17 June 2016

भारत की न्यायिक व्यवस्था के पहलु

भारत के लोकतान्त्रिक स्वरुप में एकरूपता बनाए रखने की जिम्मेदारी भारतीय संविधान ने न्यायपालिका को दी है| भारतीय लोकतंत्र के तीन अभिन्न अंग हैं| पहला कार्यपालिका, दूसरा विधायिका और तीसरा निष्पक्ष न्यायपालिका| कार्यपालिका का कर्तव्य है की वो विधायिका द्वारा लिए गए निर्णयों का पलान कराये| जबकी भारतीय संविधान ने न्यायपालिका को बिलकुल स्वतन्त्र और निष्पक्ष रखा है| हमारी लोकतान्त्रिक खूबसूरती है की ये तीनों एक-दुसरे के अधिकार क्षेत्र पर अतिक्रमण नहीं कर सकते| भारतीय न्यायपालिका विभिन्न स्तरों पर फैली अदालती स्वरूपों के लिए जानी जाती है| सबसे पहले किसी मामले में क्षेत्रीय व्यवहार न्यायालय का अधिकार क्षेत्र होता है| उसके बाद जिला न्यायालय, उच्च न्यायालय, और फिर सर्वोच्य न्यायालय का क्रम आता है| व्यव्हार न्यायालय के प्रमुख मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी होते हैं तथा जिला न्यायालय के प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायधीश हो माना जाता है जो फौजदारी अथवा दीवानी दोनों मामलों, यहाँ तक की फाँसी की सजा देने लायक मुकदमों की सुनवाई तक अधिकृत होते हैं|

     भारतीय न्यायपालिका को संविधान का सबसे बड़ा रक्षक माना जाता है| भारत में न्यायपालिका की अवधारणा को संयुक्त राज्य अमेरिका से लिए गया है| सर्वोच्य न्यायालय ने आजादी से अबतक आए संवैधानिक संकटों के विभिन्न पहलुओं को बारीकी से समझते हुए जितने भी फैंसले दिए हैं वो ऐतिहासिक है, जनहितैषी है| आपातकाल संकट के लिए राजनारायण बनाम इंदिरा गाँधी मामला हो या शाहबानों प्रकरण या कोलेजियम प्रणाली मामला चाहे विभिन्न राज्यों में मनमाने तरीके से लगाए जाने वाले राष्ट्रपति शासन को रद्द करना, सभी फैसलों में देश की सर्वोच्य अदालत ने न्यायपालिका को संविधान का रक्षक साबित किया है| बंद को असंवैधानिक घोषित करना, मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए पीआइएल पर संज्ञान लेना या फिर विधायिका के मनमाने फैसले पर अंकुश लगाना, सारे आदेशों ने देश की जनता पर एक गहरा असर छोड़ा है| उसने जनता के मन-मस्तिष्क में एक विश्वास पैदा किया है, भरोषा बनाया है|

Image result for judiciary in india image          देश की न्यायिक प्रणाली ग्राम पंचायतों से लेकर सर्वोच्य न्यायालय तक फैली हुई है| विधायिका के साथ न्यायपालिका का टकराव एक-दुसरे के क्षेत्राधिकार में अतिक्रमण का प्रयास है| अगर देश की न्यायपालिका जनता का अहित न होने देने का प्रण लिए बैठी है तो विधायिका को भी राजनीतिक हित के लिए ऐसा कोई प्रयास न ही करना बेहतर होगा जो जनता के हितों से परे हो या व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना लिए हो| क्यूंकि भारतीय लोकतंत्र की सफलता का सबसे बड़ा आयाम न्यायपालिका का स्वतंत्र रहना है|

          इस तरह जनधिकार, मानवाधिकार या उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करना न्यायपालिका का कर्तव्य है| ये सही है की भारतीय क़ानून की जटिलताएं और उसकी विसंगतियां अक्सर इस देश की जनता को परेशान करती है| फिर भी हमें अपने न्यायपालिका द्वारा इन जटिलताओं को दूर करने लिए किये जा रहे प्रयासों पर पूर्ण विश्वास व भरोसा है की वे सुधारों और बदलावों के बलबूते भारतीय लोकतंत्र और उसके संविधान पर कभी कोई संकट नहीं आने दे सकते...
लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... ब्लॉग पर आते रहिएगा... (परीक्षा की तैयारिओं के लिए मैंने ये आर्टिकल लिखी है जिसके कारण लिखने की आजादी की प्रत्यक्ष कमी दिखाई देती है...)



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