31 March 2019

बसंत पंचमी की यादें


ऋतुओं का राजा बसंत है, मौसम की अंगड़ाइयाँ रोम रोम में यौवन का संचार कर देती है!
बसंत पंचमी की बचपन वाली यादें जब भी जेहन में ताजा होती है, मुख पर एक अजब सी मुस्कान बिखर जाती है! होली की औपचारिक शुरुआत से लेकर गर्मी की उद्द्घोषणा खुद कर डालते थे! कितनी भी ठंड पर जाए, मजाल नही की स्वेटर टोपी पहने लें! कई बच्चे चूड़ा-दही के बाद इसी दिन पकड़ पकड़ के नहा दिए जाते थे!

बात सरस्वती माता की हो तो मन में गजब का उत्साह रहता था! एक महीने पहले से प्लानिंग करते थे! चंदा पैसा का जुगाड़ करते थे, गजब की प्रबंधन क्षमता होती थी! सब अपने अपने घर से पुरानी साड़ी चुरा लाता था, फिर रातों रात उससे अपने हिसाब से दुनिया का बेस्ट पंडाल बनाकर गौरवान्वित होते थे! जुगाड़ का बेजा इस्तेमाल किया जाता था! दोस्तों से डीवीडी का कैसेट जुगाड़ किया जाता था जिसमे देवी गीत हो वो भी फेवरेट वाला! पूरी भक्ति और लगन से लौंडों का ग्रुप बिना खाये पिये खूब काम करता था! कोई कितना भी चोर बच्चा हो, सरस्वती माता के नाम से ही डरता था! मजाल था कि एक रुपये इधर का उधर हो जाए!

माँ सरस्वती की आस्था इतनी होती थी कि एक बार भी किताब कॉपी में पैर लग जाये तो प्रणाम कर क्षमा मांगते थे! अब भी मांगता हूं क्योंकी ये संस्कार हमारे मूल में है!
पढ़ाकू हो या बुड़बक, सब बच्चा भोरे भोरे उठ कर पूजा के इंतजाम में लग जाते थे! पंडित को पकड़ के लाने का जिम्मा ढिड लड़का को दिया जाता था, जो बाबा के नहाने से पहले घर के दुहारी के आगे बैठ जाता था कि बाबा कही और न पूजा करने जाये!
अपने अपने घर से तार लाकर डेक को चारो तरफ फिट करते थे! रंगीन कागज लाकर पताका बनाया जाता था! आटे के लइ से धागे में चिपकते थे और बाहर तक सजाते थे! स्कूल में भी ऐसा करते थे! सबसे मजेदार होता था जब उस पताके के नीचे से गुजरते हुए बहुत गौरवान्वित फील करते थे! साला वो फीलिंग जिसमे अपने कारनामों से फूल के कुप्पा हो जाया करते थे! 

बात स्कूल की होती है तो मैं 3 तक ही रेगुलर स्कूल पढ़ा वो भी प्योर देसी एवं भयंकर हिंदी स्कूल में! उसके बाद अल्ट्रा मॉडर्न देसी स्कूल में, टिफिन से सीधा घर! कोई मास्टर कभी रोक न पाया हमलोगों को! 3 तक पढ़े जिस स्कूल में तो रॉल 1 होने तथा सबसे छोटा होने के नाते मैं सर के साथ बैठकर पूजा करता था! वो पल मिस करता हूँ!

"माँ शारदे, कहाँ तुम वीणा बजा रही हो... किस मंजू ज्ञान से तुम जग को लुभा रही हो..." ये नित्य प्रार्थना में शामिल था! वही से माँ सरस्वती की आस्था रोम रोम में प्रस्फुटित हुई! कलात्मकता आई, ज्ञान का साक्षात्कार हुआ और माता की आस्था, किताब कॉपी की इज्जत करना सीखा! विद्या कसम सच बोलवाने का ब्रह्मास्त्र था!
सरस्वती पूजा के दिन कॉपी में मोर पंख रखते थे! उसे रोज खल्ली खिलाते थे! रोज नापते थे और रोज बढ़ा हुआ मिलता था! धारणा बैठ गयी थी कि मोर पंख से विद्या आती! किताब में पैर लगने पर प्रणाम कर माफी न मांगने से विद्या गल जाएगा! बहुत खौफ होता था, एक कि जगह 5 बार गोर लगता (प्रणाम करना) था! कॉपी का पहला पन्ना माता सरस्वती की जय से शुरू करता था और पहला पन्ना राम का, दूसरा पन्ना काम का! ये संस्कार होते थे हमारे!

प्रसादी में बैर चुनकर खा जाते थे! बैर का दीवाना था, घर में सर्दी हो जाने का डर दिखाकर बैर खाने नही दिया जाता था!
तो लगता था कि साल जिस दिन कमाऊंगा न सबसे पहले ढेर सारा बैर लेकर खाऊंगा! वही बात मेरे साथ बिस्कुट का भी था और दालमोट का भी!

Image result for sarswati mata imageतो कहानी जड़ से जुड़ी है! बातें बसंत से जुड़ी है इसलिए जेहन में इसकी आवोहवा स्मरण करा देती है बचपन की ये यादें जिसे हम शहर में आकर इसकी चकाचौंध और कंक्रीट के इस जंगल में भूल से जाते हैं! सरस्वती वंदना को कंठस्त रखना मेरे लिए सर्वोपरि है! माँ सरस्वती के बदौलत मेरी बुद्धि है, मेरी अव्वलता है! जब भी कम्पटीशन में परीक्षा देने बैठा, चप्पल-जूता खोलकर परीक्षा देता था! 

क्योंकि सम्मान से योग्यता आती है! योग्यता से अव्वलता आती है और अव्वलता से ही हर जगह सम्मान मिलता है!
ये सारे आचरण, ये सारे संस्कार जो पुराने गुरुजनों के पास से हमें प्राप्त हुआ इसके लिए उन्हें कोटि कोटि धन्यवाद! 
🌺🌺🌺 #जय_माँ_सरस्वती 🌺🌺🌺🙏

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