27 November 2018

#मुक्केबाजी_की_मैरीकॉम

नारी प्रतिभा को ललाट पर रखकर भारत को फिर से गर्वित करने वाली मैरीकॉम को बधाई!
आसान नहीं होता किसी भारत के छोटे से भूभाग से निकलकर खेलों में परचम लहराना और मैरीकॉम बन जाना! छः बार विश्व मुक्केबाजी की चैंपियन भी बन जाना आसान नहीं था इस मणिपुरी किसान की बेटी के लिए! हौंसले और जज्बे से फतह किये जाते हैं दुर्गम रास्ते, मगर जब कोई हौसले और जज्बे को ही फतह कर डाले तो वही मैरीकॉम बन जाने की परिभाषा है!
मणिपुर के चुराचांदपुर में जन्मी इस वीरांगना की प्रतिभा और लगन ने ही मर्दों का खेल कही जाने वाली मुक्केबाजी के बदौलत ही उन्हें 'मैग्निफिसेंट मैरी' बनाया! महिला खिलाडियों का करियर आमतौर पर उनकी शादी तक ही माना जाता है! लेकिन वर्ष 2007 में शादी के बाद भी उन्होंने खेलना जारी रखा तथा वर्ष 2008 में चौथी बार विश्व चैंपियन का ख़िताबी भी जीता!
मुक्केबाजी की दांव-पेंच व विरोधियों के मुक्के ने उन्हें इतना मजबूत बना दिया की वे आज करोड़ों भारतीय महिलाओं की प्रेरणास्रोत हैं!
नारी सशक्तिकरण के मूल में तथा इस देश के लिए नारी स्वाभिमान का झंडाबरदार अब मैरीकॉम को माना जाए! उतर-पूर्व की नाजुक सी दिखने वाली मैरीकॉम ने ताकत के इस खेल में डंका बजा कर रख दिया! नहीं तो कौन मात्र 17 साल के उम्र में पुरे मणिपुर में सोना जीतकर इतिहास रच देती वो भी बस मुक्के के दम पर!
अपनी हौसलों की उडान के बदौलत 2003 में अर्जुन पुरस्कार, 2006 में पद्मश्री, 2009 में खेलों का सर्वोच्य पुरस्कार राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार तथा वर्ष 2013 में पद्मभूषण तक को अपने गले लगा ली!
मैरीकॉम प्रेरणा हैं उन करोड़ों भारतीय नारियों के लिए जो रोज अंदर-अंदर टूट कर बिखरती हैं! उन लड़कियों के लिए जिनकी स्वछंद उडान समाज की बेड़ियों ने जकड़ राखी है! उन महिलाओं के लिए भी जिनकी हिम्मत को तोड़कर रख दिया जाता है, हीनता की भावना पैदा की जाती है या जो हिंसा की शिकार होती है!
उठो और देखो! तुम्हारे से भी कमसिन और नाजुक दिखने वाली एक लड़की कैसे समाज की विकृत सोच पर प्रहार कर रही है! सीखो उससे की कैसे नारी स्वाभिमान का डंका, वे मुक्कों की चोट से दुनिया को सुना रही है!
महसूस करो उस क्षण को की कोई 35 साल की महिला और 3 बच्चों की माँ अब भी राष्ट्रगान की धुन पर भारतीय तिरंगा को सबसे ऊपर लहराते हुए देखना और गले में देश गौरव 'गोल्ड मेडल' पहनकर उन्हें कैसा लगता होगा!
एक ऐसी महिला जिनपर फिल्में बन रही, रोज सम्पादकीय लिखी जा रही, दर्जनों बायोग्राफी की पोस्टर वीमेन बनी बैठी हैं वो! किसने बनाया उन्हें मैरीकॉम बनने लायक! सिर्फ अपने जूनून की वजह से वे मैरीकॉम बनी बैठी है!
Image may contain: 1 person, smilingआप लाख पढ़ लो, टॉप कर जाओ, अभिनय कर लो या हीरो/हेरोइन बन जाओ मगर राष्ट्रगान के बीच छलकी आँखों से लहराता हुआ अपने तिरंगे को देखने का जो गौरव की अनुभूति होती है वही उसे सौ फीसदी प्योर भारतवर्ष का अभिनेता/अभिनेत्री बन जाने का शंखनाद होता है!
अगर उनके सम्मान में कहूँ तो...
"
सदियों में एक महान नारी का जन्म होता है जो मैरीकॉम कही जाती है..."


