09 June 2022

जातीय जनगणना

बिहार की राजनीति में जातिवाद ज़िंदा रखने के लिए फिर से एक नींव खोदी जा रही है ! सरकार और विपक्ष दोनों की आम सहमति से अगले कई दशक तक फिर से बिहार में जाति व्यवस्था का नंगा नाच की तैयारी है !

वर्तमान में भारत की सामाजिक स्थिति धीरे धीरे बेहतर हो चली है, दुनिया मंगल और चाँद पर उतरने की तैयारियों में व्यस्त है.. टेक्नॉलजी 6G पर रीसर्च कर रही है.. दुनिया के बाज़ार पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं और यहाँ बिहार में… जाति गिना जा रहा..


पूर्व में जाति आधारित जनगणना करने का उद्देश्य होता था की उससे किसी दबी कुचली और संख्याबल के आधार पर जाति को समाज में उचित प्रतिनिधित्व मिले.. उनके लिए जनसंख्या के आधार पर सरकारें योजनाएँ बनाती थी और उसे लागू करके के पक्ष में तर्क दिया करती थी !

जबकि इस आड़ में राजनीति का कैसा घटिया खेल अबतक खेला गया है ये किसी से नहीं छुपा है ! पार्टियों ने केवल इन आँकड़ों को आधार बनाकर टिकट बँटे, रैलियों में भीड़ जुटाने में भरपूर इस्तेमाल किया । 

बड़ी आबादी वाली जातियाँ सत्ता में अपने लिए योजनाएँ बनवा ली और भरपूर मज़ा लिया.. गठबंधन वाली सरकार में तो आग ही उगलते फिरे हैं !

यूपी और बिहार हमेशा जातिवाद के लिए कुख्यात क्षेत्र रहा है, अभी यूपी ढर्रे से वापस निकल विकास और सुशासन के रास्ते पर निकल पड़ा है जबकि बिहार में स्थिति किसी से छुपी नहीं है ।

जाति से सब तय करना है तो अंतरजातिये विवाह पर डेढ़ लाख रुपए जनता का क्यूँ फूंक रहे ? इसमें तो बिहार के सीमावर्ती ज़िलों में घुसे अवैध घुसपैठिए आराम से सरकारी दस्तावेज़ों का हिस्सा बनेंगे ! गिनती के लिए शिक्षकों के अलावा क्या विकल्प है जिनका स्तर क्या है कौन नहीं जानता ! साढ़े चार लाख की फ़ौज शिक्षा व्यवस्था पर लदकर क्या भविष्य निर्धारित कर रही है ये भी सबको फ़ील हो रहा !


ये तथ्य समझ से परे है की जात की गिनती करके बिहार का क्या विकास कर देंगें !

बिहार ऐसे थोड़ी लेबर इक्स्पॉर्टर का मोर पंख लगाए घुम रहा है.. इंटेलेक्चूअल बुद्धिजीवी की भरमार है जो जात के नाम पर नेताओं के चप्पल सर पर लादकर चलने की क्षमता रखा करते हैं…

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