15 September 2022

कर्तव्यपथ

ग़ुलामी का इतिहास अब चुन चुन कर मिटाया जा रहा है. किसी राष्ट्र की राजधानी के लिए ग़ुलामी की यादों से पहचान बना रहना बहुत शर्मनाक विषय है. सल्तनत, मुग़ल फ़िर अंग्रेजों का अत्याचार सहने वाला शहर अब उस यादों से मुक्त होने लगा है. सरकार में जनता ने जिसे प्रचंड बहुमत से बिठाया है वह क़र्ज़ अदा कर रहा है. भारत का सांस्कृतिक, बौद्धिक उत्थान आगे बढ़ चला है.. इस बार राजपथ को मुक्त कर दिया है. नेताजी बोस की भव्य मूर्ति वहाँ स्थापित कर दी जहां किसी ने कल्पना भी न की होगी. 

सैनिकों के सम्मान में वॉर मेमोरीयल बना दिया. देश को नया संसद बनाकर देने ही वाले हैं. उसके अंदर चारों तरफ़ संस्कृत के खुदे श्लोक सैंकड़ों वर्षों तक लोकतंत्र को प्रकाशमान रखेगा. दहाड़ता हुआ शेर संसद के ऊपर स्थापित कर कितनों की जला दी. मंदिर मंदिर व मठों तक में घुम घुम कर सांस्कृतिक विरासत को पुनः जीवंत कर रहे हैं. 

कोई माने या न माने लेकिन देश के हर छोड़ पर, हर मुद्दे पर ग़ज़ब की मोर्चेबंदी है, पब्लिक के सेंटिटिमेंट को टच करने का लाजवाब स्किल है मोदी सरकार के पास. मोदी इवेंट प्लानर के रूप में सबसे सफल राजनेता हैं. सेंटिमेंट से जोड़कर कब थाली-ताली बजवा लेनी है, कब पब्लिक से तिरंगे फहरा लेना है सब में अव्वल हैं. अगला आम चुनाव से जस्ट पहले भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो उठेगा. एक अकेला व्यक्ति देश को छोड़िए पूरी दुनिया के सनातनियों को अयोध्या में रामलला के दर्शन को दौड़े चले आने को प्रेरित करके रख देगा.

वो माहौल फिर से विपक्ष को बहुत भारी पड़ेगा. जनता की एनर्जी को टटोलकर वोट में कैसे बदलना है यही कला उन्हें नरेंद्र मोदी बनाता है. आप लाख मज़ाक़ बनाएँ, महंगाई का गीत गाएँ, बेरोज़गारी की कथा सुनाएँ लेकिन सब कुछ नूट्रल करने की क्षमता इस अकेले व्यक्ति में है. आगे भी हर उस क्षेत्र में ये सरकार हाथ लगाएगी जहां पर जनता के सेंटिमेंट से जुड़े मसले पेंडिंग हो.

ये सरकार जब तक रहेगी वह राष्ट्र की विचारधारा को हर क्षेत्र में ऐसा स्थापित करेगी आनेवाले सैंकड़ों वर्षों में कोई आततायी भी सत्ता में आ जाए तो नष्ट नहीं कर पाएगा.. जनता में चेतना का लगातार संचार जारी है. 

बॉलीवुड घुटने पर ऐसे थोड़ी रेंग रहा है. हर जगह पब्लिक स्वयं ही मोमेंट बनाने पर उतर चुकी है. कोई उसे पुश भी नहीं करता, सब ऑटमैटिक मोड में चलने लगा है और आनंद इस बात का की बिल्कुल सामने व सही रास्ते पर चलने लगा है…

बहिष्कार@बॉलीवुड

लाल सिंह चड्डा के बहिष्कार से लगभग बॉलीवुड अंदर से पूरी तरह हिल गया है. पूरा कैम्पेन स्वयंस्फूर्त था, न किसी राजनीतिक पार्टी का एजेंडा न कोई फ़ंडिंग थी. लोगों ने सिर्फ़ सोशल मीडिया के ज़रिए सभ्य भारतीय समाज में दशकों से ज़हर बोती हुई एक बिगड़ैल और चार-पाँच परिवारों की वर्चस्व वाली इंडस्ट्री को घुटनों पर ला खड़ा किया है ! महीनों तक बायकॉट बॉलीवुड का ट्रेंड में होना गम्भीर संकेत है. 

बॉलीवुड भारतीय सिनेमा का चेहरा था. फ़िल्में हमें जो दिखाती है उसका समाज पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है.. लेकिन इस इंडस्ट्री ने केवल पैसे और वंशवाद को प्राथमिकता दी है. हवाला कारोबार में लिप्त रहने का आरोप तो पहले से है. उलुलज़लुल चोरी की कहानियाँ और गंदगी के अलावे इसने सिर्फ़ अपना एजेंडा समाज पर थोपा है. पब्लिक को बेवक़ूफ़ बनाने वाले कहानियों पर इसने अधिक फ़ोकस रखा. धर्म का मज़ाक़ बनाने से कभी नहीं चुके. 