#अयोध्या_स्पेशल


भारतवर्ष की पावन भूमि पर विराजमान अयोध्याजी को दंडवत प्रणाम! दशरथनंदन भगवान श्रीराम जी की नगरी में बहती सरयू की कलकल धारा सूर्य की लालिमा में चमक उठी है! श्रीराम के आदर्शों का चिंतन मनन में साधुओं की टोली चहक रही है! राम नाम की धुन से ये अयोध्या भक्ति से सराबोर है! संत इस भक्ति में रमे हैं... की राम नाम का रसपान कर इस भवसागर को बस पार कर जाने की इच्छा है!
हारमोनियम की बोल पर तबले की थाप त्रेतायुग को इस कलयुग में चरितार्थ करने की कोशिश में लगी है! भक्त झूमे जा रहे हैं... रामायण की वास्तविकता को प्रत्यक्ष करने की हरसंभव कोशिश की जा रही है...
भारत की राजनीति के केंद्र में 90 के दशक के बाद प्रभु श्रीराम की छत्रछाया रही है! अयोध्याजी का प्रभाव न केवल समूचे देश पर पड़ा बल्कि देश की राजनीति की बागडोर इसी जगह से संचालित हुई! कई भक्त राम नाम की बैतरणी पार कर राजनीतिक रूप से अमर हो गए तो कई शहीद भी हुए! राजनीतिक नाटक नौटंकी को रामलीला की तरह पेश करके भावनाओं को हड़पा गया!
कारसेवा हुई मगर राजनीति का शिकार हुए रामभक्त! बेवजह मारे गए, उनकी आस्था की नीवें हिला दी गयी! काले अंग्रेजों की लड़ाई में हमारी सनातन परम्परा कमजोर हुई!
इस रघुवंश की नगरी में जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरण पड़े, कौशल्या जैसी प्रभु को जन्म देने वाली अलौकिक माता का ये अयोध्या, जहाँ भरत जैसा भाई हुआ, लक्ष्मण जैसा त्यागी हुआ और जहाँ स्वयं जनकनंदिनी माता सीता का ससुराल हो वहां आज हम इस कलयुग में रामलला के छत से तिरपाल हटाने के लिए लड़ रहे हैं!
हिंदू हैं, गर्व है इसका! रामलला रहेंगे जरूर रहेंगे... मंदिर बने न बने मगर नेताओं के आलीशान बंगले बनते रहेंगे! उसे न कोई हिन्दू रोकेगा न मुसलमान!
कायरता जब किसी कौम में पनप जाती है तो यूँ ही वो 100 करोड़ होते हुए भी अयोध्या में लाउडस्पीकर लेकर हल्ला करते मिल जाएंगे! सबकुछ है अपने पास! मगर ये जो गुलामी की मानसिकता है न हमारे अंदर यही कुछ करने नही देगी!
ऐसे ही बाबर की खानदाने हज़ार साल हम पर राज करके नही गए! मंदिरों को लूटा, हमारी सनातन संस्कृति को नष्ट किया, धर्मांतरण कराया! आसान नही होता जब तक हमारी नीवें खोखली न होती!
Image may contain: flower and natureराम मंदिर बनेगा... रामलला विराजमान होंगे... धर्म का चक्र फिर से चलेगा...
दुनिया हिंदुत्व का परचम देखने को तैयार हो जाये...
हिन्दू बहुत बदला है! सनक बढ़ी है आस्थावान बनने की! जोश की तीव्रता चुनौती है गुलाम इतिहास की!
बदलेगा... बदलाव होगा... श्रीराम का अयोध्या फिर से अयोध्याजी बनेगा...
बस राज्याभिषेक का इंतजार रहेगा...
अश्वनी

