करो, सरकार के पास सुझाव आपत्ति पहुँचाते रहो..

ये सब छोटी छोटी चीजें आपको बहुत आगे ले जाएगी ! आपकी समझ और दूरदर्शिता काफी तीक्ष्ण हो जाएगी.. इतनी पैनी की तुम इस सिस्टम को भेद सकोगे...

#जय_हिंद 🇮🇳

27 November 2021

● संविधान दिवस #Special 🇮🇳 ●

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को नियंत्रित करने वाले संविधान का जन्मदिवस है ! हमारा सबसे बड़ा लिखित संविधान दुनिया की सबसे विशाल आबादी को असीमित लोकतांत्रिक अधिकार देती है ! संविधान निर्माताओं के ऊपर हम आसानी से आक्षेप लगा सकते कि उन्होंने कट कॉपी पेस्ट से प्रावधानों को रचा और देश के ऊपर लाद दिया ! जबकि नजदीक से उस वक्त की परिस्थितियों का अध्ययन करें तो समझ आता है कि जो देश 1000 सालों से लगातार आतताइयों लुटेरों से गुलाम रहने के बाद आजाद हो रहा था.. उस लहूलुहान भारत की भविष्य की पटकथा लिखी जा रही थी, जहां लोगों के भूख से मर जाना सामान्य बात थी ! बीमारी, कुपोषण, अशिक्षा, गरीबी के मसलों पर सबसे नीच श्रेणी लाकर छोड़ दिया गया था !
आजादी कि कीमत पर धर्म के आधार पर देश के टुकड़े हुए हों और मजहब के नाम पर जिस देश में खून कि नदियाँ बहीं हों, वहाँ किसी भी नीति निर्माता के लिए एक सूत्र में बांध पाना कोई बच्चे का खेल नहीं था.. 
राजाओं के नखरे, भाषाई विविधता, क्षेत्रवाद, अलगाववाद का चरम को ठंडा करना भी तो आसान नहीं था !
हमें यह स्पष्ट तौर पर यह समझना चाहिए कि भारतीय संविधान की परिकल्पना किसी एक व्यक्ति विशेष कि उपज नहीं हैं.. यह हर प्रान्तों से चुनकर प्रतिनिधियों के मध्य व्यापक विचार विमर्श के बाद एक एक प्रावधान बने हैं !

किसी भी देश के स्थायी एवं शांतिपूर्ण नियंत्रण के लिए नीतियां जरूरी होती है.. दुनिया के हर देश की अपनी नीति है और उसका सारा तंत्र या सिस्टम उसी नीति की कठपुतली होनी चाहिए नहीं तो अराजकता आनी तय हो जाती है !
आज भारत के संविधान के प्रति लोगों कि उतनी आस्था नहीं दिखती ! जमीनी सच्चाई है कि आम आदमी अपने सिस्टम से जब भी त्रस्त होता है उसका गुस्सा इसी निकल आता है !
सिस्टम के संचालन के लिए संविधान ने तो असंख्य प्रावधान बना दिये परंतु परिस्थितियों के हिसाब से उसकी सर्विसिंग होती रहनी चाहिए..

संविधान में न्यायपालिका को असीमित शक्तियां दी है ! कई आर्टिकल्स के अंतर्गत ऐसी ऐसी पॉवर्स दी गयी है जिसका इस्तेमाल वह कवच कुंडल की तरह कर सकता है !
मगर, हमारी न्यायपालिका ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल जघन्य राजनीतिक भ्रष्टाचार, दलों के चुनावी फंडिंग को रोकने, चुनाव सुधार करने, कार्यपालिका को पारदर्शी बनाने की जगह उस कवच कुंडल का इस्तेमाल खुद को सुरक्षित करने में किया ! इस न्यायपालिका ने अपने अंदर कि व्यवस्था को सुरक्षित रखने को एक ऐसा आवरण तैयार कर लिया है जो अभेद्य है !
अपने स्वार्थों, निजी हित और परंपरावादी सिस्टम को रचा है जहां संविधान के उन प्रावधानों के तहत ये सारे अधिकार एक लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में भारत को स्थापित करने हेतु इन्हें दिए गए थे ! 

संसद के बनाये कानूनों पर जुडिशल रिव्यु का कांसेप्ट लाकर एक नया हथियार विकसित किया गया ! मतलब जनता द्वारा चुनी गई सरकार को नीतियां बनाने के बाद कोई 3-4 जजों के माइंडसेट पर निर्भर रहना कि वे तय करेंगे कि 130 करोड़ आबादी के लिए क्या सही है और क्या गलत.. सोचिए संविधान कैसे कमजोर होता है...
अबतक की सरकारों की नाकामी के कारण हमारी न्यायपालिका आर्टिकल 19 व 21 का सहारा लेकर इतनी सशक्त हो चुकी है कि वे अहम ब्रह्मा वाली स्थिति में बैठी है ! जिस आर्टिकल 19 या मूल अधिकारों का ये खुद को संरक्षक मानती है वे संस्था अवमानना जैसा हथियार लेकर बैठ गयी है.. 
नियुक्ति खुद करेंगे, करोड़ों मुकदमे लंबित हैं, लाखों बेगुनाह जेल में सडें जा रहे हैं.. कौन कमजोर कर रहा है संविधान को...
हर मुद्दे को जो इन्हें नहीं पसंद, उसे अभिव्यक्ति की आजादी व जीवन का अधिकार जैसे शब्दों से कुचल देना ही तो लोकतंत्र के लिए घातक है ! 

सबसे महत्वपूर्ण गलती हमारे संविधान निर्माताओं और हमारी अबतक की सरकारों ने की है वह है IPC, CrPC, पुलिस एक्ट, साक्ष्य अधिनियम जैसे न्याय सिस्टम के बैकबोन को नहीं बदला जाना ! जनता सबसे अधिक परेशान समय पर न्याय नहीं मिलने होती है ! जिस देश के पास अपनी न्यायिक व्यवस्था को चलाने वाली अपनी नीति तक नहीं है उसका भगवान ही मालिक है !
आज भी अदालतों कि लालफीताशाही बेरोकटोक इसी कानूनों के सहारे तो चल रही है ! किस किस को ब्लेम करें...
आप अगर एक बढ़िया ज्यूडिशियल सिस्टम तक विकसित नहीं कर पाए हैं तो किस बात का गर्व होना चाहिए हमें अपनी शासन प्रणाली पर ?

दूसरी नजरिए से देखने पर विधायिका चाहे जितनी भी सड़ चुकी हो, जनता के सामने हर 5 साल में सिर झुकाने तो आ ही जाते हैं ! हमारी समस्या सुनते भी यहीं हैं, नहीं तो जिन पर न्याय की जिम्मेदारी है वो हज़ार पन्ने के फैसले लिखने में एक पीढ़ी समाप्त कर डालते हैं.. 
कार्यपालिका को बत्तमीजी किसने सिखाई ? अगर विधायिका और न्यायपालिका दोनों अपनी तमीज से काम करे तो इसकी क्या औकात है नौकर भर रहने के अतिरिक्त !!!

हमारा संविधान बहुत सशक्त है.. कभी अच्छे से प्रावधानों को पढ़िए, उसमें गलतियों को ढूँढिये जहां से सिस्टम में सुराख बना हुआ है ! सरकार को बाध्य करिए कि उस व्यवस्था की मरम्मत करे.. नए दंड संहिता और प्रक्रियाओं का निर्माण करे ! न्यायपालिका के कवच को पारदर्शी कीजिये, उसे जनता के प्रति सेंसिटिव और जबाबदेह होना होगा अगर ऐशो आराम-मोटे वेतन टैक्स के पैसे से चाहिए तो...
मूल अधिकारों की मांग करने वाले को मूल कर्तव्य का भी पालन करना होगा.. वरना उसे वंचित कीजिये उसके लोकतांत्रिक अधिकारों से... यही हमारी लोकतांत्रिक पतन को रोक सकता है बस...
एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हमें इस राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित रहना चाहिए.. 
#जय_हिंद 🇮🇳


22 November 2021

● झंडू लीडरशिप ●

भारतीय जनता पार्टी के लिए हर चुनाव का रास्ता राष्ट्रवाद से होकर गुजरता है ! प्रचण्ड हिंदुत्ववाद की छवि से ही युवाओं को आकर्षित कर पा रहे हैं, नहीं तो घनघोर बेरोजगारी के माहौल में इस पार्टी का वजूद भी बच जाता तो आश्चर्य माना जा सकता था !

बीजेपी सरकार के बनाये कानूनों, नीतियों को जनता के बीच न पहुंचा पाने की असफलता पार्टी नेतृत्व को लेनी चाहिए ! कृषि कानूनों पर सरकार का बैक होना पूर्णतः failure है पार्टी का कि उनके सांसद विधायक कोई भी इन कानूनों को डिफेंड करने समझाने जनता के बीच नहीं उतरा ! पार्टी कैडर को भी इन कानूनों का कुछ अता पता नहीं चला...

शीर्ष नेतृत्व की विफलता है कि वे बिल्कुल अनमने ढंग से क्षेत्रीय स्तर पर लीडरशिप का गठन कर देते हैं ! लुच्चे लफंगों, क्रिमिनलों को पार्टी में लादकर बड़े बड़े पद दे देते हैं.. उनसे अगर हम अपेक्षा करेंगें की पार्टी को या सरकार की नीतियों को तार्किक तौर पर डिफेंड करेंगें तो बेईमानी होगी ही !

पार्टी किसी भी अवसंरचना बनाने से पहले ये ध्यान रखे कि इन्हें देश के सबसे प्रबुद्ध इंटेलेक्चुअल जमात से लड़ना है ! उसे कानून, सरकार के निर्णय, देशप्रेम, विपक्ष के प्रोपगंडा को लगातार काउंटर करते रहना है ! जनता को जगाकर रखना है.. लगातार रिफिलिंग करते रहना है !

इतने पिलपिले और कमजोर विपक्ष को जब पार्टी लीडरशिप मैनेज नहीं कर पा रही तो सोचिये की इंदिरा ने कैसे विपक्ष में अटल और जेपी जैसे नेताओं को नचा दिया था !

बीजेपी का स्ट्रेंग्थ है सोशल मीडिया... यहाँ युवा और राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग पार्टी से बिना एक लेमनचूस खाये समूचे इंटेलेक्चुअल गैंग की बजा के रख देते हैं !

इनका IT सेल निकम्मा है.. वो स्लोगन और memes बनाने भर को दिखाई देता है ! 

इनके सांसद या विधायक से ही 3 कृषि कानूनों का डिटेल्स पूछ लिया जाए तो 90% बगले झाँक देंगे !

चुनाव जीतना अकेले पार्टी के झंडू लीडरशिप के वश का बिल्कुल नहीं है ! भले पटाखे फोड़ के और लड्डू बांट के जीत का गाल बजा लो मगर असली काम तो कोई और साइलेंट तरीके से कर रहा होता है.. सिर्फ और सिर्फ राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझकर... की राष्ट्रहित के लिए तुम्हारा वहाँ बैठा होना बहुत जरूरी है...  🇮🇳




● कृषि कानून वापसी ●

3 कृषि कानूनों पर मोदी सरकार का झुक जाना हमें संदेहास्पद लग रहा है ! इन कानूनों का विरोध एक खास वर्ग, दलालों का था और उतना भी बड़ा नहीं था कि किसी देश की प्रचंड बहुमत से चुनी सरकार को इन कानूनों की वापसी के लिए मजबूर कर दे !

सम्भवतः यह एक रणनीति का हिस्सा है.. ये सरकार किसानों को व्यापारियों के हाथों लूटते रहने नहीं दे सकती ! यह अक्षम्य अपराध होगा सरकार का..

जितना मुझे समझ है कि अंदर अंदर किसी विशेष रणनीति पर काम जारी है ! हमें सरकार के इस निर्णय पर उतावला होने से बचना होगा !

इतिहास गवाह है कि नरेंद्र मोदी का स्टेप काफी साइलेंट व विध्वंसक होते हैं ! किसी को अगले कदम की कानोंकान खबर तक नहीं होती.. 

