09 June 2022

#Infrastructure

बिहार की लाइफ़लाइन पुनः जुड़ गयी है.. 1742 करोड़ की परियोजना से उत्तर बिहार को दक्षिण बिहार में गाड़ियाँ फिर से फ़र्राटे भरने लगी ! महात्मा गांधी सेतु का लगभग फिर से दोनों लेन का पुनर्निर्माण किया गया है ! जाम का पर्याय बन चुके इस जर्जर पुल से लाखों गाड़ियाँ और आम पब्लिक हाँफती हुई और दस दस घंटे तक रेंगते पार होने की आदि हो चुकी थी !

केंद्र और गडकरी की ये सौग़ात बिहार की जनता को रोड इंफ़्रास्ट्रक्चर में एक बेहतरीन तोहफ़ा है ! जब भी अब पुल ख़ाली मिलेगा उन्हें करोड़ों लोगों की दुआएँ मिलने वाली है..


रेल और रोड दो ऐसे माध्यम हैं की जिस देश का इंफ़्रा इस मामले में अव्वल रहेगा वो विकास की पटरी पर तेज दौड़ने के काबिल है !

इसके आर्थिक मायने ज़बरदस्त होते हैं.. आसपास के इलाक़ों की जीडीपी में ज़बरदस्त उछाल होती है !

लाखों लोगों की समय की बचत होगी, व्यापारियों को समान वक्त पर डिलिवर होगा, स्मूथ कॉनेटिविटी के कारण माल ढुलाई सस्ती होती है..

किसानों की पैदावार का मंडी में आवक बढ़ती है, जहां दस घंटे जाम में फँसने के डर से औने पौने दाम पर लोकल बेचने की मजबूरी होती थी वहाँ फ़र्राटे से बड़ी मंडी में माल बिकेगी !

नतीजा मार्केट में कॉम्पटिशन बढ़ता है और दलालों की मनॉपली टूटती है तो फल सब्ज़ी आदि सस्ती होने से आम पब्लिक की मौज है.. क्वालिटी में भी काफ़ी ऑप्शन मिल जाते हैं !

इसी तरह सर्विसमैन, लेबर-कारीगर या दिहाड़ी जो जाम के डर से रोज घर आ जा नहीं सकता और शहर में रूम रेंट, बिजली भरने में अच्छी ख़ासी कमाई गँवा देता है उनकी चाँदी होने वाली है.. नतीजा आमदनी में इज़ाफ़ा देखने को मिलता है !

मतलब रेल और रोड इंफ़्रा गरीब मध्यम वर्ग की लाइफ़लाइन है ! 

बिहार में सड़क का नेटवर्क अब तगड़ा हो चला है ! लगभग पूरे देश में सड़कों का जाल बुना जा रहा है ! राष्ट्र की उन्नति का यह प्लेटफ़ॉर्म अपनी इकॉनमी की ताक़त बनेगा !

शहरों के बीच कम होते सफ़र के घंटों से राज्य पर काफ़ी अच्छा असर होना तय है !

इस ऐतिहासिक सेतु का पुनर्निर्माण करने के लिए केंद्र और सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय का दिल से साधुवाद.. ❤️


जातीय जनगणना

बिहार की राजनीति में जातिवाद ज़िंदा रखने के लिए फिर से एक नींव खोदी जा रही है ! सरकार और विपक्ष दोनों की आम सहमति से अगले कई दशक तक फिर से बिहार में जाति व्यवस्था का नंगा नाच की तैयारी है !

वर्तमान में भारत की सामाजिक स्थिति धीरे धीरे बेहतर हो चली है, दुनिया मंगल और चाँद पर उतरने की तैयारियों में व्यस्त है.. टेक्नॉलजी 6G पर रीसर्च कर रही है.. दुनिया के बाज़ार पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं और यहाँ बिहार में… जाति गिना जा रहा..


पूर्व में जाति आधारित जनगणना करने का उद्देश्य होता था की उससे किसी दबी कुचली और संख्याबल के आधार पर जाति को समाज में उचित प्रतिनिधित्व मिले.. उनके लिए जनसंख्या के आधार पर सरकारें योजनाएँ बनाती थी और उसे लागू करके के पक्ष में तर्क दिया करती थी !