स्टैचू ऑफ यूनिटी

सरदार पटेल की अडिगता को मूर्तरूप देकर उनके विचारों को पुरुषार्थ सिद्ध करने वाले मोदी जी का सादर अभिनंदन!
विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति कहे जाने का गौरव सरदार पटेल का नहीं बल्कि उन तमाम भारतवर्ष के सपूतों का है जो अब भी भारत की एकता को बनाये रखने का समर्थन करते हैं! भारत की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने का सामर्थ्य ही हमे भारतीय होने का गौरव प्रदान करता है!
राजनीति फैशन शो की तरह है! नेता जितना एक्सपोज़ करेंगे, डिमांड उतनी बढ़ेगी! राजनीति होती रही है और होती रहेगी भी चाहे वो सरदार पटेल जैसी शख्सियत हों या गांधी जैसे महापुरुष! सरकार मूर्ति बनाये, पार्क बनाये या फुलझड़ी बनाकर रख दे मगर नेता को गहराई दिखती! उसकी हालत पार्कों में मजनूओं की रोमांटिक सीन को दिनदहाड़े देखते अधेड़ की तरह होती! होगा नही मगर देखेगा जरूर...
करोड़ो की मूर्ति बन गयी! पैसा विकास में लगना चाहिए! गरीबों को रोटी, कपड़ा, मकान बांटों!
ये बोलने वाले अक्ल के अंधे को जरा पूछों की राष्ट्र की एकता को प्रदर्शित करने वाली सरदार पटेल की स्टैचू के पैसे से अगर विकास हो जाता तो हर चौक चौराहे पर तुमने इतने सालों में अरबों-खरबों की मूर्तियां क्यों बनवाई! आज भारत की अपनी हैसियत है तो उसने अपने लौहपुरुष की प्रतिमा बनाई वो भी ताल ठोककर अपने दम पर! अमेरिका चाइना से कहीं बड़ा और भव्य! जब देश में भुखमरी और गरीबी चरम पर थी तब ये हर चौराहे पर स्तम्भ खड़े कर देने की औकात किसने दी थी!
आज भारत आत्मनिर्भर है! उसकी अवकात इतनी है कि दुनिया की महाशक्तियाँ समान बेचने के लिए जी हुजूरी करती फिर रही है! एक टाइम खाना खाकर रहने वाले गरीब मजदूर के टैक्स वाले पैसे को किसी कोठे (स्विस बैंक) पर गिरवी नही रखी जा रही! भारत माता का सर गर्व से ऊंचा होता है जब उसके प्रधानमंत्री की आगवानी में राष्ट्राध्यक्ष घण्टों इंतजार करता है!
सरदार पटेल के माध्यम से ये देश दुनिया को ये संदेश देता है कि हमारी एकता और अखंडता हिमालय की भांति अडिग है! इसे तोड़ने की साजिश करने वाले याद रखें कि ये पंडित जी का जमाना नहीं रहा! सरदार पटेल के रास्तों पर चलने वाले एक सच्चे भारतीय की हाथों में इस देश की कमान है! जिस देश में अपने महापुरुष की दुनिया में सबसे भव्य प्रतिमा बना देने का कुव्वत हो उसे हल्के में लेने की गलती मत करना!
चुनावी बयानबाजी घोषनाबाजी होती रहेगी! देश के मसले पर साथ आइये, गद्दारी को ठिकाने लगाइये! निडरता को अडिगता के साथ रखकर चलिए! पटेल को आदर्श मानिये या मत मानिये बस देश के लिए सही सोचिये! यही अपेक्षायें हमें भारतवर्ष की प्रति निष्ठावान और सतत ईमानदार पीढियां पैदा करेगी! गर्व कीजिये कि आप उस देश में हैं जहाँ की महापुरुषों की मूर्ति की ऊंचाई सबसे श्रेष्ठ है जिनके विचारों की तुलना उनकी शख्शियत के सामने बौनी है...
हम सभी से श्रेष्ठ हैं... सभ्यता से, संस्कृति से और भाषाई समृद्धता से... जश्न मनाइये... 

