देश का मौजूदा राजनीतिक
संकट अपूर्व है। राजनीति आज ऐसे मुकाम पर पहुंच चुकी है, जिसके पास नेतृत्व की
प्रेरणा लेने के लिए महज एक गौरवशाली अतीत है। वर्तमान राजनीतिक पटल पर कोई ऐसी
शख्सियत नही दिखाई देती, जिसमे
भविष्य की तस्वीर नज़र आये। जिसमे गांधी जैसे संकल्प हो, नेहरू जैसे सपने हो, आंबेडकर जैसी दृष्टि हो, इंदिरा गांधी जैसी निर्णय
लेने की क्षमता हो, सरदार
पटेल जैसी अडिगता हो व जेपी जैसा हठ हो। लेकिन हाँ, त्रिशूल-तलवार चमकते व लाठी भांजते नेताओं की जमात
जरूर नज़र आती है। ऐसे में न तो गांधी, नेहरू जैसे अपने पीछे लोगों को चलने के लिए प्रेरित कर सकते है, और न ही उंनके हृदय-सम्राट
बनने का स्वप्न देख सकते हैं।
कमोबेश, आगामी
कुछ महीनों में बिहार विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं। इस मौके पर दैनिक समाचार
पत्र 'हिंदुस्तान' द्वारा 'हमारा MLA कैसा हो' लेखन प्रतियोगिता काफी
सराहनीय है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में छात्रों की रूचि हेतु समय-समय पर ऐसा आयोजन
जरूरी है। अक्सर चुनावों के बाद आम लोगों को अपनी नेताओं के व्यव्हार व उनके
तौर-तरीको से शिकायत हो जाती है। चुनाव पूर्व खुद को 'आम' कहने
वाला व्यक्ति 'ख़ास' बन जाता है। आखिर नेताओं
में वो कौन-कौन से गुण होने चाहिए, जिससे हमारा नेता,
मतदाताओं के दिलों में जगह बना सके! उनके भरोसे पर खड़ा उतर सके।
हमेशा कहा जाता है की, हमारा
नेता(MLA) जनता के
प्रति उत्तरदायी हो। लोगों के सुख-दुख में हमेश साथ खड़ा रहे। अपने क्षेत्र के
जरूरमंदों का ख्याल रखे। अपने तमाम समस्याओं को मजबूती उठाये व उसपर
क्रियान्वयन करे। ये सब बातें तो चुनाव जितने के बाद जनता की अपेक्षाओं की है, पर उससे पहले विधानसभा
क्षेत्र में उम्मीदवारों को जनता की कुछ सवालों का जवाब उन्हें
संतुष्ट करना होगी की क्या वास्तव में वास्तव में अपेक्षाओं पर खड़ा उतरेंगे
भी या नहीं। जब समय बदल है, समाज बदल
रहा है और लोग भी बदल रहें है ,
ऐसे में तो स्वाभाविक है की नेताओं को उनका स्वाभाव, उनका व्यव्हार बदलना ही
होगा। जबावदेह बनने की आदत डालनी ही होगी। जनता को उनसे पूछना चाहिए की वो इस देश
की महिलाओं, दलितों
और आदिवासियों के बारे में क्या है? भय से मुक्ति, जातिवाद, धर्म और साम्प्रदायिकता, रोटी और काम का अधिकार, सुचना का अधिकार और
पारदर्शिता, भ्रष्टाचार, राजनीति अपराधीकरण, विदेशी कंपनीयों का भारत
में दखल एवं वैश्वीकरण आदि के बारे में उम्मीदवारों व नेताओं की अपनी समझ तथा
आचरण क्या है? साथ ही
उनकी राजनितिक पार्टी की विचारधारा क्या है? जनता राजनीतिक दलोँ व उम्मीदवारों से सवाल पूछे की इस देश, समाज और आम आदमी की भलाई के
बारे में वे क्या करेंगे? उनका
अपने चुनाव क्षेत्र के लिए क्या कार्यक्रम है?
जनता ये सोचे की जिस
उम्मीदवार को वह चुन रही है, क्या
वास्तव में वह अगले 5 साल तक
जवाबदेह रह पायेगा! जनता को चाहिए की वह उम्मीदवारों के शपथ पत्रों की जांच करे की
कहीं आपका उम्मीदवार भ्रष्टाचार या आपराधिक पृष्ठभूमि से तो नहीं जुड़ा है। हमें यह
याद रखना होगा की यह मौका 5 साल बाद
मिला है। अतः हमारा एक गलत फैसला,
5 साल बाद आये इस सुनहरे अवसर को खो देगा। शायद इसलिए की चुनाव
लोभ, छल, चालों, दावों और अहंकार से नहीं
जीते जाते, बल्कि
बेहतर नेतृत्व देने से जीते जाते हैं.. .
लेखक - अश्वनी कुमार, पटना जो एक स्वतंत्र टिप्पणीकार
बनना चाहता है।
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