अब सम्भव है कि देश के 90 फीसद भूभाग के शोषित किसान के गुस्से का सामना विपक्ष करने को तैयार रहे ! सरकार फिर से सिम्पैथी बटोरेगी.. चुनाव जीते जाएंगे.. लेकिन यह तरीका बहुत गलत है !

सरकार ने 30 फीसदी विशेष आबादी को नागरिकता, NRC जैसे मसलों पर सड़क जाम कर उग्र प्रदर्शन के लिए motivate कर दिया है ! आने वाले वक्त में सरकार इनसे निपट पाएगी संदेह ही है ! 

मगर एक झटका जरूर आएगा जिसमें सारी दलाल, व्यापारी द्रोही किसान को उफ्फ तक करने का मौका नहीं मिलेगा..

याद रखना की शेर एक कदम पीछे ले तो नाचने मत लगो, वह अगले हमले के लिए तैयार होने गया है... 

#जयहिंद 🇮🇳



● चिल्ड्रन डे ●

अपने अंदर के बच्चे को जिंदा रखें.. ❤️😀

जीवन संतुलन बना रहेगा, लम्बे वक्त तक जवान दिखते रहेंगे..

बड़े हो गए या बुढ़ापे की ओर ढल रहे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है बस, अपनी महफ़िल जिंदादिल साथियों के साथ जमाये रखना है, खुलकर हंसना है, गुदगुदाना है.. ज्यादा attitude आपको अंदर से गला देगा ! एनर्जी को किसी तरह से बर्न करते रहना है.. बचपना आपकी सारी नेगेटिव एनर्जी निकालकर बाहर कर देता है !

ज्यादा स्वीट बनने की कोशिश नहीं करें, उम्र से पहले आपका स्वीटनेस डाइबिटीज पैदा करके रख देगा.. तीखा रहिये, थोड़ा गुस्सा दिखाते रहें.. कुछ नमकीन चटपटा मिजाज रखिये.. 😍 लोगों को आप ज्यादा पसंद आएंगे !

चटपटी चीजें लोगों के जीभ से पानी टपका देती है ठीक वैसा ही व्यक्तित्व रखना है ! मगर नागिनों से बचना भी है !

गुस्सा, इमोशन्स, प्यार, घृणा, जलन स्वाभाविक है.. इसमें अपने धर्म से सीखकर थोड़ा व्यावहारिकता का तड़का लगाइये, मज़ा आ जायेगा लाइफ में...

कोई चचा, बापू, मार्क्स, लेलिन लहसुन से प्रेरणा लेने की जरूरत नहीं है.. आपकी जिंदगी है और आपको जीना है अतः इसे अपने तरीके से तय करें !!!!! अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करें.. क्योंकि दूसरे के तरीके से चलने वाले मंदबुद्धि माने जाते हैं... ❤️❤️❤️





पुनर्स्थापना 🚩🚩🚩

सनातन पर्व-त्योहारों में लोगों कि बढ़ रही भागीदारी से मन तृप्त हो जा रहा है ! एक के बाद एक पर्व में लगातार बिना थके हमारे युवा प्रखरता से अपने पुराने गौरव को जीवंत बना रहे हैं ! 
विशाल शोभायात्रा, भंडारा, आरती पूजन, हवन, कीर्तन जैसे शुद्ध कार्यों से हमारा धर्म पुनः सुसज्जित होता दिखाई दे रहा है ! एक से बढ़कर एक मनमोहक मूर्तिकला शैली को देख अब समझ आता है कि क्यों किसी राष्ट्र के निर्माण में शिल्पकारों को इतना विशेष महत्व शास्त्रों में दिया गया है !
मंदिरों में पूजा के लिए अथाह लाइनें लगनी शुरू हो गयी है ! उन श्रद्धालुओं में ज्यादातर संख्या युवा युवतियों की दिखेगी, जबकि कुछ वर्ष पहले तक ये सारी चीजें बुढ़ापे की तरफ ढल रहे लोगों के लिए समझी जाती थी..

आज सड़कों पर लोग स्वयं खीर और खिचड़ी का प्रसाद बांटने लगे हैं ! लोग पूजा समितियों को सहर्ष चंदे देने लगे हैं.. जबकि पहले चन्दे को रंगदारी का नैरेटिव बना कर रखा गया था !
युवा शक्ति का जागृत हो जाना या कर देना, सफलता है सभी प्रखर राष्ट्रवादी लेखकों और राइट विंगर्स कि.. हर पल मेहनत करके लेफ्ट के एक एक सुनियोजित प्रोपागेंडा से लड़कर सोशल मीडिया में अपने विचार स्थापित करना सरल नहीं है !
इनकी लड़ाई समाज के सबसे प्रबुद्ध कहे जाने वाले गैंग से थी.. 
फिर इन्होंने सच्चाई को आम जनमानस तक पहुंचाया.. ये जंग अब भी इतिहास के तर्कों से लड़ी जा रही है ! इस जंग के नायक वे हीरो हैं जो अपनी उंगलियों से या कलमों से हर उस झूठ को मिटाते चले आ रहे है ! राष्ट्रवादी सरकार का मौन समर्थन ही काफी है... बाकी काम तो मिलकर सभी को करना है !
हमारी परंपरा फिर से अंगड़ाई लेने लगी है ! त्योहार उदयमान हो कर उठ रहा है ! शान से हमारे युवा सोशल मीडिया को तस्वीरों से पाट दे रहे हैं.. छठ पर पूरा फेसबुक सनातनी महक से सराबोर कर दिया..

अयोध्या में योगी ने क्या शानदार दीपोत्सव मनाया.. मतलब वाह...
देश का प्रधानमंत्री त्रिपुंड धारण कर भोलेनाथ के चरणों में लोट जा रहा है.. 
उठाया जा रहा है पुनः भारतवर्ष को.. गर्व करिये..
आपको इसका हिस्सा बनना चाहिए ताकि आप अपनी पीढ़ियों को कहानी सुना सकें कि आपने कितनी मेहनत से पुनर्स्थापित किया है अपनी परम्परा को !
आरती में सम्मिलित होइए, बढ़ चढ़कर चन्दे दीजिये, यज्ञ-कीर्तन कराइये या कराने वाले को बढ़ावा दीजिये !
हर जन्मदिवस को सपरिवार मंदिर जाइये, मत्था टेकिये ! तीर्थस्थल घूमना आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए.. 
पास से गुजर रही विसर्जन शोभायात्रा में घुसकर थोड़ा झूम लिया कीजिये ! निश्छल भाव से हाथ उठाकर जयकारे लगाइये..
कीर्तन में बैठ थोड़ा झाल बजा लीजिये.. जितना हो सके ईमानदारी से आय के अनुपात में हर जगह चन्दे देने की आदत डालिये !
यकीन मानिए, आप सनातन के पुनरुत्थान का अघोषित अंग होंगें ! इतिहास आपको एक अदृश्य योद्धा के रूप में दर्ज रखेगा..
🚩🚩🚩


02 November 2021

● महंगाई स्पेशल ●

पेट्रोल डीजल कि आसमान छूती कीमतों के दौर में आम जनजीवन बुरी तौर प्रभावित होता जा रहा है ! सरकार के मुनाफे कमाने की मंशा देश में महंगाई की नई साइलेंट विचारधारा को जन्म दे रही है ! ये सही है कि कोविड के बाद महंगाई आने की भविष्यवाणी कई अर्थशास्त्रियों द्वारा की गई थी मगर क्रूड ऑयल पर सरकार का अड़ियल रवैया जनता के लिए काफी मुश्किलें खड़ी कर रहा है !

पेट्रोल, डीजल और खाद्य तेल ये तीन चीजें देश के अंतिम पायदान तक खड़े व्यक्ति को भी सीधे तौर पर प्रभावित करता है ! यह तीनों चीजें हमारी गरीब आबादी कि आर्थिकी को नचा कर रख देता है ! क्रूड ऑयल पर हमारी लगभग सभी बेसिक आवश्यकता निर्भर है.. फल सब्जी तक..

तेल के दाम बढ़ेंगे तो कंपनियां तो कोई समाज सेवा के लिए फैक्ट्री में डालकर बैठी नहीं है वे निश्चित रूप से अपने प्रोडक्ट कीमतों में इजाफा करेंगे ! सरकार तेल के दाम दस रुपये बढ़ाएगी तो ये कंपनियां प्रोडक्ट कि कीमत पंद्रह रुपये बढ़ाकर वजन भी 100 ग्राम कम कर लेंगे.. 

लॉजिस्टिक खर्च बढ़ जाने का बहाना चाहिए उन्हें तो बस.. उसमें उनका मुनाफा भी अपनी रफ्तार से बढ़ता चला जाएगा ! अंततः भुगतना तो जनता को ही है ! 

अगर हमारी व्यवस्था मूल्यवृद्धि को या महंगाई को नियंत्रित नहीं कर पा रही है तो उसकी जिम्मेदारी सीधे-सीधे सरकार को जाती है ! उसके पास दुनिया भर के थिंकटैंक, इकोनॉमिस्ट, बड़े-बड़े तोपची अंदर बैठे हैं ! सोचने के और अपने आईडिया देने के दम पर मोटे तनख्वाह सरकार से वसूलते हैं.. वो क्या कर रहे हैं ? क्या हमारे अर्थशास्त्री इतने पंगु हैं कि वे सरकार से पेट्रोल डीजल के अतिरिक्त अमीरों पर टैक्स लायबिलिटी शिफ्ट नहीं करा पा रहे ? 

जनता तो बस सरकार को जानती है.. उसे वैसे भी किसी अन्य से कोई मतलब नहीं.. आम जनता कराह रही है ! मतलब घर परिवार चलाना तक मुश्किल हो रहा है ! कोविड के दौर में लाखों नौकरियां चली गयी फिर एक तो वर्तमान में रोजगार कि कोई संभावना नहीं दिख रही ! ऊपर से सरकार को सरकार को जीएसटी और अन्य टैक्स कलेक्शन के अलावा कुछ अधिक सूझ नहीं रहा ! घरेलू गैस सिलेंडरों की सब्सिडी धीरे-धीरे समाप्त कर दी गई है ! पीडीएस राशन की दुकानों पर राशन की क्वालिटी क्या होती है किसी से छुपा भी नहीं है ! उसे बनाने के लिए तेल मसाला भी तो चाहिए ही.. उसमें आपने आग लगा दी है..  ब्रश करने वाले टूथपेस्ट तक कि दाम असहनीय है ! कई ग्रामीण परिवारों की हकीकत है कि बच्चे को 3 रुपये वाली पार्लेजी कि जिद्द भी पूरी नहीं कर पा रहे.. देश की आबादी को सरकारी तंत्र कितना सताता है यह भी जगजाहिर है ! 

आप अत्यधिक दिन तक चुपचाप आंख मूंदकर पेट्रोल-डीजल, खाद्य तेल जैसी मूलभूत चीजों पर अपने उगाही का अड्डा बना कर नहीं रख सकते ! यह भी सही है कि बिना पैसे के सरकार भी नहीं चल सकता , देश नहीं चल सकता मगर आपको गरीबों की जेब को प्रोटेक्ट करना ही होगा ! उनपर डाली गई लायबिलिटी हमारे देश को भीतर से खोखली कर रही है ! पैसे जरूरी हैं क्योंकि हमें आत्मनिर्भर बनना है, रक्षा खरीद करनी है, सीमाओं को सुरक्षित करना है, सड़कें बनानी है, हवाई जहाज उड़ाना है.. इसका इंतजाम उनसे तो नहीं किया जा सकता जिन्हें एक बेसिक सुविधा तक उपलब्ध नहीं है ! जिन परिवारों को 2500 कैलोरी भी भोजन नसीब न होता हो उनपर जिम्मेदारी थोपा जाना बहुत गलत है ! एक ढंग की स्वास्थ्य सुविधा तक हम उन्हें उपलब्ध कराने में असफल रहे हैं जबकि उनसे निर्ममता से 5 से 28% तक जीएसटी वसूलते चले आ रहे हैं !

