27 November 2021

● संविधान दिवस #Special 🇮🇳 ●

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को नियंत्रित करने वाले संविधान का जन्मदिवस है ! हमारा सबसे बड़ा लिखित संविधान दुनिया की सबसे विशाल आबादी को असीमित लोकतांत्रिक अधिकार देती है ! संविधान निर्माताओं के ऊपर हम आसानी से आक्षेप लगा सकते कि उन्होंने कट कॉपी पेस्ट से प्रावधानों को रचा और देश के ऊपर लाद दिया ! जबकि नजदीक से उस वक्त की परिस्थितियों का अध्ययन करें तो समझ आता है कि जो देश 1000 सालों से लगातार आतताइयों लुटेरों से गुलाम रहने के बाद आजाद हो रहा था.. उस लहूलुहान भारत की भविष्य की पटकथा लिखी जा रही थी, जहां लोगों के भूख से मर जाना सामान्य बात थी ! बीमारी, कुपोषण, अशिक्षा, गरीबी के मसलों पर सबसे नीच श्रेणी लाकर छोड़ दिया गया था !
आजादी कि कीमत पर धर्म के आधार पर देश के टुकड़े हुए हों और मजहब के नाम पर जिस देश में खून कि नदियाँ बहीं हों, वहाँ किसी भी नीति निर्माता के लिए एक सूत्र में बांध पाना कोई बच्चे का खेल नहीं था.. 
राजाओं के नखरे, भाषाई विविधता, क्षेत्रवाद, अलगाववाद का चरम को ठंडा करना भी तो आसान नहीं था !
हमें यह स्पष्ट तौर पर यह समझना चाहिए कि भारतीय संविधान की परिकल्पना किसी एक व्यक्ति विशेष कि उपज नहीं हैं.. यह हर प्रान्तों से चुनकर प्रतिनिधियों के मध्य व्यापक विचार विमर्श के बाद एक एक प्रावधान बने हैं !

किसी भी देश के स्थायी एवं शांतिपूर्ण नियंत्रण के लिए नीतियां जरूरी होती है.. दुनिया के हर देश की अपनी नीति है और उसका सारा तंत्र या सिस्टम उसी नीति की कठपुतली होनी चाहिए नहीं तो अराजकता आनी तय हो जाती है !
आज भारत के संविधान के प्रति लोगों कि उतनी आस्था नहीं दिखती ! जमीनी सच्चाई है कि आम आदमी अपने सिस्टम से जब भी त्रस्त होता है उसका गुस्सा इसी निकल आता है !
सिस्टम के संचालन के लिए संविधान ने तो असंख्य प्रावधान बना दिये परंतु परिस्थितियों के हिसाब से उसकी सर्विसिंग होती रहनी चाहिए..

संविधान में न्यायपालिका को असीमित शक्तियां दी है ! कई आर्टिकल्स के अंतर्गत ऐसी ऐसी पॉवर्स दी गयी है जिसका इस्तेमाल वह कवच कुंडल की तरह कर सकता है !
मगर, हमारी न्यायपालिका ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल जघन्य राजनीतिक भ्रष्टाचार, दलों के चुनावी फंडिंग को रोकने, चुनाव सुधार करने, कार्यपालिका को पारदर्शी बनाने की जगह उस कवच कुंडल का इस्तेमाल खुद को सुरक्षित करने में किया ! इस न्यायपालिका ने अपने अंदर कि व्यवस्था को सुरक्षित रखने को एक ऐसा आवरण तैयार कर लिया है जो अभेद्य है !
अपने स्वार्थों, निजी हित और परंपरावादी सिस्टम को रचा है जहां संविधान के उन प्रावधानों के तहत ये सारे अधिकार एक लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में भारत को स्थापित करने हेतु इन्हें दिए गए थे ! 

