19 June 2021

● बाढ़ और बिहार ●

नेपाल से निकलने वाली नदियां सीधी ढलान से उतरते हुए रौद्र रूप धारण कर लेती है ! फिर कोसी, गंडक, बुढ़ी गंडक और महानंदा नदियों की उत्तर बिहार में विभीषिका के बीच शुरू होती है निर्लज्जों की राजनीति ! 

ये कहानी कोई नई नहीं है, सरकार और जनता के बीच के विश्वास को हर वर्ष बाढ़ बहा ले जाती है ! बाढ़ राहत के नाम पर कुत्ते की तरह पैकेट फेंकें का चलन काफी पुराना हो चुका है, इसमें अब सरकार के प्रति तनिक संवेदना नहीं होती बल्कि गुस्सा ही आता है !

जब कोई मुख्यमंत्री 16 सालों से सत्ता पर कुंडली मारे बैठा है, अरबों अरबों रुपये बाढ़ राहत और तटबंध योजनाओं में फूंके जा चुके हैं ऐसे में सोचिए जब उस राज्य की निरीह आबादी पेड़ में मचान बनाकर बाढ़ से बचने का इंतजाम खुद करने लगे तो लोगों का भरोसा तो उठ ही जाना है... किस बात पर वे अपने संविधान, सिस्टम और सरकार पर भरोसा करें ? वो बाढ़ में कई कई दिन भूखे रह रहा, बच्चे भूखे रह रहे, उसके गाय-भैंस को चारा नहीं मिल रहा, झोपड़ी बह गई, जमा पूंजी के नाम पर हजार-दस हजार की ही अवकात है.. तो घण्टा GDP बढ़ेगा ! किस बात की इकोनॉमिक महाशक्ति की बात करते हो ? उसे पक्का मकान, चलने लायक सड़क और कमाने लायक रोजगार दोगे तभी तो वह कुछ अन्य चीजों में पैसे खर्चेगा..

जिस संविधान के बलबूते सत्ता भोग रहे क्या वो संविधान लोगों को इस बाढ़ के स्थायी समाधान देने से रोक देता है ? जब बाढ़ से उत्तर बिहार को नहीं बचा पा रहे तो हर वर्ष अरबों रुपये कहाँ खर्च रहे ? तटबंध की मरम्मत करा देने, रसोई खोल देने ये सब चीजें समाधान कम और अवैध-भ्रष्ट नेताओं-अधिकारियों की इनकम का सोर्स अधिक है ! 

उत्तर बिहार को बाढ़ से बचाने को कितने आयोग बनाये बिहार ने ? अगर बनाये भी तो उनके सुझाव पर क्या हुआ ? केंद्र और कोर्ट दोनों मूकदर्शक नहीं बन सकते.. राज्य के निकम्मेपन के जिम्मेदार दोनों बराबर माने जाएंगे ! कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से सभी का अस्तित्व है.. जनता को तकलीफ हो रही तो समझो लोकतंत्र को तोड़ा जा रहा है ! इतने सालों तक सत्ता भोगने के बावजूद उन सभी जगहों पर जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ तबाही लाती है वहां कच्चे मकान या झोपड़ी में रहने वाले लोगों को प्राथमिकता देते हुए आवास क्यों मुहैया नहीं कराई ? 

आपके इंजीनियर अगर इतने highly qualified हैं कि तटबंध टूटना आम बात है तो उसके लिए अन्य वैकल्पिक इंतजाम क्या किये, कभी वर्ल्ड लेवल के विशेषज्ञ की मदद ली ? रिसर्च बिठाई.. जनता से समाधान पूछा ?अगर केंद्र मदद नहीं कर रहा तो कभी बिहार की जनता को बताया ? कभी सारे तथ्य सामने रखे कि समाधान क्या है !

साधारण सी बात की है कि गंगा की पेटी बालुओं से भरी है, नेपाल से आने वाली नदियों का प्रवाह गंगा में गिरने वक्त काफी धीमी हो चुकी होती है.. इससे उन नदियों का फैलाव उत्तर बिहार में हो जाता है और काफी क्षति होती है ! जबकि बाढ़ आने से पहले न तो सरकार कभी इसके बारे में सोचती है न कभी फरक्का बांध पर केंद्र से लड़ती है ! नेपाल की तरफ या सीमावर्ती क्षेत्रों में बाँध बनाये जाने की कोई योजना दूर दूर तक नहीं दिखती ! कोसी हर साल रास्ता बदल लेती है मगर बेतरतीब बसी आबादी को इससे बचाना है ही ! 

बिहार एक 90s से बीमारू राज्य था और अब भी है ! अलग बात है कि शराबबंदी से एकदम सतयुग का माहौल है राज्य में ! इससे इकॉनमी चरम पर है और पैसे की अधिकता के कारण सरकार अन्य एक्साइज, रजिस्ट्री जैसी टैक्सों में भारी कटौती करते रहती है ! पर्यटक की भारी भीड़ से नियंत्रण करने में सरकार के पसीने छूट रहे हैं !

गुंडे एनकाउंटर के डर से राज्य छोड़ के भाग जा रहे हैं ! 

