29 July 2017

लालू के रोम रोम से टपकता अहंकार

"जब तक रहेगा समोसे में आलू तब तक रहेगा बिहार में लालू"
जैसे जुमलों से बिहार की जनता में।जातिवादी मूर्खता ने गहरी पैठ जमाई थी। लालू हमेशा से अहंकारी रहे हैं, उनका अहंकार उनके रोम-रोम से टपकता नजर आता था। पार्टी कार्यकर्ताओं या मीडिया से उनका व्यवहार कभी शोभनीय नहीं रहा। गरीबों के मसीहा कह जाने वाले लालू सत्ता में बैठकर जातिवाद की गहरी जड़ें बिहार में खोदते रहे। सत्ता का नशा उन्हें इतना मदहोश कर गया कि वह अपने घर तक को खोदने से परहेज नहीं कर पाए। चारा घोटाले के बाद भी बिहार का जनादेश लालू को अनदेखा नहीं कर सका। ये सिर्फ और सिर्फ लालू के जातिवादी राजनीति का प्रभाव था।
यादवों में लालू का नशा सिर चढ़कर बोलता था।
लाठी और भैंस वाली कहावतों से लालू अपने समर्थकों और जाति के लोगों को कानून का पालन ना करने के लिए अप्रत्यक्ष रुप से उसकाते रहते थे।
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समय बदला बिहार की जनता जागरूक हुई और उसने लालू की सत्ता को उखाड़ फेंका। नीतीश कुमार विकास पुरुष साबित हुए। बिहार के विकास के लिए उनके प्रयासों के बदौलत उन्हें दोबारा सत्ता हासिल मिली और लालू कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आए।
बाद में एक बार फिर बीजेपी से मतभेद के कारणों के चलते धुर विरोधी नीतीश और लालू एक साथ आए, दोनों ने सरकार बनाई लेकिन लालू ने इस बीच अपने दोनों लाल को सत्ता में लैंड करा दिया। इधर अपनी लाडली को राज्यसभा की सदस्यता भी दिलवा दी।
लेकिन लालू प्रसाद यादव ने अपने मुख्यमंत्री काल में और बाद में रेल मंत्री रहते हुए जितने भी घोटाले और भ्रष्टाचार किए वह देश के माथे पर निश्चित रूप से एक राजनीतिक कलंक के रूप में साबित होंगे।
Image result for lalu with lathi imageपारिवारिक हित के लिए देश और राज्य को लूटना लालू के लिए बहुत आसान रहा है फिर भी भ्रष्टाचार के सहारे वंशवाद के लिए राजनीतिक जमीन की तलाश में इस बार उन्होंने गहरी मात खाई है।
भ्रष्टाचार, अहंकार, बड़बोलापन यह सब लालू की पहचान है। बदतमीजी की मिसाल लालू को माना जा सकता है। वोटों की राजनीति चमकाने के चक्कर में पार्टी के कार्यकर्ताओं की घटिया राजनीति महागठबंधन को टूटने का अहम कारण है।

ऐसा नहीं है कि जातिवाद की मूर्खता बिहार में खत्म हो गई ! अभी भी ग्रामीण इलाकों के यादव परिवारों मैं लालू का जलवा बरकरार है! जातिवादी मूर्खता के जीते जागते उदाहरण लाठी और मूछ वाले ग्रामीण मजदूर अभी भी मिल जाएंगे जो लालू विरोध की बात सुनते ही लाठी पटकने में तनिक भी देर नहीं करेंगे। इसलिए यह समझना कि बिहार राजनीतिक रुप से परिपक्व हो गया है यह शायद विश्लेषकों की भूल है। लालू के राजनीतिक अंदाज में कोई परिवर्तन नहीं आने वाला, क्योंकि उनका अहंकार उनके रोम-रोम से टपकता है चाहे जमीन चली जाए या उनकी अकूत संपत्ति या सारा परिवार जेल की सैर करे वह बदलने वाले नहीं हैं।

भ्रष्टाचार का लत जिस इंसान को लग जाए वह तब तक नहीं बदल सकता जब तक उसका अस्तित्व समाप्त ना हो जाए!
फिलहाल लालू की मौजूदा स्थिति यही बयां करती है...