जबकि इस आड़ में राजनीति का कैसा घटिया खेल अबतक खेला गया है ये किसी से नहीं छुपा है ! पार्टियों ने केवल इन आँकड़ों को आधार बनाकर टिकट बँटे, रैलियों में भीड़ जुटाने में भरपूर इस्तेमाल किया । 

बड़ी आबादी वाली जातियाँ सत्ता में अपने लिए योजनाएँ बनवा ली और भरपूर मज़ा लिया.. गठबंधन वाली सरकार में तो आग ही उगलते फिरे हैं !

यूपी और बिहार हमेशा जातिवाद के लिए कुख्यात क्षेत्र रहा है, अभी यूपी ढर्रे से वापस निकल विकास और सुशासन के रास्ते पर निकल पड़ा है जबकि बिहार में स्थिति किसी से छुपी नहीं है ।

जाति से सब तय करना है तो अंतरजातिये विवाह पर डेढ़ लाख रुपए जनता का क्यूँ फूंक रहे ? इसमें तो बिहार के सीमावर्ती ज़िलों में घुसे अवैध घुसपैठिए आराम से सरकारी दस्तावेज़ों का हिस्सा बनेंगे ! गिनती के लिए शिक्षकों के अलावा क्या विकल्प है जिनका स्तर क्या है कौन नहीं जानता ! साढ़े चार लाख की फ़ौज शिक्षा व्यवस्था पर लदकर क्या भविष्य निर्धारित कर रही है ये भी सबको फ़ील हो रहा !


ये तथ्य समझ से परे है की जात की गिनती करके बिहार का क्या विकास कर देंगें !

बिहार ऐसे थोड़ी लेबर इक्स्पॉर्टर का मोर पंख लगाए घुम रहा है.. इंटेलेक्चूअल बुद्धिजीवी की भरमार है जो जात के नाम पर नेताओं के चप्पल सर पर लादकर चलने की क्षमता रखा करते हैं…

कूटनीतिक भौकाल

भारत के अधिकांश पड़ोसी क़र्ज़ और डॉलर के चुंगल में फँस दिवालिया होते जा रहे हैं ऐसी स्थिति में ये कोई साधारण बात नहीं है की भारत का प्रधानमंत्री पूरी मज़बूती से 140 करोड़ नागरिकों की डिमांड और सप्लाई बनाए रखने में सब कुछ झोंक दे रहा ! वह अवैध घुसपैठियों को भी खिला रहा है, नेपाल के लिए साथ खड़ा है, अफगानिस्तान में बर्बर तालिबान सरकार को अनाज भर भर के भेज रहा, श्रीलंका को ताबड़तोड़ मदद कर रहा और अपनी ऑयल की क्रेडिट लाइन भी उसे दे रहा है..


क़रीब 80 से 90 करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन योजना के बल पर भारत एक तरह से अपने नागरिकों के लिए गिरधर की भाँति पर्वत उठाकर वैश्विक भूचाल से बचा रखा है ! देश की फ़ॉरेन पॉलिसी टॉप गियर में लगा है.. एक तरफ़ जी 7 के सारे देश जीभ निकाले भारत के बाज़ार की तरफ़ देख रहे तो उधर चीन को डर है की भारत का बाज़ार उसके हाथ से कहीं निकल न ले !

अमेरिका बिना शर्त 500 बिलियन $ भारत को भेजने पर अड़ा है तो रुस 70% डिस्काउंट रेट पर क्रूड ऑयल भारत को सप्लाई करने लगा है ! 

महंगाई से भारत के लोग त्रस्त हैं लेकिन उससे कहीं अधिक दुनिया के अन्य विकासशील देश परेशान हैं.. उनकी अर्थव्यवस्था डूबने लगी है !

पूरी दुनिया में तेल के दाम बढ़ रहे जबकि भारत टैक्स कम कर तेल के भाव गिरा चरस बो रहा.. गेहूं निर्यात करने के मामले में भारत पूरे स्वैग में है ! 


दुनिया में भारत की लिए ऐसी शानदार स्थिति शायद ही कभी रही हो ! रूस के पक्ष में खड़े रहकर अमेरिका को नियंत्रित कर लेना बच्चों का खेल नहीं है... IMF भारत के ग्रोथ रेट को देख संशय में पड़ा है ! 5 ट्रिल्यन डॉलर इकॉनमी के सपने पर हंसने वाले अब दाँत अंदर किए शांत बैठे हैं !

डर का माहौल है दुनिया के महाशक्तियों में.. चाहे वो दिखाएँ या नहीं लेकिन अंदर से परेशान हैं ! 

