आज वक्त है दिखावे
का! उठाओ झंडा, फहरा दो तिरंगा! दिखा दो दुनिया को अपनी ताकत! लेकिन देश से गरीबी,
भुखमरी ये सब नहीं मिटना चाहिए! पेट पालने का साधन है नेताओं का!
हवस की निगाहों से न
जाने कितने तिरंगे फहराए जायेंगे... ये हवस देश को लील जाने की है...
56 सेकंड तक झंडे को
सलामी देने में फट जाती है इन्हें, तो सोंचो की हमलोगों ने 70 सालों से इन काले
अंग्रेजों को सलामी देने में कितना वक्त और एनर्जी बर्बाद किया!
राष्ट्रगान गा लो,
देशभक्ति का जूनून पैदा कर लो! सिर्फ एक दिन, फिर साल भर गरियाते रहना! देश की
आजादी फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन से है! देश की आजादी, किस ऑफ़ लव से है! देश की आजादी
इन्सल्लाह टुकड़े होंगे से है! देश की आजादी अवार्ड वापसी से है!
आजादी का 70 साल का
सफ़र हमें यही सब सिखाता है! की अपनी मां, अपनी धरती, अपनी सेना को गरियाओ... अपनी
इज्जत, मान-मर्यादा पाकिस्तान और चीन को बेच आओ! राष्ट्रवाद से घृणा करो! देशभक्ति
को गाली मानो!
तो सुनो...
ये धरती है वीरों की
जहाँ एक पुष्प की अभिलाषा भी सेना के पैरों तले कुचलने की होती है...
ये धरती है उन
शहीदों की जो भरी जवानी में भारत माँ के लिए फांसी के फंदे से हँसते हँसते झूल गये
थे...
ये धरती है उस देश
की, जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा... ऐसा भारत देश है मेरा...
ये 70 वर्षों का
आजाद भारत है... राष्ट्रवाद से सिंचित, देशप्रेम से पोषित और तिरंगे जैसा स्वाभिमानी...
सेना हमारी आन-बान-शान
है. सरकार हमारी राष्ट्रवादी है. जनता उदार है, तभी आजादी है...
नहीं तो तिरंगे को
हवस से देखने वालों की गर्दन उखाड़ के हाथ में थमा दिया जाता! देश से गद्दारी अब
स्वीकार नहीं होगी! कांग्रेस ने गद्दारी आजादी से ही की लेकिन परिणाम अब भुगत रहा
है!
देश को बांट दिया,
बाप का राज था क्या! अब जरा बोल के भी दिखाओ, जुबान खींच के सीने पर चढ़कर तिरंगा
गाड़ देंगे! अपनी मनमर्जी नहीं चलने वाली अब, चाहे सरकार हो या न्यायपालिका!
संविधान को देश के दायरे में लाओ! और देश को जनता के उम्मीदों के दायरे में लाओ,
तब आजादी सफल होगी!
नेतागिरी का अंत
करो! भाषणबाजी और जुमलेबाजी को अमीरों के लिए इस्तेमाल करो, गरीबों के लिए नहीं!
देश को जनभावना से
चलना चाहिए, न की काले अंग्रेजों के आदेश से!
आस्तीन के साँपों से
देश को बचाओ! हिंदुस्तान का खाकर उसी में थूकने वाले हरामियों को ठिकाने लगाओ!
खानदान पाकिस्तान में है और ये लोग हिंदुस्तान की धरती को नापाक बनाने की साजिश
में लगे हैं!
आजादी का सारा
क्रेडिट इन गद्दारों को दो जो देश को नोचकर खा गए! वंशज उसी के हो तो गद्दारी अभी
भी दिख जाती है हमें!
स्वतंत्रता ऐसे नहीं
आती... मजबूत इरादों से भी नहीं आती... झंडा और नारे से भी नहीं आती...
त्याग करना पड़ता है
आजादी के लिए, जो पिछले 70 सालों से देश की आधी जनता कर रही है! रहने को छत नहीं,
खाने को रोटी नहीं और पहनने को कपडे नहीं!
फिर भी अगर देशभक्ति
को जूनून देखना है तो जाओ आज किसी गाँव के सरकारी फर्टीचर स्कूलों में! मतलब ज्यादा
नहीं पता बच्चों को मगर उनके नारों में भारत माँ की गर्जना सुनो!
“जो भारत
से टकराएगा... चूर-चूर हो जाएगा...”
झंडे का सम्मान
बच्चों से सीखो, जो एक रूपये के झंडे से आजादी का जश्न मनाकर कई महीनों तक घर के
छत पर फहराता रहता है!
ये है आजादी का जश्न
जिसके जोश में हमारा हिंदुस्तान है... लाल किले के प्राचीर से मोदी की गर्जना है और
एक नए भारत को गढ़ने की कोशिश है जो सुमित्रानंदन पन्त की इन पंक्तियों से लबरेज है
की...
“जो भरा नहीं है भावों से
जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं...“
जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं...“
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