 अश्वनी ©



26 July 2017

हट बे चाऊमीन !

चीन युद्ध लड़ेगा भारत से! 
सपना देख रहे हो या सावन में गांजा ज्यादा चढ़ा लिए हो! अबे चार फुटिये कुंग फू काम ना आएगा! 
युद्ध लड़ना है इंडिया से तो बेटा लड़ने से पहले सनी देओल का वीडियो देख लियो! भारतीय सेना में उससे भी ज्यादा पगलेट बैठा है!
योगा वाला शरीर है, इजराइल वाली बंदूक और कलाम वाली मिसाइल सब टेस्टेड और टंच है!
अपना वाला चला कर देख लेना पहले क्योंकि साले तुम्हारे सामान का स्टैंडर्ड इंडिया में आकर किसी से पूछ लो! पहले तो गाल पर लगाएगा फिर तुम्हारी औकात बताएगा!
युद्ध की धमकी कोरिया और जापान को ही देने में भलाई है तुम्हारी! अगर 1961 वाले भारत समझने की भूल है तो यहां सेना मौके की तलाश में बैठी हुई है!
पूंजीवाद के दम पर ताकतवर बनने की कोशिश भारत के सामने अब नहीं चलने वाली! दिमाग खोलकर समझ लो भारत में अब राष्ट्रवादी सरकार है पंडित (नेहरू) जी का जमाना गया!
ये सरकार जनता के सेंटीमेंट पर काम करती है! अर्थव्यवस्था पर बहुत घमंड है तुम्हें, भूखे मर जाओगे अगर भारत में तुम्हारा सामान न बिके तो!
सुन लो, डोकलाम तुम्हारे बाप का नहीं है! ज्यादा चूं-चपर की तो तिब्बत भी तुम्हारे असली बाप का हो जाएगा! चीनियों में इतना गुरुर कहां से आता है? क्या खाते हो बे! हाजमा सुधारो! चौमिन मंचूरियन खाना बंद करो अकल ठिकाने आएगी! भारतीय खाने को ट्राई करो उमर लंबी हो जाएगी!
Image may contain: one or more people, people standing and outdoorसुधर जाओ वक्त है, अपने रखेल पाकिस्तान को समझाओ?! लड़ने और लड़ाने की मंशा छोड़ दो नहीं तो भारत अपनी रोटी तुम पर सेंक देगा! अमेरिका ताक में पहले से है, दक्षिण कोरिया और जापान से तो तुम दुश्मनी पहले से ही पाल चुके हो।
ताइवान और भूटान पर तुम्हारा विस्तारवादी रवैया तुम्हारी सबसे बड़ी भूल साबित होगी। यह मत समझना कि अपनी सैन्य ताकत के बल पर तुम भारत को झुका दोगे!
"ध्यान रहे नेहरु नहीं यहां मोदी बैठा है! सीने पर चढ़कर तिरंगा गाड़ देगा !"
चीन के टुकडे होने में देर नहीं लगेगी! युद्ध करोगे दोनों की बर्बादी होगी! भारत हारेगा तो तुम खुद ब खुद एशिया की महाशक्ति बन जाओगे और अगर तुम हारे तो भारत महाशक्ति! पाकिस्तान इंटरनेशनल कमीना है! तुम्हारे साथ साथ वो भी सध जाएगा। 