 अश्वनी ©



05 September 2018

शिक्षक दिवस स्पेशल


आज का दिन शिक्षकों के प्रति सम्मान और आभार जताने का है! हमारे व्यक्तित्व को सामाजिक बनाने वाले, समाज में रहना सिखाने वाले और हमारी बौद्धिकता को निखारने वाले गुरुजनों का सादर आभार और कोटि कोटि वंदन!
जब भी बचपन की यादें ताजा होती है तो सबसे सुनहरा पल स्कूल ट्यूशन में दोस्तों के साथ की गई मस्तियां हमें गुदगुदाती है!
स्कूल वाले मास्टर साहब का अनुशासन बहुत खलता है!
उनकी वह खजूर की छड़ी कठिन से कठिन चैप्टर्स को याद करा देती थी!
होमवर्क नहीं बनाने पर मुर्गा बनाने की विलुप्त संस्कृति हम लोग की क्लास वर्क होती थी! ऊपर से पिछवाड़े पर छड़ी की तान लगने के बाद ऊंचा सुर खुद-ब-खुद लगता था!
दोस्तों से मारपीट करने पर कलम को दो उंगलियों के बीच फंसा कर दबाने कि मास्टर साहब की कला कंपकंपा देती थी!

स्कूल में जब भी पिटाते थे कभी घर में बताने का साहस न हुआ!
छड़ी की पिटाई से उभरी बाम को छिपाकर दर्द अपने अंदर समेटे सब कुछ नॉर्मल होने की नाकाम एक्टिंग करता था क्योंकि या तो मास्टर साहब घर आकर बता देते थे या कमीने दोस्त लोग चुगली कर देता था!
उल्टा साला घर में भी पीटते थे! जिंदगी में कुछ न कर पाने की भविष्यवाणी की जाती थी! ढेरों बातें सुनने मिलती थी!

Image may contain: one or more peopleलड़ाई किये तो आवारा का तगमा फौरन मिल जाता था! बात मास्टर साहब तक न पहुँचे इसके लिए दोस्त को अपने बढ़िया पेन या पेंसिल से लिखने देने की घूसखोरी दी जाती थी!
कभी कभी पढ़ते वक्त बदमाशी किये तो मास्टर साहब बाल के आगे की चुड़की पकड़ के हिला डालते थे!!
उद्दंडता किसे कहते हैं वो आजकल के अंग्रेजी बच्चों को देखकर पता चला! साला हमारे जमाने में मरखंड मास्टर साहब के स्कूल में इंट्री के साथ ही शांतिवन बन जाता था!
2-2, 3-3
पेज यूँ ही याद करने को दे दिए जाते थे! श्रुतिलेख का भौकाल होता था क्लास में! कठिन कठिन शब्द लिखवाये जाते थे, जितनी गलती उतना डंडा पीटने का मास्टर साहब का अपना कानून था!
पहाड़ा का अपना जलवा था उस जमाने में! 40 तक का पहाड़ा याद रखने वाला जीनियस माना जाता था!

1 से 3 क्लास तक मैं मॉनिटर था गांव वाले स्कूल में, तो कभी कभी मास्टर साहब शाम वाली घण्टी में पहाड़ा न दुहराने वाले बच्चों को डंडे से मुझे लैस कर पीटने की जिम्मेवारी देते थे! मैं सारी दुश्मनी उसी में निकालता था, मेरे से बड़े बड़े लड़के डरते थे सो मेरा भी अपना जलवा था दोस्तों के बीच!
सूसू जाने के लिए हाथ जोड़कर मास्टर साहब के सामने पूछने का नियम था! स्कूल नागा किये तो साला पीटने को तैयार रहो या घर से किसी को ले जाओ!
सब मास्टर साहब बोलते थे कि जितना पूछना उतना पूछ सकते लेकिन ज्यादा पूछने पर सर का फ्रस्ट्रेशन पिटाई में निकलता था! जुमलेबाजी क्या होती है उसकी समझ उसी वक्त हो चुकी थी!
सब पाठ्यक्रमों को अच्छे सलीके से याद करने की कला देने वाले, रोम रोम में अनुशासन का खौफ पैदा करने वाले और जिंदगी को सफल बनाने में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले गुरुजनों को सादर आभार!
अपने डंडे और तमाचे के हथियार से उद्दंड बनने से हमें बचाने वाले मास्टर साहब को मेरा वन्दन!
अपनी सभ्यता, संस्कृति और भारतीयता से परिचय करने वाले इन अनमोल समाजसेवियों को हृदय से धन्यवाद!! 
#जयहिंद

