बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोक सेवकों को और ज्यादा जवाबदेह
बनाते हुए एक नया कानून बनाया है| बिहार लिक शिकायत निवारण अधिनियम के अंतर्गत
राज्य के हर जिला मुख्यालयों और अनुमंडलों में आम जनता के शिकायतों पर फ़ौरन अमल
अकरने के लिए विशेष काउंटर खोले गए हैं| इस कानून में जितनी पारदर्शिता है, उससे
ज्यादा सरकारी सेवकों को जवाबदेह बना देने के सपने देखे गए हैं| कोई भी आम आदमी
न्यायालय, व्यक्तिगत या सूचना का अधिकार के अलावे किसी भी तरह का शिकायत दर्ज करा
सकता है| चाहे सरकारी कार्यालयों की टालमटोल हो या फिर अफसरों का जनता के साथ खराब
व्यवहार| सभी मामलों में ये व्यवस्था की गई है की शिकायत दर्ज करते ही शिकायतकर्ता
को रसीद पर सुनवाई की तारीख दे दी जाती है और उस दिन उससे सम्बंधित
कर्मचारी-अफसरों को शिकायतकर्ता के सामने सुनवाई के लिए उपस्थित होना पड़ता है| हर
एक मामले में पन्द्रह दिन से एक महीने के अन्दर सुनवाई कर देनी है या फिर सम्बंधित
कर्मचारी-अफसर के ऊपर 500 से 5000 रु० तक का जुर्माना वेतन से काटा जा सकता है|
सवाल इसलिए भी खड़े होते हैं की जब देश में सूचना का अधिकार कानून लागू
हुआ तो लगा की जैसे भ्रष्टाचार का अंत नजदीक है पर हुआ क्या? सूचना मांगने वाले
आरटीआई एक्टिविस्ट गलत न होने देने की जूनून के आगे पहले धमकाए गए और न मानने पर
मार डाले गए| आज भी इस कानून की हकीकत है की कोई भी लोक सूचना अधिकारी अपने
कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदार दिखाई नहीं देता| सूचना मांगने वाले व्यक्ति को बिना
प्रथम या द्वितीय अपील के सूचना उपलब्ध ही नहीं कराई जाती है|
इस नजरिये से अगर देखा जाए तो लोक शिकायत निवारण की व्यवस्था सुस्त और
कामचोर अफसरों पर RTI से कितना अधिक असर करती है, या तो वक्त ही बतायेगा| फिर भी उन्हें
जनता के प्रति जवाबदेह बना देने की मुख्यमंत्री की प्रतिबद्धता लोगों को सूकून
देती है| क्योंकि उन्होंने साफ़ कहा है की सरकारी नौकरियों में किसी को बुलाया नहीं
जाता, लोग खुद स्वेच्छा से काम करने आते हैं, इसलिए काम करना ही पड़ेगा.....
लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं...
ब्लॉग पर आते रहिएगा...
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