संसद के बनाये कानूनों पर जुडिशल रिव्यु का कांसेप्ट लाकर एक नया हथियार विकसित किया गया ! मतलब जनता द्वारा चुनी गई सरकार को नीतियां बनाने के बाद कोई 3-4 जजों के माइंडसेट पर निर्भर रहना कि वे तय करेंगे कि 130 करोड़ आबादी के लिए क्या सही है और क्या गलत.. सोचिए संविधान कैसे कमजोर होता है...
अबतक की सरकारों की नाकामी के कारण हमारी न्यायपालिका आर्टिकल 19 व 21 का सहारा लेकर इतनी सशक्त हो चुकी है कि वे अहम ब्रह्मा वाली स्थिति में बैठी है ! जिस आर्टिकल 19 या मूल अधिकारों का ये खुद को संरक्षक मानती है वे संस्था अवमानना जैसा हथियार लेकर बैठ गयी है.. 
नियुक्ति खुद करेंगे, करोड़ों मुकदमे लंबित हैं, लाखों बेगुनाह जेल में सडें जा रहे हैं.. कौन कमजोर कर रहा है संविधान को...
हर मुद्दे को जो इन्हें नहीं पसंद, उसे अभिव्यक्ति की आजादी व जीवन का अधिकार जैसे शब्दों से कुचल देना ही तो लोकतंत्र के लिए घातक है ! 

सबसे महत्वपूर्ण गलती हमारे संविधान निर्माताओं और हमारी अबतक की सरकारों ने की है वह है IPC, CrPC, पुलिस एक्ट, साक्ष्य अधिनियम जैसे न्याय सिस्टम के बैकबोन को नहीं बदला जाना ! जनता सबसे अधिक परेशान समय पर न्याय नहीं मिलने होती है ! जिस देश के पास अपनी न्यायिक व्यवस्था को चलाने वाली अपनी नीति तक नहीं है उसका भगवान ही मालिक है !
आज भी अदालतों कि लालफीताशाही बेरोकटोक इसी कानूनों के सहारे तो चल रही है ! किस किस को ब्लेम करें...
आप अगर एक बढ़िया ज्यूडिशियल सिस्टम तक विकसित नहीं कर पाए हैं तो किस बात का गर्व होना चाहिए हमें अपनी शासन प्रणाली पर ?

दूसरी नजरिए से देखने पर विधायिका चाहे जितनी भी सड़ चुकी हो, जनता के सामने हर 5 साल में सिर झुकाने तो आ ही जाते हैं ! हमारी समस्या सुनते भी यहीं हैं, नहीं तो जिन पर न्याय की जिम्मेदारी है वो हज़ार पन्ने के फैसले लिखने में एक पीढ़ी समाप्त कर डालते हैं.. 
कार्यपालिका को बत्तमीजी किसने सिखाई ? अगर विधायिका और न्यायपालिका दोनों अपनी तमीज से काम करे तो इसकी क्या औकात है नौकर भर रहने के अतिरिक्त !!!

हमारा संविधान बहुत सशक्त है.. कभी अच्छे से प्रावधानों को पढ़िए, उसमें गलतियों को ढूँढिये जहां से सिस्टम में सुराख बना हुआ है ! सरकार को बाध्य करिए कि उस व्यवस्था की मरम्मत करे.. नए दंड संहिता और प्रक्रियाओं का निर्माण करे ! न्यायपालिका के कवच को पारदर्शी कीजिये, उसे जनता के प्रति सेंसिटिव और जबाबदेह होना होगा अगर ऐशो आराम-मोटे वेतन टैक्स के पैसे से चाहिए तो...
मूल अधिकारों की मांग करने वाले को मूल कर्तव्य का भी पालन करना होगा.. वरना उसे वंचित कीजिये उसके लोकतांत्रिक अधिकारों से... यही हमारी लोकतांत्रिक पतन को रोक सकता है बस...
एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हमें इस राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित रहना चाहिए.. 
#जय_हिंद 🇮🇳


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