सवाल है, दुनिया में जितने भी वैश्विक महाबली नेता उभर रहे
हैं क्या वो परमाणु बमों, मिसाइलों, गोला-बारूदों से आगे की सोंच सकते हैं? क्या
उनकी बौद्धिकता सादे जीवन को इजाजत दे सकती है? या फिर वो भी हड़प और विस्तार नीति
पर ही चलते रहने को बाध्य हैं? विश्व के अनेक सभ्यताओं का विकास, उनका उत्थान उनके
विचारों से हुआ| पर क्या अब इस हडबडाई हुई आबादी से सादा जीवन जीने की हम उम्मीद
भी कर सकते हैं? नहीं|
महात्मा गाँधी, लूथर या मंडेला जैसी शख्सियतों को दुनिया इसलिए सुनती थी की
उनकी विचारधारा एक व्यवस्थित भविष्य की राह दिखाती थी| उनके आदर्शों में उनलोगों
की विचारशीलता झलकती थी|
सादा जीवन और उच्च विचार
हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की आदर्श थे| पर क्या हुआ? जैसे ही गांधी की
मृत्यु हुई, वैसे ही उनके अनुयायी कहे जाने वाले लोगों ने गाँधी की विचारों को कोने
में रख दिया| राष्ट्रपति बनने के बाद राजेंद्र प्रसाद वायसराय के महल (राष्ट्रपति
भवन) में रहने लगे और नेहरु तीन मूर्ति बंगले में बस गए और सभी ने उन सारी
सुख-सुविधाओं का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, जिसे लेकर गांधी अक्सर अंग्रेजों की
आलोचना करते थे|
अब तय हमें करना है की
सादा जीवन जीना और उच्च विचारों का अनुप्रयोग एक कल्पना है या गांधीवादी हकीकत| या
हम चावार्क के ही जीवनदर्शन पर जीते रहेंगे “जब तक
जियो मजे से जियो, कर्ज लो और घी पियो”| गाँधी या चावार्क हमें तय करना
है वो भी अपने भविष्य के लिए, आने वाली पीढ़ी के लिए... नहीं तो चावार्क से भी महान लोगों का जन्म
भविष्य नियत कर देगा...
लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं...
ब्लॉग पर आते रहिएगा...
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