आज के डिजिटल युग में OTT प्लैट्फ़ॉर्म ने पब्लिक को बता दिया है की कांटेंट का मतलब क्या होता है, सस्पेन्स और थ्रिल के मामले में तुम्हारी सारी इंडस्ट्री कूड़ा है बस ! साउथ की फ़िल्मों ने अपने घोड़े खोल दिए हैं, तुम्हारी चोरी पकड़ी जा रही.. अब वह वक्त है की पब्लिक खुद से प्रशंसा कर दर्शकों को सिनेमा हॉल तक पहुँचाती है.. ट्रेलर डालिए, पब्लिक अपने पारामीटर से कहानी नापेगी. जँची तो ठीक नहीं तो डूबने को तैयार रहिए. 

पंचायत जैसी वेब सिरीज़ धमाल मचा दे रहा. 

RRR देखने हॉल गया, 3D में इतनी बेहतरीन सीनेमेटोग्राफ़ी थी लास्ट के सीन में हर दो मिनट में अपने आप वाउ निकल रहा था.. दर्शकों को अब इस बात से घंटा फ़र्क़ नहीं पड़ रहा की स्टार कौन है, किस हीरो का बेटा है या बेटी है.. फ़िल्म की स्टोरी में अगर दम है, राष्ट्र और धर्म की इज्जत बचा रखी है तो बेशक चलेगी.  कपड़े खोलकर नाचने का ज़माना भी लद गया, क्योंकि दुनिया भर के कांटेंट फ़्री में पड़े हैं युवाओं के लिए. अब उन्हें चाहिए स्टोरी और ज़बरदस्त ऐक्टिंग.. साथ में राष्ट्र की इज्जत..

कोरोना ने एजुकेशन सेक्टर और फ़िल्म इंडस्ट्री को पूरी तरह से पलट कर रख दिया है. क्वालिटी है तो टिकोगे नहीं तो कुत्ता नहीं पूछेगा टाइप का मामला हो गया है. फ़िल्म इंडस्ट्री का घमंड एकदम टूट के बिखर चुका है. उधर वास्तविक डर का माहौल अभी है जिसके सपने उनलोगों को 2016 में आए थे. छमक छमक कर अवार्ड वापस की जा रही थी.  सोशल मीडिया राष्ट्रवादियों के लिए प्रेक्षपाष्त्र/मिसाइल बन चुका है. एक एक गलती खुरेद कर निकाला जा रहा है.. गिड़गिड़ाने पर भी नहीं छोड़ा जा रहा !

वाक़ई डर का माहौल है भाई साहेब.. 

ये सोशल मीडिया वाली पब्लिक तो अपनी सरकार तक को नहीं छोड़ रही.. भोत हार्ड है.. दया नाम की चीज़ भी नहीं है… 

एकदम निर्दयी हो बे…

🤫😃😛

#आज़ादी_का_अमृतकाल @75th

देश की स्वतंत्रता के बाद इन 75 सालों का सफ़र अकल्पनीय रहा है. आज दुनिया में भारत की पहचान बदल रही है. सैन्य शक्ति, सामरिक सुरक्षा या कूटनीति में आज हम दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्रों में खड़े हैं. ये हमारी सफलता है की अमेरिका और रुस दोनों को बैलेन्स कर राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने लायक़ बन पाए हैं. भारत एक राष्ट्र राज्य के तौर पर सबसे सफल लोकतंत्र का संचालन कर रहा है. हमारी सेनाएँ अनुशासित है, सत्ता हस्तांतरण में एक दिन की भी देरी नहीं होती. जबकि भारत के साथ आज़ाद होने वाले अन्य देशों का इतिहास उठाकर देखें, घृणित और रक्तरंजित अतीत है.

भारत अपनी विविध सभ्यताओं को लेकर दुनिया भर में प्रचलित है. तब भी हमारी पहचान एकल है और हम इकॉनमी की दृष्टि से दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार बन चुके हैं. हमारे त्योहार हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, दुनिया को इसी के बदौलत घुटनों पर लाने की महत्वकांक्षा मूर्त रूप लेने लगी है. इन 75 वर्षों में हम आज उस स्थिति में हैं की दुनिया क्राइसिस में गेहूं खाधान्न के लिए भारत की तरफ़ देखती है. जिस राष्ट्र में अन्न की कमी से एक वक्त भूखे सोने का इतिहास रहा है वहाँ आज यह पल हमें गौरवान्वित करता है. 

अंतरिक्ष से लेकर भूगर्भ तक हम सक्षम है. एक परमाणु शक्ति के रूप में हमारी पहचान सबसे ज़िम्मेदार राष्ट्र के रूप में है. भारत दुनिया को लीड करने की दिशा में आगे चल पड़ा है. तिरंगे का सहारा लेकर आज हमारे नागरिक विदेशों से सुरक्षित बाहर निकाल लिए जाते हैं. युद्ध को होल्ड पर डाला जाता है ताकि भारत अपने नागरिकों को वापसी कर सके.. राष्ट्र को मोरल सपोर्ट देने वाले नौजवान बधाई के पात्र हैं. सोशल मीडिया में राष्ट्र भावना को कूट कूट कर भर देना इतना आसान नहीं था. राष्ट्र विरोधी तत्वों में भय का माहौल बना देना युवाओं की सफलता है, यह उनके अपने राष्ट्र गौरव के प्रति समर्पण को प्रतिबिम्बित करता है.. भविष्य को एक सही रास्ते को सींचकर हमें अपनी पीढ़ियों को देना है..

