15 September 2022

ईडी का जलवा 🔴

देश में अभी ईडी की लहर चल रही है. शहर शहर से रईसों की चीखें निकल रही, गुलाबी गुलाबी नोटों की जैसे झड़ी सी लगी पड़ी है.  बंगाल में भर्ती घोटाले के किंगपिन पार्थ चटर्जी का कुंडली खुला और बुढ़ापे में गर्लफ़्रेंड रखने की फंटेसी से लेकर उसके घर पर कई दिनों तक नोट गिनने की मशीन खड़खड़ाती रही. एक के बाद एक शहर में प्रवर्तन निदेशालय का छापा पड़ना और करोड़ों अरबों की बेनामी सम्पत्ति निकलना महज़ संयोग नहीं माना जा सकता. 

मोदी सरकार ने देश के एक गुमनाम ई॰डी॰ नामक तंत्र को FCRA, FEMA, Prevention of money laundering Act और फ़्यूजिटिव economic अफ़ेंडर ऐक्ट द्वारा इतना शक्तिशाली बना दिया की आज वह हर भ्रष्टाचारी के लिए काल बना घुम रहा है. विजय माल्या, नीरव मोदी या ललित मोदी का हर बात में उदाहरण पेलने वाले लोग एकदम से स्टैंड्बाई मोड में है और उन्हें न कुछ समझ आ रहा और न कुछ भी करने को इस सरकार ने कोई रास्ता भी छोड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने ई॰डी॰ की कार्रवाई को क़ानून के अनुरूप बताकर एक तरह से अंतिम विकल्प भी ख़त्म कर दिया है. फिर लुटियन दिल्ली के सबसे बड़े मैडम और साहेब तक को ई॰डी॰ ने रडार पर ले लिया. 

सीबीआई का जमाना भी लद गया है और Income Tax अपने अधिकारियों कर्मियों के भ्रष्टाचार के कारण प्रासंगिकता खोता जा रहा. वो भौकाल अब ग्राउंड पर नहीं है, जिससे भ्रष्टों में दहशत पैदा हो. सबको लगा कि ये दोनों मैनेज हो गया तो टेन्शन किस बात की.. मगर ई॰डी॰ को इतना शक्तिशाली बनाकर सरकार के लिए डायरेक्ट ऐक्शन करा लेना इतना भी आसान नहीं था जितना अभी दिख रहा. सरकार की अंदर अंदर कितनी प्लानिंग रही होगी, धीमे धीमे एक एक अम्मेंडमेंट बिल लाकर पॉवर देना भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़ी रणनीति का हिस्सा है. क्योंकि लोकपाल और लोकायुक्त का नामोंनिशान ग्राउंड लेवल पर नहीं है और फ़ेल्यर स्थिति में है. 

लोकतंत्र की हत्या का स्यापा स्टार्ट है. पान गुमटी से लेकर चाय के अड्डे और ट्रेन तक में सरकार विरोधी लोग बाई डिफ़ॉल्ट यही गीत गाते मिलेंगे. पूछिए उनको की कोई भी ईमानदार नेता हो जो जनता के समर्पित है और खुद को हरीशचंद्र बताते फिरते हैं उनको ई॰डी॰ से डर की वजह क्या है ? नेताजी काँप क्यूँ रहे ? कुछ नहीं किए तो सामना कीजिए ई॰डी॰ का, अदालत में प्रूफ़ कर दो की एक नम्बर का पैसा है कौन रोक रहा ? किसने कहा था फ़र्ज़ी कम्पनी खोल कर विदेश से चंदा के नाम पर मनी लौंड्रिंग करने को. क्या ज़रूरत थी जनता के टैक्स के पैसों का स्कैम करके बेनामी सम्पत्ति बनाने की. 

नेताजी सांसद विधायक या मंत्री बनते हैं, रहना-खाना घूमना सब मुफ़्त है. लाखों लाख की सैलरी है, बुढ़ापे में पेंशन की परमानेंट व्यवस्था है.. नौकर चाकर है, हवाई जहाज़ से फ़्री में उड़ना है, सरकारी गार्ड है और ले देकर गरीब जनता का कोई फँसा हुआ काम या गली नली- सड़क ही तो बनवाना है..

कहीं कोई पैसे की नौबत आयी तो हज़ार कार्यकर्ता, प्रशासन के लोग खुद की जेब से भरने को आपस में मार कर लेंगे.. फिर भी आदमी लालच में फँसे तो विनाशकाले विपरीत बुद्धि ही कहा जाएगा. सात पुश्त का भविष्य सही करने के चक्कर में अपना वर्तमान भी अंधेरे में मिलेगा, ई॰डी॰ उठाकर ले जा रही तो अच्छा लग रहा होगा. नेतागीरी वैसे भी बहुत नाज़ुक चीज़ है, ज़रा सा आरोप लगा और करियर चौपट.. जनता पास भी फटकने नहीं देगी. 

मोदी-योगी मॉडल सफल क्यों है.. भ्रष्टाचार और लोकतंत्र की हत्या करने जैसे जितने आरोप इन दोनों के ऊपर लगते हैं, अगर बीजेपी का ही कोई अन्य नेता जो विवाहित-बाल बच्चेदार होता तो जनता उबल पड़ती.. एक ही फ़ैक्टर है, जनता को भरोसा सिर्फ़ इसलिए बरकरार है की एक के आगे पीछे कोई नहीं है और दूसरे तो ठहरे महंत ही.. दोनों के प्रति एक ही भावना काम करती है की ये किसके लिए लूटेगा.. यही पर विपक्ष का सारा आरोप न्यूट्रलाइज हो जाता है. दूध, दही, आटा और चावल जैसे प्रोडक्ट पर 5% जीएसटी वसूल लेना आसान नहीं था, दूसरा कोई सरकार में होता तो बग़ैर इकनॉमिक्स और विदेश नीति की परवाह किए जनता सरकार को नोच खाती.. मगर फिर वही भरोसा सब न्यूट्रल कर देता है.

ई॰डी॰ की कार्रवाई को बस एंज़ोय कीजिए, सबका एक वक्त आता है. ग़लत कार्य का अंजाम ग़लत ही होगा.. कोई किसी के घर में या बेड के नीचे 50-100 करोड़ यूँ ही डाल कर नहीं चला जाता..  लोड लेने की ज़रूरत नहीं है यह प्रकृति का न्याय है और यह चलता रहता है…





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