अमेरिका
द्वारा पाकिस्तान को आतंकी समर्थक देशों की सूची में डालना अमेरिकी पूंजीवादी
तरक्की के लिए भारत को रिझाने की कोशिश मात्र है। जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा से लेकर ट्रंप प्रशासन, उनकी खुफिया एजेंसियां और अफगानिस्तान में जंग लड़ रहे
उनके सैनिकों ने पहले भी पाकिस्तान को आतंकी पनाहगार देश माना है, और समय-समय पर पाकिस्तान के लिए अपने फायदे के हिसाब से
आतंकवाद की परिभाषा में हेरफेर करता आया है।
नरेंद्र
मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच जो जुगलबंदी दिखी उसके परिणाम के रूप में पाकिस्तान
को आतंकवादियों के मददगार देशों की सूची में डालना एक रणनीति का हिस्सा है।
पाकिस्तान में बैठे हैं नेताओं, मौलानाओं या इस्लाम के
लड़कों के ऊपर अमेरिकी फैसले का कोई शिकन नहीं दिखा। ताल ठोक कर पहले भी कहते रहे
हैं कि हम कश्मीर में लड़ रहे हैं और लड़ते रहेंगे। कश्मीर के बहाने पाकिस्तान में
खुली आतंकी फैक्ट्री दुनिया की किसी देशों से नहीं छुपी फिर भी भारत के खिलाफ
पाकिस्तान की धरती से सीधे इस अभियान को रोकने टोकने कभी कोई अमेरिका या पश्चिमी
देश नहीं आए और ना आएंगे।
वैश्विक
आतंकवाद के क्षेत्र में जब अमेरिका और पश्चिमी देशों ने इराक और सीरिया में पनप
रहे आईएसआईएस के विरुद्ध जंग छेड़ी लेकिन उस एलियंस में भारत के शामिल होने के
मुद्दे पर उसकी चुप्पी 20 करोड़ मुसलमानों के
नाराज होने के डर की वजह से है। जब इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में सऊदी अरब
के बमवर्षक विमान और उसकी सैनिक ताकत हिस्सा ले रही है तो भारत जैसे आतंकवाद से
लहूलुहान देश को इस मुद्दे पर आंतरिक राजनीति से हटकर सोचना होगा। याद रखें कि
हमारे दोनों दुश्मनों चीन और पाकिस्तान से लड़ने ना तो अमेरिका आएगा न इजराईल!
हमें इन दोनों से अपने दम पर मुकाबला करना होगा।
अमेरिका
से साझेदारी और भरोसा बनाने के लिए हमें उसकी चाल का मोहरा बनना होगा ताकि वो चीन
की बढ़ती ताकत को भारत का इस्तेमाल करके नियंत्रित कर सके। हिंद महासागर, दक्षिण चीन सागर और पड़ोसी देशों पर चीन की बढ़ती
दादागिरी पर अंकुश लगाने के लिए भारत को भी अमेरिका की जरूरत है जो तकनीक और हवाई
ताकतों के बल पर उसके मनमानेपन से निपटने का एक बेहतर सहयोगी हो सकता है।
एशिया क्षेत्र में अमेरिका की घटती लोकप्रियता के पीछे चीन है जो उसे हर मोर्चे पर धमकाने के अंदाज से लगातार भीड़ रहा है। भारत के साथ चीन की टकराव की ताजा स्थिति में अमेरिका की सक्रियता और रूस की तटस्थता इस बात का संकेत है कि रूस अब भारत को पुराने सोवियत संघ का साझीदार नहीं मान रहा जो गुट निरपेक्ष होने के बावजूद भी गाहे-बगाहे या आंतरिक तौर पर सोवियत का समर्थक रहा है और अमेरिका का धुर विरोधी।
भारत
का अमेरिका के प्रति झुकाव चीन और पाकिस्तान के बदौलत है। दोनों से निपटने के लिए
हमें अमेरिका के सहयोग की जरूरत होगी जिसे वह व्यापार के तौर पर बिना फायदे के मदद