भारत का विशाल बाज़ार देख उनकी लार टपक पड़ती है लेकिन उनका गेम इधर सेट नहीं हो पा रहा.. क्योंकि इधर पहले से मास्टर माइंड बैठा है जिसके लिए राष्ट्र ही सब कुछ है.. सब कुछ..

🇮🇳🇮🇳🇮🇳


पुनर्जागरण 🚩

काशी अब भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का केंद्र बनेगा !

ज्ञानवापी ने इन पापियों की जघन्यता को प्रत्यक्ष सामने लाकर रख दिया ! इन्हें कर्मफल मिलना आरम्भ हो चुका है..

अब यह आंदोलन अयोध्या से बीसों गुना अधिक शक्तिशाली और सेन्सिटिव होने वाला है.. 

चूँकि अयोध्या आंदोलन मूलतः उत्तर भारत के लोगों के सेंटिमेंट को प्रभावित करता था ! राम की छवि मनुष्य स्वरूप में है और उनके अवतार में मर्यादा, नीति, शास्त्र सम्मत उपदेश सम्मिलित है ! उनकी सौम्यता के चर्चे आज भी उदाहरण में दिए जाते हैं..

दक्षिण और पूर्वी ख़ासकर ग़ैर हिंदी क्षेत्रों में राम को लेकर उतना सेंटिमेंट नहीं है जितना उत्तर भारत के लोगों में है !


काशी विश्वनाथ के मूल शिवलिंग का मिलना हमारी जीत है ! 

जागृत शिवलिंग के प्रभाव जितने अच्छे होते हैं उससे कहीं अधिक संहारक भी..

तांडव करने वाले महादेव हैं वो.. शिव अनादि काल से पूजनीय हैं..सृष्टि के रचनाकार हैं.. सिंधु सभ्यता में भी पशुपति के रूप में शिव की उपस्थिति के साक्ष्य हैं !

शिव समस्त भारत में एकसमान स्वरूप में स्थापित हैं.. शिव ज्योतिर्लिंगों के रूप में हर जगह मौजूद हैं ! महादेव मृत्यु और संहारक के देवता के तौर में लोगों के दिलों में वास करते हैं.. शिव दर्शन जितना उत्तर में प्रचलित है उससे कई गुना अधिक दक्षिण में एक से बढ़कर एक विशाल शिवालय और द्रविड़ शैली के गगनचुंबी मंदिरों में विराजमान हैं ! दक्षिण भारत में शिव सबसे आराध्य हैं.. 

काशी में बाबा के दर्शन के लिए दक्षिण से बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति देखी जाती है ! ऐसे में एक धार्मिक सेंटिमेंट का प्रसार उधर भी होना तय मानिए..

अतः काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का मामला समूचे भारत की राजनीति पर असर डालेगा यह निश्चित है !


इसलिए इस बार मुक्ति का आह्वावाहन प्रचंड होगा.. 

क्योंकि देश के राजनीति के शिखर पर दो सन्यासी योद्धा पहले से ही तांडव मुद्रा धारण किए बैठे हैं ! 

महादेव के दर्शन मात्र के लिए अमरनाथ और केदारनाथ की दुर्गम यात्रा तक करने वाले भोले भक्त कितने सक्षम होते हैं ये किसी से छुपा नहीं है !


इस्लामिक बर्बरता की गाथा दुनिया तक पहुँचना चाहिए ! दुनिया को इज़राइल की कहानी से कहीं ज़्यादा बर्बर सनातन को मिटाने की साज़िशों की सच्चाई से अवगत कराइए..

हिंदुत्व की सहनशक्ति को सामने लाना चाहिए की हम हज़ार वर्षों तक अपने समय की प्रतीक्षा कर सकते हैं ! 

अपने पीढ़ियों को बताइए कि इन अनपढ़ लुटेरों ने भारत की धार्मिक आज़ादी और लाखों सालों की संस्कृति को नष्ट करके अर्किटेक्चर की कहानियाँ गढ़ी ! 

फिर भी हम आज उसी उत्साह के साथ खड़े हैं..