भारत कोई धनाढ्य देश नहीं है कि टैक्स का भार हर व्यक्ति सह ले ! अमीरों कि टैक्स चोरी न रोक पाने की लायबिलिटी बाकी लोग क्यों सहेंगे ? जनता वैसे भी सरकार कि कोई एक्सक्यूज़ नहीं सुनेगी.. उसकी जेब पर डायरेक्ट असर पड़ेगा तो वो असर चुनाव में दिखायेगा.. बाकी evm हैकिंग कि कहानी गढ़ते रहना ! लोग आंख बंद करके हर चीजों पर समर्थन नहीं कर सकते ! पॉलिसी मैटर की जिम्मेदारी सरकार कि है, वो अपने बाबुगिरी तंत्र से इसे कैसे मैनेज करता है वो समझे..... 

#जय_हिंद 🇮🇳



17 October 2021

● ईश्वरीय स्वरूप ●

किसी किसी को ये अभिमान होता है कि उसके बिना किसी की दुनिया नहीं चलने वाली ! मतलब स्वयं को अवतार टाइप की फीलिंग लिए घूमते रहना.. मनोभाव ऐसा हो जाता कि जैसे उसे ईश्वर ने पैगम्बर टाइप किसी खास मकसद के लिए भेजा है ! उनका इस धरा पर पैदा होना ही अपने आप में अकल्पनीय बात है ! ऐसे अहम वाले लोगों से आमलोगों का अक्सर सामना होता ही रहता है !

आईएएस, पीसीएस अधिकारियों के अंदर यह विकृति रोम रोम में भरी होती है ! न्यायाधीश तो स्वयं को भगवान से कम पर मानते ही नहीं.. डॉक्टरों का अपना ईगो है की वे भगवान का दूसरा रूप हैं भले गरीबों की जेब पर चाकू चला कर लहूलुहान करने में कोई कसर न छोड़ें...

प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे के बिना जीने मरने की कसमें खाते फिरते हैं ! शायद नायक को लगता है कि नायिका उसके बिना अधूरी रह जायेगी.. उसे ईश्वर ने सिर्फ उसी के लिए पैदा करा है ! जबकि अपनी नायिका के प्रेम जाल में फंसकर आवारा-सुट्टेबाज बनकर रह जाता है ! उसे रिटर्न में इतनी तकलीफें मिलती है कि बेचारे को खुद के होने पर भी संदेह पैदा हो उठता है..  इस क्रुएलिटी से बचने का कोई साधन या उपाय चाणक्य के पास भी नहीं था ! 

समय ऐसी चीज है जिसे किसी पर बेवजह बर्बाद कभी नहीं करनी चाहिए.. किसी की अच्छाई के लिए समय को अगर आपने बर्बाद किया और रिटर्न में तकलीफ भी मिले तो उसे एक्सेप्ट कर लेनी चाहिए.. यह आपको बाद में बहुत अच्छा फल देगा ! लेकिन आपके ईश्वरीय स्वरूप होने का घमंड जरूर चूर कर देगा जो गीता के कर्मफल के सिद्धान्त पर आधारित है !

इस तरह ईगो वाले हाईप्रोफाइल लोगों या अधिकारियों के अंदर भयंकर अशांति रहती है ! ईश्वरीय जीवन तो दूर बेचारे सामान्य मानवीय जीवन भी नहीं जी रहे होते हैं.. टेंशन से बेचारे का सर फटा रहता है ! कब कहाँ पैसा पकड़ा जाए, वीडियो लीक हो जाये खुद नहीं जानते ! रिटायर होते ही कुत्ते भी नहीं पूछते..

हीरो हेरोइनों का आज क्या आस्तित्व रह गया समाज में ? जिन्हें देखने भर को लाखों भीड़ धूप में इंतजार कर लिया करती थी.. भगवान की तरह ट्रीट हुआ करता था.. आज स्मैकर बनकर रह गए जनता की नजरों में !

हमें कभी खुद में भगवान नजर नहीं आने चाहिए.. ब्रह्मांड में अपनी पृथ्वी कि औकात आटे के एक दाने बराबर भी नहीं है.. तो समझ लीजिए आप कितने बड़े मुर्खाधीश हैं !!!

ईश्वर ने मानव को सर्वश्रेष्ठ गुण दिए हैं.. आप उस ईश्वर की आराधना सभी जीवों में सबसे श्रेष्ठ तरीके से करने लायक हैं.. स्वयं को पैगम्बर या ईश्वर का रूप समझने की भूल अगर कर रहे तो इसी जीवन में आपको निश्चित एहसास होगा कि आप कौन हैं ???

ईश्वर की भक्ति करते हैं तो चुपचाप करते रहिए.. पूरे ध्यान से कीजिये.. भगवान पर एहसान नहीं कर रहे भक्ति करके.. ढोल पीटकर बताने की जरूरत नहीं है आप सर्वशक्तिमान के भक्त हैं तो कोई न उलझे !

ईगो को तुरंत त्याग दीजिये ! धन संचय जरूरत अनुसार ही करें ! प्रेम के मोहपाश में नहीं बंधे.. ये आपके हाथ पैर और बुद्धि सब बांधकर रख देता है, एक अच्छे जीवन के लिए जिस उम्र में ये तीनों चलने चाहिए वहां यह गलती कभी न करें !



● ड्रग्स स्मगलिंग ●

प्रकृति का नियम है कि जैसे ही आपके पास असीमित पॉवर या 2 नंबर पैसा आने लगेगा, वो पैसा आपकी दिमाग में घमंड का चरस बो देगा.. 

गलत पैसे कमाओगे, आपका दिमाग सिर्फ गलत सोचने और करने पर मजबूर करेगा ! पैसे आएंगे तो सुख सुविधा के साधनों तक पहुंच बढ़ेगी, ढेरों पैरवी बनेगी.. मन की हर चीजें ऑटोमेटिक तरीके से हासिल होने लगती है !

जबकि इसका प्रभाव दूसरी तरफ साइलेंट तरीके से पड़ता रहता है ! आप धर्म से दूर होने लगेंगे.. 

भगवान सिर्फ मूरत की तरह दिखने लगेंगे.. राजनीतिक रूप से झुकाव वामपंथ की तरफ होने लगेगा ! पहले अपना गांव/मुहल्ला मूर्खों से भरा सा लगने लगेगा ! फिर राज्य और अधिक पैसा आएगा तो देश से भी नफरत होने लगेगी.. टेंशन में जिओगे तो निश्चित है कि मानसिक शांति के लिए शराब सिगरेट धीरे से जीवन का हिस्सा बन जायेगा.. 

खुद के बदौलत ऊंचाई हासिल की है तो संभव है यहीं तक रूक जाओगे.. मगर औलाद को अगर पैसे की टशन लगी और हर जिद पूरी की तो समझो बहुत आगे निकलेगा आपसे ! आपके पास अथाह पैसा था, लौंडे को विदेशी शिक्षा दिलवाई.. न देश का कानून समझा न राजनीति ! मतलब अब जमीनी अक्ल से पैदल ही रहेगा.. धर्म, नीति या मर्यादा सिखाने की फुरसत कभी मिली नही ! मंदिर घुमाने पिकनिक की तरह ले गए.. तो उसे सब गॉड ही लगते रहेंगे जीवन भर ! बौद्धिकता जीरो रहेगी उसमें.. चरस गांजा सब फूंकेगा ! हर कुकर्म में उतरेगा क्योंकि तुमने कभी उसे गीता ही नहीं पढ़ाया !

तुम्हें तेरी शोहरत इज्जत सब आंखों के सामने नष्ट करेगा ! यही कुकर्मों की सज़ा होती है कि सब सामने से मिटते देखोगे.. जबरदस्त तड़प होगी..

शाहरुख के लौंडे के साथ भी तो यही हुआ ! बाप की अकूत काली कमाई ने बेटे को हवालात पहुंचा दिया ! 

बॉलीवुड चरसियों का अड्डा है..

शाहरुख हो, आमिर हो, सलमान या बच्चन ये वही काट रहे जो इसने खुद ही बोया था !

फ़िल्म इंडस्ट्री की घिनौनी सच्चाई कई दशकों से है मगर अब फर्क यही है कि सोशल मीडिया के जमाने में लोग नंगा कर दे रहे..

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने अपनी शानदार डयूटी निभाई है ! उनकी दिलेरी के लिए सौ बार तालियाँ पीटो तो कम है, क्योंकि इनलोगों ने उसके लौंडों को पकड़ा है जो दुबई के शेख से लेकर अरब के कई हस्तियों तक से भारत सरकार पर दबाब बना चुका होगा..

ये वही है जिसे भारत में असहिष्णुता लगती थी.. कानून का राज बराबर चलता है ! चार्टर प्लेन से चलने वाला लौंडा आज जेल के सड़ांध मारती कमरे में घुटेगा.. 

प्रकृति सबको बराबर ट्रीट करेगी बस न्याय करने और नीति बनाने वाला शासक सत्ता में बैठा रहे...

#जय_हिन्द 🇮🇳



15 October 2021

● दशहरा स्पेशल ●

देवी के भव्य स्वरूप के आगे नतमस्तक हो जाने वाले सनातनी के लिए शक्ति की आराधना हमारे लिए सर्वस्य है ।
सारे देवी देवताओं के शस्त्रों से सुसज्जित माँ नारायणी की भव्यता को कौन नहीं पूजता.. हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि हमारी परंपरा में नवरात्र दशहरा का पर्व समाहित है । 
अस्त्र-शस्त्र ही आपकी शक्ति का घोतक है.. शस्त्र ही शांति का सूचक है.. शस्त्र संहार जरूर करता है लेकिन आने वाले खतरों को टाल देता है ! अपने शौर्य के लिए शक्ति प्रदर्शन किया जाना आवश्यक है !
धर्म की रक्षा सबसे सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य है.. धर्म को जीवंत बनाये रखने, अपने पूर्वजों की परंपरा को आगे बढ़ाते रहना सभी का कर्त्तव्य है !
आज जो युवा इस संस्कृति को जीवंत रखने के लिए 
सड़कों पर या घरों घरों तक चंदे मांगते चलते हैं वह हमारे धर्म के सर्वश्रेष्ठ रक्षक हैं.. 
फ्रंट लाइन वॉरिअर की भूमिका में है.. धर्म के कार्यों में निःस्वार्थ भाव से इनकी उपस्थिति जरूर देखी जाती है !
मां की मूर्ति स्थापना करने से लेकर पंडाल लाइटिंग तक कि व्यवस्था आपसी तालमेल से कर डालते हैं.. सरकार और उसकी किसी व्यवस्था से कोई सहयोग तक नहीं मिलने के बावजूद इन्होंने सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा रखी है !
सरकारें आये दिन कानून व्यवस्था के नाम पर आयोजनों में विघ्न डालने से नहीं चुकती.. 
भले आपको ज्यादा पढ़े लिखे इलीट क्लास होने का घमण्ड हो और इन आयोजकों को आवारा फालतू समझते हों.. लेकिन मेले में घूम रहे आपके बच्चों के चेहरे पर मुस्कुराहट इन्हीं के कारण आ रही होती है ! देवी गीत पर आपका अंदर से गुनगुना उठना भी तो इनका ही आनंद है ! विसर्जन में एक से बढ़कर एक बैंड और झांकियां देख आपके बच्चे में जो हर्ष दिखता है उसकी वजह वही युवा हैं जो आपकी नजरों में आवारा है !
किसी के पास समय नहीं है, हर कोई एक दूसरे को कुचलकर आगे बढ़ जाना चाहता है.. मंदिर जाने तक को समय नहीं है, जाते भी तो VIP दर्शन का इंतजाम कर लेते हैं..
आप अपने बच्चे को बाहर तक जाने नहीं देते.. 
तो सोचिये कौन करेगा ये सब आयोजन.. किसका मन करता कि भूखे प्यासे बांस बल्ला जुटाकर पंडाल बनाये, 9 दिन फलाहार कर कलश प्रतिमा स्थापित करे ! चन्दा मांगने में पुलिस से मार खाये, बिजली विभाग को मैनेज करे फिर भी आपके परिवार-बच्चों के लिए एक से बढ़कर एक आकर्षक सजावट रखे..
चंदा वाले को देखकर कितने लोग अपना गेट तक बंद कर लेते.. सामाजिक दायित्व से भागने व धर्म विमुख रहने वाले लोगों में तनिक लज्जा देखने को नहीं मिलती ! सबसे पतित लोग होते हैं ये.. समाज ऐसे लोगों को चिन्हित करें और महत्व का एहसास कराये !
समाज में इतने जाहिल होने के बाद भी हमारी जड़े कितनी गहरी है ये आप सड़कों चलते माँ की भव्यता और पंडालों की चकाचौंध देखकर फील कर सकते !
धर्म-परम्परा के लिए समय नहीं है तो आर्थिक मदद करने से कौन रोका है ! अपनी जिम्मेदारी जरूर निभाएं.. 
बढ़ चढ़कर भागीदारी करें !
हमें अपने पर्वों को संरक्षित रखना है.. अपनी पूर्वजों की परंपरा को आने वाली पीढ़ियों तक हस्तांतरित करनी है इस जिम्मेदारी को जरूर निभाएं...




