31 March 2019

21वीं सदी के वोटर

नौजवान भारत के प्रतिभाशाली नायक बनकर उभरते 21 सदी के मतदाता क्या वैसे भारतवर्ष की रूपरेखा रच पाएंगे जिसकी कल्पना सदियों से ये निरीह जनता करती चली आ रही है !
राजनीतिक धंधेबाजों का गिरोह क्या वास्तव में उस महान भारत की परिकल्पना को सिद्ध होने देगा जिसकी आकांक्षा हिंदुस्तान में खुले आसमान के नीचे सोने वाली आबादी हर चुनाव से पहले करती है!
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में क्या फिर से धन बल के सहारे उस भूखे मासूम की हिस्से की रोटियां छीन ली जाएंगी और उम्मीदों का गला घोंट कर विकास का नगाड़ा बजाया जाएगा !

मुफ्तखोरी के चुंगल में फंसकर क्या वो गरीब अपने बच्चों के अरमानों को नेताओं के यहां गिरवी रखेगा, जिसके अधिकारों का चीरहरण कर विकास और रोजगार के सपने दिखाए जाएंगे !
बहुत सवाल है, क्या क्या पूछोगे?
इतना समझ लो कि शर्मिंदगी और लज्जा जिस दिन खत्म हो गयी समझो तुम्हारे अंदर असली नेता पैदा हो चुका है !
मताधिकार का प्रयोग का मतलब अगर सिर्फ वोट डालना जानते हो तो तुम लोकतंत्र के गुंडे हो ! एक ऐसा गुंडा जो अधिकार के नाम पर अपने हक को मिटा रहा !
राजनीति में किसी दल का समर्थक होना न होना किसी का व्यक्तिगत विचार हो सकता है, मगर चापलूसी की आदत धीरे धीरे आपको दलाल बना देगी ! देश और राष्ट्र में अंतर भूल जाओगे !

Image result for indian neta cartoon imageये राष्ट्रवाद का उन्माद आपके अंदर पुलवामा के बाद जो दौरा वो साबित करता है कि आप जिंदा हो ! 21वीं सदी में पैदा हुए आज के मतदाता के खून में जवानी की उठती लहरें संभवतः हिंदुस्तान की राजनीति को बदल कर रख देगी ! कितनों को खरीदोगे? कितना पैसा बहाओगे?
ये वो पीढ़ी है जिसको इस भारत का अतीत सोशल मीडिया बताता है ! पहले की पीढ़ी किताबों पर निर्भर थी जो तुमने आसानी से उल्लू बना डाला ! आज ये युवाशक्ति अपनी उंगलियों से सच्चाई निकालकर रख देती है ! अनपढ़ और मूर्ख नेताओं का जमाना गया, पार्टियां ये न सोचें कि वो जिसे भी टिकट दे रही, जनता सर आंखों पर बिठाएगी ! वोट देगी, जिताएगी और फिर...........

वो जमाने गए जब जीतकर 5 साल बाद दर्शन देते थे ! ये युवा पीढ़ी नंगा करके रख देगी ! मतदाता क्या होता है और उनकी क्या अवकात होती है यही पीढ़ी बताएगी ! ये नया हिंदुस्तान है, ये उनका हिंदुस्तान है जिनकी पूर्व पीढियां तुम नेताओं की मुंह ताकते भेड़ बकरियों की तरह जीवन व्यतीत किया ! सोचों इनकी ज्वाला क्या कर सकती है !
 
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वीं लोकसभा का चुनाव है ! 21वीं सदी के वोटर हैं ! 20वीं सदी के अनपढ़ और पढ़े लिखे ठग नेता हाथ जोड़कर खड़े हैं ! सोचिये, कितना तगड़ा मुकाबला है ! जीत जाओ पहले फिर जब इन भारतवर्ष के असली मतदातों से सामना होगा तो कही पैंट गीली न हो जाये...