आज़ादी के अमृत काल को एक उत्सव की तरह सारा देश मना रहा है यह भी बड़ी सफलता है. आज भारत के कोने कोने में तिरंगे का गौरव स्वाभिमान से लहरा रहा है, मतलब हम तीन रंगों में अपनी समस्त संस्कृतियों को समेटने में सफल हुए हैं.. अब इन अगले 25 वर्षों यानी आज़ादी के 75 से 100 वर्षों के मध्य भारत की दिशा बड़ी प्रभावी होगी. दुनिया के सबसे सफलतम लोकतंत्र से लेकर इकॉनमिक महाशक्ति बनने तक की गाथा हम अपनी हाथों से लिखेंगें.. राष्ट्रवाद को गहरी धार देंगें.. हम 135 करोड़ नागरिक एक आवाज़ पर किसी भी शत्रु की आर्थिक बहिष्कार करने लायक़ क्षमता बनायेंगे..  भारत की इन 75 वर्षों में ख़ंजर की तरह मिली विभाजन और युद्ध की यादें टीस देती है मगर हम वापस लेंगें की अनुभूति के साथ आगे बढ़ते चलेंगें.. ये यादें, ये टीस हमें पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करती रहनी है.. ये घाव बना रहना चाहिए..

राष्ट्र सर्वप्रथम और सर्वोपरि प्राथमिक हित हो बस…

भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में सभी मित्रों को हार्दिक बधाई… #जय_हिंद 

#BiharPolitics

इस बार की पलटी जेडीयू के लिए आत्मघातक होगी ! नीतीश कुमार तक ही शायद यह पार्टी अस्तित्व में रह पाए.. अगर नहीं तो दर्दनाक अंत से इनकार नहीं किया जाना चाहिए ! राजनीति में कुर्सी से ज़्यादा महत्वपूर्ण, जनता का इमोशन पाना और बरकरार रखना होता है.. 

जनता का इमोशन साथ है तो आज नहीं तो कल जातिवाद का चक्र टूटेगा ही ! आरजेडी को सम्भाले रखना तेजस्वी के वश का नहीं है.. वंशवाद का आरोप सीधे पार्टी में विद्रोह पैदा करेगा ! घोटाले का आरोप जनता ज़्यादा दिन बर्दाश्त नहीं करेगी.. ज़्यादा दूर तक सम्भावना नहीं दिखती..

राज्य में अयोग्य पार्टी लीडरशीप के बल पर बीजेपी बिहार में ज़्यादा दूर नहीं जा पाएगी ! बड़बोलेपन से चुनाव नहीं जीते जाते.. पिछलग्गु की तरह लदे रहना ही आज संकट का कारण है ! सीमांचल का demography अवैध प्रवासियों से एकदम बदल चुका है लेकिन सत्ता में बने रहना इनके लिए ज़्यादा ज़रूरी था.. जातीय जनगणना का कॉन्सेप्ट 21 वीं सदी में लाना और उस पर चुप्पी से स्वीकार करना सत्ता का लालच ही है.. इनके पास कोई चेहरा नहीं है सब अपनी अपनी जाति की राजनीति में लिप्त है, जनता का भरोसा लायक़ एक भी नेता नहीं पैदा कर पाए.. 

वैसे बिहार स्वयं को राजनीति का चाणक्य मानता है.. यही आत्मविश्वास इसकी दुर्दशा का कारण है और आगे भी बने रहने की पूरी सम्भावना है ! टाइटल देखकर नेता चुनने की आदत का अंजाम एंजोय करिये.. यही बिहार की नियति है..

ईडी का जलवा 🔴

देश में अभी ईडी की लहर चल रही है. शहर शहर से रईसों की चीखें निकल रही, गुलाबी गुलाबी नोटों की जैसे झड़ी सी लगी पड़ी है.  बंगाल में भर्ती घोटाले के किंगपिन पार्थ चटर्जी का कुंडली खुला और बुढ़ापे में गर्लफ़्रेंड रखने की फंटेसी से लेकर उसके घर पर कई दिनों तक नोट गिनने की मशीन खड़खड़ाती रही. एक के बाद एक शहर में प्रवर्तन निदेशालय का छापा पड़ना और करोड़ों अरबों की बेनामी सम्पत्ति निकलना महज़ संयोग नहीं माना जा सकता. 