पीओके में तुम्हारे प्रोजेक्ट पर भारत की नजर पहले से है! तुम्हारी हर कमजोरी को डोभाल अच्छे से जानता है. एक भी गोली चली सीधा पॉइंट पर हमला होगा. तिलमिला जाओगे बेज्जती हो जाएगी, भारतीय बाजार तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे! कहां जाओगे कमाने! कोई कमाने नहीं देगा भूखे मरोगे और फिर इंडिया ही तुम्हारी मदद करेगा! इसीलिए बदलो, जहां बैठने की जगह मिले वहां सोने लायक जगह बनाने की कोशिश मत करो नहीं तो कोई इंडियन पगलेट आएगा चढकर बैठे जाएगा! और भूल से चाउमीन वाली सड़ान्ध पाद दिया तो चार लात जमा देगा!
इसलिए संभल जाओ, सुधर जाओ, समझ जाओ. की डोकलाम न तुम्हारे बाप का था, ना है और ना होगा!
और हां अपने मंचूरियन राष्ट्रपति जिंगपिंग से बोल देना की वह माथे पर नेम प्लेट चिपका कर चले! हम लोगों को पहचानने में बड़ी परेशानी होती है की साला राष्ट्रपति कौन है और मजदूर कौन!!!
ही ही ही ही....😂😂
#भारत_माता_की_जय

 अश्वनी ©



22 July 2017

अमेरिकी चाल का मोहरा पाकिस्तान

अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को आतंकी समर्थक देशों की सूची में डालना अमेरिकी पूंजीवादी तरक्की के लिए भारत को रिझाने की कोशिश मात्र है। जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा से लेकर ट्रंप प्रशासन, उनकी खुफिया एजेंसियां और अफगानिस्तान में जंग लड़ रहे उनके सैनिकों ने पहले भी पाकिस्तान को आतंकी पनाहगार देश माना है, और समय-समय पर पाकिस्तान के लिए अपने फायदे के हिसाब से आतंकवाद की परिभाषा में हेरफेर करता आया है।

नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच जो जुगलबंदी दिखी उसके परिणाम के रूप में पाकिस्तान को आतंकवादियों के मददगार देशों की सूची में डालना एक रणनीति का हिस्सा है। पाकिस्तान में बैठे हैं नेताओं, मौलानाओं या इस्लाम के लड़कों के ऊपर अमेरिकी फैसले का कोई शिकन नहीं दिखा। ताल ठोक कर पहले भी कहते रहे हैं कि हम कश्मीर में लड़ रहे हैं और लड़ते रहेंगे। कश्मीर के बहाने पाकिस्तान में खुली आतंकी फैक्ट्री दुनिया की किसी देशों से नहीं छुपी फिर भी भारत के खिलाफ पाकिस्तान की धरती से सीधे इस अभियान को रोकने टोकने कभी कोई अमेरिका या पश्चिमी देश नहीं आए और ना आएंगे।

वैश्विक आतंकवाद के क्षेत्र में जब अमेरिका और पश्चिमी देशों ने इराक और सीरिया में पनप रहे आईएसआईएस के विरुद्ध जंग छेड़ी लेकिन उस एलियंस में भारत के शामिल होने के मुद्दे पर उसकी चुप्पी 20 करोड़ मुसलमानों के नाराज होने के डर की वजह से है। जब इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में सऊदी अरब के बमवर्षक विमान और उसकी सैनिक ताकत हिस्सा ले रही है तो भारत जैसे आतंकवाद से लहूलुहान देश को इस मुद्दे पर आंतरिक राजनीति से हटकर सोचना होगा। याद रखें कि हमारे दोनों दुश्मनों चीन और पाकिस्तान से लड़ने ना तो अमेरिका आएगा न इजराईल! हमें इन दोनों से अपने दम पर मुकाबला करना होगा।

अमेरिका से साझेदारी और भरोसा बनाने के लिए हमें उसकी चाल का मोहरा बनना होगा ताकि वो चीन की बढ़ती ताकत को भारत का इस्तेमाल करके नियंत्रित कर सके। हिंद महासागर, दक्षिण चीन सागर और पड़ोसी देशों पर चीन की बढ़ती दादागिरी पर अंकुश लगाने के लिए भारत को भी अमेरिका की जरूरत है जो तकनीक और हवाई ताकतों के बल पर उसके मनमानेपन से निपटने का एक बेहतर सहयोगी हो सकता है।

