03 September 2019

दिल दिया है जान भी देंगे


देश के लाडले वीर-पराक्रमी सेना को इस 73वीं स्वतंत्रता दिवस की पूरे जी जान से बधाइयाँ !
आसान नही होता सेना में जाना और माँ भारती का हो जाना ! तिरंगे में लिपटकर आना और समूचे देश को रुला देना !
कुव्वत हैसियत और नसीब चाहिए तब कोई माई का लाल बॉर्डर पर तिरंगे के लिए शहीद हो जाने का जुनून रखता है ! 
आप कितने अमीर या बुद्धिजीवी बनो ! मगर शान साहस की होती है, पूजा शस्त्र की ही कि जाती है !

बंदूक लेकर बॉर्डर पर लड़ना अगर देशभक्ति मानते हो तो समझो चूतिये हो तुम ! लड़ना पड़ता है हर सेकंड खुद से हर एक फौजी को ! घर की यादों से, बीबी की जुदाई से, जिगरी दोस्तों का साथ छूटने से ! ये सब सोचना जब इतना कठिन लग सकता है तो सोचो ये वीर कैसे झेलते हैं यार !


देश के आंखों का तारा हैं ये ! ये तिरंगे में लिपटकर अंतिम यात्रा विरले नसीब होते हैं किसी को ! अदम्य साहस और वीरता की मूरत है हमारी फौज ! 370 अभी हटा है मगर आजाद हिंदुस्तान को जिंदा रखने वाले, हमारे कश्मीर को सुरक्षित रखने वाले यही फौजी हैं ! गोली के इंतजार में फौलाद की तरह खड़े होते हैं ये !

गाँव की पगडंडियों पर दौड़कर भागकर कोई लाल फौजी बनता है ! बुढे माँ बाप का उम्मीद हमारे लिए सीमा पर लड़ने जाता है ! ये हिंदुस्तान की उस मिट्टी की पैदाइश होते हैं जिसमें हमारे वीर भगत सिंह, आजाद का हर कतरा अंदर समेटे बैठा है ! इस मिट्टी की सोंधी खुशबू में हमारे आजाद भारत की महक है ! क्योंकि कोई गरीब किसान का बेटा इन्हीं मिट्टियों से खेलते खेलते इतना प्यार कर बैठता है कि मर मिटने को तिरंगा थामकर बॉर्डर पर खड़ा हो जाता है !


आसान नही है यार सेना के लिए लिखना ! उंगलियां कांप जाती है, आंखें गीली हो जाती है ! जोश उबाल मारता है ! शब्द छोटे पड़ रहे हैं !
रहने दीजिए, बस एक काम जरूर कीजिये...
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जहां भी सेना के जवान दिखे फौरन जय हिंद का उद्घोष करिये ! हाथ मिलाइये, हौसला बढ़ाइए ! मन करे तो पैर छू लीजिये !
बस रेलवे जहाँ भी दिखे फौरन सीट खाली करिये ! इज्जत दीजिये, जिनकी दुकानें हैं वो समान का दाम जितना संभव हो कम करे ! जवानों के परिवारों को सम्मान दीजिये ! बेहिचक मदद कीजिये क्योंकि उनको मदद करने वाला लाल हमारे लिए गया है बॉर्डर पर !
सम्मान लाना होगा, देश बदलना होगा !
क्योंकि...

"दिल दिया है जां भी देंगे, ये वतन तेरे लिए...
हर कर्म अपना करेंगे ये वतन तेरे लिए..." 

05 August 2019

कश्मीर हमारा है

हम भी अपनी आने वाली पीढ़ियों को बताएंगे कि हमने 5 अगस्त 2019 का वो दिन देखा है ! मोदी-शाह का वो नया भारत बनते देखा है ! जिस आजाद भारत में तुम विचरण कर रहे हो वो मोदी-शाह का गढ़ा गया एक नया भारत है जहाँ देश की मिट्टी पर मर मिटने वाले नेता को हमने चुना था !