मोदी सरकार ने देश के एक गुमनाम ई॰डी॰ नामक तंत्र को FCRA, FEMA, Prevention of money laundering Act और फ़्यूजिटिव economic अफ़ेंडर ऐक्ट द्वारा इतना शक्तिशाली बना दिया की आज वह हर भ्रष्टाचारी के लिए काल बना घुम रहा है. विजय माल्या, नीरव मोदी या ललित मोदी का हर बात में उदाहरण पेलने वाले लोग एकदम से स्टैंड्बाई मोड में है और उन्हें न कुछ समझ आ रहा और न कुछ भी करने को इस सरकार ने कोई रास्ता भी छोड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने ई॰डी॰ की कार्रवाई को क़ानून के अनुरूप बताकर एक तरह से अंतिम विकल्प भी ख़त्म कर दिया है. फिर लुटियन दिल्ली के सबसे बड़े मैडम और साहेब तक को ई॰डी॰ ने रडार पर ले लिया. 

सीबीआई का जमाना भी लद गया है और Income Tax अपने अधिकारियों कर्मियों के भ्रष्टाचार के कारण प्रासंगिकता खोता जा रहा. वो भौकाल अब ग्राउंड पर नहीं है, जिससे भ्रष्टों में दहशत पैदा हो. सबको लगा कि ये दोनों मैनेज हो गया तो टेन्शन किस बात की.. मगर ई॰डी॰ को इतना शक्तिशाली बनाकर सरकार के लिए डायरेक्ट ऐक्शन करा लेना इतना भी आसान नहीं था जितना अभी दिख रहा. सरकार की अंदर अंदर कितनी प्लानिंग रही होगी, धीमे धीमे एक एक अम्मेंडमेंट बिल लाकर पॉवर देना भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़ी रणनीति का हिस्सा है. क्योंकि लोकपाल और लोकायुक्त का नामोंनिशान ग्राउंड लेवल पर नहीं है और फ़ेल्यर स्थिति में है. 

लोकतंत्र की हत्या का स्यापा स्टार्ट है. पान गुमटी से लेकर चाय के अड्डे और ट्रेन तक में सरकार विरोधी लोग बाई डिफ़ॉल्ट यही गीत गाते मिलेंगे. पूछिए उनको की कोई भी ईमानदार नेता हो जो जनता के समर्पित है और खुद को हरीशचंद्र बताते फिरते हैं उनको ई॰डी॰ से डर की वजह क्या है ? नेताजी काँप क्यूँ रहे ? कुछ नहीं किए तो सामना कीजिए ई॰डी॰ का, अदालत में प्रूफ़ कर दो की एक नम्बर का पैसा है कौन रोक रहा ? किसने कहा था फ़र्ज़ी कम्पनी खोल कर विदेश से चंदा के नाम पर मनी लौंड्रिंग करने को. क्या ज़रूरत थी जनता के टैक्स के पैसों का स्कैम करके बेनामी सम्पत्ति बनाने की. 

नेताजी सांसद विधायक या मंत्री बनते हैं, रहना-खाना घूमना सब मुफ़्त है. लाखों लाख की सैलरी है, बुढ़ापे में पेंशन की परमानेंट व्यवस्था है.. नौकर चाकर है, हवाई जहाज़ से फ़्री में उड़ना है, सरकारी गार्ड है और ले देकर गरीब जनता का कोई फँसा हुआ काम या गली नली- सड़क ही तो बनवाना है..

कहीं कोई पैसे की नौबत आयी तो हज़ार कार्यकर्ता, प्रशासन के लोग खुद की जेब से भरने को आपस में मार कर लेंगे.. फिर भी आदमी लालच में फँसे तो विनाशकाले विपरीत बुद्धि ही कहा जाएगा. सात पुश्त का भविष्य सही करने के चक्कर में अपना वर्तमान भी अंधेरे में मिलेगा, ई॰डी॰ उठाकर ले जा रही तो अच्छा लग रहा होगा. नेतागीरी वैसे भी बहुत नाज़ुक चीज़ है, ज़रा सा आरोप लगा और करियर चौपट.. जनता पास भी फटकने नहीं देगी. 

मोदी-योगी मॉडल सफल क्यों है.. भ्रष्टाचार और लोकतंत्र की हत्या करने जैसे जितने आरोप इन दोनों के ऊपर लगते हैं, अगर बीजेपी का ही कोई अन्य नेता जो विवाहित-बाल बच्चेदार होता तो जनता उबल पड़ती.. एक ही फ़ैक्टर है, जनता को भरोसा सिर्फ़ इसलिए बरकरार है की एक के आगे पीछे कोई नहीं है और दूसरे तो ठहरे महंत ही.. दोनों के प्रति एक ही भावना काम करती है की ये किसके लिए लूटेगा.. यही पर विपक्ष का सारा आरोप न्यूट्रलाइज हो जाता है. दूध, दही, आटा और चावल जैसे प्रोडक्ट पर 5% जीएसटी वसूल लेना आसान नहीं था, दूसरा कोई सरकार में होता तो बग़ैर इकनॉमिक्स और विदेश नीति की परवाह किए जनता सरकार को नोच खाती.. मगर फिर वही भरोसा सब न्यूट्रल कर देता है.