एशिया क्षेत्र में अमेरिका की घटती लोकप्रियता के पीछे चीन है जो उसे हर मोर्चे पर धमकाने के अंदाज से लगातार भीड़ रहा है। भारत के साथ चीन की टकराव की ताजा स्थिति में अमेरिका की सक्रियता और रूस की तटस्थता इस बात का संकेत है कि रूस अब भारत को पुराने सोवियत संघ का साझीदार नहीं मान रहा जो गुट निरपेक्ष होने के बावजूद भी गाहे-बगाहे या आंतरिक तौर पर सोवियत का समर्थक रहा है और अमेरिका का धुर विरोधी।

भारत का अमेरिका के प्रति झुकाव चीन और पाकिस्तान के बदौलत है। दोनों से निपटने के लिए हमें अमेरिका के सहयोग की जरूरत होगी जिसे वह व्यापार के तौर पर बिना फायदे के मदद तो कर नहीं सकता। जिस तरह अमेरिका की नजरें चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था और उसकी उभरती महाशक्ति की छवि बिगाड़ने में लगी है उसी तरह वह कश्मीर मुद्दे के बल पर पाकिस्तान को मोहरा बनाकर भारत का फायदा उठाना चाहती है। सबको पता है कि अमेरिका पाकिस्तान को पहले भी शह देता आया है और अभी दे रहा है। ताकि वह भारतीय बाजार का इस्तेमाल अपने सैन्य उपकरणों तथा पुरानी तकनीकों का व्यापार कर सके।
इसलिए यह फालतू की उम्मीद लगाना मूर्खता होगी कि वह आतंकी पनाहगारों की लिस्ट में पाकिस्तान का नाम डाल कर भारत की मदद कर रहा है और वह भारत के लिए इस्तेमाल होने वाले आतंक का सफाया करने को प्रतिबद्ध है! वह ना तो सीरिया इराक की तरह पाकिस्तान में फल फूल रहे आतंकी ठिकानों पर कार्यवाहियां करेगा और ना ही सीधे-सीधे आतंकवादियों तक पहुंचने वाले पाकिस्तानी फंडिंग पर रोक लगाएगा।

उसे अपने सामान बेचना भारत आना है सैन्य सामान का खरीददार भारत से बड़ा कोई नहीं इसलिए वह भारतीय प्रधानमंत्री के आगे पीछे चलने को मजबूर है।
इस तरह इसका कतई मतलब यह न निकाला जाए अमेरिका भारत की सीमा सुरक्षा व विश्व राजनीति में भागीदार बनाने को उत्सुक है। वह जो कर रहा है अपने फायदे के लिए कर रहा है अमेरिकी गणतंत्र की दुनिया में चल रही धाक को बनाए रखने के लिए कर रहा है।

Image result for modi trump imageइसके लिए उसे किसी देश की संप्रभुता, उसकी आजादी, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक स्वतंत्रता से कोई लेना-देना नहीं! बल्कि जरूरत पड़ने पर उसे नष्ट करने से भी वह नहीं कतराता!
इसलिए भारत को सावधान रहने की जरूरत है। पाकिस्तान भारत के खिलाफ अमेरिकी मोहरा पहले से है जिसे वह कश्मीर के माध्यम से साजिशों को अंजाम आज भी दे रहा है और चीन के खिलाफ भारत को अपना मोहरा बनाने का लालच उसकी आंखों में दिख रही है।

फिर भी हमें भरोसा है यह भारत की सरकार कूटनीति की चालो में माहिर खिलाड़ी है और उसे उसी के अंदाज में पटखनी देना भी बखूबी जानती है...