#कहने_का_मन_करता_है


बसंत पंचमी की यादें


ऋतुओं का राजा बसंत है, मौसम की अंगड़ाइयाँ रोम रोम में यौवन का संचार कर देती है!
बसंत पंचमी की बचपन वाली यादें जब भी जेहन में ताजा होती है, मुख पर एक अजब सी मुस्कान बिखर जाती है! होली की औपचारिक शुरुआत से लेकर गर्मी की उद्द्घोषणा खुद कर डालते थे! कितनी भी ठंड पर जाए, मजाल नही की स्वेटर टोपी पहने लें! कई बच्चे चूड़ा-दही के बाद इसी दिन पकड़ पकड़ के नहा दिए जाते थे!

बात सरस्वती माता की हो तो मन में गजब का उत्साह रहता था! एक महीने पहले से प्लानिंग करते थे! चंदा पैसा का जुगाड़ करते थे, गजब की प्रबंधन क्षमता होती थी! सब अपने अपने घर से पुरानी साड़ी चुरा लाता था, फिर रातों रात उससे अपने हिसाब से दुनिया का बेस्ट पंडाल बनाकर गौरवान्वित होते थे! जुगाड़ का बेजा इस्तेमाल किया जाता था! दोस्तों से डीवीडी का कैसेट जुगाड़ किया जाता था जिसमे देवी गीत हो वो भी फेवरेट वाला! पूरी भक्ति और लगन से लौंडों का ग्रुप बिना खाये पिये खूब काम करता था! कोई कितना भी चोर बच्चा हो, सरस्वती माता के नाम से ही डरता था! मजाल था कि एक रुपये इधर का उधर हो जाए!

माँ सरस्वती की आस्था इतनी होती थी कि एक बार भी किताब कॉपी में पैर लग जाये तो प्रणाम कर क्षमा मांगते थे! अब भी मांगता हूं क्योंकी ये संस्कार हमारे मूल में है!
पढ़ाकू हो या बुड़बक, सब बच्चा भोरे भोरे उठ कर पूजा के इंतजाम में लग जाते थे! पंडित को पकड़ के लाने का जिम्मा ढिड लड़का को दिया जाता था, जो बाबा के नहाने से पहले घर के दुहारी के आगे बैठ जाता था कि बाबा कही और न पूजा करने जाये!
अपने अपने घर से तार लाकर डेक को चारो तरफ फिट करते थे! रंगीन कागज लाकर पताका बनाया जाता था! आटे के लइ से धागे में चिपकते थे और बाहर तक सजाते थे! स्कूल में भी ऐसा करते थे! सबसे मजेदार होता था जब उस पताके के नीचे से गुजरते हुए बहुत गौरवान्वित फील करते थे! साला वो फीलिंग जिसमे अपने कारनामों से फूल के कुप्पा हो जाया करते थे! 

बात स्कूल की होती है तो मैं 3 तक ही रेगुलर स्कूल पढ़ा वो भी प्योर देसी एवं भयंकर हिंदी स्कूल में! उसके बाद अल्ट्रा मॉडर्न देसी स्कूल में, टिफिन से सीधा घर! कोई मास्टर कभी रोक न पाया हमलोगों को! 3 तक पढ़े जिस स्कूल में तो रॉल 1 होने तथा सबसे छोटा होने के नाते मैं सर के साथ बैठकर पूजा करता था! वो पल मिस करता हूँ!

"माँ शारदे, कहाँ तुम वीणा बजा रही हो... किस मंजू ज्ञान से तुम जग को लुभा रही हो..." ये नित्य प्रार्थना में शामिल था! वही से माँ सरस्वती की आस्था रोम रोम में प्रस्फुटित हुई! कलात्मकता आई, ज्ञान का साक्षात्कार हुआ और माता की आस्था, किताब कॉपी की इज्जत करना सीखा! विद्या कसम सच बोलवाने का ब्रह्मास्त्र था!
सरस्वती पूजा के दिन कॉपी में मोर पंख रखते थे! उसे रोज खल्ली खिलाते थे! रोज नापते थे और रोज बढ़ा हुआ मिलता था! धारणा बैठ गयी थी कि मोर पंख से विद्या आती! किताब में पैर लगने पर प्रणाम कर माफी न मांगने से विद्या गल जाएगा! बहुत खौफ होता था, एक कि जगह 5 बार गोर लगता (प्रणाम करना) था! कॉपी का पहला पन्ना माता सरस्वती की जय से शुरू करता था और पहला पन्ना राम का, दूसरा पन्ना काम का! ये संस्कार होते थे हमारे!