ई॰डी॰ की कार्रवाई को बस एंज़ोय कीजिए, सबका एक वक्त आता है. ग़लत कार्य का अंजाम ग़लत ही होगा.. कोई किसी के घर में या बेड के नीचे 50-100 करोड़ यूँ ही डाल कर नहीं चला जाता..  लोड लेने की ज़रूरत नहीं है यह प्रकृति का न्याय है और यह चलता रहता है…





महान गणतंत्र

आज द्रौपदी मुर्मू के रूप में भारत गणराज्य को उसका 15 वाँ राष्ट्रपति मिला ! 

यह बहुत साधारण बात नहीं है की एक ऐसे समाज से पली बढ़ी महिला ऐसे राष्ट्र के सर्वोच्य पद पर बैठी है जहां आज भी आदिवासी समुदाय वंचन और छुआछूत की शिकार है !

आप इन्हें रबड़ स्टाम्प कहकर अपने बड़बोले और क़ाबिल होने का नग्न परिचय देने के लिए स्वतंत्र हो ! आपको कोई नहीं रोकेगा लेकिन मेरा मानना है कि नरेंद्र मोदी के 3 बेहतरीन कदमों में मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया जाना भी सम्मिलित है ! 370 हटाया और राम मंदिर का शंखनाद किया.. इन मुद्दों पर दिल से जुड़े लोग आज भी दोनों स्टेप के प्रति मोदी के क़र्ज़दार मानते हैं ! 

परंतु मुर्मू को इस गणराज्य के प्रथम नागरिक के तौर पर लाया जाना शानदार एहसास रहा.. जहां संसाधन रहित समाज से न जाने कितने संघर्षों से लड़कर बाहर निकल आज तीनों सेना की सलामी ली वह भी सर्वोच्य कमांडर के रूप में, यही व्यवस्था ही तो भारत को सदियों से महान बनाती चली आ रही है ! आदिवासी समुदाय आज भी हमारे चलन्त समाज से कहीं दूर चार पाँच दशक पूर्व काल की ज़िंदगी व्यतीत कर रहा है ! मेरे और आपकी तरह वह अक्लमंद नहीं मानते.. उनका अपना कल्चर है और सीधा प्रकृति से जुड़ा हुआ सिस्टम है !

आरक्षण उन्हें नहीं मिलता, क्योंकि इधर को उनका हक़ खा जाने वाले उनके समुदाय के नाम वाले गोड़ी चमड़ी के लोग उल्लू की तरह हर डाल पर मिलेगा.. आदिवासी जानते ही घृणा करने वाले लोगों से भरा पड़ा है अपना समाज ! महिला अधिकारों के लिए बिगुल फुंकती नारियाँ स्किन के रंग देख कर मुँह ही बिचकाती है.. ज़ुबान से राष्ट्र प्रेम नहीं टपकता, अपने कर्म मुर्मू टाइप करने पर ही शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है !

बड़ी बड़ी गाड़ियों में चलने वाले, फ़र्राटे से विदेशी भाषा गुर्राने वाले अंधों को इस मामले में देखने के लिए दिव्य दृष्टि चाहिए ! हमारा समाज उन्हें नहीं अपनाता.. हमारा सिस्टम आपके लक्ज़री के लिए उनके जंगल उजाड़ता है और अपने अस्तित्व के लिए लड़ने पर उसे जाहिल घोषित कर के रखा है ! सच्चाई है कि हमारी योजनाएँ उन तक नहीं पहुँचती है.. राशन वाले चोचले शहरी/ग्रामीण निकम्मों और अफ़सरों के पेट पालने को ही ज़्यादा काम आ रही..  बेचारे बोरे भर अनाज के लिए धर्म परिवर्तन के लालच में फँसने के अलावा क्या विकल्प है इनके पास !

मुर्मू की ज़िवटता उन्हें यहाँ तक लेकर आयी है.. महान लोकतंत्र आज साक्षी बना है जिसके सपने कभी ग़ुलाम भारत में देखे ज़ाया करते होंगे ! भारत के सर्वोच्य पद पर उनका कोई प्रतिनिधि आज बैठा है तो हमें अपने सिस्टम पर गर्व करना चाहिए.. पूरे आदिवासी समुदाय को कितना गर्व फ़ील हो रहा होगा ! ख़ासकर आदिवासी महिलाओं जिनका भविष्य तो दूर वर्तमान भी बड़ी कष्टदायक है उनके बीच की एक महिला पूरे 135 करोड़ नागरिकों का चेहरा बन गयी.. 

हर सरकारी कार्यालय में अब उनका फ़ोटो लगेगा ! तीनों सेना के समस्त बेड़ों की सलामी लेने वाली उनके बीच की एक अगर द्रौपदी मुर्मू बनती है तो सच में यह राष्ट्र और भी महान हो गया..

इसका पुरस्कार मिलेगा.. आने वाले वक्त में ये समुदाय क़र्ज़ ज़रूर चुकाएगा क्योंकि गरीब या वंचित कभी मक्कार नहीं होते.. निश्छल होते हैं ! आप एक ख़ुशी दोगे वो दुगनी रिटर्न करने की क्षमता रखता है.. 

