हरियाणा के बाद राजस्थान के स्कूली पाठ्यपुस्तकों में जिस तरीके से छेड़छाड़ के आरोप लगाए गए, क्या वो जायज है? चूँकि वहां बीजेपी का शासन है ऐसे में तो विपक्षी कांग्रेस स्वाभाविक रूप से हर एक मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति बेशक करेगी| पर हमें इस मुद्दे को बिलकुल निष्पक्षता और गंभीरता से सोंचना होगा, क्यूंकि ये भारतवर्ष के इतिहास उसके आस्तित्व से जुड़ा मसला है| पिछले दो सालों में देश की शिक्षा का भगवाकरण करने के बहुत सारे चर्चे हुए, हंगामा हुआ, वामपंथी इतिहासकारों की मंशा पर भी सवाल उठाये गए तो वहीँ अवार्ड छीन लिए जाने की भी बातें की गयी| कभी अकबर को महान बताने की राजनीति की जाती है तो कभी महाराणा प्रताप को| कहीं महिषासुर की जाति बता डाली गयी तो कहीं किसी ने सम्राट अशोक को अपनी जाति का घोषित कर लिया| औरंगजेब रोड पर बवाल हुआ तो वहीँ गुरुग्राम को न स्वीकारने का प्रदर्शन चला| पर इसमें नया क्या था? कल सत्ता में कांग्रेस जो कर रही थी वो आज बीजेपी कर रही है| उसे भी सत्ता हासिल करने का इन्तजार कर लेना चाहिए फिर वो अपने अनुसार किसी बाबर, टीपू सुल्तान या जहाँगीर को भी महान घोषित करती रहेगी...
आरोप पहले भी लगते रहे हैं की कांग्रेसी और वामपंथी विचारधारा के तमाम
इतिहासकारों ने देश पर अपनी मनोदशा से राय थोपी, अपने-अपने राजनीतिक फायदे के लिए
अपनी-अपनी सहूलियत के अनुसार इतिहास को बदला| अगर
यह सच है तो इसलिए भी ये और महत्वपूर्ण हो जाता है क्यूंकि हमारा भविष्य (बच्चे)
उस वामपंथी इतिहासकारों के लिखे गए इतिहास को पढ़कर क्या वो एक निष्पक्ष नागरिक बन
पायेगा? क्या वो इन इतिहासों से परे की सच्चाई जान पायेगा? या वो भी बड़ा होकर इस
भंवर में फंसा रहेगा की अकबर एक महान प्रतापी राजा था, औरंगजेब एक निरंकुश लेकिन
न्यायप्रिय शासक था या फिर वीर सावरकर, भगत सिंह, खुदीराम बोस, सुभाषचंद्र बोस
देशद्रोही थे क्यूंकि वे गाँधी-नेहरु के आदर्शों की अवहेलना करते थे|
ये सच है की देश में शासन के दौरान राष्ट्रहित से परे होकर हर चीज को अपने
राजनीतिक फायदे के लिए बदल डालना कांग्रेस की ही सिखाई नियति है| मुझे याद है की
इतिहास के किताबों में गाँधी-नेहरु-इंदिरा और राजीव की शख्सियत से एक-तिहाई आधुनिक
इतिहास की किताबें भरी होती थी| बची हुई पन्नों में अन्य नेताओं का संक्षिप्त
विवरण मात्र होता था|
राजस्थान के स्कूली पाठ्यक्रम में नेहरु को नजरअंदाज किया जाना गलत
है| नेहरु ने चाहे कितनी ही त्याग की हो या धूर्तता की हो, फिर भी हमारे नौनिहालों
को भारत के आधुनिक इतिहास की तो कम से कम सच्ची जानकारी मिले| प्राचीन इतिहास की
विश्वसनियता हमेशा संदेह के दायरे में रही है| क्योंकि वे सारे इतिहास
अंग्रेजी-आक्रमणकारी विचारधारा के लोगों द्वारा लिखा गया है जो इतिहास क्या, हमारे
धर्म, आस्था, समाज और यहाँ तक की हमारे आचार-विचार को भी सही ढंग से नहीं जानते|
इसलिए हमारी सरकार को आधुनिक इतिहास के मसले पर गंभीर होना होगा बिना किसी
पूर्वाग्रह के| यदि किताबों में नेहरु की आजादी के लिए किये गए संघर्ष का जिक्र हो
तो उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद की तमाम गलत निर्णयों का देश पर क्या प्रतिकूल
प्रभाव पड़ा, वो भी सम्मलित हो?
शांति-पंचशील-गुटनिरपेक्षता का डंका बजाते-बजाते गलत
नीतियों के कारण चीन से हारे ये भी पुस्तक में हो| इंदिरा का महिमामंडन हो तो ये
भी बताया जाए की लोकतंत्र का गला किसने घोंटने की कोशिश की? और उसमें किन-किन
नेताओं ने अपनी रोटियाँ सेंककर राजनीति की दूकान खोल ली? ऐसा नहीं है की किताबों
में सारी सच्चाई सिर्फ कांग्रेस के लिए हो बल्कि हर उस दल, उस नेता, उस शख्सियत के
लिए हो जिसने अपनी प्रतिभा से देश का मान बढाया हो या कारनामों से देश को बदनाम
किया हो|
ऐसे में सिर्फ किताबों से नाम हटने पर इतना हल्ला है, अगर सच्चाई लिख
दी गयी तो सारे प्रदर्शन करने वाले मुंह छुपाते नजर आयेंगे| इसलिए जरूरत है की
सरकार एक निष्पक्ष आयोग बनाकर देशभर की स्कूली किताबों की समीक्षा कराये और उसमें
जरूरत के हिसाब से परिवर्तन हो| नहीं तो अगले कुछ सालों में देश का भविष्य किताबों
की जगह “इंसाल्लाह.... के साथ किसी ख़ास पार्टी की बर्बादी के नारे लगाता
फिरेगा... क्या नहीं?
लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं...
ब्लॉग पर आते रहिएगा...
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