प्रसादी में बैर चुनकर खा जाते थे! बैर का दीवाना था, घर में सर्दी हो जाने का डर दिखाकर बैर खाने नही दिया जाता था!
तो लगता था कि साल जिस दिन कमाऊंगा न सबसे पहले ढेर सारा बैर लेकर खाऊंगा! वही बात मेरे साथ बिस्कुट का भी था और दालमोट का भी!

Image result for sarswati mata imageतो कहानी जड़ से जुड़ी है! बातें बसंत से जुड़ी है इसलिए जेहन में इसकी आवोहवा स्मरण करा देती है बचपन की ये यादें जिसे हम शहर में आकर इसकी चकाचौंध और कंक्रीट के इस जंगल में भूल से जाते हैं! सरस्वती वंदना को कंठस्त रखना मेरे लिए सर्वोपरि है! माँ सरस्वती के बदौलत मेरी बुद्धि है, मेरी अव्वलता है! जब भी कम्पटीशन में परीक्षा देने बैठा, चप्पल-जूता खोलकर परीक्षा देता था! 

क्योंकि सम्मान से योग्यता आती है! योग्यता से अव्वलता आती है और अव्वलता से ही हर जगह सम्मान मिलता है!
ये सारे आचरण, ये सारे संस्कार जो पुराने गुरुजनों के पास से हमें प्राप्त हुआ इसके लिए उन्हें कोटि कोटि धन्यवाद! 
🌺🌺🌺 #जय_माँ_सरस्वती 🌺🌺🌺🙏

उरी द सर्जिकल स्ट्राइक

इस मूवी को देखकर जिसकी आँखें भर आये वो देशभक्त! राष्ट्र का मान-सम्मान और गौरव के लिए सच्चे हिंदुस्तानी का खून खौल उठे वो देशभक्त! उन्मादी राष्ट्रवाद का 100 फीसदी प्योर जुनून दर्शकों को परोसने वाले निर्माता निर्देशक को सलाम है! 
इस फ़िल्म में फौज की, उनकी परिवारों की ऐसी-ऐसी मार्मिक दृश्यों को दर्शाया गया है कि थिएटर में बैठे लोग आंसू पोछते दिखे!

सच्चा हिंदुस्तानी रो देगा उस दृश्य पर, जब उरी हमले में शहीद फौजी को उसकी मासूम बच्ची भारतीय सेना के उद्घोष के साथ सैलूट करती है! कंपकपा देने वाले दृश्यों से खून खौल उठता है! कायरता की पराकाष्ठा होती है जब हमारे सो रहे निहत्थे जवानों पर हमले किये जाते हैं!

हर कायरता का बदला हमारी सेना ने लिया है! सेना ने बहुत निर्ममता से और पराक्रम से बदला दिया! हर बदले और पराक्रम के दौरान थिएटर में भारत माता और वंदे मातरम का उद्घोष हुआ!
पॉलिटिकल निडरता दिखा!
राष्ट्रवादी सरकार का 56 इंच सीना इसी सर्जिकल स्ट्राइक का नमूना है! आसान नहीं होता ऐसे फैसले लेने जब देश में बैठे अपने लोग ही गद्दार हों!
फौज का पराक्रम देखना हो तो उरी मूवी जरूर देखिये! विरले बनते हैं ऐसी मूवी जब नंगे बदन नाचते हेरोइनों के पीछे दर्शक पागल हो! जिगरा चाहिए बॉलीवुड के पास ऐसी फिल्मों को रचने के लिए और उसे गद्दारों से भरे अपने ही देश में उतारने के लिए!

आपको भले एक रोटी कम खाने को मिले क्योंकि मोदी निकम्मा है, रोज नए कानून बदलता, महंगाई बढ़ाता! मगर देश के लिए गौरव और अभिमान करने का मौका या आजादी जो आज मोदी ने दी है वो सदियों बाद नसीब हुई है हम हिंदुस्तानियों को!

