भारतीय संस्कृति में शास्त्रीय संगीत का एक अहम स्थान है| भारतीय
शास्त्रीय संगीत के बारे में तो ये भी कहा जाता है की रागों से पत्थर को भी मोम
बनाया जा सकता है| भारतीय शास्त्रीय संगीत की ज्ञात इतिहास है की तानसेन को सुनने
न केवल मानव बल्कि पशु-पक्षी और जानवर भी आया करते थे| तानसेन जैसा संगीतकार राग
दीपक गाकर इतनी गर्मी पैदा कर देते थे की कमरे का सारा दीपक जल उठता था... उनके
समय में जब राज्य के किसी भाग में सुखा या अकाल की स्थिति पैदा हो जाती थी तो
तानसेन को भेजा जाता था| तानसेन में इतनी क्षमता थी
की राग मल्हार गाके वर्षा करा दे, राग दीपक गाकर दीप जला दे और शीत राज से शीतलता
पैदा कर दे| राग यमन, राग यमन कल्याण, राग भैरवी, ध्रुपद सरीखे रागों से न केवल
रोगियों में आश्चर्यजनक सुधार होती थी बल्कि फसल भी तेज़ी से बढ़ने लगती और पशु दूध
भी ज्यादा करने लगते थे| ये आज भी प्रमाणिक हैं...
भारतीय संगीत की कला हमारे महान पूर्वजों से विरासत में मिली थी| पर
आज भारतीय संगीत अपनी चमक खोता जा रहा है, उसे दिशा दिखाने वाले बॉलीवुड के
ऐसे-ऐसे दिग्गज संगीतकार, गीतकार व गायक आ गए हैं जो अपनी हरकतों से भारतीय संगीत
को लील जाने की मनोदशा लिए दिख रहे हैं| भारतीय संगीत लगभग अपनी आधी पहचान खो चूका
है| जो बची-खुची है वो रंगमंच, थियेटरों में शास्त्रीय गायकी से ही है| हमारी
संस्कृति, हमारी मनोदशा को पश्चिमी बना डालने की जिम्मेदारियों में हमारा बॉलीवुड
काफी हद तक सफल भी हो रहा है| हिंदी फिल्मों
में हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी के बोल सुनाई देते हैं| हिंदी गानों में अंग्रेजी
धुन बज रही है| झंकार, रीमिक्स और धूम-धडाके की महफ़िल लोगों के कुछ ज्यादा ही भाने
लगी है| लोग जमकर थिरकते हैं, सीटियाँ बजाते हैं पर गाने को महसूस नहीं कर पाते|
क्योंकि इन गानों में अंग्रेजी के अटपटे बोल और उसपर गिटार का झंकार संगीत की
ऐसी-की-तैसी कर जाते हैं| ऐसा नहीं है की बॉलीवुड में भारतीय संगीत
को जीवंत बनाए रखने गायक नहीं हैं| मन्ना डे, किशोर कुमार, रफ़ी, लता दीदी,
आशा भोंसले, अनूप जलोटा, अनुराधा पौडवाल, कुमार सानु, अलका याग्निक......... जैसे
संगीतकार बिना किसी प्रशिक्षण के बॉलीवुड में आकर असंख्यक लोगों के दिलों पर राज
किया| लक्ष्मी कान्त प्यारेलाल की बोलों को लोग आज भी खुद पर महसूस कर पाते हैं|
इनलोगों ने अपने-अपने वक्त में ऐसे-ऐसे सुपरहिट नगमें गाए हैं जो आज भी हर एक
संगीत प्रेमी के रूह को छू जाती है| सबसे ख़ास बात ये है की इनके गायन में भारतीय
शास्त्रीय संगीत की पूरी झलक मिलती है|
याद है, आज से कुछ साल पहले ए० आर० रहमान को संगीत के लिए ऑस्कर
पुरस्कार मिला था| उस वक्त हम सभी गर्व से सीना चौड़ा कर कहते थे की हमारे देश के
एक लाल ने ऑस्कर जीता है| पर अब मुझे महसूस होता है की मैं गलत था| क्या रहमान को
ऑस्कर पुरस्कार भारतीय संगीत के लिए मिला था? नहीं| क्योंकि वो पुरस्कार अच्छे
संगीत के लिए नहीं दिया गया था बल्कि उसमें पश्चिमी संगीत को मिलाया गया था इसलिए
उसके जूरी को वो पसंद आया| यानी की भारतीय संगीत कितना भी बेहतर क्यूँ न हो ,
ऑस्कर लेना है तो हमें पश्चिमी संगीत को अपनाना होगा| उनके जैसा गिटारों की बेसुरे
झंकारों पर हमें गाना होगा|
सवाल है, ऑस्कर हमें क्यूँ चाहिए? क्या विदेशियों को रागों,
धुनों या शास्त्रीय गायन की रत्ती भर भी जानकारी है? फिर भी हम विदेशियों से अपने
गायन पर ठप्पा लगाने को बेताब क्यूँ रहते हैं? ये तो ठीक वैसी ही बात है की अनपढ़
पढ़े लोगों की पढाई को सही या गलत ठहराए|
संगीत मां सरस्वती की देन है, किसी मानव की नहीं| फिर भी ऑस्कर मिलने के
बाद हम कितने खुश हो रहे थे की जैसे मालिक ने हमें पुरस्कार दे दिया........ चाहे बात रिकार्डों की हो, नोबेल की हो, गिनीज़ रिकॉर्ड की हो या
फ़ोर्ब्स-टाइम्स की सूची में आने की, इसकी हकीकत है की हम उनसे ठप्पा लगाने को
लक्ष्य मान लेते हैं जिनकी सभ्यता-संस्कृति भारत को देखकर सीखी और बड़ी हुई| मतलब
साफ़ है की हम अभी भी खुद को गुलामियत वाली मानसिकता से उबार नहीं पाए हैं|
संगीत किसी की विरासत नहीं हो सकती| चाहे वो बॉलीवुड हो या हॉलीवुड या
कोई और| मुझे तो भारतीय संगीत की असली सोंधी खुशबु लोक गीतों से मिलती है| भारत के
अलग-अलग क्षेत्रों में इतने तरह के लोक गीत और इतने प्रकार के रागों में गाए जाते
हैं की अगर हमारी फ़िल्मी दुनिया उसे समझ जाए तो भारतीय संगीत का कायाकल्प हो
जाएगा| पर ऐसा हो भी नहीं सकता क्यूंकि देश का
एक बड़ा युवा वर्ग घोड़े जैसे बालों में बेढंगे और बेसिर-पैर के गानों पर मिर्गी
वाले डांस को ही असली टैलेंट समझते हैं| मेडोना, जस्टिन बिबर, शकीरा,
लेडी गागा जैसे गायक इनके आदर्श हैं, जिनके यहाँ संगीत
का मतलब बस गला फाड़कर चिल्ला देना भर होता है..... इसलिए कोई उम्मीद न करना ही बेहतर होगा
फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है और रहेगी.....
लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं...
ब्लॉग पर आते रहिएगा...
No comments:
Post a Comment