तुम हज़ार बार तोड़ोगे हम हज़ार बार फिर से पुनर्स्थापित कर सकने वाले शिव के आराधक हैं.. 🚩🚩🚩

ज्ञानवापी

समय का चक्र बराबर चलता है ! प्रकृति शक्तियों का संतुलन रखती है.. उसी बैलेन्स के क्रम में बर्बरतापूर्ण कुचले हुए इतिहास के पन्ने पलटने का चक्र आरम्भ हो चुका है.. 
आज ज्ञानवापी की पवित्र कोठरियाँ खंगाली जा रही है.. खबर देखकर हर सनातनी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान बिखर जा रही है ! यह सब इतना आसान था क्या ? बेहद आश्चर्य का भाव है..
काशी विश्वनाथ कोरिडोर की भव्यता देख हम भी सकते में पड़ गए थे मगर नंदी की बाबा विश्वनाथ की तरफ़ प्रतीक्षारत प्रतिमा अंदर से झकझोड़ दी.. 
बात अगर सिर्फ़ आस्था की होती तो हम कहीं भी मिट्टी से मूर्ति बनाकर पूजने वाले लोग हैं,
लेकिन यह मुद्दा संस्कृतियों को मिटाने की है.. तलवार के बल पर दूसरे की स्वतंत्रता छिन कर उसे मिटाने की कोशिश करने की है !
धर्म की ऐसी पुनर्स्थापना साबित करती है की हम लम्बी रेस के खिलाड़ी हैं.. सैकड़ों सालों तक ढीठ की तरह सब कुछ सह सकते हैं.. अपनी संस्कृतियों के चिरहरण की कहानियाँ अपने दिलों में ज्वलंत रखते हैं !
छिने गए अधिकारों को वापस पाने के लिए हज़ार साल तक अपने वक्त का इंतज़ार कर सकते हैं ! 
परिस्थियों को अपने अनुकूल बन जाने तक इंतज़ार करने की आदत ही हमारी महानता है..

हज़ार बार विध्वंश करोगे हम हज़ार बार उसे फिर से पुनर्स्थापित कर देने का माद्दा रखते हैं ! सोमनाथ से ज़्यादा विध्वंस किसने देखा होगा ? आज तब भी शान से हमारे महादेव विराजमान हैं और उसी वैभवशाली गौरव के साथ धर्म ध्वजा 🚩 शिखर पर लहरा रही है.. 
अयोध्या प्रत्यक्ष प्रमाण है और हम सभी सब कुछ सामने से देखते बड़े हुए.. अयोध्या स्वाभिमान के साथ पुनर्स्थापित हो रही है !
काशी विश्वनाथ कोरिडोर की अलौकिकता देख गर्व से भर उठेंगे !!
कब हुआ ये ? कैसे हुआ ? एक दशक पहले तक इसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी ! सबकुछ अचानक बदल रहा है.. ये बदलाव सत्ता के केंद्र में निहित शक्तियों से नहीं है बल्कि आपसे और हमसे है ! अपनी खंडित शक्तियों को हमने एक जगह एकत्रित करके प्रकाश पुंज बना दिया है.. चँहुओर रामराज्य की माँग सुनाई दे रही है ! एक सन्यासी से जनकल्याण और रामराज्य स्थापित करने का जनादेश का पालन ही तो हम करा रहे हैं.. दूसरे के अधिकारों पर अतिक्रमण को मुक्त करना न्याय देना ही तो है !

आज ज्ञानवापी के तहख़ाने खुले हैं.. आगे समय सब निर्धारित करेगा !
भगवान हर जगह हैं ! लेकिन ये जगह वही रहेगा.. स्वरूप वही रहेगा.. वही वैदिक मंत्र गूंजेगा.. उसी सनातनी की पीढ़ियाँ अपने महादेव का अभिषेक करेगी..
क्योंकि शक्ति के बल पर हमारे मूल्यों को नष्ट करने की उसकी चेष्टा सम्मिलित है… बस इसलिए…
#हर_हर_महादेव 🚩