चुना था हमने उस लाल को जो कश्मीर के सीने पर चढ़ बैठा और मिटा दिया कलंक के उस नामोनिशां को जो भारतवर्ष को खंडित करती थी ! भारतवर्ष के ललाट इस कश्मीर की ये लालिमा उस शख्स के बदौलत है जिसने हमें 56 इंच का जिगर दिया ! शासक बहुतों आये और चले गए मगर गर्व से ताल ठोककर राज करने वाला राजा हमने देखा है ! पैदा हुआ है एक और चंद्रगुप्त, महाराणा प्रताप इस 21वीं सदी में ! सींचा है उसे इस संघ ने ! इस मिट्टी की गोद में खेला है वो, तभी इस मिट्टी की दर्द का एहसास दिखाया है उसने !

सरकारें आएगी और जाएगी ! लेकिन इस देश में मोदी राज रहना चाहिए ! कोई अमित शाह जैसा सेनापति बेशक रहना चाहिए और डोभाल जैसा चाणक्य हमेशा इस मिट्टी से पैदा होता रहना चाहिए !
वीर जवानों की भूमि है ये रक्तरंजित कश्मीर ! किसी माई के लाल में औकात नही की भारत का मस्तक झुका दे !

ये हिंदुस्तान है जनाब ! यूँ ही हम शांत नही बैठा करते ! पहले सहते हैं फिर बहुत सहते हैं ! फिर धर्मों रक्षति रक्षितः का पथ श्रीमद्भागवत गीता ने हमें सीखा रखा है !
इतिहास में ये लिखा जाएगा कि कोई 100% प्योर भारत माँ का लाल हुआ था जिसने अखंड भारत के सपने को पूरा किया ! कोई दुर्लभ सेनापति था उसका जिसने ताल ठोककर दुश्मन को तबाही दिखाई !

सदियों में ऐसा संयोग होता है जब जन कल्याण के लिए मोदी जैसे शख्स का जन्म लेना सुनिश्चित होता है !
जय हिंद 
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10 July 2019

क्रिकेट का जुनून @2005-2011


Image may contain: 1 person, sunglasses and beardभारतीय क्रिकेट का सिरमौर महेंद्र सिंह धोनी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई !
बॉल को मिडिल बैट से शॉट खेल दे और कवर्स वाले फील्डर्स छूने की हिम्मत न कर पाए तो समझ जाते थे कि बैटिंग या तो सहवाग कर रहा या माही ! वो भी क्या जमाना था जब रेडियो पर कॉमेंटेटर की आवाज से महसूस कर लेते थे कि शॉट कितना लाजबाब होगा ! दशक पहले अखबार पढ़ने का एकमात्र मकसद अगर खेल पेज देखना हुआ करता था तो समझ लीजिए आप 100 फीसदी प्योर क्रिकेट प्रेमी रह चुके हैं ! 

माही को उसके बालों से पहचानते थे और हर बॉल पर छक्के की उम्मीद करना हमारी आदत बन चुकी थी ! बचपन में हरभजन की बॉलिंग एक्शन की नकल किया करते थे ! स्लो खेलने पर सचिन तक को गरियाने से नही चूकते थे !
टीवी देख रहे होते तमाम लोग दर्शक कम कोच की भूमिका में ज्यादा नजर आते थे ! मैच की अंग्रेजी कभी समझ न आई, सोचते थे कोई माई का लाल ऐसा पैदा हो जो हिंदी बके ! बाद में 5 ओवर हिंदी और 5 ओवर अंग्रेजी कमेंट्री की व्यवस्था हुई तब भी अंग्रेजी वाले के आते ही मन में बौझार कर देते थे !

