"जब तक रहेगा समोसे में
आलू तब तक रहेगा बिहार में लालू"
जैसे जुमलों से बिहार की जनता में।जातिवादी मूर्खता ने गहरी पैठ जमाई थी। लालू हमेशा से अहंकारी रहे हैं, उनका अहंकार उनके रोम-रोम से टपकता नजर आता था। पार्टी कार्यकर्ताओं या मीडिया से उनका व्यवहार कभी शोभनीय नहीं रहा। गरीबों के मसीहा कह जाने वाले लालू सत्ता में बैठकर जातिवाद की गहरी जड़ें बिहार में खोदते रहे। सत्ता का नशा उन्हें इतना मदहोश कर गया कि वह अपने घर तक को खोदने से परहेज नहीं कर पाए। चारा घोटाले के बाद भी बिहार का जनादेश लालू को अनदेखा नहीं कर सका। ये सिर्फ और सिर्फ लालू के जातिवादी राजनीति का प्रभाव था।
यादवों में लालू का नशा सिर चढ़कर बोलता था।
लाठी और भैंस वाली कहावतों से लालू अपने समर्थकों और जाति के लोगों को कानून का पालन ना करने के लिए अप्रत्यक्ष रुप से उसकाते रहते थे।
जैसे जुमलों से बिहार की जनता में।जातिवादी मूर्खता ने गहरी पैठ जमाई थी। लालू हमेशा से अहंकारी रहे हैं, उनका अहंकार उनके रोम-रोम से टपकता नजर आता था। पार्टी कार्यकर्ताओं या मीडिया से उनका व्यवहार कभी शोभनीय नहीं रहा। गरीबों के मसीहा कह जाने वाले लालू सत्ता में बैठकर जातिवाद की गहरी जड़ें बिहार में खोदते रहे। सत्ता का नशा उन्हें इतना मदहोश कर गया कि वह अपने घर तक को खोदने से परहेज नहीं कर पाए। चारा घोटाले के बाद भी बिहार का जनादेश लालू को अनदेखा नहीं कर सका। ये सिर्फ और सिर्फ लालू के जातिवादी राजनीति का प्रभाव था।
यादवों में लालू का नशा सिर चढ़कर बोलता था।
लाठी और भैंस वाली कहावतों से लालू अपने समर्थकों और जाति के लोगों को कानून का पालन ना करने के लिए अप्रत्यक्ष रुप से उसकाते रहते थे।
समय
बदला बिहार की जनता जागरूक हुई और उसने लालू की सत्ता को उखाड़ फेंका। नीतीश कुमार
विकास पुरुष साबित हुए। बिहार के विकास के लिए उनके प्रयासों के बदौलत उन्हें
दोबारा सत्ता हासिल मिली और लालू कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आए।
बाद में एक बार फिर बीजेपी से मतभेद के कारणों के चलते धुर विरोधी नीतीश और लालू एक साथ आए, दोनों ने सरकार बनाई लेकिन लालू ने इस बीच अपने दोनों लाल को सत्ता में लैंड करा दिया। इधर अपनी लाडली को राज्यसभा की सदस्यता भी दिलवा दी।
लेकिन लालू प्रसाद यादव ने अपने मुख्यमंत्री काल में और बाद में रेल मंत्री रहते हुए जितने भी घोटाले और भ्रष्टाचार किए वह देश के माथे पर निश्चित रूप से एक राजनीतिक कलंक के रूप में साबित होंगे।
बाद में एक बार फिर बीजेपी से मतभेद के कारणों के चलते धुर विरोधी नीतीश और लालू एक साथ आए, दोनों ने सरकार बनाई लेकिन लालू ने इस बीच अपने दोनों लाल को सत्ता में लैंड करा दिया। इधर अपनी लाडली को राज्यसभा की सदस्यता भी दिलवा दी।
लेकिन लालू प्रसाद यादव ने अपने मुख्यमंत्री काल में और बाद में रेल मंत्री रहते हुए जितने भी घोटाले और भ्रष्टाचार किए वह देश के माथे पर निश्चित रूप से एक राजनीतिक कलंक के रूप में साबित होंगे।
पारिवारिक
हित के लिए देश और राज्य को लूटना लालू के लिए बहुत आसान रहा है फिर भी भ्रष्टाचार
के सहारे वंशवाद के लिए राजनीतिक जमीन की तलाश में इस बार उन्होंने गहरी मात खाई
है।
भ्रष्टाचार, अहंकार, बड़बोलापन यह सब लालू की पहचान है। बदतमीजी की मिसाल लालू को माना जा सकता है। वोटों की राजनीति चमकाने के चक्कर में पार्टी के कार्यकर्ताओं की घटिया राजनीति महागठबंधन को टूटने का अहम कारण है।
भ्रष्टाचार, अहंकार, बड़बोलापन यह सब लालू की पहचान है। बदतमीजी की मिसाल लालू को माना जा सकता है। वोटों की राजनीति चमकाने के चक्कर में पार्टी के कार्यकर्ताओं की घटिया राजनीति महागठबंधन को टूटने का अहम कारण है।
ऐसा
नहीं है कि जातिवाद की मूर्खता बिहार में खत्म हो गई ! अभी भी ग्रामीण इलाकों के
यादव परिवारों मैं लालू का जलवा बरकरार है! जातिवादी मूर्खता के जीते जागते उदाहरण
लाठी और मूछ वाले ग्रामीण मजदूर अभी भी मिल जाएंगे जो लालू विरोध की बात सुनते ही
लाठी पटकने में तनिक भी देर नहीं करेंगे। इसलिए यह समझना कि बिहार राजनीतिक रुप से
परिपक्व हो गया है यह शायद विश्लेषकों की भूल है। लालू के राजनीतिक अंदाज में कोई
परिवर्तन नहीं आने वाला, क्योंकि उनका अहंकार उनके
रोम-रोम से टपकता है चाहे जमीन चली जाए या उनकी अकूत संपत्ति या सारा परिवार जेल
की सैर करे वह बदलने वाले नहीं हैं।
भ्रष्टाचार का लत जिस इंसान को लग जाए वह तब तक नहीं बदल सकता जब तक उसका अस्तित्व समाप्त ना हो जाए!
फिलहाल लालू की मौजूदा स्थिति यही बयां करती है...
✍ अश्वनी ©
No comments:
Post a Comment