"यूं मत जाया कीजिये रूठकर परायों को गोद में तशरीफ़ रखने...
जब लात खाइएगा तो अपनों की गोद में भी बैठने लायक न रहिएगा..."
#हिंदुस्तानी_हैं_तो_वतन_के_लिए_सोचिये
#जयहिंद

जिंदगी का इम्तहान #Journey_of_a_year


सरकारी नौकरी में आना ही अपने आप में आज करिश्मा है! इसे पाना, अपने लक्ष्य को हासिल करना ये सब बहुत कठिन परिश्रम से मिलता है!
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दिसम्बर 2017 को मैंने जिंदगी का नया अध्याय शुरू किया था! अपनी मेहनत और लगन के बलबूते कामयाबी हासिल की! नौकरी की मारामारी के बीच बेहद कम सीटों में सेलेक्ट होना वैसे भी आसान नही था! केंद्र की नौकरी अपने राज्य में मिल जाये ये भी कोई आम बात नही थी!

पोस्टिंग मिली शाखा कार्यालय में, अपने शहर से 200 किलोमीटर दूर! कभी घर से दूर न रहने वाला पालतू सा बच्चा बिछड़ गया! नौकरी मिली इसकी खुशी क्या घर से बिछड़ने का बहुत दुख हुआ!
स्टेशन पर बैठकर रोया! छिप छिप कर रोया!
बच्चे थे तब से ही सुबह 3 बजे उठकर पढ़ाई करने की मेहनत पता चली जब एक साथ 5 अलग अलग नौकरियों के लिए चयनित हो गया! 

सबसे पहली जोइनिंग की वो शाम हमेशा मेरे जेहन में रहेगी जब घर से दूर जाने के गम में कैसे रेलवे स्टेशन पर बैठकर रोया! सबकुछ छूट सा जाने का दर्द इतना सताता की मुझे नौकरी करने की खुशी नही हुई थी! लोग नौकरी पाकर झूम उठते हैं, समाज में उनका मान-सम्मान बढ़ जाता है पर उसके अंदर के दर्द को या उसकी जबरदस्ती वाली मुस्कान को वही लोग जान पाएंगे जो बाहर में नौकरी करते हैं!

घर आने के बाद छुट्टी कैसे खत्म होती ये शायद समय को भी नही पता होगा! वापसी में उसकी घर, परिवार छूटने के दुख को उसकी आँखों में दिखाई देता है! जब भी घर से शुरू में निकला तब तब रोया! कड़कड़ाती ठंड में स्टेशन पर आधी रात को ट्रेन का इंतजार करना बहुत दुःखदायी रहा! अंधेरे गलियों से चलकर बिना डरे रूम पहुँचना भी अंदर से साहसी बनाया!
खाने के नाम पर कभी कभी पानी भी पीकर सोया! सुनसान सड़क पर बारिश में छतरी लिए जब खाने जाया करता था तो समझ आया कि जिंदगी के बहुत मायने होते हैं! अच्छी आमदनी के बावजूद भी भूखे सो जाना भी इसी जिंदगी का एक फ़लसफ़ा है! इतने दिनों तक एक ही सोच रही कि कैसे मेरा ट्रांसफर हो!

लोग सताए भी जाते हैं! यूँ नही कहा जाता कि जितना कठिन नौकरी हासिल करना है उससे भी ज्यादा कठिन उस नौकरी को करना तथा उसमें सर्वाइव करना होता है!
सभी परेशानियों से जो सफलतापूर्वक पार कर जाए वही असली खिलाड़ी है! ये सारी परिस्थितियां व्यक्ति को अंदर से मजबूत कर देती है! उसे हर परिस्थिति के लिए तैयार कर देती है!

नियति और भगवान का आशीर्वाद हुआ तभी अच्छे जगह पहुंच पाए हैं!
आशा है कि इस स्थान पर भी बेहद ईमानदारी और विश्वसनीयता से मेहनत करूँगा! जनहित को सदा सर्वोपरि मानूँगा!
#जय_हिंद ⛳