देश
के सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर शर्मिंदगी पैदा करता है। मास्टर साहब स्कूल
आते हैं लेकिन बच्चों की हाजिरी कि जगह उन्हें अपनी हाजिरी की ज्यादा चिंता होती
है। गरीबों के बच्चों के भविष्य की जगह उन्हें अपने बच्चों का भविष्य नजर आता है।
सरकार ने सरकारी स्कूलों में गिरती शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए विभिन्न
स्तरों पर प्रशासकों की निगरानी का इंतजाम कराया है, लेकिन
फिर भी देश की शिक्षा व्यवस्था प्राइवेट स्कूलों के इर्द-गिर्द ही घूम कर समाप्त
क्यों हो जा रही है?
सरकारी
स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की काबिलियत और उनके समझ को कमतर करके क्यों आंका
जाता है? शिक्षकों की तमाम मांगे, उनकी वेतन वृद्धि,
उनके
नियोजन से संबंधित बहुत सारी बातें हमें अक्सर देखने और सुनने को मिलती है। सरकार
को मजबूर किया जाता है, लाठी-डंडे लेकर नंगे
होकर शिक्षकों का विरोध प्रदर्शन होना अब आम बात हो चला है!
सरकारें वोट बैंक के चक्कर में उनकी तमाम गैरजरूरी मांगों को दबाव में मान भी लेती है। जनता के खजाने पर अतिरिक्त बोझ डाल कर उनकी मनमानी को बढ़ाने का भरपूर इंतजाम कर दिया जाता है, फिर भी क्या जिस गरीब जनता के खजाने पर इन शिक्षकों के वेतन का बोझ है क्या उनके बच्चे इसका फायदा उठा रहे हैं? या उनका पैसा मुफ्त खोरी की भेंट चढ़ा जा रहा है!
सरकारें वोट बैंक के चक्कर में उनकी तमाम गैरजरूरी मांगों को दबाव में मान भी लेती है। जनता के खजाने पर अतिरिक्त बोझ डाल कर उनकी मनमानी को बढ़ाने का भरपूर इंतजाम कर दिया जाता है, फिर भी क्या जिस गरीब जनता के खजाने पर इन शिक्षकों के वेतन का बोझ है क्या उनके बच्चे इसका फायदा उठा रहे हैं? या उनका पैसा मुफ्त खोरी की भेंट चढ़ा जा रहा है!
बिहार
और उत्तरप्रदेश जैसे राज्य में प्राथमिक स्तर से लेकर हाईस्कूल स्तर तक शिक्षा की
गुणवत्ता का घोर अभाव देखा जा सकता है। सरकारें प्रयास तो खूब कर रही है लेकिन
शिक्षकों के संगठनबाजी और हड़तालबाजी बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है। अभी
हाल ही में उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों को हटाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट से आया।
जो साबित करता है कि शिक्षकों का नियोजन करने में सरकारें योग्यता से ज्यादा अपने
वोट बैंक को तरजीह दे रही है। औसत स्कूलों में शिक्षकों की उदासीनता के कारण
बच्चों की हाजिरी दिन प्रतिदिन घटती चली जा रही हैं और उनके अभिभावकों का रुझान
प्राइवेट स्कूलों की तरफ बढ़ता जा रहा है।
जो इस बात का साफ संकेत है कि सरकार और जनता के संसाधनों का घोर दुरुपयोग होता चला जा रहा है लेकिन उनके मनमानेपन पर अंकुश लगाने का कोई तरीका सरकार अभी तक ढूंढ नहीं पाई है।
जो इस बात का साफ संकेत है कि सरकार और जनता के संसाधनों का घोर दुरुपयोग होता चला जा रहा है लेकिन उनके मनमानेपन पर अंकुश लगाने का कोई तरीका सरकार अभी तक ढूंढ नहीं पाई है।
सरकारी
स्कूलों के शिक्षकों की हकीकत है की हाईस्कूल स्तर का शिक्षक प्राथमिक स्तर के
साधारण सवालों को हल कर सकने में असमर्थ हैं ।इस हिसाब से प्राथमिक स्तर के
शिक्षकों और शिक्षामित्रों की शैक्षणिक योग्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि देश के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों में पनप रही निरंकुशता और ब्लैकमेलिंग हमारी शिक्षा प्रणाली को अपंग बना रही है। शिक्षकों के इस तौर तरीकों को अगर जल्द नहीं बदला जा सका तो भविष्य में एक बड़े संकट के रूप में सरकार के सामने खड़े होंगे।
विशेषज्ञ बताते हैं कि देश के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों में पनप रही निरंकुशता और ब्लैकमेलिंग हमारी शिक्षा प्रणाली को अपंग बना रही है। शिक्षकों के इस तौर तरीकों को अगर जल्द नहीं बदला जा सका तो भविष्य में एक बड़े संकट के रूप में सरकार के सामने खड़े होंगे।
शिक्षकों की जवाबदेही तय करने वाले अफसरों का भ्रष्टाचारी रवैया उनके मनमानेपन को बढ़ावा दे रहा है। सरकारी स्कूलों के शिक्षक, प्राइवेट कोचिंग खोलकर न केवल शिक्षा व्यवस्था का मजाक उड़ा रहे बल्कि आम गरीब जनता की मजबूरियों का खौफनाक शोषण कर रहे हैं।
निकट
भविष्य में आशा तो नहीं लगती कि सरकार शिक्षा माफियाओं के खिलाफ कोई बड़ा अभियान
चला पाएगी। क्योंकि सफेदपोशों और रसूखदारों के संरक्षण में फल-फूल रहे इस धंधे को
कोई चौपट नहीं करना चाहेगा इसलिए भी कि सरकारें उनकी पार्टी के चंदे से चलती है
अगर धंधा न रहा तो चंदा कौन देगा...
सही वक्त और समय का जनता इंतजार करती है...
और डंके की चोट पर करती है...
सही वक्त और समय का जनता इंतजार करती है...
और डंके की चोट पर करती है...
✍ अश्वनी ©
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