25 July 2018

सावन और संगीत


सावन की हरियाली में सराबोर वातावरण में मिट्टी की मदहोशक सोंधी खुशबू में पवन की झोकों पर नाचती-इठलाती टहनियां, उफनती नदियाँ, मेघ-मल्हार की अठखेलियाँ प्राकृतिक तान छेड़कर पशु-पक्षी-मानव सब को झुमने पर मजबूर कर दे रही है!
निर्झर बहती झरने, नदियों की उफान पर सरपट भागती नौकाएं, चाँद की चमक को आईना दिखाती झीलें, पक्षियों की सुरमयी चहचाहट, पेड़ों पर लदे फलों से झुकी डालियाँ, सूरज की किरणों से चमचमाती धरती माँ की गोद में पड़ी हरियाली... 
सावन की अनुपम छटा बिखेर कर उसमें चार-चाँद लगा देती है!

सावन एक प्राकृतिक वरदान है! प्रकृति की हरियाली से रोम-रोम जागृत हो जाना इस बात का संकेत है की पर्यावरण के प्रति हमारा लगाव गहरा है! 
प्रकृति बारिश के माध्यम से वातावरण को अपने अंदर समाहित कर जीवंत बनाने की कोशिश करती है!
सावन में अगर आम-जनजीवन को कोई प्रकृति के अलावा सराबोर करता है तो वो संगीत है! कुमार सानु, अल्का याग्निक और उदित जी की आवाज में गुलज़ार, जावेद अख्तर के बोल और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की झंकार पर 90 के दशक वाली गाने बारिश में बाहर निकलकर नाचने को मजबूर कर देते हैं!
‘बरसात के मौसम में... तन्हाई के आलम में...’, ‘गोरे रंग पर न इतना....’, ‘चाँद छुपा बदल में....’ का अनूठा अंदाज निःशब्द करता है! कुमार सानू की लफ्ज ‘बस एक सनम चाहिए.....’ बारिश का मज़ा बिना पकौड़े भी लाजबाब बना देती है!
‘तुम जो हँस-हँस के सनम....’ सारे ग़मों को भुला डालती है! 
‘गा रहा हूँ इस महफ़िल में....’ सानू के जलवे बॉलीवुड की हरियाली पेश करती है! ‘तेरी उम्मीद तेरा इंतजार...’ के बोल प्रेम की बीती बातें जीवंत कर डालती है! ‘घुंघट की आड़ से दिलबर का...’ से अल्का दीदी आशिकी को परवान चढ़ा देती है! ‘बरसात के दिन आये...’ और खुद्दार फिल्म का गाना ‘तुमसा कोई प्यारा कोई मासूम नहीं है....’ एक अलग रोमाँच पैदा करती है!
अगर रिमझिम बारिश में 90 के दशक को करीब से महसूस करना है तो ‘दिल है की मानता नहीं....’ से बेहतर बोल और संगीत मेरे समझ में नहीं है!

अगर सावन का लुफ्त संगीत के माध्यम से पुराने वर्जन में उठाना है तो एक से बढकर एक तराने और उसमें तैरती लता जी की मिठास, रफ़ी के नगमें बिना बारिश सावन की घनघोर सन्नाटे में मिट्टी की सोंधी महक का एहसास करा देगी! 
खुद में सावन की हरियाली समेटे ‘सावन का महीना... पवन करे शोर...’ नगमों की रानी बनी बैठी है! 
सूरज फिल्म का नगमा ‘बहारों फुल बरसाओ.... सावन का स्वागत करने की प्रेरणा पेड़-पैधों को देती मिली! ‘भँवरे ने खिलाया फुल...फुल को ले गया...’ प्राकृतिक सुंदरता का रस कानों में घोल देती है! 
‘छुप गये सारे नजारे... बादलों के मस्त मौला चल की तुलना प्रेम संबंधों से करती मिलती है! नदिया के पार का ‘कौन दिशा में चला...’ सावन की अंगडाई को प्रदर्शित करती है!

सावन और संगीत कुल मिलकर एक-दुसरे के पूरक हैं! 
बगैर संगीत सावन में बारिश का मज़ा अधूरा है! सावन में इन नगमों को सुनकर अंदर में जो रोमांच पैदा होती है, रोम-रोम में बारिश की टिपटिपाहट की ताल पर जो सिहरन पैदा होती है उसका असली मज़ा बस फूस की झोपडी में बैठकर रेडियो पर सुनने में ही है! 
Image result for cycling in rain villagers imageमस्त मूड में इन नगमों को साइकिल चलाते भींगते हुए गुनगुनाने का अपना मज़ा है... कीचड़ में चलते हुए सावन की हरियाली को मिट्टी की महक से महसूस करने का भी अपना मज़ा है...

अपने बचपन की यादों में, गाँव में सावन की रिमझिम फुहार तले ऑटो पर बाहर लटककर मस्ती से झूमते हुए ‘झिलमिल सितारों का आँगन होगा... रिमझिम बरसता सावन होगा...’ गुनगुनाते हुए स्कूल की ओर निकल पड़ता था.... और अब उसने गंतव्य तक पहुंचा भी दिया.........

✍ अश्वनी


1 comment:

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