हमारे देश के वर्त्तमान राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक कार्यकलापों में काफी उठा-पटक दौर चल रहा है।
राजनीती के शिखर पर एक ऐसे दल का शासन है, जिसका हर फैसला
सांप्रदायिक एवं भगवाकरण से जोड़कर देखा जाता है। तो दूसरी तरफ समाज
आधुनिकता के भेंडचाल चलता जा रहा रहा है, जो अवश्य ही एक दिन
बड़े संकट का शिकार होगा। कमोबेश, अब हमारे देश के धार्मिक
माहौल पहले जैसे नहीं रहे, फिर भी तो हम निश्चिंत नहीं
बैठ सकते! कुछ दिनों पहले बिहार के जहानाबाद में जमीन विवाद से उपजे
सांप्रदायिक तनाव पुरे शहर में जबरदस्त हिंसा भड़कने का कारण बना। शहर में
कर्फू लग गए और तमाम धार्मिक संगठन अपनी रोटियाँ सेंकने लगा। इलाहबाद शहर
पुलिस की दंगा का मॉक ड्रील हुआ, उसमें उपद्रवियों को भगवा
झंडे लेकर तोड़फोड़ करते दिखाया गया। इसका
क्या मतलब? यानि दंगों में हिन्दू ही
अन्य के मुकाबले अधिक असहिष्णु होते हैं, ऐसा सन्देश समाज को
हिन्दुओं के खिलाफ भड़काने के लिए काफी नहीं है? सब जानते हैं की सपा सरकार का ज्यादा झुकाव किस धर्म के प्रति है।
लेकिन, उस वक्त सारे सेकुलरवादिओं ने रोना-धोना
क्यों मचाया,जब ऐसे ही मॉक ड्रील
में आतंकवादियों को इस्लामी टोपी में दिखाया था? अब जब हिन्दुओं से जुड़े मामले सामने आये तो वे सभी मौन क्यों पड़े हैं? क्यों नहीं CBI जाँच की मांग दुहराते? क्यों नहीं SIT बनाने की बात करते?
मतलब, सब वोट के गणित का खेल है।
वे हमेशा मुसलमानो को डरते फिरते हैं की ये BJP
है, ये कभी तुम्हारा भला नहीं सोचेगी। ये RSS
है, ये तुम्हे यहाँ नहीं रहने देंगे। कभी कोई ये क्यों नहीं कहता की संघ
की अवधारणा को नजदीक से जानो। बीजेपी के मुद्दों को निष्पक्षता से देखो। राम
मंदिर की बात सामने आते ही ये सभी बाबरी की कथा सामने लाते हैं। पर इस्लाम
तो कभी दूसरे के बजा स्थलों पर मस्जिद की बात नहीं स्वीकारता। अनुच्छेद 370, हमेशा से कश्मीर में हिन्दुओं के बसने पर पाबन्दी लगता है।
क्या ये उनलोगों का स्वार्थ नहीं, जो खाते भारत का हैं, पर गाते पाक का हैं। यूनिफार्म सिविल कोड की वकालत किसके लिए
की जाती है? मुस्लिम महिलाओं को समान
अधिकार दिलाने के लिए, जो हमेशा पुरुषों द्वारा
दबी-कुचली जाती रही है। लेकिन नहीं? वे उन्हें अपने हाल पर छोड़
देने की बात करते हैं। पर कैसे? पश्चिम एशिया में इस्लाम के
नाम पर नरसंहार किये जा रहे हों, उनके डर से वहाँ
की सेना और पुलिस भाग खड़ी होती है। वहीं कि सरकार हक्की-बक्की रह जाती है और ये सब तब हो रहा जब सारी अमेरिकी ताकतें पीछे खड़ी
है। क्या ये सब भारत के लिए एक चेतावनी नहीं है? अगर आने वाले संकट से पूर्व तैयारियां कर ली कर ली जाये तो, जो संकट आने वाला है वो भी टर जायेगा।
ऐसे में हम क्यों न अपने मुसलमानों को बेहतर बनाएं?
उनकी
अज्ञानता दूर करें। उन्हें नफरत, जिहाद, की प्रवृर्ति से बचायें!