✍ अश्वनी 

14 August 2018

राष्ट्रवाद मेड इन भारत


स्वतंत्रता का गौरवगान है हमारा ये तिरंगा! आत्मसम्मान का रक्षक है ये तिरंगा! इतिहास का जीवंत गवाह है ये तिरंगा! शहीदों की आन-बान-शान है ये तिरंगा!
इन तीन रंग का महत्व शहीदों की माँ से पूछो! वीर जवानों की पत्नी से पूछो! अपने लाडले को सेना में भेज रही माँ से पूछो! डबडबाई आँखों से बेटे को बॉर्डर पर भेज रहे निरीह पिता से पूछो की स्वतंत्रता की कीमत और तिरंगा का अभिमान क्या है! आत्मसम्मान क्या है! आजादी क्या है! कर्तव्य क्या है! इसका मोल क्या है!
बड़ी हिम्मत चाहिए पूछने को ऐसा! कितने बड़े वाले निर्जीव व्यक्ति हों आप मगर इंसानियत और देश के प्रति प्यार अगर है तो नहीं पूछ पाओगे!


बयानों से देश नहीं चलता! तिरंगे के नीचे खड़े होकर शपथ लेने से गद्दार के खून में ईमानदारी नहीं पनपती! एक दिन तिरंगे फहरा देने से कोई देशभक्त नहीं हो जाता!
टेलीविजन पर बड़े बड़े वाले देशभक्त दिख रहे होंगे कुछ वो बरसाती मेढक है जो देश में रहकर हक़ से गरियाता है और हमलोगों के ईमानदारी वाले टैक्स के पैसे पर हराम का खाता है!
तिरंगे का सम्मान करने वाला संघी है! आतंक को पनपा कर पाक का झंडा लहराने वाला भटका हुआ नौजवान है!
लाल चौक पर तिरंगे की शान की रक्षा के लिए वीर सैनिक पत्थर खाते हैं! नेता मलाई चाट रहा मगर किसी को सूंघने तक नहीं दे रहा!


राष्ट्रवाद की भावना का सम्मान देशभक्ति का घोतक है!  हिन्दुस्तानी युवाओं का देश के प्रति जूनून सेना में जोश का ज्वर पैदा करता है! ये जो गली-गली बचपन में हमलोग तिरंगे लेकर नारे लगते घूमते थे न की “जो भारत से टकराएगा, चूर चूर हो जायेगा” इसी देशभक्ति जूनून में ये तिरंगा अभी में सामने आते मदहोश कर देता है! कुछ नहीं सूझता देश के आगे!
राष्ट्र सर्वप्रथम, सर्वोपरि की भावना यूँ नहीं आती! तपना पड़ता है देश के लिए! जीवन, जिंदगी और जवानी बर्बाद करनी पड़ती है तब जाकर किसी माई का लाल का कफन ये तिरंगा बनता है...
देशभक्ति की निर्झर बहती रसधारा में बहना पड़ता है किसी सपूत को! यूँ नहीं शहीदों की यात्रा में फूल बरसते! वीरता के नारे लगाकर देश के उस अमर जवान को अगले 7 जन्मों के लिए अमर बना दिया जाता है!

स्वतंत्रता दिवस की ढेरों शुभकामनाओं के साथ भारत माँ के प्रति सच्चे देशभक्त की निष्ठा और विश्वास को मेरा वंदन...