अपनी राष्ट्रपति को ढेर सारी शुभकामनाएँ…

CBSE रिज़ल्ट 2022

सीबीएसई अपने मानक के एक दम निम्नतम स्तर पर खड़ा प्रतीत हो रहा है ! कल से कई ऐसी ख़बरें वायरल हो रही है कि एक बच्चा 400 में से 400 मार्क्स लाने के बावजूद भी संतुष्ट नहीं है ! 

बड़ी संख्या में बच्चों के मार्क्स 90 फ़ीसदी से ऊपर आए हैं, जो 99 फ़ीसदी से नीचे रह गए उनके पेरेंट्स ही संतुष्ट नहीं है ! ऐसा मामला सिर्फ़ इस वर्ष के रिज़ल्ट का नहीं है बल्कि पिछले कई वर्षों से CBSE का मार्किंग पैटर्न न जाने किस फ़ोर्मूला पर आधारित है की ऐसे गधे आपके और हमारे बीच लैंड करा दे रहा है ! समूचा तंत्र जो इनके कंट्रोल में कॉन्वेंट्स व अंग्रेज़ी स्कूलों के तौर पर समाज की पूँजी को सोख कर 99% मार्क्स वाले असंतुष्ट बच्चे सींच कर दे रहा है..

चूँकि 10th व 12th बोर्ड कुछ ऑब्जेक्टीव और अधिकतर डिस्क्रिप्टिव पैटर्न पर आधारित होता है.. स्वाभाविक है डिस्क्रिप्टिव की बात काफ़ी टेढ़ी होती है और सबको पता है की आप भले लाइन बाई लाइन तोते की तरह रट भी लें तो भी 70-80 फ़ीसदी लाने में भाग्य का सहारा चाहिए ! आर्ट्स नेचर के जितने भी विषय हैं उनका दायरा बड़ा ही व्यापक होता है और चाहे PH.D किए क्वालिफ़ायड शिक्षक भी क्यों न हों उनके ज्ञान में भी हज़ार कमियाँ निकल जाएगी !

सब कुछ कॉपी जाँचने वाले परीक्षक पर निर्भर करता है और उसे बोर्ड के निर्देश पर कार्य करने की बाध्यता होती है इसलिए अगर कहीं सिस्टम में दोष है तो इसकी ज़िम्मेवारी सीबीएसई को लेनी चाहिए ! नई शिक्षा नीति आने की आड़ में सुधार न करना बस खिलवाड़ है.. सीबीएसई बोरे से भर भर के मार्किंग करने से प्रतिभा ढूँढ कर देना तो छोड़िए, इतने कम उम्र के बच्चों में अवसाद भर कर उसका जीवन रंगहीन बना कर छोड़ देता है.. 

चूँकि इस बोर्ड से पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे मिडल क्लास से आते हैं, प्राइवेट स्कूल द्वारा उनके गार्जीयन पहले ही चूसे जा चुके होते हैं.. बच्चे पर एक अदृश्य मानसिक दबाव बनता है की वे उन खर्च की भरपाई अच्छे मार्क्स लाकर करे ! फिर शुरू होता है डिप्रेशन का खेल..

प्रतियोगिता परीक्षाओं का अनुभव जिसे भी है वह इसका महत्व समझता है ! SSC की परीक्षा में चार ऑप्शन चुनने में नानी याद आ जाएगी.. उधर 70 फ़ीसदी मार्क्स ला दे तो बड़े बड़े केंद्रीय दफ़्तरों में बाबूगिरी के साथ ऐश काटेगा..  यूपीएससी civil सर्विसेज में 50 फ़ीसदी अंक में ही हमें कई टॉपर मिल जाते रहे हैं.. 

ये सब बकवास की बातें है की CBSE या फलाने बोर्ड का अपना सिस्टम है या उनका बड़ा वैज्ञानिक तरीक़ा है बच्चों को जज करने का.. ये सिर्फ़ फ़ेल्यर है अपने तंत्र का ! बोर्ड सिर्फ़ अल्पकालीन वाहवाही बटोरने के सिद्धांत पर काम करता है.. उसके सरकारी grants जनता के टैक्स के पैसों से आते हैं उसे यह नहीं सुझता ! जिसकी ज़िम्मेदारी देश के एजुकेशन सिस्टम मैंटैन करके रखना है और जो समाज को और देश को एक शिक्षित नागरिकों का बेस तैयार कर सौंपे.. उसकी जगह वह तोता रटंत शिक्षित और कुंठित युवाओं की फ़ौज देश में खड़ा कर रहा !

किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र की नींव युवाओं से ही तय होता है !

उसकी ऊर्जा बहुत ज्वलंत होती है अग्नि के समान ! सही  उपयोग हो तो उसकी एनर्जी गतिज ऊर्जा में बदलकर आर्थिकी के पहिए चलाए जा सकते नहीं तो मात्र चिंगारी राख कर देती है ! 

इसलिए एक स्वस्थ्य और दीर्घकालिक उपाय ढूँढे जाने की तत्काल ज़रूरत है.. ऐसा तंत्र बने की उसके ज्ञान से राष्ट्र की उन्नति सुनिश्चित हो.. नए आविष्कार बढ़े.. अपनी प्रखरता से देश का मान सम्मान बढ़ाए.. और यह राष्ट्र अपने शिक्षित युवाओं की ऊर्जा से स्वयं को सींच कर महान बनें..