सचिन, द्रविड़, गांगुली और लक्ष्मण को खेलते अगर आपने देखा है तो समझिए क्रिकेट का सबसे सुनहरे पल को जी चुके हैं ! क्योंकि वो नशा, जुनून और जद्दोजहद अब देखने को नही मिलती ! इंडिया एवरेज टीम थी ! पूरे 11 खिलाड़ी जज्बे से ऑस्ट्रियाई/इंग्लैंड/दक्षिण अफ्रीका जैसी टीमों के खिलाफ लड़ा करते थे ! भले ही वो हमें हरा दें मगर हमारे बैट्समैन उनके आग उगलती बॉलर्स के आगे निडरता से सामना करते थे ! वो क्या जुनून होता था जब गलियाँ सुनी पड़ जाने का मतलब मैच हो रहा होना होता था !

बहुत खिलाड़ी आये और गये ! गांगुली, द्रविड़ और सचिन ने भी संन्यास लिया मगर दर्शक की दिलों पर राज करने वाला तो अपना सहवाग ही रहा ! इंडिया की बैटिंग शुरू होते ही सड़क तक सुनसान पड़ जाना सहवाग की बैटिंग के बदौलत था !
गेंदबाज का लाइन, लेंथ और पिलर सब उखाड़ देने वाला विरले कोई होता होगा जो सहवाग के नाम से जाना जाता है !
ग्लेन मेग्रा, फिलनटॉफ, ब्रेट ली, डेल स्टेन, मलिंगा जैसे बॉलर्स सहवाग से खौफ खाया करते थे ! 10 ओवर तक सहवाग का टिकना मात्र ही संकेत होता थी कि इंडिया का स्कोर 80 से 100 होगा ! 

हमलोग ऐसे वैसे दीवाने नही थे हुज़ूर ! अखबारों में छपी एक्शन में सहवाग, सचिन, धोनी और अन्य खिलाड़ियों की फ़ोटो को कलाकारी से काटकर कॉपीयों में चिपकाया करते थे ! खुद ही सेलेक्टर बनकर कॉपी में इंडिया की टीम और बैटिंग आर्डर चुना करते थे ! खुद को क्रिकेट का विद्वान मानते थे ! लगभग विश्व के हर देशों की बैटिंग लाइनअप जुबान पर होता था !

अपना भी एक दशक पढ़ाई के साथ क्रिकेट का रहा ! उतना खेला नही मगर ओरल नॉलेज में खुद को एक्सपर्ट से कम नही समझता था !
आज का क्रिकेट वैसा नही है ! वो रोमांच पैदा ही नही हो सकता ! वो जुनून खिलाड़ियों के अंदर नही दिखता बस रन बनाने की सनक दिखती ! सारे नियम बैट्समैन के हक में दिखते हैं !
क्रिकेट से जुड़ी भूली बिसरी यादें आज भी मुख पर मुस्कान बिखेर देती है ! सट्टेबाजी, मौकापरस्ती से कही दूर वो खेल भावना भारत देश की 100 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करती थी ! मुरलीधरन की गुगली और शेन वार्न के टर्न की सचिन से टक्कर कौन भुला होगा ! 

आज भी उस लम्हे उस दौर ही यादें ताजा हो जाती है जब कोई रेडियो वाला कमेंटेटर दनदनाती आवाज में "धोनी के सीधे बल्ले से शानदार ड्राइव और कवर के बगल से गेंद सीधा बाउंडरी लाइन के बाहर, चार रन"... बधाई !!!
#खेल_प्रेमी


17 June 2019

भारत के श्रमिक


भारत जैसे विकासशील देश के अंदर गरीबी शब्द एक ऐसी परिकल्पना को जन्म देती है की जिसमें भुखमरी, कुपोषण, बीमारी, अपंगता, अशिक्षा जैसे हजारों भयावह तस्वीरें जीवंत हो उठती है | आजादी के बाद एक नए भारतवर्ष को गढ़ने की कल्पना की गई, जिसमें गरीबी और गरीबों के बारे में गंभीरता से विमर्श किया गया | तमाम कानून बनाए गए, नियम तय किए गए मगर फिर भी गरीबी-भुखमरी से बिलबिलाते एक बड़े वर्ग के लिए समानता की परिभाषा तय करने में सामाजिक सुरक्षा क़ानूनों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है |

आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहें हैं जहां की चकाचौंध में हम आधुनिकता और विकासवाद के चक्रव्यूह में उलझे पड़े हैं | सारी दुनिया रंगीन और खुशहाल दिखती है मगर उसी धरती के किसी हिस्से में आज भी गरीबी और भुखमरी का डंका बज रहा है | बच्चे भूखे बिलबिला रहें हैं, तन-बदन पर कपड़ा नहीं, खाने को रोटी नहीं, बस चेहरे पर बेबसी लिए मासूम बेजुवानों की निरीह आँखें तलाश रही होती है भोजन के उस मूल को, जहां बड़े-बड़े रेस्तरां में हजारों-हजार के डिनर डकार दिए जाते हैं |

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सामाजिक सुरक्षा और श्रम क़ानूनों  के इस देश में मायने क्या हैं ये उनसे पुछकर देखो जो निजी क्षेत्रों में काम करते हैं | बॉस का वचन ही शासन होता है | दौड़ते-भागते कर्मचारियों को जिन्हें खाने और सही से सोने तक की फुर्सत नहीं होती वो अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ कैसे निभाते होंगे | अगर और गहराई में जाना चाहते हैं तो उन बिहारी अप्रवासी मजदूरों का हाल जानिए जो भेड़-बकरी की तरह ट्रेनों में सड़ांध मारती शौचालय के पास बैठकर दिल्ली, हरियाणा, मुंबई कमाने जाते हैं | 
8x6 के कमरें में चार-चार लोग की नींदें खर्राटे की तान कैसे सहती होगी | 
मकान मालिक की बन्दिशें ऐसी की बस चले तो खून चूस ले | फ़ैक्टरियों में 10 से 12 घंटे की ड्यूटि ली जाती है | तमाम श्रम क़ानूनों के इतर जीवन दांव पर लगाकर जो सिर्फ अपने बच्चों और परिवार के पेट पालने के लिए ये सब निरीह की तरह झेल ले वही इस देश का असली श्रमिक है | ये विकास उसकी हौंसलों से जन्म लेती है, ये उसकी पसीनें से सिंचित है | वे इस देश के आर्थिक मान-सम्मान समझे जाने वाले GDP की गहरी जड़ें हैं जिसके नींव पर हमारी सुढृध अर्थव्यवस्था खड़ी है |

किसी भी तरह की परिस्थितियों में देश के इन मजदूरों, श्रमिकों के साथ इस देश का सामाजिक सुरक्षा कानून हमेशा खड़ा होता है | दर्जनों कानून हैं जिनसे सामाजिक सुरक्षा की उपलब्धता का दावा किया जाता है, परंतु अगर कोई प्रत्यक्ष दिखता है तो वो है ईएसआईसी | कर्मचारी राज्य बीमा निगम भारत के असली मेहनती तबके के लिए विषम परिस्थितियों में साथ खड़ा दिखता है | रोजगार के पहले दिन से ही श्रमिकों और उनके परिवारों की हितलाभ की रक्षा अकल्पनीय है |

तो कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है की जो हमारी मिट्टी को मेहनत के बलबूते सींच रहा है, जिसके दम पर हम आर्थिक मजबूती के नगाड़े दुनिया भर में बजा रहें हैं वही मजदूर हाशिये पर क्यों हैं ? उनकी बेहतरी, सामाजिक समता के लिए हमें नए आयाम प्रशस्त करने होंगे, स्वस्थ कार्यबल-समृद्ध राष्ट्र के नारे की परिकल्पना को नई ऊंचाइयों पर ले जाना होगा |
नहीं तो सदियों से पुछे जाने वाले इस प्रश्न की अनुत्तरित जबाब कलंक बनाकर पूछता रहेगा की मेहनत जिसके पसीने से जन्म लेती है वही मजदूर उजाले को क्यों तरसता है |