19 September 2021

● कोष मूलो दण्ड ●

राज्य के धन का स्त्रोत 'कर' यानी टैक्स होता है ! मौर्य प्रशासन में चाणक्य ने कर व्यवस्था को सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया था.. किसी भी राज्य की सैन्य शक्ति, प्रशासनिक खर्च एवं लोककल्याणकारी कार्यों के लिए कोष पर पूर्ण निर्भरता होती है !

राज्य यानी सरकार का राजकोष अहम तौर पर जनता से वसूले गए टैक्स से ही संचित किया जाता है !

वर्तमान में भारत में दो तरह की टैक्स प्रणाली कार्य करती है -

पहला अप्रत्यक्ष कर प्रणाली एवं दूसरा प्रत्यक्ष कर प्रणाली ! भारत की सरकार एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई वेलफेयर स्टेट की भूमिका में है ! समाज के हर वर्ग को बराबरी में लाना, भयमुक्त समाज बनाना और हर सुख दुख में जनता की मदद करने की व्यवस्था ही वेलफेयर स्टेट की भूमिका माना जाता है ! जबकि राजशाही शासन वाले देशों में वहां की सरकार पुलिस स्टेट की तरह काम करती है ! वहां की जनता की सुख दुख से कोई मतलब नहीं रखती...

आप अमीर हो टैक्सेशन के दायरे में आते हो फिर भी टैक्स नहीं चुका रहे या टैक्स चोरी कर रहे तो इसे सीधे सीधे राजदंड के योग्य माना जाता है ! कर व्यवस्था हज़ारों सालों पुराना है ! 

आपकी इस चोरी से सरकारें कोष के अभाव में जरूरतमंद को मदद नहीं पहुंचा पाती है तो उसका जिम्मेदार किसे माना जाए ?

अगर एक गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करने वाला व्यक्ति हर सामान पर अदृश्य रूप से 5% से लेकर 28% तक टैक्स चुका रहा है तो देश के अमीरों को उनकी जिम्मेदारी से भागने नहीं दिया जा सकता..

कोष किसी राज्य या देश की उन्नति का भविष्य नियत करता है ! अक्सर हमें देश के विभिन्न अमीरों के यहां आयकर और GST के छापेमारी की खबरें मिलती रहती है ! ये लोग अपनी आमदनी का एक छोटा सा भी हिस्सा सरकार को देने में कचोट से जाते हैं मगर पालतू कुत्ते पर हज़ार रुपये रोज खर्च देंगे.. उनके कर चोरी के कारण ही राजकोष को भरने हेतु सरकारें निरीह जनता पर अप्रत्यक्ष करों का बोझ डालते चली जाती है !मतलब अमीरों से टैक्स न वसूल पाने का जिम्मा या नाकामी अंततः  जनता पर ही फोड़ा जाता है.. वे बेचारे कराह तक नहीं पाते..

टैक्स चोरी करने वाला भी चोर ही है ! टैक्सेशन में चोरी करवाने वाला भी उतना ही जिम्मेदार है और टैक्स न वसूल सकने वाला सिस्टम भी उससे कहीं ज्यादा जबाबदेह है ! अगली बार अगर किसी राजनेता, फिल्मी नचनियों या कॉर्पोरेट के ठिकानों पर रेड हो तो कम से कम मुस्कुरा उठिए.. उनकी लायबिलिटी निरीह जनता के ऊपर आने से बच तो गई !

चाणक्य के अनुसार कर की चोरी की सजा मृत्युदंड होनी चाहिए और चंद्रगुप्त प्रशासन में इसकी सज़ा भी यही थी !

सल्तनत, मुगल काल में तीन चौथाई तक टैक्स लगाए जाते थे और निर्ममता से वसूले भी जाते थे ! कोड़े से पीटा जाता था, मांस तक काट लिए जाना का क्रूर इतिहास रहा है..

जबकि आजकल के सरकारें टैक्स देने के लिए इन रईसों से गिड़गिड़ाती फिरती है ! 

चाणक्य का कोष मूलो दंदः आयकर का ध्येय वाक्य आज भी है ! सरकार के पास पैसे हमसे ही आना है.. हर एक कल्याणकारी योजनाओं के लिए पैसे उपलब्ध कराने की प्राथमिक जिम्मेदारी अमीर वर्ग पर डालना सबसे आसान उपाय है ! 

कर चोरी में मदद करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को कम से कम इस देश के बारे में एक बार जरूर सोच लेनी चाहिए कि उसके इस कृत्य से हमारी आर्थिकी कैसे प्रभावित होगी ?

निरीह आबादी बेमतलब के अतिरिक्त टैक्स का भार कैसे सहेगी ?

उनके लालच से देश एक साथ कई मोर्चों पर खोखला हो रहा होता है ! 

ये राजद्रोह से कम नहीं है.. नेताओं के भ्रष्टाचार के मसले अलग हैं वो अलग मुद्दा ही है ! वो करते बहुत गलत हैं मगर अंततः वे नोट भी चुनावों के वक्त जनता के बीच ही जानी है..

लेकिन टैक्स चोरों के पैसे आराम से शेयर मार्केट इक्विटी आदि में दिन रात तरक्की कर रहे होते हैं.. टैक्स चोरी राष्ट्रद्रोह का दूसरा रूप है.. जितना अधिक कर आएगा राष्ट्र का उतना उन्नति सुनिश्चित होगा.. अर्थव्यवस्था और रोजगार के लिए नए रास्ते भी खुलेंगे..

#जय_हिन्द 🇮🇳




13 September 2021

● प्रतिकार ●

बदले लेने की भावना हर एक जीव जंतु आवश्यक रूप से होनी चाहिए और यह तत्व प्रकृति ने नर्सगिक तौर पर सबको दे रखा है ! एक एक किट-पतंग, चींटी से लेकर बड़े बड़े जानवरों को जब भी नुकसान पहुँचाओगे वह पूरी क्षमता से अटैक करेगा ! इंसान के अंदर भी तो वही तत्व है ! बस हमारा सनातन धर्म अपने कर्म के सिद्धांत पर आधारित है ! यहूदी आंख के बदले आंख और दांत के बदले दांत वाली रणनीति अपनाते हैं ! माफी का कोई कांसेप्ट उनके धर्म में नहीं है ! तो देखिए इजराइल की वॉर पॉलिसी और समझिए क्या करता है वो ! 

हमें भी समय रहते भांप कर अपने आस्तीन के दुश्मनों को वही सजा देनी चाहिए जो वो करने की सोच ही रहा हो.. परंतु हम इतने लिबरल हो जाते हैं कि उनकी मनोदशा समझ ही नहीं पाते ! या कहें कि हमें अपना ओवरकॉन्फिडेंस ही डुबो देता है.. शक पनपने से पहले ही ये न्यूट्रल करने पर उतारू हो जाता है और कुछ कर ही नहीं पाते !

इतिहास हमें सिखाता है कि कोई आपको नुकसान पहुंचाए उससे पहले उसका नुकसान स्वीट पाइजन बनकर कर देना है ! तड़पने से पहले ही उसे तड़पा के छोड़ दीजिए, एहसास जरूरी है चाहे वह अपनी फील्ड का कितना भी बड़ा खिलाड़ी हो, चोट दर्द सबको देती है !

कोई आपकी बेइज्जती करे, उसे प्यार से फिर से मनाइए करीब लाइये और 100 गुना बेइज्जती करके छोड़ दीजिए.. प्रकृति बदला लेगी की नहीं इस इंतजार में छोड़ना बेईमानी है ! बदले लेने की पूरी कोशिश होनी करनी चाहिए क्योंकि ये प्रकृति का नर्सगिक न्याय है ! 

सनातन दर्शन को मानने वाले अक्सर अपने आस्तीन के दुश्मनों को पहचान कर भी कुछ खास नहीं कर पाते ! पहले अटैक करना तो दूर बेचारे बाद में भी उनका दया भाव रोक देता है ! हम पर इसी कमजोरी के बदौलत शासन-अत्याचार किया गया..  हम औरों से सर्वश्रेष्ठ इसीलिए हैं कि हमने अपने अंदर मौजूद प्रतिकार तंत्र तक को नियंत्रित कर लेते हैं.. शायद इसलिए हज़ार साल गुलामी के जघन्य इतिहास के बावजूद आज भी आस्तित्व में हैं !

लेकिन अब अगर इस देश समाज में सर्वाइव करना है तो प्रतिकार यानी रिटेलीएशन सिस्टम को हमेशा सक्रिय रखें.. अपनी कुटिल बुद्धि को एकदम स्टैंडबाय मोड पर रखना है ! देश, राज्य की खबरों से अपडेट रहें ! आसपास मौजूद फंगस की पहचान कर पनपने से पहले सेनिटाइज कर दें..

#जय_हिन्द 🇮🇳



05 September 2021

● न्यूनतम समर्थन मूल्य ●

कृषि कानूनों पर सरकार के एक के बाद एक निर्णयों से MSP और अनाज खरीद की प्रक्रिया पारदर्शी होती चली जा रही है ! 
परिस्थिति ऐसी है कि आंदोलन को न तो सरकार कुचल रही है न कुछ मान रही है ! आंदोलनकारी बिलबिला रहे है.. महापंचायत हो रही है.. दुगने MSP के लिए गले फाड़े जा रहे हैं ! चलो मान लिया MSP के दाम दुगने कर दिए गए, तो एक आम मजदूर या छोटे दुकानदार का राशन खर्च जब दुगने होंगे तो उनकी जिम्मेदारी लोगे क्या ? वो मध्यम वर्गीय परिवार आर्थिक दुष्चक्र में फंसेगा तो मदद करोगे क्या ?

तुम्हारे पास पुरखों की जमीन है, कोई किराया या बिल भरने की कोई liability नहीं, बिजली बिल या कोई टैक्स कभी देना नहीं है ! कोई लाइसेंस लेना नहीं है ! अपनी मर्जी के मालिक हो..
एक दुकानदार जो आसमान छूती किराए पर एक दुकान लेता है, वहां बिजली बिल से लेकर GST, इनकम टैक्स तक भरता है ! बैंक वाले लोन वसूलने में इनकी चमड़ी तक उधेड़ लेते है !
इस तरह से सरकार को भी हर दुकानदार के लिए मिनिमम रेट की गारंटी दी जानी चाहिए.. अगर घटिया क्वालिटी के कारण उस कीमत में कोई न खरीदे तो सरकार उसकी MSP की कीमतों पर दुकानदार का सामान खरीद ले क्योंकि वह सेवादाता है !

इस तरह से मजदूर को भी मिनिमम आमदनी देनी ही चाहिए ! उस बेचारे के पास तो न पाने के लिए कुछ है न खोने को कुछ है ! वो तो आज कमाता है तो कल का भोजन परिवार वाले को नसीब होता है !
हद्द तो यह है कि मजदूर बेचारा ढंग से एक दुपहरिया सड़क किनारे बैठ के विरोध प्रदर्शन भी नहीं कर सकता.. या तो पेट भूख उसे उठा देगी नहीं तो पुलिस की असीमित शक्तियां है ही इनके लिए इस्तेमाल करने को ! श्रमदाता की ये हकीकत है देश में की इसका एक एक तंत्र अपनी सारी खुन्नस इसी निरीह पर निकालता है..
200-300 रुपये में खेतों में काम करने वाले ये मजदूर ही इस देश के असली किसान है ! इनके पसीने से अन्न की सोंधी महक है ! इनकी आमदनी बढ़ाने को महापंचायत होता तो ये देश अंदर से भर उठता.. समूचा देश खड़ा हो उठता !!