निवेश में अव्वल है.. मल्टीनेशनल कंपनियों की लाइन लगी है ! बिहार में रोजगार की तलाश में रेल भर भर कर मजदूरों आ रहे हैं... 

कितना अच्छा लगता है न ये सब... भूल जाइए और मूल बात पर रहिये !

बाढ़ से निदान का कोई विज़न है क्या सरकार के पास की वे अगले 5 या 10 सालों में कैसे समाधान कर लेगी ? कुछ नहीं है ! बस है तो हेलीकॉप्टर, चूड़ा गुड़ और राहत के पैसे लूट ले जाने की योजना !!!

बाढ़ आये सूखा आये.. कुछ भी आ जाये पार्टी फण्ड का विकास जरूर होता रहेगा... बाढ़ की उपजाऊ मिट्टी भले जनता का पूंजी बहा ले जाती हो मगर नेताओं-अफसरों की जेब में हरियाली से जरूर भर देती है...

जाति के नाम पर वोट डालने का नतीजा कितना महंगा हो सकता है कैलकुलेट कर लेना... हमारे सीधे होने का फायदा कैसे उठाया गया है ये भी जरा अतीत में झांक लेना कि कैसे मोटरसाईकल से चारे ढोये गए थे ! 

राजनीति में माहिर कहे जाने वाला बिहार आज अपने नागरिकों के अधिकारों से समझौता कर रहा है.. न्यायपालिका को गर्मी की छुट्टियां लेनी है और केंद्र को चुनाव पर चुनाव लड़ते रहना है...

मतलब यही लोकतंत्र की मूल भावना थी न.....

#जय_हिंद 🇮🇳

09 June 2021

● अश्लील भोजपुरी ●

भाषा स्वयं ही सभ्यताओं की जननी मानी जाती है । भाषाई समृद्धि लोगों को सामाजिक तौर पर न केवल योग्य बनाते हैं बल्कि उनके पीढ़ियों में क्या संस्कार होंगे ये भी तय करते हैं ! दुनिया की सबसे मीठी बोलियों में से एक भोजपुरी को माना जाता है ! इतने कर्णप्रिय शैली और मिठास की रसधारा से ओतप्रोत यह समस्त लोकभाषाओं में श्रेष्ठ माना जाता है !खासकर बिहार की पहचान तो भोजपुरी के नाम से ही लगभग सभी बाहरी राज्यों में है ! पूर्वी UP और पश्चिमी बिहार के बेल्ट के आम बोलचाल की भाषा में भोजपुरी का 100℅ वर्चस्व है ! उधर मॉरीशस सहित अफ्रीका और कई कैरिबियाई देशों में भी भोजपुरी एक अहम भाषा के रूप में दिखता है !

मगर आज भोजपुरी भाषा के साथ हो रहे वर्ताव का दोषारोपण किसी दूसरे पर कर नहीं सकते ! इसके जिम्मेवार हम सभी हैं ! संगीत-नृत्य के नाम पर जो भोजपुरी आज हमारे सामने परोसा जा रहा है वह हमारी पसंद और हमारी इच्छाओं के अनुरूप ही है ! हम कभी भोजपुरी के संरक्षण के लिए एकजुट ही नहीं हुए ! और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहां हज़ारों बोलियां और क्षेत्रीय भाषा है,  उस जगह पर सरकार के मत्थे सारी चीजें छोड़ देना उचित नहीं है । सरकार आपकी भाषाई विविधता बचाने हर चीज में क्यों उतरेगी जब आपको कोई फर्क ही न पड़ रहा हो ! 

भाषा की बात हो तो दक्षिण भारत का हाल देखिए ! उसकी एक-एक आबादी सड़कों पर उतर जाती है अपनी पहचान बचाने को ! सरकार को उनलोगों ने मजबूर कर रखा है अपनी भाषाई पहचान देने के लिए.. और सरकार अंततः हर बात मानती है !

1952 में पूर्वी पाक पर उर्दू थोपा गया ! वहां के लोगों ने बांग्ला भाषा बचाने के लिए क्या नहीं किया ? उर्दू को लेकर बवाल पनपते पनपते भयंकर नरसंहार हुआ और अंत में वही बांग्लादेश के लिए आजादी का कारण बना ! उत्तर पूर्व भारत में ट्राईबल्स का अपने भाषा और अपनी संस्कृति से प्रेम देखिए ! किसी बाहरी को घुसने नहीं देते भाषा या संस्कृति से छेड़छाड़ करना दूर की बात है !

Up बिहार में एक खास पहचान सदियों से लौंडा नाच, विवाह गीत, रामलीला, चैता, बिरह की रही है ! क्या बेहतरीन रस हुआ करता था, मतलब एक एक शब्द जैसे तन मन को हिला डालती थी ! भोजपुरी सिनेमा का दौर शुरू हुआ तो भिखारी ठाकुर जैसे बेहतरीन कलाकारों ने भोजपुरी माटी को सुगंधित किया ! रंगमंच पर भोजपुरी का अपना जलवा था... ऊपर से महिलाओं के विवाह गीत, उसमें गाली का रस ! कितनी शानदार विविधता है इस भाषा में...

