परिस्थिति ऐसी है कि आंदोलन को न तो सरकार कुचल रही है न कुछ मान रही है ! आंदोलनकारी बिलबिला रहे है.. महापंचायत हो रही है.. दुगने MSP के लिए गले फाड़े जा रहे हैं ! चलो मान लिया MSP के दाम दुगने कर दिए गए, तो एक आम मजदूर या छोटे दुकानदार का राशन खर्च जब दुगने होंगे तो उनकी जिम्मेदारी लोगे क्या ? वो मध्यम वर्गीय परिवार आर्थिक दुष्चक्र में फंसेगा तो मदद करोगे क्या ?
एक दुकानदार जो आसमान छूती किराए पर एक दुकान लेता है, वहां बिजली बिल से लेकर GST, इनकम टैक्स तक भरता है ! बैंक वाले लोन वसूलने में इनकी चमड़ी तक उधेड़ लेते है !
इस तरह से सरकार को भी हर दुकानदार के लिए मिनिमम रेट की गारंटी दी जानी चाहिए.. अगर घटिया क्वालिटी के कारण उस कीमत में कोई न खरीदे तो सरकार उसकी MSP की कीमतों पर दुकानदार का सामान खरीद ले क्योंकि वह सेवादाता है !
हद्द तो यह है कि मजदूर बेचारा ढंग से एक दुपहरिया सड़क किनारे बैठ के विरोध प्रदर्शन भी नहीं कर सकता.. या तो पेट भूख उसे उठा देगी नहीं तो पुलिस की असीमित शक्तियां है ही इनके लिए इस्तेमाल करने को ! श्रमदाता की ये हकीकत है देश में की इसका एक एक तंत्र अपनी सारी खुन्नस इसी निरीह पर निकालता है..
200-300 रुपये में खेतों में काम करने वाले ये मजदूर ही इस देश के असली किसान है ! इनके पसीने से अन्न की सोंधी महक है ! इनकी आमदनी बढ़ाने को महापंचायत होता तो ये देश अंदर से भर उठता.. समूचा देश खड़ा हो उठता !!
बैंक वाले लोन देना तो दूर निम्न वर्गीय आय वाले लोगों को अपने ही पैसे बैंक से निकालने में दुत्कार देते हैं..
पुरखों की संपत्ति है नहीं, बैंक लोन देते नहीं तो क्या बिजनेस करेगा बेचारा ?
बैंक वाले लोन की वसूली घर बेच के कर ही लेंगे ! लोन माफी का प्रावधान तो हमारे अन्नदाता के अलावा किसी के लिए नहीं है चाहे बाकी की चमड़ी छिल जाए क्या फर्क है देश को !
जरूरतमंद कौन है ये पहचान करना देश की सरकार की जिम्मेदारी है और उसके लिए क्या नीतियां हों ये भी उसे ही तय करना है !
महापंचायत कर लेने से या साल भर सड़क घेर लेने से इस सरकार को कितना फर्क पड़ने वाला है सबको पता है !
अगर किसान की बात करनी है तो बात छोटे व्यापारियों की भी होनी चाहिए और बात मजदूरों की भी होगी ! अन्नदाता हो तो उसकी गरिमा बनाये रखो.. फोकट का किसी के पेट में अन्न नहीं चला जाता...
#जय_हिन्द 🇮🇳
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