✍ अश्वनी ©



20 July 2017

वेंकैया नायडू के मायने

उपराष्ट्रपति के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने वेंकैया नायडू को उम्मीदवार बनाकर एक नया राजनीतिक चक्रव्यूह रचा है। हिंदुत्ववादी विचारधारा और संघ के एजेंडे पर देश के प्रमुख पदों का भगवाकरण लगभग किया जा चुका है। हिंदुत्ववादी जोश का जो नमूना मोदी लहर में दिखा था वह अब आगे निकल कर योगी आदित्यनाथ से होते हुए रामनाथ कोविंद और वेंकैया नायडू तक जा पहुंचा है। भले ही गौरक्षकों पर प्रधानमंत्री मोदी का बयान कट्टरपंथी युवाओं को रास ना आता हो उन्होंने समझना चाहिए कि संवैधानिक पदों पर बैठकर प्रत्यक्ष रुप से धर्माधारित एजेंडे को नहीं थोपा जा सकता।
हामिद अंसारी के पिछले 10 सालों के कार्यकाल में राज्यसभा सभापति होने के नाते उन्होंने हमेशा विपक्ष को दबाने की कोशिश की, भाजपा की आवाज को अनसुना करने की कोशिश करते रहे। इस दौरान राज्यसभा टीवी का लगभग इस्लामीकरण किया जा चुका था। भाजपा विरोध के बुनियादी पक्षधर पत्रकारों की फौज राज्यसभा टीवी पर डेरा जमाए हुए बैठी है, जिसका पूर्ण प्रभाव नायडू के सभापति होने के बाद देखा जा सकता है।
भारत में कई उप राष्ट्रपति हुए लेकिन हामिद अंसारी जैसा कोई नहीं हुआ उन्होंने खुद को इस्लामीयत का अगुआ साबित करते हुए विभिन्न धार्मिक आयोजनों में इस्लाम के इतर कई रीति रिवाजों से दूरी बनाए रखी। दूसरी तरफ अगर देखें तो वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति बनाने के पीछे संघ परिवार का एक बड़ा फैक्टर निकलकर सामने आता है।
रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद पर आसीन करने का मोदी का फैसला जातिगत समीकरणों के आधार पर तो लिया ही गया है लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण आडवाणी का चुप रहना भविष्य में राष्ट्रपति पद का बड़ी कार्रवाई के लिए इस्तेमाल किए जाने का संकेत देता है। किसी साधारण से राजनेता को राष्ट्रपति बनाना और आडवाणी को दरकिनार करना भारतीय जनता पार्टी और मोदी का कोई बड़ा विजन इसके अंदर छिपा बैठा है।
भाजपा के सत्ता पक्ष में आने के बाद बार-बार राज्यसभा का पारित होना हंगामे को बढ़ावा देना कांग्रेस की चाल रही है। लेकिन सभापति के रूप में हामिद अंसारी का लगभग गैर-जिम्मेदाराना तौर तरीकों से उपराष्ट्रपति पद की गरिमा को ठेस पहुंची है वह वेंकैया नायडू के ऊपर सदन को चलाने के साथ साथ पिछले 10 सालों में लगभग गुमनाम से पड़े पद की गरिमा बढ़ाने की जिम्मेदारी होगी। सदन को चलाना वाकई मुश्किल होगा क्योंकि वामपंथी और कांग्रेस सदस्यों को संभाल पाना तब तक संभव नही होगा जब तक कि सभापति की तरफ से उद्दंड सांसदों पर कड़ा रुख न अपनाया जाए।
Image result for rajyasabha imageचोर दरवाजे से सांसद बंद कराने वाले नेताओं पर राज्यसभा जवाबदेही तय करें और उसे चुनाव आयोग के साथ मिलकर स्वच्छ व साफ छवि वाले नेताओं को लाने का नियम बनाना होगा। अरबपति, कारोबारी और चोर लुटेरे को संसद का अंग बनने से रोकना होगा। भारतीय जनता पार्टी कि लोकतंत्र पर भरोसे की बुनियाद से हम यह अपेक्षा कर सकते हैं की वह राज्यसभा सदस्यों के चुनावी पारदर्शिता को बढ़ावा दे और उनकी जवाबदेही तय करें।
उम्मीद है वैंकैया नायडू जैसे सूझबूझ से भरे नेता का उपराष्ट्रपति बनना न केवल लोकतंत्र के लिए सार्थक होगा बल्कि जनता के समय और पैसे की बर्बादी रोकने में उन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देना होगा...

अश्वनी ©