पेट्रोल, खाद्य तेल, रसोई गैस के दाम बढ़ते जा रहे हैं.. सरकार इस मामले में बेजान सी क्यों बन जाती है ! इन बेसिक चीजों में बढ़ती महंगाई सीधे सीधे हमारी अर्थव्यवस्था की जड़ों जो निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार है को खोद देती है ! आमदनी सीमित है.. घर का खर्च ही किसी तरह चल रहा वो परिवार क्या lavish चीजें खरीदेगा ? इनकी क्रय शक्ति घटेगी तो आर्थिक तरक्की रुकेगी ही.. और मंदी आना ही है..
बैंक वाले लोन देना तो दूर निम्न वर्गीय आय वाले लोगों को अपने ही पैसे बैंक से निकालने में दुत्कार देते हैं.. 
पुरखों की संपत्ति है नहीं, बैंक लोन देते नहीं तो क्या बिजनेस करेगा बेचारा ? 

मान लिया किसी तरह दे लेकर लोन मिल गया, उसके बाद व्यापार में 20 तरह के टैक्स कंप्लायंस लाद दोगे, बिजली बिल 8 से 9 रुपये यूनिट चुसोगे.. फिर ऊपर से ऑनलाइन शॉपिंग वाले से कंपीटिशन.. तो बताइए दुकान कहाँ से चल पायेगा ??
बैंक वाले लोन की वसूली घर बेच के कर ही लेंगे ! लोन माफी का प्रावधान तो हमारे अन्नदाता के अलावा किसी के लिए नहीं है चाहे बाकी की चमड़ी छिल जाए क्या फर्क है देश को !

तो सोचिए MSP की जरूरत समाज के किस वर्ग को है ! ये कोई किसान विरोधी बात या स्टैंड नहीं है ! एकदम निष्पक्ष होकर देश को, सरकार को, समाज को और सभी को सोचना चाहिए..
जरूरतमंद कौन है ये पहचान करना देश की सरकार की जिम्मेदारी है और उसके लिए क्या नीतियां हों ये भी उसे ही तय करना है !
महापंचायत कर लेने से या साल भर सड़क घेर लेने से इस सरकार को कितना फर्क पड़ने वाला है सबको पता है !
अगर किसान की बात करनी है तो बात छोटे व्यापारियों की भी होनी चाहिए और बात मजदूरों की भी होगी ! अन्नदाता हो तो उसकी गरिमा बनाये रखो.. फोकट का किसी के पेट में अन्न नहीं चला जाता... 
#जय_हिन्द 🇮🇳



15 August 2021

● आजाद भारत के 75 वर्ष 🇮🇳 ●


हमारा स्वाधीन भारतवर्ष अपनी आजादी की 75 वीं वर्षगाँठ मना रहा है ! 1947 में ब्रिटिश औपनिवेशिक संस्कृति का भारत से अंत हुआ और हमें दो टुकड़ों में विभाजित, खंडित और रक्तरंजित भारतभूमि को स्वीकारना पड़ा !

हिंदुस्तान का अस्तित्व ब्रिटेन के गोरों और कुछ मजहबी पापियों ने तय किया ! चरखे से अंग्रेजों को भगा देने की गाथा हमनें खूब सुनी है लेकिन देश को बांट डालने की साजिश पर पर्दे क्यूं डाल दिया जाता है !

देश के विभाजन का त्रासद सच यह है कि हमनें अपने टुकड़े करके भी एक ऐसा पड़ोसी पैदा कर दिया, जो हज़ार साल युद्ध करने की मानसिकता पाले हर वक्त बैठा होता है !

जरा सी सुरक्षा चूक पर शहर के शहर उड़ा देने की नापाक साजिश रच दी जाती है !

भारत का रक्षा बजट 4.78 लाख करोड़ की है.. मतलब सैंकड़ों देशों की जीडीपी भी इतनी नहीं होगी ! सरकार राफेल, मिसाइल, अटैक हेलीकॉप्टर आदि खरीदती रहती है इसका पैसा हमारी जेब से लगता है ! 

सोचिए ये पैसे देश की अर्थव्यवस्था में अगर खर्च होते तो हम कहाँ पहुंच गए होते ! अमेरिका सहित सभी पश्चिम देश ललचाये गिद्ध की भांति हथियार बेचने भारत की तरफ ही क्यों देखते हैं !

ये बेतहाशा खर्च सिर्फ इसलिए है कि हमारी अपनी भूभाग को धर्म के नाम पर काट देने के बाद भी उनका रक्त पिपासा कम नहीं हुआ.. हर दिन भारत को बर्बाद करने की कसमें निकाली जाती है ! भारत का अधिकांश रक्षा बजट उस नापाक देश के लिए खर्च हो रहा है जिसे बांट देने के बाद शांति के सपने हमारे अल्पबुद्धि नेताओं ने देखा था !

ये चीजें अब उन्हें सुननी होगी.. आजादी दिलाने का तगमा जिस भी नेता को मिलेगा उसे विभाजन की विभीषिका का जिम्मेदार अनिवार्य तौर पर माना ही जायेगा ! 

गरीबी, भुखमरी, कुव्यवस्था से लैस भारत को अंग्रेजों ने छोड़ा था.. हमनें दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश होने के बावजूद भी इन 75 वर्षों में अकल्पनीय विकास किया है ! 

आजादी का अमृत महोत्सव इस भारतवर्ष के गौरव गान है..

इतने त्रासद इतिहास के बावजूद भी हम उठ खड़े हुए हैं और अपनी 130 करोड़ आबादी को साथ लेकर महाशक्ति बनने की ओर भी लगातार अग्रसित भी हैं ! 

#जय_हिंद 🇮🇳




14 August 2021

● तालिबान 2.0 ●

अफगानिस्तान के अंदर ही क्या पूरी दुनिया में तालिबान का नंगा नाच देखने को तैयार रहें ! धर्म के नाम पर दुनिया में खास झंडा बुलन्द करने को कैसे कत्लेआम किया जाएगा ये भी देखने को तैयार बैठे रहें !

ये सोचना भूल है कि तालिबान की उपस्थिति सिर्फ अफगानिस्तान में है और उससे दुनिया के किसी और देश का क्या ? तो आप समझ लीजिए कि आपको धर्म, राजनीति और कूटनीति में चाय के दुकान पर मिलने वाले ज्ञान के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है और अभी से भी सारी मूल चीजें सीखना शुरू कर दें... 

क्रुसेड (धर्मयुद्ध) का इतिहास नहीं पता है तो पहली बात ये समझ लें कि NCERT/ स्कूली किताबों के अतिरिक्त भी बहुत कुछ इस दुनिया में घटित हुई है और आपको निश्चित रूप से सीख लेनी चाहिए ! 

इस दुनिया का स्याह सच कैसा है या धर्म के लिए दुनिया में कितने खून बहे हैं ये भी मालूम हो जानी चाहिए ! ये वही लाल खून है जिसे अक्सर तुम्हें समझा दिया जाता है कि धर्म वर्म क्या है सबका खून एक ही जैसा है..

खून लाल ही होता मगर उसमें मस्तिष्क कितना जहरीला हार्मोन निकाल कर मिलाता है उसी सारा खेल निर्भर है.. खून में क्रूरता रहनी है या मानवता ये आपका दिमाग तय करता है.. और दिमाग वही तय करता है जो आपका धर्म उसे निर्देशित करता है !


तालिबान को अफगानिस्तान में पैदा करने वाला अमेरिका, उसे पनपाने वाला अमेरिका और फिर उस पर कब्जा करके सहानुभूति बटोरने वाला भी अमेरिका ! इसकी दुनिया के ऊपर दादागिरी ऐसे नहीं चलती.. इसकी युद्ध अर्थव्यवस्था ऐसे थोड़ी सफल है.. इसका डॉलर दुनिया की सारी अर्थव्यवस्था को यूँ नही नाच नचा रहा ! 

अब अमेरिका ने अफगानिस्तान की सरजमीं से बहुत गहरी साजिश रचा है.. तालिबान को दूसरी बार फिर से इसी अमेरिका ने पैदा कर दिया है ! तालिबान का दूसरा वर्जन कितना खतरनाक होगा और मध्य पूर्व एशिया में इसका क्रुसेड कितना भयावह होगा ये जल्द ही देखने को मिलेगा !

भारत में हम बैठकर ये न सोंचे की अफगानिस्तान का ये आंतरिक मामला है हमें क्या ? ये वैसा ही है कि पड़ोस में आग लगी है और तुम लपटों का आनंद ले सको.. अगर ऐसा है तो जलने और बर्बाद होने को तैयार रहो !


ये धर्मयुद्ध हर जगह होगा.. भारत वैसे भी बारूद के ढ़ेर पर ही बैठा है, एक चिंगारी मात्र की देर है बस !

फिर देखना कैसे भारत को मिटाने की कसमें गूंजेगी.. 

शायद इंतजाम चल भी रहा होगा.. तैयारियां अगले हज़ार साल की पहले से ही चल रही है.. 

सरकार राष्ट्रवादी है इसलिए पड़ोस की आग को तुरंत बुझा देने को कूदने पर मजबूर करो.. सरकार को नैतिक समर्थन दो ! अन्यथा नौबत कहीं इजराइल / यहूदी बन जाने की न आ जाये जिसके देश / धर्म को मिटा देने का नारा इन्हीं लोगों ने बुलंद किया था... 

#जय_हिन्द 🇮🇳



31 July 2021

● ओलंपिक प्रदर्शन ●

देश के हर एक खिलाड़ी जिसने भारत का प्रतिनिधित्व ओलम्पिक में किया, चाहे हार चुके हों या जीते हों, उन सबका हमारी नजरों में सम्मान बराबर है !

अगर हारे तो उनकी क्या गलती है ! जैसे कोई विद्यार्थी जीवन में कभी असफल नहीं होना चाहता उससे कई गुना ज्यादा एक खिलाड़ी अपने खेल में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हेतु सबकुछ झोंक देना चाहता है ! खेल या खिलाड़ी के संबंध में बाहर बैठकर आलोचना करना या तालियाँ पीटना काफी आसान है, लेकिन उनके मेहनत और कठिन परिश्रम का पदक न जीत पाने के कारण मज़ाक बना देना कहाँ का न्याय है ?

टोक्यो ओलंपिक में भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश का इतना बुरा हश्र कोई एक दिन में नहीं हुआ है... इतिहास है कि ओलम्पिक के अंदर भारत का प्रदर्शन कभी बेहतरीन नहीं रहा !इसका ये कतई मतलब नहीं है कि हमारे खिलाड़ी अयोग्य हैं और पदक न लाने का ठीकरा उनके ऊपर फोड़ डालें !

देश में खेल को नियंत्रित करने उसके विकास के लिए SAI जैसे कई प्राधिकरण बनें हुए हैं जिसपर सरकार का हमेशा पूर्ण नियंत्रण रहा है ! मगर इतने सालों तक ये संस्थाएं मात्र नेताओं के भ्रष्टाचार का सुरक्षित अड्डा बनकर रह गया ! इनकी कार्यप्रणाली में इतने ओलंपिक के खराब प्रदर्शन के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ ! जबकि उन संस्थाओं में खर्च होने वाली राशि टैक्सपेयर्स की होती है ! 

इन संस्थाओं में नेताओं की काली सच्चाई है कि ये लोग अपने चेहते को या कार्यकर्ताओं को सीधे लाकर कोच, सपोर्टिंग स्टाफ आदि पदों पर नियुक्त कर देते हैं ! चाहे खेल का ख भी उस गेंडे जैसे आदमी को पता हो या न हो.. मगर अब वह फोकट का वेतन लेगा, ओलम्पिक से क्या मतलब ! खिलाड़ी बेचारा संसाधनों, स्किल्स के अभाव में उछल कूद कर प्रैक्टिस बस करता रहता ! विदेशी कोच भी शायद सेटिंग वाले ही सेलेक्ट हो पाते हैं ! प्रदर्शन की शायद ही ऑडिट होती होगी !