नहीं तो सड़कों पर नंगे चलने की राइट माँगने वाले, किस ऑफ़ लव और डफली टाइप की प्रजाति यूँ ही पायी जाती रहेंगी…





श्रीलंका क्राइसिस

हैपीनेस इंडेक्स में श्रीलंका भारत से ऊपर था..

ऐसे वोका टाइप उदाहरण देते लोग हर जगह मिलेंगे ! श्रीलंका लूट चुका है, राष्ट्रपति देश छोड़ भाग गया ! दाने दाने को लोग तरस रहे.. कंगाल हो चुका है समूचा देश ! 

जनता राष्ट्रपति आवास पर चढ़ाई कर चुकी है.. भारी विद्रोह की शुरुआत हो गयी है ! न्यूज़ अनालिसिस देखिए ! समझिए उनके सिस्टम को और अपने देश से तुलना करिए..

दुनिया भर की बेवक़ूफ़ी तर्कों से लैस होकर हम उस सरकार को गरियाने से नहीं चूक रहे जो इतने भीषण वैश्विक परिस्थितियों में भी 135 करोड़ लोगों का न सिर्फ़ पेट भर रही है बल्कि सर्फ़, सोडा, स्कोडा लहसुन जैसी सामानों तक की सप्लाई बाज़ार में बनाकर रखी हुई है ! 

भेजे में इकनोमिक्स न घुसे तो गाली सरकार को देंगे.. 

जाहिल लोगों की ऐसी फ़ौज पैदा हो चुकी है की राष्ट्र ज़रा भी ग़लत हाथों में गया तो श्रीलंका जैसी हालत होने से कोई इनकार नहीं कर सकता !

देश की शिक्षा व्यवस्था इतनी पंगु हो गयी है की छात्रों को छोड़िए, मास्टरों और प्रोफ़ेसरों तक को न तो वास्तविकता का ज्ञान है और न उनके पास कोई विज़न है राष्ट्र को लेकर ! अधिकतर लोगों के शब्दों से सिस्टम को लेकर ज़हर टपकेगा..

क्या पढ़ा रहे हैं वो आख़िर हमारे भविष्य को.. 

अपनी डीए कैसे बढ़े और एरीयर कैसे निकले उसमें डूबे मिलेंगे !

राष्ट्र क्या है इसका तंत्र कैसे संचालित है ये तक न पता है 90 फ़ीसदी लोगों को ! मुफ़्तख़ोरी का क्लीयर कॉन्सेप्ट या कीड़ा लगभग हर व्यक्ति / युवा में मिलेगा.. शक है तो डिस्कशन में बैठिए इनलोगों के साथ ! अधिकांश के मन में एक निराशा मिलेगी की सब लूट रहा है, सरकार देश को बर्बाद कर रही.. सब बिक गया.. 

श्रीलंका की हालत ऐसे ही स्वार्थी और बेवक़ूफ़ों के कारण हुई है ! किसी राष्ट्र के L ऐसे नहीं लगते.. 😀




Agenda

दुनिया अराजकता के मुहाने पर खड़ी हो चुकी है ! जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिनजो आबे को गोली मारकर हत्या कर देना साधारण बात नहीं है !

एक सम्पन्न राष्ट्र के पूर्व प्रमुख का इस तरह आसानी से मारा जाना साबित करता है की पानी सर के ऊपर हो चुका है ! जापान अपनी सामरिक सुरक्षा के लिए अमेरिका के ऊपर निर्भर है, वो अमेरिका जिसके यहाँ हर दिन शूटआउट की घटना चलती रहती है ! अश्वेतों पर हिंसा होना वहाँ आम बात माना जाने लगा है ! यूक्रेन को युद्ध में झोंक कर दर्जनों निर्धन राष्ट्रों को भूख से मरने को इसी अमेरिका ने छोड़ दिया.. 

अमेरिका की सत्ता में बाइडन जिस एजेंडे पर चल रहे वह अकेले पूरी दुनिया में आर्थिक और राजनीतिक अराजकता फैला कर रख देगा.. यूक्रेन की बर्बादी समूचे विश्व के लिए चेतावनी है, एक के बाद एक देश दिवालिया होने की कगार पर लगता चला जा रहा है ! लेफ़्ट का एजेंडा अपने रास्ते पर निकल पड़ा है ! ये सिर्फ़ भारत की बात नहीं है बल्कि दुनियाभर में नए नए पैदे हुए कूल लौंडों में विद्रोह की भावना कूट कूट कर भरती जा रही.. 

उनका ब्रेन इस तरह से ट्रेंड हो चुका है की हर वक्त सिस्टम उसे चुभने लगा, अमीरों से प्रॉब्लम होने लगती है.. उसे लगता है सरकार अमीरों से छिन इनलोगों में बाँट सामाजिक न्याय कर दे.. फ़ैक्टरियाँ बिना श्रम के सैलरी देती रहे, मुफ़्तखोरी को अपना अधिकार समझने की ताक़त इनकी ब्रेन में बखूबी मिलेगा ! क्योंकि आम आदमी के दिमाग़ में बिना मेहनत पाने की स्कीम जल्दी घुसती है.. ब्रेन कम मेहनत वाली चीज़ों को ही क्लिक करता है ताकि उसकी एनर्जी कम वेस्ट हो, ये साइंटिफिक है !

