15 September 2022

CBSE रिज़ल्ट 2022

सीबीएसई अपने मानक के एक दम निम्नतम स्तर पर खड़ा प्रतीत हो रहा है ! कल से कई ऐसी ख़बरें वायरल हो रही है कि एक बच्चा 400 में से 400 मार्क्स लाने के बावजूद भी संतुष्ट नहीं है ! 

बड़ी संख्या में बच्चों के मार्क्स 90 फ़ीसदी से ऊपर आए हैं, जो 99 फ़ीसदी से नीचे रह गए उनके पेरेंट्स ही संतुष्ट नहीं है ! ऐसा मामला सिर्फ़ इस वर्ष के रिज़ल्ट का नहीं है बल्कि पिछले कई वर्षों से CBSE का मार्किंग पैटर्न न जाने किस फ़ोर्मूला पर आधारित है की ऐसे गधे आपके और हमारे बीच लैंड करा दे रहा है ! समूचा तंत्र जो इनके कंट्रोल में कॉन्वेंट्स व अंग्रेज़ी स्कूलों के तौर पर समाज की पूँजी को सोख कर 99% मार्क्स वाले असंतुष्ट बच्चे सींच कर दे रहा है..

चूँकि 10th व 12th बोर्ड कुछ ऑब्जेक्टीव और अधिकतर डिस्क्रिप्टिव पैटर्न पर आधारित होता है.. स्वाभाविक है डिस्क्रिप्टिव की बात काफ़ी टेढ़ी होती है और सबको पता है की आप भले लाइन बाई लाइन तोते की तरह रट भी लें तो भी 70-80 फ़ीसदी लाने में भाग्य का सहारा चाहिए ! आर्ट्स नेचर के जितने भी विषय हैं उनका दायरा बड़ा ही व्यापक होता है और चाहे PH.D किए क्वालिफ़ायड शिक्षक भी क्यों न हों उनके ज्ञान में भी हज़ार कमियाँ निकल जाएगी !

सब कुछ कॉपी जाँचने वाले परीक्षक पर निर्भर करता है और उसे बोर्ड के निर्देश पर कार्य करने की बाध्यता होती है इसलिए अगर कहीं सिस्टम में दोष है तो इसकी ज़िम्मेवारी सीबीएसई को लेनी चाहिए ! नई शिक्षा नीति आने की आड़ में सुधार न करना बस खिलवाड़ है.. सीबीएसई बोरे से भर भर के मार्किंग करने से प्रतिभा ढूँढ कर देना तो छोड़िए, इतने कम उम्र के बच्चों में अवसाद भर कर उसका जीवन रंगहीन बना कर छोड़ देता है.. 

चूँकि इस बोर्ड से पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे मिडल क्लास से आते हैं, प्राइवेट स्कूल द्वारा उनके गार्जीयन पहले ही चूसे जा चुके होते हैं.. बच्चे पर एक अदृश्य मानसिक दबाव बनता है की वे उन खर्च की भरपाई अच्छे मार्क्स लाकर करे ! फिर शुरू होता है डिप्रेशन का खेल..

प्रतियोगिता परीक्षाओं का अनुभव जिसे भी है वह इसका महत्व समझता है ! SSC की परीक्षा में चार ऑप्शन चुनने में नानी याद आ जाएगी.. उधर 70 फ़ीसदी मार्क्स ला दे तो बड़े बड़े केंद्रीय दफ़्तरों में बाबूगिरी के साथ ऐश काटेगा..  यूपीएससी civil सर्विसेज में 50 फ़ीसदी अंक में ही हमें कई टॉपर मिल जाते रहे हैं.. 

ये सब बकवास की बातें है की CBSE या फलाने बोर्ड का अपना सिस्टम है या उनका बड़ा वैज्ञानिक तरीक़ा है बच्चों को जज करने का.. ये सिर्फ़ फ़ेल्यर है अपने तंत्र का ! बोर्ड सिर्फ़ अल्पकालीन वाहवाही बटोरने के सिद्धांत पर काम करता है.. उसके सरकारी grants जनता के टैक्स के पैसों से आते हैं उसे यह नहीं सुझता ! जिसकी ज़िम्मेदारी देश के एजुकेशन सिस्टम मैंटैन करके रखना है और जो समाज को और देश को एक शिक्षित नागरिकों का बेस तैयार कर सौंपे.. उसकी जगह वह तोता रटंत शिक्षित और कुंठित युवाओं की फ़ौज देश में खड़ा कर रहा !

किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र की नींव युवाओं से ही तय होता है !

उसकी ऊर्जा बहुत ज्वलंत होती है अग्नि के समान ! सही  उपयोग हो तो उसकी एनर्जी गतिज ऊर्जा में बदलकर आर्थिकी के पहिए चलाए जा सकते नहीं तो मात्र चिंगारी राख कर देती है ! 

इसलिए एक स्वस्थ्य और दीर्घकालिक उपाय ढूँढे जाने की तत्काल ज़रूरत है.. ऐसा तंत्र बने की उसके ज्ञान से राष्ट्र की उन्नति सुनिश्चित हो.. नए आविष्कार बढ़े.. अपनी प्रखरता से देश का मान सम्मान बढ़ाए.. और यह राष्ट्र अपने शिक्षित युवाओं की ऊर्जा से स्वयं को सींच कर महान बनें..

नहीं तो सड़कों पर नंगे चलने की राइट माँगने वाले, किस ऑफ़ लव और डफली टाइप की प्रजाति यूँ ही पायी जाती रहेंगी…





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