✍ अश्वनी
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07 August 2018

मित्रता दिवस स्पेशल


हंसी-ठिठोली और मज़ाक का ये रिश्ता गंभीरता में बदलने पर बहुत तकलीफ देती है! रिश्तों के मायने समझने में दोस्त ही हमे परिपक्व बना देता है!
दोस्त ही है जो गम के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने को मजबूर कर देता है!
दोस्त ही है जो सारे दुनिया के सारे दुःख तकलीफों से ध्यान हटाकर मस्तमौला गुदगुदाता है, हंसाता है और साला मारता भी है...

साले का वजन भले ही हमसे कम हो मगर उठाकर दौड़ जाने का जुनून दिखाता है!
दिखने में पाव भर का हो लेकिन लड़ाई में सबसे आगे फुदककर पक्ष लेने वाला दोस्त जीवन का वो अनमोल होता है जिसका मोल लगाना दोस्ती के लिए असंभव है!
वो ताश खेलना सिखाया, पतंग उड़ाना सिखाया, गोली खेलना सिखाया, लट्टू नचाना सिखाया मगर गद्दारी करना नहीं सिखाया! इंसानियत को समझना सिखाया!
मां-बाप से डरना सिखाया!

प्यार करना सिखाया लेकिन लड़की दोस्तों के बारे में सबका मज़ाक उड़ाना भी सिखाया!
ईमानदारी से काम करना सिखाया मगर एग्जाम में चोरी करना भी सिखाया!
सिगरेट और गुटखा खाने को भी सिखाया मगर मैंने ये नही सीखा क्योंकि मेरे घर का दिया संस्कार इससे बेहतर था!
पढ़ाई से दूर हर कोई भागता है लेकिन दुनियादारी की समझ दोस्तों की पाठशाला में होती है!
दोस्तों से ठगकर खाने की कला सब मे नही होती!
ये टैलेंट दोस्तो के ग्रुप में किसी एक के पास होती है!
कोई एक ऐसा भी होता जिसका हाथ बहुत चलता, उससे सब सतर्क रहता कि साला कब मार बैठे!
एक होता है बहुत रूठने वाला,
एक होता है मज़ाक उड़ाने वाला!
एक होता है धमकीबाज टाइप!!!
इन सब के बावजूद जो तत्परता से आधी रात को भी मुसीबत में बुलाने पर हाज़िर हो जाये उस मित्र का मिलना आपकी जिंदगी का अनमोल खजाना है!!!
मुसीबत में जो साथ दे अगर वो नाराज़ हो बैठे तो उसके पांव पकड़ने में जरा भी संकोच न किया जाए!!
अच्छे दोस्त अनमोल होते हैं! ये विरले ही किसी को मिलते हैं!

मुँह पर चिकनी बातें करके पीठ पीछे दोस्ती को बदनाम करने वाले बहुत मिल जाएंगे
मगर सीना ठोककर दोस्ती की दुहाई देने वाला दोस्त हज़ारों में एक पैदा होता है!!!
मित्रता दिवस की सभी को बहुत बधाई!!!!!

✍ अश्वनी 

25 July 2018

सावन और संगीत


सावन की हरियाली में सराबोर वातावरण में मिट्टी की मदहोशक सोंधी खुशबू में पवन की झोकों पर नाचती-इठलाती टहनियां, उफनती नदियाँ, मेघ-मल्हार की अठखेलियाँ प्राकृतिक तान छेड़कर पशु-पक्षी-मानव सब को झुमने पर मजबूर कर दे रही है!
निर्झर बहती झरने, नदियों की उफान पर सरपट भागती नौकाएं, चाँद की चमक को आईना दिखाती झीलें, पक्षियों की सुरमयी चहचाहट, पेड़ों पर लदे फलों से झुकी डालियाँ, सूरज की किरणों से चमचमाती धरती माँ की गोद में पड़ी हरियाली... 
सावन की अनुपम छटा बिखेर कर उसमें चार-चाँद लगा देती है!