कुछ वक्त पूर्व यूपी के ही मुरादाबाद में शिवमंदिर से लाउडस्पीकर उतार लिए गए, तमिलनाडु के महालक्ष्मी मंदिर के घंटे को उत्तर दिया गया। सिर्फ इसलिए की उससे मुस्लिमों को परेशानी होती थी, क्योंकि वो मुस्लिम बहुल इलाके थे। लेकिन ऐसा किसी हिन्दू बहुल क्षेत्रों में ऐसा नहीं किया जाता। क्यों? ये जानते हुए भी की पाकिस्तान में हमारे भाइयों पर कैसे-कैसे अत्याचार किये जाते हैं। ऐसा शायद इसलिए की हमारा धर्म सिर्फ शांति और अहिंसा का सन्देश देता है। लेकिन अहिंसा परमो धर्मः , धर्मों हिंसा तदैव चः॥ अहिंसा परम धर्म है पर धर्म के हिंसा उससे भी श्रेष्ठ है।
आज अमेरिका हमें धार्मिक असहिष्णुता का पाठ पढ़ा रहा है। उसकी विभिन्न धर्मों पर नजर रखने वाली एजेंसी कहती है, की भारत में धार्मिक असहिष्णुता बढ़ी है। ये तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटने वाली बात है। जितने धर्म भारत में पैदा हुए और पनपे, क्या दुनिया के किसी देश में हुए? भारत में विभिन्न धर्मों के जितने लोग सर्वोच्य पदों तकक पहुंचे, क्या दुनिया के किसी और देश में पहुंचे? हम सब जानते हैं की अमेरिका ने न जाने कितने देशों की आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक आज़ादियाँ नष्ट कर दी है। हमारे यहाँ किसी को सूली पर नहीं लटकाया जाता। यहाँ किसी को पत्थर मार कर दुनिया से नहीं उठाया जाता। सद्दाम हुसैन और गद्दाफी के खून से किसके हाथ सने हैं?
जो भी हो पर,हिन्दू कभी दूसरे धर्म के प्रति असहिष्णु नहीं हो सकते। क्योंकि अगर हिन्दू असहिष्णु होते तो, मुसलमानों को सड़कों पर नमाज कैसे पढ़ने दिया जाता। दिन में 5 बार ये कैसे कहने दिया जाता की अल्लाह के सिवा कोई दूसरा भगवान नहीं.......
कुछ वक्त पूर्व यूपी के ही मुरादाबाद में शिवमंदिर से लाउडस्पीकर उतार लिए गए, तमिलनाडु के महालक्ष्मी मंदिर के घंटे को उत्तर दिया गया। सिर्फ इसलिए की उससे मुस्लिमों को परेशानी होती थी, क्योंकि वो मुस्लिम बहुल इलाके थे। लेकिन ऐसा किसी हिन्दू बहुल क्षेत्रों में ऐसा नहीं किया जाता। क्यों? ये जानते हुए भी की पाकिस्तान में हमारे भाइयों पर कैसे-कैसे अत्याचार किये जाते हैं। ऐसा शायद इसलिए की हमारा धर्म सिर्फ शांति और अहिंसा का सन्देश देता है। लेकिन अहिंसा परमो धर्मः , धर्मों हिंसा तदैव चः॥ अहिंसा परम धर्म है पर धर्म के हिंसा उससे भी श्रेष्ठ है।
आज अमेरिका हमें धार्मिक असहिष्णुता का पाठ पढ़ा रहा है। उसकी विभिन्न धर्मों पर नजर रखने वाली एजेंसी कहती है, की भारत में धार्मिक असहिष्णुता बढ़ी है। ये तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटने वाली बात है। जितने धर्म भारत में पैदा हुए और पनपे, क्या दुनिया के किसी देश में हुए? भारत में विभिन्न धर्मों के जितने लोग सर्वोच्य पदों तकक पहुंचे, क्या दुनिया के किसी और देश में पहुंचे? हम सब जानते हैं की अमेरिका ने न जाने कितने देशों की आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक आज़ादियाँ नष्ट कर दी है। हमारे यहाँ किसी को सूली पर नहीं लटकाया जाता। यहाँ किसी को पत्थर मार कर दुनिया से नहीं उठाया जाता। सद्दाम हुसैन और गद्दाफी के खून से किसके हाथ सने हैं?
जो भी हो पर,हिन्दू कभी दूसरे धर्म के प्रति असहिष्णु नहीं हो सकते। क्योंकि अगर हिन्दू असहिष्णु होते तो, मुसलमानों को सड़कों पर नमाज कैसे पढ़ने दिया जाता। दिन में 5 बार ये कैसे कहने दिया जाता की अल्लाह के सिवा कोई दूसरा भगवान नहीं.......
लेखक:- अश्वनी कुमार जो एक स्वतंत्र टिप्पणीकार बनना चाहता
है........... आते रहिएगा.....
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