#बीपीएससी

BPSC पेपर लीक मामले में कुछ भी नया नहीं है ! पेपर पहले भी होते रहा है और सीटें बेची जाती रहीं हैं ! अब थोड़ा टेक्नॉलजी फ़ास्ट है whatsapp, टेलीग्राम से चंद सेकंड में सबकुछ वायरल हो जा रहा इसलिए बवाल मच रहा..
पैसे किसे अच्छे नहीं लगते ? राज्य लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक संस्था है ! इस आयोग पर राज्य के अहम पदों पर काम करने वाले योग्य अधिकारियों की चयन की ज़िम्मेदारी होती है, वही राज्य की नीतियों को लागू कराने का माध्यम बनते हैं ! 
बिहार में परीक्षा घोटाले का पुराना इतिहास रहा है.. तो बीपीएससी क्यों पीछे रहे ! 
जब हज़ारों सेंटर बनेंगे.. दंडाधिकारी बनाकर भ्रष्ट निकम्मों के हवाले पेपर कर दिया तो लीक कैसे नहीं होंगे !
देश के तमाम परीक्षा एजेन्सी अपने इग्ज़ाम दनादन ऑनलाइन मोड में लेते जा रहे हैं वहाँ एक संवैधानिक आयोग वही पुराने आदिम काल वाले तरीक़ों से चलने की ऐंठ में दिख रहा.. 
एक तो reservation है चलिए लोगों की आदत हो गयी की आप सामाजिक न्याय कर रहे, फिर महिलाओं को सीधे आरक्षण दिया वह भी सह लिया.. अब तो सीटें बिकने लगी है !
इसी BPSC के सदस्य पच्चीस लाख में डीएसपी बनाते फँसे लेकिन किसने आज तक कोई कार्रवाई तक नहीं होने दी ?

इसके प्रश्न का स्तर कभी उठा कर देखिए.. पीटी में ये क्वेस्चन पेपर तक सेट नहीं कर पा रहे थे तो पाँच ऑप्शन छात्रों पर थोप दिया.. बिना किसी अनालिसिस के अपनी नाकामी को ढँका है इस आयोग ने ! 
मेंस के सवाल में हर बार वही घिसी पिटी और तोता रटंत टॉपिक ! सिलेबस में कोई innovation नहीं.. उर्दू मैथली अरबी पढ़कर आए लोगों को प्रशासनिक पदों पर बैठाए जाने की व्यवस्था है..
योग्यता पैमाना नहीं है बस मार्क्स मैटर है..
आपको एक कल्याणकारी राज्य के संचालन के लिए योग्य और नैतिक अफ़सरों की ज़रूरत है या परीक्षा में भाषा धर्म की राजनीति की ??

क्षेत्रीय दलों को दरअसल चुनावी फ़ंडिंग बहुत मुश्किल से मिलती है। केंद्र से मिले प्रोजेक्ट में सीएजी, utilisation आदि का लफड़ा है तो बात ज़्यादा बन नहीं पाती.. तो सबसे सॉफ़्ट टार्गेट है ट्रान्स्फ़र पोस्टिंग और नौकरियों में धांधली !
ये दोनों इतने सेफ़ सिस्टम हैं की राजनीतिक विवाद, क़ानूनी पचड़े, जाँच आदि की सम्भावना शून्य होती है ! 
हर राज्य की ये कहानी है.. पीसीएस की संरचना सही कैसे मानी जा सकती जब उसके अध्यक्ष व सदस्य पदों पर राज्य सरकार मनपसंद नियुक्तियाँ करती है ! 
क़ानून व्यवस्था सम्भालने वाले जब ऐसे स्तरहीन परीक्षा प्रणाली से चयनित होकर जाएँगे तो आम मुक़दर्शक जनता से अनंत काल तक लूट होती रहेगी.. हमें अयोग्य अधिकारियों से जलील होते रहने की आदत पाल लेनी चाहिए क्योंकि ये फ़ंगस के तरह लगातार सिस्टम के अंदर भर चुके हैं ! सौ बार इग्ज़ाम लो ये डंके की चोट पर सौ बार लीक करेंगे..
क्योंकि पैसा बहुत ताकतवर चीज़ है…..

श्रम स्पेशल

औधोगिक क्रांति के बाद से भारत का सबसे ज्वलंत शब्द.. फिर भी इसकी क़ीमत आज तक निर्धारित नहीं हो सकी.. इस अकेले शब्द ने दुनिया भर में न जाने कितने अर्थव्यवस्थाओं को उठाया और गिराया है !

एक मज़दूर लाख बूँद पसीना टपका के देश में इंफ़्रास्ट्रक्चर का जाल भी बुन दे तो उसके श्रम का मूल्य नगण्य है। इतना की बस उसके परिवार का पेट भर सके.. तन पर बमुश्किल नए कपड़े चढ़ सके !