मुफ़्त की चीजों से उनकी आँखें चमक उठती है.. लेकिन उसके प्रभावों को बताने में सरकार और यहाँ का समूचा तंत्र फेल है !

सिस्टम में बैठे अधिकांश लोग खुद इस फ़ंगस से ग्रसित हैं.. वहाँ एकदम निराशा का माहौल बना होता है, बस सब कुछ अब बिकने वाला है टाइप का.. 

उनकी प्रेज़ेंटेशन शैली इतनी ज़बरदस्त होती है की बात सीधे श्रोता के सेरेब्रम में स्टोर हो जाता है.. 


भारत वैसे भी अभी संस्थागत सुधारों के दौर से गुजर रहा है ! देश में कई मौर्चों पर सरकार ने ऐसिड डाल कर रखी हुई है.. चूँकि प्रबुद्ध लोगों से लड़ना हमेशा मुश्किल होता है.. कलम की ताक़त तलवार से ज़्यादा घाव देती है यह सच अब फ़ील ज़रूर होता है.. उनका काउंटर अबतक ये नहीं कर पा रहे ! उनके हिसाब से नाचने पर मजबूर हैं..

इसलिए भारत की सुरक्षा के लिहाज़ से दुनिया में घट रही इन घटनाओं पर सरकार को बारीक अनालिसिस करने की ज़रूरत है ! देश को सुरक्षित रखना महंगाई से कहीं अधिक ज़रूरत है.. 


आज़मगढ़ की जीत

भाजपा की आज़मगढ़ और रामपुर सीट पर जीत प्रचंड मानी जाएगी ! 2024 के लिए भाजपा ने अपने घोड़े खोल दिए.. राजनीति में विपक्ष जब लंगड़ा हो तब भी बराबर अटैक जारी रखना धर्म है ! भारत की वर्तमान परिदृश्य पर चीख रहे एजेंडेबाज बस पागल होने बाक़ी रह गए हैं ! फ़ेसबुक देखिए, ट्विटर देखिए हर जगह नैरेटीव चला रखा है लेकिन कुछ काम न आ रहा !

बेरोज़गारी और महंगाई ऐसी चीजें हैं जो सीधे सीधे जनता में एँटीइनकोमबेंसी पैदा कर चुनाव परिणाम आसानी से पलट डालने का माद्दा रखती है.. लेकिन अगर आलोचक बेवक़ूफ़ हो, प्रेज़ेंटेशन का तरीक़ा उसे मालूम न हो तो औंधे मुँह गिरेंगे ही ! योगी की शासन व्यवस्था पर जनता का मुहर है की उन्हें दोनों ऐसी सीटों पर जीत मिली जहां सपने में भी किसी इनके कार्यकर्ता ने जीत नहीं सोचा होगा ! 

महाराज जी अकेले समस्त माफ़ियाराज के ऊपर बुलडोज़र लेकर कूदे पड़े हैं.. उसी पुलिस प्रशासन से क़ानून व्यवस्था क़ायम करा रहे जिनकी गिनती देश के सबसे भ्रष्ट और निक्कमे तंत्र में थी ! समूचे गुंडों में भय का माहौल व्याप्त करके रख दिया.. सरकारी बाबूगिरी सिस्टम में डर दिखता है की कोई शिकायत महाराज जी के पास न जाने पाए ! किसी भी समाज के विकास के लिए सबसे बेसिक ज़रूरत है सुरक्षा.. क़ानून का राज होगा तभी भयमुक्त समाज में नौकरी व्यापार कर सकेंगे और आर्थिक सम्पन्नता आ पाएगी !

इसी का आशीर्वाद जनता ने योगी को दिया है ! 2024 के लिए महफ़िल सेट करने तुरंत भाजपा उतर जाएगी.. कई सारी स्कीम अभी केंद्र की पाइपलाइन में है जो रिमझिम फुहारों की तरह अगले आम चुनाव तक जनता के बीच आती रहेगी और ग्राउंड लेवल के नागरिकों को मज़ा भी आने वाला है ! बची खूची कसर 2024 के जनवरी में राम मंदिर से शंखनाद के बदौलत पूरी जो की जानी है..  रोज़गार के मसले पर देश ऑटमेशन और स्किल आधारित अर्थव्यवस्था की ओर मुड़ चुका है ! सरकारी नौकरियाँ गिनती की ही रहेंगी और वो उसी को प्राप्त होगा जो योग्य होगा ! 

भारत में राजनीति का तरीक़ा बदल रहा है.. हर चीज़ के अपने अपने मानक होते हैं, लेकिन मोदी और योगी इन मानकों को इतनी दूर लेकर स्थापित कर देंगे की शायद किसी सोने के चम्मच लेकर पैदे होने वाले के लिए सत्ता पाना असम्भव सा होगा…