देश का मौजूदा राजनीतिक संकट अपूर्व है| राजनीति आज एक ऐसे मुकाम पर
पहुँच चुकी है, जहाँ उसके पास नेतृत्व की प्रेरणा लेने के लिए महज एक गौरवशाली
अतीत है| वर्मान राजनीतिक पटल पर कोई ऐसी शख्सियत दिखाई नहीं देती, जिसमें भविष्य के
भारत की तस्वीर नज़र आये| जिसमें गांधी जैसे संकल्प हो, नेहरु जैसे सपने हो,
अंबेडकर जैसी दृष्टि हो, इंदिरा गांधी जैसी निर्णय लेने की क्षमता हो, पटेल जैसी
अडिगता हो या जेपी जैसा हठ हो| भारतीय राजनीति अपने लोकतान्त्रिक आदर्शों व इसकी
गहरी जड़ों के लिए जानी जाती है| बेशक, भारतीय राजनीति को पोषित करते अलग-अलग दलों
या उसके नेताओं के अपने अलग-अलग पैमाने हों, आदर्श हों, फिर भी भारतवर्ष का
लोकतान्त्रिक इतिहास इसे एक सूत्र में पिरोता है|
ऐसा बिलकुल भी नहीं है की
भारतीय लोकतंत्र की राह में चुनौतियाँ कम है| यहाँ ऐसे लोगों की बिलकुल भी कमी
नहीं है जो देशसेवा के नाम पर स्वार्थ कर रहे हैं या फिर उसे खोखली बना देने की
कोशिश में लगे हैं| स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हमारी राजनीति ने आपातकाल से
लेकर वंशवाद, धनबल और उसमें निहित सत्ता का लोभ भी देखा| जनता की आवाज का दमन, सत्ता
का मोह और राजनीतिक महत्त्वकांक्षाओं के सहारे जीने वाले लोगों को उसी अंदाज में
भारतीय जनता ने प्रतिक्रिया भी दी ये भी हकीकत है| भारतीय राजनीति की राह में बहुत
सारी बाधाएं हैं जिसका हल निकाल पाना हमारे लोकतंत्र के लिए संजीवनी साबित हो सकता
है|
सबसे पहला है, भ्रष्टाचार|
जिसने भारत ही क्या दुनिया के तमाम देशों में अपनी मौजूदगी से उनकी रफ़्तार धीमी कर
रखी है| चुनाव जीतने में जितना धन-बल पानी की तरह बहाया जाता है, अगर उसका दस
फीसदी भी गरीबों पर खर्च होने लगे तो भूखमरी और निर्धनता की समस्या अनुकूल रूप से
कम हो सकती है| दूसरा है, वंशवाद| भारतीय राजनीति में वंशवाद की समस्या कई दशकों
से चली आ रही है| वंशवाद एक ऐसा मोह है, जिसके परिपेक्ष्य में कई नेताओं ने अपने
लाडले की किस्मत चमका दी, उसे बिना किसी भेदभाव के राजनीति का मसीहा बना दिया जाता
है चाहे वो अयोग्य ही क्यूँ न हो|
इसलिए शायद अब युवाओं को
राजनीति आकर्षित नहीं करती| वर्तमान में राजनीति की परिभाषा लूट-खसोट तक सिमट कर
रह गई है| पक्ष और विपक्ष का काम सरकार चलाने से ज्यादा एक दुसरे की बुरे करना
ज्यादा दिखाई देता है| किसी भी रैली में जाइए, सारे नेताओं की लम्बाई, गोलाई और
मुटाई एक सी लगेगी| कारों का रंग भी एक होगा पर झंडे अलग-अलग| रैलियों में स्टेज
के पीछे काले धन के चंदे से जनता की उम्मीदों को सफ़ेद किया जाता है|
कुल मिलाकर अगर देखा जाए
तो भारतीय राजनीति हमारे लिए एक गौरवमयी इतिहास है और इसका भविष्य हमारे वर्तमान
पर निर्भर है| हाँ, इसकी राहों में कुछ कंकड़ हैं, जिन्हें हटाना सरकार से ज्यादा
हमारी जिम्मेदारी है| पर हमें भारत के लोकतान्त्रिक स्वरूप व इसके तौर-तरीकों पर
पूरा विश्वास है की हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने की जिम्मेदारी बखूबी
निभायेंगे और जरूर निभाएंगे...
लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं...
ब्लॉग पर आते रहिएगा...
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