तो कर नहीं सकता। जिस तरह अमेरिका की नजरें चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था और उसकी
उभरती महाशक्ति की छवि बिगाड़ने में लगी है उसी तरह वह कश्मीर मुद्दे के बल पर
पाकिस्तान को मोहरा बनाकर भारत का फायदा उठाना चाहती है। सबको पता है कि अमेरिका
पाकिस्तान को पहले भी शह देता आया है और अभी दे रहा है। ताकि वह भारतीय बाजार का
इस्तेमाल अपने सैन्य उपकरणों तथा पुरानी तकनीकों का व्यापार कर सके।
इसलिए यह फालतू की उम्मीद लगाना मूर्खता होगी कि वह आतंकी पनाहगारों की लिस्ट में पाकिस्तान का नाम डाल कर भारत की मदद कर रहा है और वह भारत के लिए इस्तेमाल होने वाले आतंक का सफाया करने को प्रतिबद्ध है! वह ना तो सीरिया इराक की तरह पाकिस्तान में फल फूल रहे आतंकी ठिकानों पर कार्यवाहियां करेगा और ना ही सीधे-सीधे आतंकवादियों तक पहुंचने वाले पाकिस्तानी फंडिंग पर रोक लगाएगा।
इसलिए यह फालतू की उम्मीद लगाना मूर्खता होगी कि वह आतंकी पनाहगारों की लिस्ट में पाकिस्तान का नाम डाल कर भारत की मदद कर रहा है और वह भारत के लिए इस्तेमाल होने वाले आतंक का सफाया करने को प्रतिबद्ध है! वह ना तो सीरिया इराक की तरह पाकिस्तान में फल फूल रहे आतंकी ठिकानों पर कार्यवाहियां करेगा और ना ही सीधे-सीधे आतंकवादियों तक पहुंचने वाले पाकिस्तानी फंडिंग पर रोक लगाएगा।
उसे
अपने सामान बेचना भारत आना है सैन्य सामान का खरीददार भारत से बड़ा कोई नहीं इसलिए
वह भारतीय प्रधानमंत्री के आगे पीछे चलने को मजबूर है।
इस तरह इसका कतई मतलब यह न निकाला जाए अमेरिका भारत की सीमा सुरक्षा व विश्व राजनीति में भागीदार बनाने को उत्सुक है। वह जो कर रहा है अपने फायदे के लिए कर रहा है अमेरिकी गणतंत्र की दुनिया में चल रही धाक को बनाए रखने के लिए कर रहा है।
इस तरह इसका कतई मतलब यह न निकाला जाए अमेरिका भारत की सीमा सुरक्षा व विश्व राजनीति में भागीदार बनाने को उत्सुक है। वह जो कर रहा है अपने फायदे के लिए कर रहा है अमेरिकी गणतंत्र की दुनिया में चल रही धाक को बनाए रखने के लिए कर रहा है।
इसके
लिए उसे किसी देश की संप्रभुता, उसकी आजादी, राजनीतिक,
धार्मिक
और आर्थिक स्वतंत्रता से कोई लेना-देना नहीं! बल्कि जरूरत पड़ने पर उसे नष्ट करने
से भी वह नहीं कतराता!
इसलिए भारत को सावधान रहने की जरूरत है। पाकिस्तान भारत के खिलाफ अमेरिकी मोहरा पहले से है जिसे वह कश्मीर के माध्यम से साजिशों को अंजाम आज भी दे रहा है और चीन के खिलाफ भारत को अपना मोहरा बनाने का लालच उसकी आंखों में दिख रही है।
इसलिए भारत को सावधान रहने की जरूरत है। पाकिस्तान भारत के खिलाफ अमेरिकी मोहरा पहले से है जिसे वह कश्मीर के माध्यम से साजिशों को अंजाम आज भी दे रहा है और चीन के खिलाफ भारत को अपना मोहरा बनाने का लालच उसकी आंखों में दिख रही है।
फिर भी हमें भरोसा है यह भारत की सरकार कूटनीति की चालो में माहिर खिलाड़ी है और उसे उसी के अंदाज में पटखनी देना भी बखूबी जानती है...
✍ अश्वनी ©
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