और जब ओलम्पिक में विश्व के शानदार व्यवस्था वाले देशों के खिलाड़ियों से भिड़ंत होती है तो क्या हश्र होता है ये सबके सामने है ! वो हमसे आगे हैं क्योंकि वहाँ खेल में लालफीताशाही नहीं है.. नेता उद्घाटन करने नहीं जाया करते हैं ! 

जुनून से या 130 करोड़ तालियाँ पीटने से खिलाड़ी नहीं जीतते ! बल्कि उनका प्रदर्शन उसी पर आधारित होगा जिसमें उन्होंने अभ्यास किया है ! 

कोच की नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी क्यों नहीं है ? खेल के अंदर नेताओं की नेतागिरी रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया ! खेल को देश के सभी राज्यों में बढ़ावा देने की जगह 2 या 3 राज्य पर फोकस क्यों रखते ? खेलरत्न और अर्जुन अवार्ड वितरण हमेशा विवादों में क्यों रहता है ? चयन का मानक किसी को पता ही नहीं चलता !

अगर निजीकरण करना है तो इस क्षेत्र में क्यों नहीं करते ?

क्यों नहीं हम अपने खिलाड़ियों को विश्वस्तरीय खेल लायक बनाने का ठेका किसी कंपनियों को दे देते हैं ?

तीखे सवाल पूछे जाएंगे क्योंकि यहां हर एक जनता टैक्सपेयर्स है और उसके पैसे वहीं खर्च होने चाहिए जिससे देश का मान सम्मान बढ़ें.. न कि शर्म से सिर झुकाकर हमारे योग्य खिलाड़ी लूज़र की लाइन में खड़ें रहे...

वे भारत का प्रतिनिधित्व करते जाते हैं इसलिए सरकार की जिम्मेदारी है कि वे अपने तंत्र सुधारे नहीं तो सारी जिम्मेदारी लेने को तैयार रहे... 

#जय_हिन्द 🇮🇳



03 July 2021

● डर का माहौल ●

देश के अंदर डर के माहौल में कांपने वाले आमिर और किरण राव आखिरकार अलग हो गए !

ये वही आमिर है न जो कभी सत्यमेव जयते कार्यक्रम लाया करता था ! समाज सुधार की बात करने वाले इस व्यक्ति ने दूसरी बार तलाक देकर समाज के सामने ये कैसा उदाहरण स्थापित है ?

चलो तुम तो अमीर हो, करोड़ों रुपये देकर आराम से तलाक कर ले रहे हो लेकिन कभी सोचा है कि तेरे इस कृत्य से कितने गरीब परिवार बिखर जाने को प्रेरित हो रहे होंगे !

पर्सनल लॉ के हिसाब से तुम आराम से चार शादियां कर सकते, अदालत से तलाक की डिक्री लेने का भी कोई झंझट नहीं ! काजी के पास आम सहमति से मेहर की राशि देकर निकल लोगे तीसरी छोरी के साथ... 

आखिर समाज में किस तरह की adultry फैला रखी है ! औरतों का भी कोई मानवीय जीवन है या नहीं ! किसी गरीब या साधारण परिवार की महिला पूरी जिंदगी इसी डर में जीती है कि कब पति का सर घूमेगा और उठा लाएगा किसी को !

तुम तो आमिर पढ़े लिखे थे न ! समाज तुम्हे सेलेब्रिटी बनाकर सर आंखों पर रखा ताकि तुम उसके मोटिवेशन बन सको..

मगर तुमने देश में डर का माहौल दिखाकर सच में डर पैदा कर दिया उन लाखों महिलाओं के दिल में...

तुम्हे तो अपने लोगों को समझाना था.. औरतें उपभोग की वस्तु नहीं है.. वो देवी की तरह पूजी जानी चाहिए ! उसकी मर्यादा को अपनी प्रतिष्ठा बनाना था तुम्हें... 

तुम किस हक से इंसान कहे जाने लायक हो ? तुम्हे अब भी अगर 1500 साल पुराने सिस्टम में जीना है तो ये देश सच में तेरे लायक नहीं था...

#जय_हिन्द #UniformCivilCode 🇮🇳



01 July 2021

● धरती के भगवान ●


आज डॉक्टर दिवस है ! कोविड महामारी से उबर रहा संसार आज समस्त डॉक्टरों को नमन कर रहा है ! 

आप इस धरती के भगवान कहे जाते हो ! मतलब इंसान को निरोग रखने की पूरी जबाबदेही सिर्फ आपके कंधों पर है !

संकटों से घिरा मानव अपने जीवन की तलाश में सिर्फ आपके ऊपर निर्भर हो जाता है !

एलोपैथ, आयुर्वेद और होमियोपैथ के सभी डॉक्टर मानव जीवन के प्रति अपनी सेवा के लिए बधाई के पात्र हैं !

हाँ, मगर एलोपैथ के विकास के ऊपर दुनिया ने सबसे अधिक पैसे खर्चे हैं इसलिए जिम्मेदारी का ज्यादा बोझ उन्हें ही उठाना है !

इस देश की सरकार अपने नागरिकों की गाढ़ी कमाई से वसूल किये गए टैक्स से आपको सरकारी अस्पतालों में बहाल करती है ! 

ताकि आप उनके नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करें...

डॉक्टर बनकर पैसे कमाने का उद्देश्य रखने वाले लोगों को यह ध्यान रहे कि आपके अलावा भी कोई ईश्वर है ! 

पैसे कमाना हो तो 50 साधन है, मगर इतने परोपकारी क्षेत्र को यूँ बदनाम करना अन्याय है !


मरीजों के साथ बेशक मानवीय व्यवहार करें... वह बेचारा दुखी रोगी, कम पढ़ा लिखा व्यक्ति कितने आशा के साथ आपके पास आता है मगर आपकी एक बदजुबानी उन्हें अंदर तक काफी चोट पहुंचा देती है !

आप अपने पैसों के सनक और फार्मा इंडस्ट्री के दिए गए लालच पर काफी महंगी दवाएं लिख तो देते हैं मगर आपकी इन दवाओं का उस परिवार की आर्थिक स्थिति और देश की अर्थव्यवस्था पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ता है शायद इसका आपको अंदाजा नहीं होगा !

वो  मरीज किसी से कर्ज लेकर या गहने रखकर आपके पास कितने आशा से आया हुआ होता है लेकिन कितनी आसानी से उसे अपनी सेटिंग वाली लैब में भेज कर कमीशन कमाने की लालसा रखते हो ! ज्यादा परसेंटेज देने वाली कंपनियों की दवा लिख तो देते हो लेकिन कभी सोचा है कि आपके इस कृत्य से कोई परिवार गरीबी के दुष्चक्र से कभी निकल ही नहीं पायेगा...


अगर किसी व्यक्ति में मानवता की सेवा करने का उद्देश्य है तभी वह डॉक्टर प्रोफेशन में आएं अन्यथा लूट खसोंट करना हो तो लुटेरे बनने में भी क्या दिक्कत है..

आपके ऊपर समाज की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है ! समाज को स्वस्थ रखने की जबाबदेही है तभी देश स्वस्थ रहेगा, हमारी अर्थव्यवस्था स्वस्थ होगी ! हमारा विकास तीव्र गति से होगा...

परंतु आपकी लालच और पैसे के अंधेपन में समाज में कितनी गहरी जड़े खुद रही है इसका कभी अंदाजा लगाना मौका मिले तो लगा लेना... 

कम से कम किसी गरीब के आंखों में चमक रही उम्मीद का ही मोल रख लेना...

इंसानियत बची होगी तो उंगलियां जेनेरिक दवाईयां ही लिखेंगी...

वरना इस जंगल में भेड़ियों की कोई कमी थोड़ी है... 

#जय_हिन्द 🇮🇳



19 June 2021

● बाढ़ और बिहार ●

नेपाल से निकलने वाली नदियां सीधी ढलान से उतरते हुए रौद्र रूप धारण कर लेती है ! फिर कोसी, गंडक, बुढ़ी गंडक और महानंदा नदियों की उत्तर बिहार में विभीषिका के बीच शुरू होती है निर्लज्जों की राजनीति ! 

ये कहानी कोई नई नहीं है, सरकार और जनता के बीच के विश्वास को हर वर्ष बाढ़ बहा ले जाती है ! बाढ़ राहत के नाम पर कुत्ते की तरह पैकेट फेंकें का चलन काफी पुराना हो चुका है, इसमें अब सरकार के प्रति तनिक संवेदना नहीं होती बल्कि गुस्सा ही आता है !

जब कोई मुख्यमंत्री 16 सालों से सत्ता पर कुंडली मारे बैठा है, अरबों अरबों रुपये बाढ़ राहत और तटबंध योजनाओं में फूंके जा चुके हैं ऐसे में सोचिए जब उस राज्य की निरीह आबादी पेड़ में मचान बनाकर बाढ़ से बचने का इंतजाम खुद करने लगे तो लोगों का भरोसा तो उठ ही जाना है... किस बात पर वे अपने संविधान, सिस्टम और सरकार पर भरोसा करें ? वो बाढ़ में कई कई दिन भूखे रह रहा, बच्चे भूखे रह रहे, उसके गाय-भैंस को चारा नहीं मिल रहा, झोपड़ी बह गई, जमा पूंजी के नाम पर हजार-दस हजार की ही अवकात है.. तो घण्टा GDP बढ़ेगा ! किस बात की इकोनॉमिक महाशक्ति की बात करते हो ? उसे पक्का मकान, चलने लायक सड़क और कमाने लायक रोजगार दोगे तभी तो वह कुछ अन्य चीजों में पैसे खर्चेगा..

जिस संविधान के बलबूते सत्ता भोग रहे क्या वो संविधान लोगों को इस बाढ़ के स्थायी समाधान देने से रोक देता है ? जब बाढ़ से उत्तर बिहार को नहीं बचा पा रहे तो हर वर्ष अरबों रुपये कहाँ खर्च रहे ? तटबंध की मरम्मत करा देने, रसोई खोल देने ये सब चीजें समाधान कम और अवैध-भ्रष्ट नेताओं-अधिकारियों की इनकम का सोर्स अधिक है ! 

उत्तर बिहार को बाढ़ से बचाने को कितने आयोग बनाये बिहार ने ? अगर बनाये भी तो उनके सुझाव पर क्या हुआ ? केंद्र और कोर्ट दोनों मूकदर्शक नहीं बन सकते.. राज्य के निकम्मेपन के जिम्मेदार दोनों बराबर माने जाएंगे ! कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से सभी का अस्तित्व है.. जनता को तकलीफ हो रही तो समझो लोकतंत्र को तोड़ा जा रहा है ! इतने सालों तक सत्ता भोगने के बावजूद उन सभी जगहों पर जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ तबाही लाती है वहां कच्चे मकान या झोपड़ी में रहने वाले लोगों को प्राथमिकता देते हुए आवास क्यों मुहैया नहीं कराई ? 

आपके इंजीनियर अगर इतने highly qualified हैं कि तटबंध टूटना आम बात है तो उसके लिए अन्य वैकल्पिक इंतजाम क्या किये, कभी वर्ल्ड लेवल के विशेषज्ञ की मदद ली ? रिसर्च बिठाई.. जनता से समाधान पूछा ?अगर केंद्र मदद नहीं कर रहा तो कभी बिहार की जनता को बताया ? कभी सारे तथ्य सामने रखे कि समाधान क्या है !

साधारण सी बात की है कि गंगा की पेटी बालुओं से भरी है, नेपाल से आने वाली नदियों का प्रवाह गंगा में गिरने वक्त काफी धीमी हो चुकी होती है.. इससे उन नदियों का फैलाव उत्तर बिहार में हो जाता है और काफी क्षति होती है ! जबकि बाढ़ आने से पहले न तो सरकार कभी इसके बारे में सोचती है न कभी फरक्का बांध पर केंद्र से लड़ती है ! नेपाल की तरफ या सीमावर्ती क्षेत्रों में बाँध बनाये जाने की कोई योजना दूर दूर तक नहीं दिखती ! कोसी हर साल रास्ता बदल लेती है मगर बेतरतीब बसी आबादी को इससे बचाना है ही ! 

