हमारे प्रधानमंत्री जी ने
पिछले दिनों काफी जोशो-खरोश से डिजीटल इंडिया कैंपेन का शुभारंभ किया। भारत को
डिजीटल करके उसे 'इंडिया' बना देने के तमाम छोटे-बड़े सपने देश को दिखा डाले गए। देश की हर
आबादी को इंटरनेट सेे जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। जगह-जगह मुफ्त वाई फाई
लगाई जाएगी। बच्चों के लिए आधुनिक बस्ता, ऑनलाइन पढाई, नौजवानों को घर बैठे रोजगार एवं एक क्लिक पर लाकर में
रखे सारे डॉक्यूमेंट कौन नहीं देखना चाहता? कौन नहीं चाहता की दफ्तरों में लम्बी लाइन लगने के बजाय
उसका काम बस मिनटों में हो जाए। पर कैसे?
जब देश में 62 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो खुले में शौच जाते हैं।
संभव हैं, भविष्य में सरकार डिजिटल
इंडिया की तर्ज पर 'डिजिटल टॉयलेट' भी लाये ताकि लोग डिजिटल हो सकें। दुनिया के कुल भूखे और निर्धन
लोगों का 35%
भूखे हमारे यहाँ रहते हैं।
क्या इनके लिए भी सरकार 'डिजिटल रोटी' की व्यवस्था करेगी? दुनिया में भूखे रहने वालों की तादाद में हमारा देश सबसे ऊपर है।
दुनिया के सवार्धिक कुपोषित बच्चे हमारे यहाँ है। 70% आबादी अभी भी शहर की चकाचौंध
से दूर गाँवों में रहती है। पर वे इन सब के बारे में क्यों सोचे? हालात ये हैं की डिजिटल
इंडिया का नारा देने वाली सरकार के पैतरें प्रतिदिन बदलते जा रहे हैं। 60 साल बनाम 5 साल का नारा, 60 साल बनाम 25 साल में बदलता जा रहा है।
सरकार ने डिजिटल इंडिया का सपना तो बड़ी आसानी से दिखा दिया। पर कैसे? जिन BPL परिवारों की महीने में
हज़ार रुपये भी कमाने की औकात नहीं, वो 150 रू० का नेट रिचार्ज कहाँ से कराये? अगर मान लिया की सरकार ने इन्हें
फ्री वाई-फाई मुहैया करा भी दिया तो, इन लगभग 45 करोड़ गरीबों के पास 8-10 हजार का WI-FI युक्त फ़ोन कहाँ से आएगा? जिससे ये भारतीय, इंडियन बन सकें। जबकि सच
ये है की मानव विकास सूचकांक में पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश जैसे देश भी हमसे ऊपर है, जिन्हे हम 'जाहिल' समझते हैं। 21 वीं सदी का नारा राजीव
गांधी नें दिया था, और भारत 21 वीं सदी में भी पहुँच गया। पर दो-तिहाई पढ़े-लिखे बेरोजगारों के साथ, जो डिजीटल भी हैं। यानी, पढ़े-लिखे और डिजिटल
बेरोज़गारों की एक बड़ी फ़ौज।
सरकार सभी काम पेपर-लेस कराना
चाहती है, जनता को सहूलियत देना
चाहती है, यह बिलकुल सही कदम है। पर, सबकुछ भविष्य की सुरक्षा
को दांव पर लगाकर। जिनकी भी इंटरनेट सर्वरें हैं, वो भारत के बाहर पश्चमी देशों में
स्थापित है। मतलब, उनकी भारत के प्रति कोई कानूनी जवाबदेही नहीं बनती। ये सही है, की हम डिजिटल तो हो जाएंगे
पर हमारी डोर पश्चमी देशों के हाथों में रहेगी। यानी हम उनकी कठपुतली बनकर रह
जाएंगे। आज सरकार को सिर्फ मुनाफा चाहिए। उनके लिए कृषि का विकास, गरीबी उन्मूलन, अशिक्षा व भुखमरी जैसे
मुद्दे कोई अहमियत नहीं रखते। इससे मुनाफा तो नहीं कमाया जा सकता पर हाँ, इससे पेट-पूजा का बेशक
इंतजाम हो जाएगा। डिजीटल इंडिया दूसरा नाम कॉर्पोरेट इंडिया है। जिससे ये 20 करोड़ भारतीय इंटरनेट
उपभोक्ताओं से मुनाफा वसूली करेगी। ये कितने लोगों को रोज़गार देगी? फेसबुक,ट्विटर, यूटुब भारत में कितने
लोगों को रोज़गार मुहैया कराती है? नगण्य मात्र में। मुनाफा तो FDI से भी होती, इससे कहीं ज्यादा रोजगार मिलती, पर ऐसा क्यों नहीं? क्योकि कहते हैं, देश गुलाम हो जायेगा।
फ्लिपकार्ट, स्नैपडील जैसी विदेशी
कंपनियां जो 20
करोड़ यूजर से व्यापार करके
सरकार का 50 हज़ार करोड़ का टैक्स चोरी
कर रही है। ये तो बस शुरुआत है, बना डालिये भारत को डिजिटल ! संभव है की सरकार इन खामियों का कोइ
डिजीटल सलूशन भी निकाल ले। फ्री वाई-फाई का वादा भी जुमला ही दिखने लगा है। इसका न तो हम
इस्तेमाल सोशल साइट्स के लिए कर सकेंगे और न ही अन्य जरूरी चीजों के लिए। हमें तो
बस इसकी अनुमति सरकार द्वारा किये गए अच्छे दिन लाने के प्रयासों को देखने के लिए
मिलेगी, तथा उन्हें सुझाव देने के
लिए। लगता तो ऐसा ही है। अभी तो नेट का दाम 75 से 175 ही हुआ है, देखते हैं आगे क्या-क्या होता है।
जिस तरीके शायनिंग इंडिया का नारा, नारा ही बनकर गया। स्वच्छ भारत
अभियान से भारत स्वच्छ हो गया, नमामि गंगे से गंगा शुध्द हो गयी, उसी तरह शायद हमारा भारत सरकार की अति-आत्मविश्वास से
डिजीटल होकर एकदिन 'इंडिया' बन जाएगा और हम देखते रह जायेंगें।लेखक - अश्वनी कुमार, पटना जो एक स्वतंत्र
टिप्पणीकार बनना चाहता है। contact no, - 8873015656
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