कहीं एयर कंडीशन कमरे में बैठ कोई दिमाग़ के बिलियंस न्यूरोन का एक रत्ती भर हिस्सा को श्रम पर लगा दे, तो यही दुनिया उसका बहुत बड़ा मूल्य चुकाती है.. इतना की इस दुनिया जहाँ की सारी अय्याशी उसके क़दमों में आ जाती है. इतना की हज़ार पसीने चुलाने वाले श्रमिकों का पेट शांत कर सके.
दोनों मामले में श्रम ही हो रहा है लेकिन आउटपुट अलग अलग है. अर्थव्यवस्था की पटरी मजदूर हैं और इलीट क्लास वाले इंजन.. देश की इकॉनमी मजदूर के पसीने से सिंचित हो रही है और सुप्प्लिमेंट्स एलिट क्लास से मिल रहा. दोनों का महत्व देश के विकास के लिए है..


=
भारत में श्रम का महत्व कम रहने के कारणों में आर्थिक नीति के साथ साथ नेतागिरी ने बेड़ा गर्क कर दिया.
आज भी हालात ज्यादा नहीं बदले हैं, महंगाई बढ़ी है तो पैसे का बाजार में फ्लो रहना ही है तो गरीब भी थोड़ा बहुत बेसिक जरूरतें पूरी कर ले रहा है !
लेकिन श्रम और पूंजी का टकराव बरकरार है.
किसी मजदूर से बात कीजिये तो लगेगा दुनिया का सारा शोषण सुनियोजित तौर पर उनका मालिक कर रहा है. मिनिमम वेज बढ़ाने, बोनस देने, PF/ईएसआई के लिए शिकायत करेगा. काम के घंटे और कम करने की सलाह सुनाएगा.. मालिक पर कार्रवाई न करने के कारण सरकार को कोसेगा.
मालिक आज भी मजदूर से ज्यादा सरकारी विभागों और टैक्सेशन कंप्लायंस मैनेज करने में पड़ा है. वो अच्छे HR को बहाल करते हैं ताकि कम से कम रूपये में सरकारी लायबिलिटी चूका दें या चोरी कर लें ! मजदूरों से कम पैसे में कितना अधिक प्रोडक्शन करा लें उसे इसकी चिंता अधिक है. सरकार लेबर लॉ अनुपालन खत्म कर दे बाकि मजदूरों के स्वास्थ्य और भविष्य की चिंता उसे क्यों करनी है !


श्रम मजदूर का और मुनाफा मालिक का.. यह हमेशा से वाम नेताओं को कचोटता है. कई फैक्टरियां इसी कारण बंद हुई..
मजदूरों के दिमाग में यह बात सीधे फिट कर जाता है की उसके श्रम से मालिक मुनाफा कमा कर मर्सिडीज से घूम रहा. खुद बड़ी बड़ी कोठियां खरीद रहा और हमें बैलों की तरह फैक्टरियों में जोत रहा.. नतीजा यूनियनबाजी पनपती है और मालिक प्लांट बंद कर आराम से दूसरे शहर में नया बिज़नेस खोल लेता है.
फिर बैठिये शहर के चौराहे पर अपना श्रम बेचने को...
भयावह हकीकत है यह... श्रम शक्ति का कीमत और महत्व दोनों कम होने के बहुत कारक हैं.
सरकारी कार्यालयों के रईस लाट साहब खुद को देश का पालनहार से कम नहीं समझते. ये वर्ग सबसे सॉफ्ट श्रमिक के केटेगरी में आता है। निजी कारख़ानों के मज़दूरों की जो जो अपेक्षाएँ होती हैं उससे कई गुना ज़्यादा सरकार उन्हें वास्तविक में मुहैया कराती है लेकिन आउट्पुट माइनस में..
फिर इनके श्रम की क़ीमत लगाने को सरकार निजीकरण कर रही है तो माइक बांधकर कार्यालय के बाहर चिल्ला रहे...


सरकार को दोनों पहिये चलाने हैं इसलिए बैलेंस बनाने की कोशिश आज भी जारी है. समाजवाद और पूंजीवाद के बीच में देश आज भी फंसा हुआ है.. श्रमिक और मालिक के मध्य संयम बना रहे इसके लिए दोनों के डिमांड के आगे सरकार आज भी झुकती है... टैक्स बढाकर आज भी सरकार मजदूरों के लिए नई कल्याणकारी योजनाएं बनाती है..
लेकिन श्रम का मूल्य आपका दिमाग ही तय करता है... इस 7 बिलियन आबादी के जंगल में आपके दिमाग के पास शिकार का स्किल होना चाहिए बस, आपके श्रम की मुंहमांगी कीमत दुनिया चुकायेगी...