बिहार एक 90s से बीमारू राज्य था और अब भी है ! अलग बात है कि शराबबंदी से एकदम सतयुग का माहौल है राज्य में ! इससे इकॉनमी चरम पर है और पैसे की अधिकता के कारण सरकार अन्य एक्साइज, रजिस्ट्री जैसी टैक्सों में भारी कटौती करते रहती है ! पर्यटक की भारी भीड़ से नियंत्रण करने में सरकार के पसीने छूट रहे हैं !

गुंडे एनकाउंटर के डर से राज्य छोड़ के भाग जा रहे हैं ! 

निवेश में अव्वल है.. मल्टीनेशनल कंपनियों की लाइन लगी है ! बिहार में रोजगार की तलाश में रेल भर भर कर मजदूरों आ रहे हैं... 

कितना अच्छा लगता है न ये सब... भूल जाइए और मूल बात पर रहिये !

बाढ़ से निदान का कोई विज़न है क्या सरकार के पास की वे अगले 5 या 10 सालों में कैसे समाधान कर लेगी ? कुछ नहीं है ! बस है तो हेलीकॉप्टर, चूड़ा गुड़ और राहत के पैसे लूट ले जाने की योजना !!!

बाढ़ आये सूखा आये.. कुछ भी आ जाये पार्टी फण्ड का विकास जरूर होता रहेगा... बाढ़ की उपजाऊ मिट्टी भले जनता का पूंजी बहा ले जाती हो मगर नेताओं-अफसरों की जेब में हरियाली से जरूर भर देती है...

जाति के नाम पर वोट डालने का नतीजा कितना महंगा हो सकता है कैलकुलेट कर लेना... हमारे सीधे होने का फायदा कैसे उठाया गया है ये भी जरा अतीत में झांक लेना कि कैसे मोटरसाईकल से चारे ढोये गए थे ! 

राजनीति में माहिर कहे जाने वाला बिहार आज अपने नागरिकों के अधिकारों से समझौता कर रहा है.. न्यायपालिका को गर्मी की छुट्टियां लेनी है और केंद्र को चुनाव पर चुनाव लड़ते रहना है...

मतलब यही लोकतंत्र की मूल भावना थी न.....

#जय_हिंद 🇮🇳

09 June 2021

● अश्लील भोजपुरी ●

भाषा स्वयं ही सभ्यताओं की जननी मानी जाती है । भाषाई समृद्धि लोगों को सामाजिक तौर पर न केवल योग्य बनाते हैं बल्कि उनके पीढ़ियों में क्या संस्कार होंगे ये भी तय करते हैं ! दुनिया की सबसे मीठी बोलियों में से एक भोजपुरी को माना जाता है ! इतने कर्णप्रिय शैली और मिठास की रसधारा से ओतप्रोत यह समस्त लोकभाषाओं में श्रेष्ठ माना जाता है !खासकर बिहार की पहचान तो भोजपुरी के नाम से ही लगभग सभी बाहरी राज्यों में है ! पूर्वी UP और पश्चिमी बिहार के बेल्ट के आम बोलचाल की भाषा में भोजपुरी का 100℅ वर्चस्व है ! उधर मॉरीशस सहित अफ्रीका और कई कैरिबियाई देशों में भी भोजपुरी एक अहम भाषा के रूप में दिखता है !

मगर आज भोजपुरी भाषा के साथ हो रहे वर्ताव का दोषारोपण किसी दूसरे पर कर नहीं सकते ! इसके जिम्मेवार हम सभी हैं ! संगीत-नृत्य के नाम पर जो भोजपुरी आज हमारे सामने परोसा जा रहा है वह हमारी पसंद और हमारी इच्छाओं के अनुरूप ही है ! हम कभी भोजपुरी के संरक्षण के लिए एकजुट ही नहीं हुए ! और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहां हज़ारों बोलियां और क्षेत्रीय भाषा है,  उस जगह पर सरकार के मत्थे सारी चीजें छोड़ देना उचित नहीं है । सरकार आपकी भाषाई विविधता बचाने हर चीज में क्यों उतरेगी जब आपको कोई फर्क ही न पड़ रहा हो ! 

भाषा की बात हो तो दक्षिण भारत का हाल देखिए ! उसकी एक-एक आबादी सड़कों पर उतर जाती है अपनी पहचान बचाने को ! सरकार को उनलोगों ने मजबूर कर रखा है अपनी भाषाई पहचान देने के लिए.. और सरकार अंततः हर बात मानती है !

1952 में पूर्वी पाक पर उर्दू थोपा गया ! वहां के लोगों ने बांग्ला भाषा बचाने के लिए क्या नहीं किया ? उर्दू को लेकर बवाल पनपते पनपते भयंकर नरसंहार हुआ और अंत में वही बांग्लादेश के लिए आजादी का कारण बना ! उत्तर पूर्व भारत में ट्राईबल्स का अपने भाषा और अपनी संस्कृति से प्रेम देखिए ! किसी बाहरी को घुसने नहीं देते भाषा या संस्कृति से छेड़छाड़ करना दूर की बात है !

Up बिहार में एक खास पहचान सदियों से लौंडा नाच, विवाह गीत, रामलीला, चैता, बिरह की रही है ! क्या बेहतरीन रस हुआ करता था, मतलब एक एक शब्द जैसे तन मन को हिला डालती थी ! भोजपुरी सिनेमा का दौर शुरू हुआ तो भिखारी ठाकुर जैसे बेहतरीन कलाकारों ने भोजपुरी माटी को सुगंधित किया ! रंगमंच पर भोजपुरी का अपना जलवा था... ऊपर से महिलाओं के विवाह गीत, उसमें गाली का रस ! कितनी शानदार विविधता है इस भाषा में...

मगर आज जो भोजपुरी गानों के नाम पर लंठई देखने को मिल रही है वह हमारी ही पसंद का है ! भोजपुरी सिनेमा में नंगई हमारी बिना मर्जी के नहीं परोसा गया ! हमने उस नंगई को पसंद किया... निर्देशक उत्साहित हुए, अभिनेता और अभिनेत्रियां कपड़े खोलने पर उतारू हुए और पैसे बटोरे क्योंकि हमने उन पर पैसे खर्चे ! 

फिर उसी बिहार में स्टेज शो और आर्केस्ट्रा का दौर शुरू हुआ.. लोग खुलेआम बार बालाओं के नाच को अपनी संस्कृति का हिस्सा मानने लगे !  अश्लील शब्दों से लैस गाने शादी-पार्टियों की शान होने लगी, बारातियों में एक ही धुन वाले मगर अलग अलग गलीच-गन्दे लिरिक्स के गानों पर हम थिरकने लगे... एक से बढ़कर एक अश्लील गाने निकले मतलब शरीर के हर एक निजी अंगों को सरेआम बीच बाजार में उसे शब्दों में पिरो कर हमें परोसा गया... और हम मजे के नाम पर स्टेज के नीचे शराब पीकर झूमते और पैसे लुटाते भोजपुरी भाषा को कितना गर्वित कर रहे थे !!!

भोजपुरी की अश्लीलता का कारण मुख्य रूप से भोजपुरी समाज जो पूर्वी UP और बिहार के भोजपुर, छपरा, सिवान आदि जिलों के लोगों की मौन स्वीकारिता है ! जब उनकी भाषाई पहचान में जहर घोला जा रहा था तो चुप क्यों थे ? ऐसे गानों, ऐसे फिल्मों का चलन हुआ ही क्यों ? अपनी मिट रही पहचान को बचाने या उसका विरोध करने समाज का बड़ा वर्ग कभी सामने नहीं आया... 

अपनी लोकसंस्कृति के प्रति इतनी संवेदनहीन हो आप तो भोजपुरी को मिटाने वाले दूसरा कोई नहीं हो सकता ! की आपकी लोकभाषा को  गाली-गलौच की भाषा बनाकर रख दिया गया है.. अब कितना अच्छा लगता होगा कि बाहर जाकर अपनी भोजपुरी एक्सेंट को छुपाना पड़ता है.. इज्जत खराब लगने लगती होगी ! हरियाणवी और पंजाबी गाने इतने आगे निकल गए और लोकप्रिय इसलिए हुए की तेरे तरह वे लोग संवेदनहीन नहीं थे !

पीछे के दो दशक की बात तो छोड़ ही दीजिए आज के इंस्टाग्राम या फेसबुक जैसे विभिन्न वीडियो प्लेटफार्म को एक नजर देखिए ! अच्छी पढ़ी-लिखी और आधुनिक लड़कियां इन्हीं गंदे भोजपुरी गानों पर अपनी कमर मटकाती मिल जाएगी ! कोई टोक दिया तो फटाफट नारीवादी बनने को उतारू हो जाएगी ! 

कौन दोषी है इसका ? क्यों विरोध नहीं करते कभी ? क्यों डिमांड है खेसारी, पवन सिंह, अक्षरा या मोटी थुलथुल पेट दिखाती हेरोइनों की ? 

सीधी बात है इसमें से कोई दोषी नहीं है ! वे सक्सेस पर है तो हम ही के बदौलत है ! हम ही ने उन्हें बढ़ाया है, हमें ही ने उन्हें प्रोत्साहित किया है ऐसे ऐसे गीत लिखने को ! उनकी दुकानदारी है और किसी व्यापारी की दुकान तभी मुनाफे में चलती है जब उसमें बिक रहे प्रोडक्ट की मांग ज्यादा हो ! अब उसमें चरस बिक रहा या गांजा ये खरीदने वाले समझें...

संगीत तो शारदा सिन्हा, मालिनी अवस्थी, भरत शर्मा का भी है ! इनलोगों के गीत या उनके शब्दों के बोल तक रोम रोम में लोकसंगीत का एहसास करा देते हैं ! 

भोजपुरी की पहचान बचानी है तो पूर्ण बहिष्कार करो इनका ! हर चीज सरकार पर डाल देना या सेंसरशिप की मांग करना बेहूदगी है ! पहले खुद सुधरो.. 

शुरुआत तो भोजपुरी भाषी लोगों को ही करनी होगी ! हर एक जगह कील ठोक दो.. यूट्यूब, फेसबुक जहाँ पकड़ा जाए उसी अंदाज में रगड़ डालो ! जैसे तो तैसा.. फिर सरकार से कोई डिमांड करना तब अच्छा लगेगा !

सब कुछ बर्दाश्त कर लो मगर भाषा से छेड़छाड़ कभी नहीं ! क्योंकि भाषा आपकी बुद्धि की माँ है... इसी के बदौलत तेरी शिक्षा, समझ और तेरा अस्तित्व है...

#जय_हिन्द 🇮🇳

28 May 2021

● विदेशी सोशल मीडिया ●

फेसबुक, व्हाट्सएप्प और ट्विटर ने भारत सरकार द्वारा बनाये गए आईटी नियमों के मामले में जिस तरह नेतागिरी करने का प्रयास किया है वह सीधे हमारी संप्रभुता पर हमला है । इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बादशाहत के नशे में ये इतने चूर हो चुके हैं कि 130 करोड़ आबादी वाले देश और बाजार की संप्रभुता पर सीधी उंगली उठाने की कोशिश की गई है । भारत की सामरिक सीमा में घुस कर ग्लोबलाइजेशन के दौर में व्यापार / मनोरंजन के नाम पर इनके कारनामे ईस्ट इंडिया कंपनी की याद दिला रही है । 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, संप्रभु राष्ट्र है । यहां का संविधान अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी देता है, ऐसी आजादी दुनिया के किसी देश में नहीं, जहां राष्ट्राध्यक्ष तक को खुलेआम चोर डाकू तक कह देते की स्वतंत्रता है । 

ट्विटर देश में पनप रहे राष्ट्रद्रोह का अड्डा बन चुका है । CAA कानून, दिल्ली दंगों, किसान आंदोलन की आड़ में इस ट्विटर ने सोशल प्लेटफार्म के नाम पर भारत की राष्ट्रीय एकता को खंडित करने की कोशिश की है । अभिव्यक्ति के नाम पर देश विरोधी गतिविधियों को सिर्फ पनपाया है । ये चुनचुन कर वैसी ताकतों की पोस्ट रिच बढ़ाती है जो बस देश या सरकार का विरोध करे ! देश के हित में बोलने वाले लोगों की ये अपनी पॉलिसी के नाम पर अभिव्यक्ति का गला घोंटता है, उसे प्रतिबंधित कर देता है !इसका काम निष्पक्ष होना चाहिए था, किसी देश की आंतरिक राजनीति में घुसकर उसे नियंत्रित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी । क्यों NIA के बहुत से जांचों में इसी ट्विटर की भूमिका संदिग्ध रही है ? क्यों इसके कारनामों से आतंकवादी संगठनों को बढ़ावा मिल रहा है ?