मगर आज जो भोजपुरी गानों के नाम पर लंठई देखने को मिल रही है वह हमारी ही पसंद का है ! भोजपुरी सिनेमा में नंगई हमारी बिना मर्जी के नहीं परोसा गया ! हमने उस नंगई को पसंद किया... निर्देशक उत्साहित हुए, अभिनेता और अभिनेत्रियां कपड़े खोलने पर उतारू हुए और पैसे बटोरे क्योंकि हमने उन पर पैसे खर्चे ! 

फिर उसी बिहार में स्टेज शो और आर्केस्ट्रा का दौर शुरू हुआ.. लोग खुलेआम बार बालाओं के नाच को अपनी संस्कृति का हिस्सा मानने लगे !  अश्लील शब्दों से लैस गाने शादी-पार्टियों की शान होने लगी, बारातियों में एक ही धुन वाले मगर अलग अलग गलीच-गन्दे लिरिक्स के गानों पर हम थिरकने लगे... एक से बढ़कर एक अश्लील गाने निकले मतलब शरीर के हर एक निजी अंगों को सरेआम बीच बाजार में उसे शब्दों में पिरो कर हमें परोसा गया... और हम मजे के नाम पर स्टेज के नीचे शराब पीकर झूमते और पैसे लुटाते भोजपुरी भाषा को कितना गर्वित कर रहे थे !!!

भोजपुरी की अश्लीलता का कारण मुख्य रूप से भोजपुरी समाज जो पूर्वी UP और बिहार के भोजपुर, छपरा, सिवान आदि जिलों के लोगों की मौन स्वीकारिता है ! जब उनकी भाषाई पहचान में जहर घोला जा रहा था तो चुप क्यों थे ? ऐसे गानों, ऐसे फिल्मों का चलन हुआ ही क्यों ? अपनी मिट रही पहचान को बचाने या उसका विरोध करने समाज का बड़ा वर्ग कभी सामने नहीं आया... 

अपनी लोकसंस्कृति के प्रति इतनी संवेदनहीन हो आप तो भोजपुरी को मिटाने वाले दूसरा कोई नहीं हो सकता ! की आपकी लोकभाषा को  गाली-गलौच की भाषा बनाकर रख दिया गया है.. अब कितना अच्छा लगता होगा कि बाहर जाकर अपनी भोजपुरी एक्सेंट को छुपाना पड़ता है.. इज्जत खराब लगने लगती होगी ! हरियाणवी और पंजाबी गाने इतने आगे निकल गए और लोकप्रिय इसलिए हुए की तेरे तरह वे लोग संवेदनहीन नहीं थे !

पीछे के दो दशक की बात तो छोड़ ही दीजिए आज के इंस्टाग्राम या फेसबुक जैसे विभिन्न वीडियो प्लेटफार्म को एक नजर देखिए ! अच्छी पढ़ी-लिखी और आधुनिक लड़कियां इन्हीं गंदे भोजपुरी गानों पर अपनी कमर मटकाती मिल जाएगी ! कोई टोक दिया तो फटाफट नारीवादी बनने को उतारू हो जाएगी ! 

कौन दोषी है इसका ? क्यों विरोध नहीं करते कभी ? क्यों डिमांड है खेसारी, पवन सिंह, अक्षरा या मोटी थुलथुल पेट दिखाती हेरोइनों की ? 

सीधी बात है इसमें से कोई दोषी नहीं है ! वे सक्सेस पर है तो हम ही के बदौलत है ! हम ही ने उन्हें बढ़ाया है, हमें ही ने उन्हें प्रोत्साहित किया है ऐसे ऐसे गीत लिखने को ! उनकी दुकानदारी है और किसी व्यापारी की दुकान तभी मुनाफे में चलती है जब उसमें बिक रहे प्रोडक्ट की मांग ज्यादा हो ! अब उसमें चरस बिक रहा या गांजा ये खरीदने वाले समझें...

संगीत तो शारदा सिन्हा, मालिनी अवस्थी, भरत शर्मा का भी है ! इनलोगों के गीत या उनके शब्दों के बोल तक रोम रोम में लोकसंगीत का एहसास करा देते हैं ! 

भोजपुरी की पहचान बचानी है तो पूर्ण बहिष्कार करो इनका ! हर चीज सरकार पर डाल देना या सेंसरशिप की मांग करना बेहूदगी है ! पहले खुद सुधरो.. 

शुरुआत तो भोजपुरी भाषी लोगों को ही करनी होगी ! हर एक जगह कील ठोक दो.. यूट्यूब, फेसबुक जहाँ पकड़ा जाए उसी अंदाज में रगड़ डालो ! जैसे तो तैसा.. फिर सरकार से कोई डिमांड करना तब अच्छा लगेगा !

सब कुछ बर्दाश्त कर लो मगर भाषा से छेड़छाड़ कभी नहीं ! क्योंकि भाषा आपकी बुद्धि की माँ है... इसी के बदौलत तेरी शिक्षा, समझ और तेरा अस्तित्व है...

#जय_हिन्द 🇮🇳