सावन एक प्राकृतिक वरदान है! प्रकृति की हरियाली से रोम-रोम जागृत हो जाना इस बात का संकेत है की पर्यावरण के प्रति हमारा लगाव गहरा है! 
प्रकृति बारिश के माध्यम से वातावरण को अपने अंदर समाहित कर जीवंत बनाने की कोशिश करती है!
सावन में अगर आम-जनजीवन को कोई प्रकृति के अलावा सराबोर करता है तो वो संगीत है! कुमार सानु, अल्का याग्निक और उदित जी की आवाज में गुलज़ार, जावेद अख्तर के बोल और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की झंकार पर 90 के दशक वाली गाने बारिश में बाहर निकलकर नाचने को मजबूर कर देते हैं!
‘बरसात के मौसम में... तन्हाई के आलम में...’, ‘गोरे रंग पर न इतना....’, ‘चाँद छुपा बदल में....’ का अनूठा अंदाज निःशब्द करता है! कुमार सानू की लफ्ज ‘बस एक सनम चाहिए.....’ बारिश का मज़ा बिना पकौड़े भी लाजबाब बना देती है!
‘तुम जो हँस-हँस के सनम....’ सारे ग़मों को भुला डालती है! 
‘गा रहा हूँ इस महफ़िल में....’ सानू के जलवे बॉलीवुड की हरियाली पेश करती है! ‘तेरी उम्मीद तेरा इंतजार...’ के बोल प्रेम की बीती बातें जीवंत कर डालती है! ‘घुंघट की आड़ से दिलबर का...’ से अल्का दीदी आशिकी को परवान चढ़ा देती है! ‘बरसात के दिन आये...’ और खुद्दार फिल्म का गाना ‘तुमसा कोई प्यारा कोई मासूम नहीं है....’ एक अलग रोमाँच पैदा करती है!
अगर रिमझिम बारिश में 90 के दशक को करीब से महसूस करना है तो ‘दिल है की मानता नहीं....’ से बेहतर बोल और संगीत मेरे समझ में नहीं है!

अगर सावन का लुफ्त संगीत के माध्यम से पुराने वर्जन में उठाना है तो एक से बढकर एक तराने और उसमें तैरती लता जी की मिठास, रफ़ी के नगमें बिना बारिश सावन की घनघोर सन्नाटे में मिट्टी की सोंधी महक का एहसास करा देगी! 
खुद में सावन की हरियाली समेटे ‘सावन का महीना... पवन करे शोर...’ नगमों की रानी बनी बैठी है! 
सूरज फिल्म का नगमा ‘बहारों फुल बरसाओ.... सावन का स्वागत करने की प्रेरणा पेड़-पैधों को देती मिली! ‘भँवरे ने खिलाया फुल...फुल को ले गया...’ प्राकृतिक सुंदरता का रस कानों में घोल देती है! 
‘छुप गये सारे नजारे... बादलों के मस्त मौला चल की तुलना प्रेम संबंधों से करती मिलती है! नदिया के पार का ‘कौन दिशा में चला...’ सावन की अंगडाई को प्रदर्शित करती है!

सावन और संगीत कुल मिलकर एक-दुसरे के पूरक हैं! 
बगैर संगीत सावन में बारिश का मज़ा अधूरा है! सावन में इन नगमों को सुनकर अंदर में जो रोमांच पैदा होती है, रोम-रोम में बारिश की टिपटिपाहट की ताल पर जो सिहरन पैदा होती है उसका असली मज़ा बस फूस की झोपडी में बैठकर रेडियो पर सुनने में ही है! 
Image result for cycling in rain villagers imageमस्त मूड में इन नगमों को साइकिल चलाते भींगते हुए गुनगुनाने का अपना मज़ा है... कीचड़ में चलते हुए सावन की हरियाली को मिट्टी की महक से महसूस करने का भी अपना मज़ा है...

अपने बचपन की यादों में, गाँव में सावन की रिमझिम फुहार तले ऑटो पर बाहर लटककर मस्ती से झूमते हुए ‘झिलमिल सितारों का आँगन होगा... रिमझिम बरसता सावन होगा...’ गुनगुनाते हुए स्कूल की ओर निकल पड़ता था.... और अब उसने गंतव्य तक पहुंचा भी दिया.........

✍ अश्वनी