भारत में संसद सर्वोपरि है, उनके बनाये कानून से हमारा देश चलता है । नागरिकों की सुरक्षा और आजीविका की चिंता के लिए हमारे नीति निर्माता हैं जिन्हें हम चुनकर भेजते हैं अपना प्रतिनिधित्व करने को ! मगर तुमने किस हैसियत से अपने पॉलिसी को भारत के ऊपर थोपने का प्रयास किया ? 130 करोड़ आबादी द्वारा चुनी गई लोकतांत्रिक सरकार से टकराव करने की गुरुर कहाँ से आया ? IT रूल्स के प्रावधानों पर उंगली उठाने की तेरी हैसियत कैसे हुई ? तुम हो कौन इन नीतियों पर आवाज उठाने वाले ? क्या तुम इस देश के नागरिक हो ? क्या भारत का संविधान तुन्हें अभिव्यक्ति की आजादी का मूल अधिकार देता है ? 

तुम कौन सी ताकत हो जो सरकार से उसके अपने नागरिकों के मूल अधिकार की चर्चा करोगे ? 

अगर इस देश का हर नागरिक कहने लगे कि हम सरकार का कोई कानून नहीं मानेंगे, क्योंकि हमें तो आजादी है तो क्या होगा ! सिस्टम का मतलब क्या रह जायेगा... 

क्या दिक्कत है अगर तुम अपनी तरफ से 3 प्रतिनिधि रख लोगे ?जो किसी भी देशद्रोही एजेंडे के बढ़ावे के लिए सरकार के प्रति जवाबदेह होंगे ! तुम्हें भारत के नागरिकों की अभिव्यक्ति की चिंता क्यों है ? उसके लिए सरकार है, सुप्रीम कोर्ट है और जनता भी है जो हर 5 सालों में सरकार की अवकात भी ठिकाने लगा देती है ।

व्हाट्सएप्प का इन नीतियों को न मानने के लिए सीधे कोर्ट चले जाना मामूली बात नहीं है । ये सीधी सीधी भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी कंपनियों का हस्तक्षेप है , मतलब देश में आजादी जैसी परिभाषाएं ये तय करेंगे ! तुम भारत सरकार के नीतियों के अनुसार क्यों नहीं चलना चाहते ! जिस निजता का हवाला देकर भारतीय व्यवस्था को चुनौती दे रहे, तेरी असलियत यह है कि भारत के नागरिकों का सारा डेटाबेस चोरी कर रहे, उसका डेटा बेच कर अरबों डॉलर कमा रहे हो । किसको क्या पसन्द है नापसन्द है हर एक निजी जानकारी का व्यापार कर रहे हो मगर सरकार को कितना टैक्स देते हो ?

सरकार का प्राथमिक काम इस देश के नागरिकों को सुरक्षित रखने का है, सुरक्षा और कानून व्यवस्था सही रहेगी तो तेरे जैसे हजारों व्यापारी भारत की 130 करोड़ आबादी का बाजार हासिल करने को कुत्ते की तरह ललचाये मिलेंगे...

क्या दिक्कत है अगर तुम 3 अधिकारियों को IT रूल्स के प्रति जवाबदेह बना दोगे ? क्या दिक्कत है अगर तुम किसी गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त व्यक्ति की पहचान बताओगे, सरकारी जांच एजेंसी का सहयोग करोगे ? क्या एक देश की संप्रभु सरकार की जिम्मेदारी नहीं ये पता करना कि आतंकवाद और देशद्रोह में संलिप्त ताकतें कौन है ? ऐसा नहीं करना चाहते तो साफ है कि इन गतिविधियों में इनकी संलिप्तता रहती है ।

चाइनीज वायरस को इंडियन वैरिएंट नाम देना, कोरोना दूसरी लहर में टूलकिट जैसा मसला जिससे राष्ट्र की छवि तेरी वजह से खराब हुई । किसान आंदोलन मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तूने पॉलिटिक्स किया, टूलकिट को बढ़ावा दिया । फिर भी तुम उस चीन की वकालत करते दिखते जहाँ तेरी एंट्री भी नहीं है । 

सामान्यतः एक छोटा व्यापारी जिस भी मार्किट में दुकान खोलता उसे भी उस क्षेत्र का नियम मानना पड़ता । अगर दादागिरी करे और कहे कि न हम तो भाई अमेरिका वाले नियमों से चलेंगे तो क्या ? लतिया दिए जाओगे फौरन !!! 

हमें एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते धीरे धीरे स्वदेशी सोशल मीडिया की तरफ शिफ्ट होना चाहिए.. Koo एक बढ़िया ऑप्शन बनकर उभर रहा है ! सरकार उन्हें प्रोत्साहन दे, लोग समर्थन करें... 

अब सरकार इस मामले में सख्त हो जाये । बेहद निर्ममता से इन तीनों प्लेटफार्म पर अपने कानून लागू कराए । केवल IT रूल्स में ये इतने उछल रहे तो अब IT act में भी तत्काल संशोधन हो और बेहद कड़े प्रावधान बनाये जाएं ! बाकायदा SOP बने सोशल मीडिया के लिए ! इन्हें टैक्सेशन के दायरे में लाया जाए.. जबरन टैक्स वसुलो ! जब हमलोग एक रुपये के चॉकलेट पर 30 पैसा टैक्स देते तो ये कैसे बिना टैक्स दिए अरबों डॉलर कमाकर अपने देश भेज रहे ! सरकार की नाकामी है कि ये कंपनियां अब तक नियमों को ठेंगे दिखा रही है, ऐसे बनोगे महाशक्ति ???

ये तीनों विदेशी कंपनियां देश में व्यापार करने आएं हैं न कि यहां की कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने और न ही मूल अधिकार/स्वतंत्रता की व्याख्या करने ! जरूरत है इनकी अवकात ठिकाने लगाने की... 

#जय_हिन्द 🇮🇳

23 May 2021

● IAS का घमंड ●

आईएएस बन जाना पॉवर का चरस पी जाने के समान है... अभी सोशल मीडिया में छत्तीसगढ़ के डीएम द्वारा एक युवक को बिना कुछ सुने पीटने और उसका मोबाइल तोड़ देने का वीडियो वायरल हो रहा है ! पिछले दिनों त्रिपुरा में डीएम ने शादी समारोह में घुसकर भद्दी भद्दी गालियां दी, दूल्हे को धकेला और पुजारी को थप्पड़ मारा ! SP विसर्जन में गोलियां चला देती है !

मेरा एक्सपेरिएंस कहता है कि एक आईएएस बन जाने के बाद मौज से नौकरी करने के लिए उस व्यक्ति के अंदर दो तरह का फेस होना जरूरी है ! एक फेस वो जब आप मंत्रियों के चप्पल उठाकर पीछे दौड़ने का माद्दा रखते हैं और दूसरा की जब चाहे किसी आम आदमी की मर्यादा-प्रतिष्ठा को सरेआम कुचल दें... बीच सड़क उन्हें गालियां दे.. उन्हें थप्पड़ लगा दें, इतने से भी मन न भरे तो जेल भेज देने का आदेश सुना दें !

पिछले 4-5 वर्षों में खासकर जब से सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ा है तब से IAS और IPS का आचरण, उनकी सड़क छाप गुंडों जैसी भाषा लोगों को देखने को मिल रही है ! DM और SP जिलों में अपने को किसी तानाशाह से कम नहीं मानते !

असीमित कानूनी शक्तियों से लैस ये अधिकारी इतने शक्तिशाली हो जाते हैं कि इनके कुत्ते तक को घुमाने के लिए 10 कर्मचारियों हर वक्त जीभ निकाले बैठे रहते हैं । कानून व्यवस्था सम्भालने के नाम पर इनकी हेकड़ी सड़कों पर दिखाई देती है.. हूटर बजते गाड़ी में सुरक्षाकर्मी खिड़की से डंडा निकाले राहगीर, टेम्पो वाले को सटासट मारते हुए कहीं भी दिख जाते हैं ! इनके तानाशाही रवैये और एक लोक सेवकों होने के बावजूद गुंडे जैसी आचरण का सोर्स कहां है ये पता नहीं चल पा रहा है ? नेताओं के आचरण में अब इतनी शिष्टा आ गई है कि बेचारे मुंह पर गाली सुनकर मुस्कुराते रहते..

सवाल अगर आईएएस, आईपीएस के ऊपर उठेगा, उनके आचरण पर उठेगा तो सवाल के घेरे में यूपीएससी भी आएगी और लाल बहादुर शास्त्री ट्रेंनिंग अकैडमी मसूरी को भी इसका जिम्मेदार माना जाना चाहिए ! क्या आपकी परख इतनी निम्न स्तर की है ? ऐसे असंवेदनशील व्यक्तियों का चयन इन महत्वपूर्ण पदों पर कैसे हो जा रहा है ? UPSC अगर प्रतिभा को पैमाना बनाती है तो कम से कम ऐसे व्यक्तियों को तो न ले जिसमें इंसान होने की भी काबिलियत नहीं है !

खासकर, ध्यान देना होगा कि ये उद्दण्डता उन लोकसेवकों में अधिक देखी जा रही है जो 2010 के बाद UPSC के पैटर्न में CSAT लाये जाने के बाद चयनित हुए हैं ! अंग्रेजी को महत्व बढ़ा, कॉन्वेंट वाले अमीर बच्चे सिस्टम के शीर्ष पर बैठने लगे.. तो चलने लगी विसर्जन में गोली ! चलने लगे शादियों में थप्पड़ और तोड़े जाने लगे लोगों के पिछवाड़े, पटके जाने लगे मोबाइल.. 

जमीनी बच्चे जब इन पदों तक पहुंचते हैं तो उनमें समाज के प्रति बहुत गहरी संवेदना होती है ! सिस्टम को फील कर पाने की क्षमता होती है !कुछ लोकसेवक तो इतने अच्छे होते हैं कि पब्लिक उनका तबादला रोकने के लिए धरने पर बैठ जाती है ! ऐसे अधिकारी महत्वपूर्ण पदों पर काम ही नहीं कर पाते, ऐसे अफसरों को पशुपालन, मछली पालन जैसे विभागों में काम करना पड़ता है क्योंकि मंत्रियों से इनकी कभी बन ही नहीं सकती !

केंद्र सरकार को तत्काल आयोग का गठन करके तथा प्रशासनिक सुधार आयोग के रिकमेन्डेशन के आधार पर UPSC के अंदर व्यापक सुधार करने होंगे ! ऐसे अफसरों का सिस्टम में घुस जाना वायरल इंफेक्शन ही है जिससे लोकतंत्र पर संकट उत्पन्न हो सकती है । इनकी लॉबी तोड़ने का एकमात्र उपाय है कि लेटरल एंट्री (निजी क्षेत्रों से सीधी भर्ती) की व्यवस्था का जिले स्तर पर प्रयोग शुरू हो ! UPSC में नीति आयोग की तरह परिवर्तन की जाए !

ट्रेनिंग की प्रक्रिया में इनके अंदर पॉवर होने का जो नशा दिया जाता है वो बंद हो, अच्छे अच्छे ईमानदार ऑफिसर ट्रेनिंग की व्यवस्था हो !और इनके पॉवर का चरस ही जड़ से उखाड़ दिया जाए... सिस्टम विकेंद्रीत कर दिया जाए.. DM बस मॉनिटरिंग करें ! IPC-CrPC को जबतक सिस्टम पर लादे रखोगे, जनता को अंग्रेजों के होने की आहट तो रहती रहेगी.. 

#जय_हिंद 🇮🇳