28 December 2015

मेरी इलाहाबाद यात्रा...(सेकुलरिज्म से मेरा परिचय)

नमस्कार! पिछले कुछ दिनों से मैं प्रतियोगिता परीक्षा के तैयारियों में जुटा था, इस कारण मेरे पाठकों को नए-नए ब्लॉग से महरूम रहना पड़ा| खैर, परीक्षा के सिलसिले में मुझे अपने दोस्त राजीव के साथ इलाहाबाद जाना था| 19 दिसम्बर की सुबह हमदोनों ने पटना जंक्शन से ट्रेन पकड़ी और खड़े-खड़े पूरी यात्रा की| वहां पहले से मौजूद पटना शहर के दो और परीक्षार्थी अपने कुशल व्यक्तित्व से मेरे दोस्त बन गए| बता दूँ की उनमें से एक मुसलमान था, और उसका नाम आलम था| ये मेरे लिए हैरत की बात थी क्यूंकि आजतक मैंने संघ के दर्शन को मानते हुए कभी ऐसे किसी भी शख्स को नहीं देखा था जो मेरे विचारों पर खड़ा उतरता हो| छः-सात सालों का लम्बा समय मैंने विभिन्न समुदायों के छात्रों के साथ कोचिंग और कॉलेजों में गुजारा है| पटना, एक ऐसा शहर जहाँ हर-एक धर्मों का मिलन स्थल है| यहाँ जैन का भी पवित्र मंदिर है तो बोद्ध का पावन स्तूप भी है तो ईसाईयों के बड़े-बड़े चर्च (पादरी की हवेली) भी हैं| दशमेश गुरु गुरु गोविन्द सिंह जी की जन्मस्थली पर तो आम दिनों में सिखों से ज्यादा दुसरे समुदाय के लोग गुरुवाणी शबद का आनंद ले रहे होते हैं| मुसलमानों के इबदातखानों की तो भरमार है| बेशक, यहाँ की बहुसंख्यक आबादी हिन्दू है लेकिन हिन्दुओं का सहिष्णु व्यवहार अगर किसी सेक्युलर बयानवीरों को देखना है तो वो पटना आये, घूमकर इसकी वास्तविकता देखे| पर कोई ऐसा करेगा ही क्यों?

इलाहाबाद पहुँचने के बाद मैं, राजीव, रिक्की और आलम हम चारों ने स्टेशन के पास एक होटल लिया| कुछ देर तक पढने के बाद शाम को कमरे में मैं और रिक्की देश के कुछ ज्वलंत मुद्दों पर शालीनता से डिस्कशन कर रहे थे ताकी कुछ मनोरंजन हो जाए| उस वक्त आलम चुपचाप बैठा था, जब हमदोनों ने असहिष्णुता-संप्रदायिकता का जिक्र किया तो वो एकाएक बरस पड़ा| कहने लगा “अगर देश के साथ कोई मुसलमान गद्दारी करता है तो सबसे पहले उसे वह गोली मारेगा और साथ ही आमिर जैसे लोगों की जमकर आलोचना की| उसने कहा “कभी किसी राजनीतिक दल ने या किसी धर्मगुरुओं ने उससे कभी पूछने की जहमत क्यूँ नहीं उठाई की की वास्तव में वो चाहता क्या है? उसकी तकलीफ क्या है? कौन होते हैं ये लोग जिनकी एक बयान से सारे सेक्युलर हाय-तौबा करने लगे? बहुत ऐसे हैं जो खाते भारत का हैं और गाते पाक का हैं? हमें सुविधाएँ पाक सरकार तो नहीं देती? फिल्म बनाना है तो भारत आना है, गायक बनना है तो भारत आना है, हीरो-हेरोइन बनना है तो भारत आना है, सामान बेचना है तो भारत आना है, बम फोड़ना है तो भारत आना है| तो क्या सिर्फ बम बनाने के लिए देश का बंटवारा किया था?   कभी आकर देखा है हमारे इलाकों की सहिष्णुता को की भेदभाव किसे कहते हैं? बता रहा था की उसके इलाके में मुस्लिम महिलायें बुर्के पहनकर हिन्दुओं के घर शादी-पार्टी में जाया करती है, इसे मीडिया क्यों नहीं दिखता? खुले विचारों वाला आलम अपने इस्लाम से जितनी मोहब्बत करता है, उतना ही वो दुसरे धर्मों की इज्जत भी करता है और अजब-गजब धार्मिक पाबंदियों की मुखर आलोचना भी| इलाहाबाद में ही वे हम सभी के साथ संगम स्नान के लिए तैयार था लेकिन वक्त की कमी के कारण जा नहीं पाए| वापस लौटते समय ट्रेन की खचाखच भीड़ में भी वो हमलोगों के साथ संगम पुल से गुजरते वक्त माँ-गंगा को प्रणाम किया और उसने महाकुम्भ में इलाहाबाद आने की इच्छा दिखाई| उसके तौर-तरीकों से तो हम सभी लोग हैरान थे| इसे कहते हैं सेकुलरिज्म! प्रधानमंत्री जी कहते हैं ना की अलवर के इमरान में बसता हैं मेरा भारत; वैसे ही मैं कह सकता हूँ की पटना के आलम में बसता है मेरा हिंदुस्तान, पटना के आलम का है यह हिंदुस्तान|

फिर भी इनसब से अलग वापस लौटते हुए ट्रेन में लगभग पन्द्रह-बीस हजार परीक्षार्थियों की उबाऊ भीड़ साँस लेने में तकलीफ दे रही थी| ट्रेन को आये कुछ ही देर हुआ था की स्टेशन पर एक दम्पति मेरे ही बोगी में चढ़ा| महिला सम्मान के तकाजे से एक लड़के ने उनके लिए सीट छोड़ दिया| भीड़ इतनी थी की आजतक मैंने खड़े-खड़े भी ऐसी यात्रा नहीं की| किसी को पैर हिलाने के पहले सोचना पड़ता था, बैठना दूर की बात थी| दोनों को वाराणसी में उतरना था, सो ट्रेन चल पड़ी| वे शख्स मेरे ही पास थोड़ी सी जगह बनाकर खड़े थे| दोस्तों के साथ हो रही डिस्कशन में वे दोनों पति-पत्नी शामिल हो गए| मैंने लगभग दो घंटे तक उस शख्स से काफी बातचीत की| उन दोनों का कम्युनिकेशन स्किल बेहद उच्च क्वालिटी का था| मुझे एहसास हो रहा था की ये बिल्कुल प्रोफेशनल हैं| तभी मैंने पूछ दिया की आप करते क्या हैं? पहले तो हंसे, फिर बताया की वे बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (BHU) के सिक्यूरिटी एडवाईजर हैं और वो इसी प्रतियोगिता परीक्षा के सिलसिले में आब्जर्वर बनकर वहां आये थे| ये सुनकर बोगी के सारे लड़के उनका मुंह देखने लगे तभी मैंने सवाल किया की आप इतने सक्षम होने के बावजूद भी जनरल बोगी में खड़े-खड़े यात्रा कर हैं? चाहते तो तत्काल टिकट ले सकते थे? फिर उन्होंने मुझे बताया की जब वो दिल्ली, गाजियाबाद या मेरठ जाते हैं तो ऐसी ही भीड़ का सामना करने को मजबूर हो जाते हैं और उनका शरीर मुश्किलें झेलने को आदि है इसलिए वे जिन्दगी में हर मुश्किल से आसानी से लड़ लेते हैं| और भी काफी बातें हुई जिसे लिखना संभव नहीं, अंततः वाराणसी में हाथ मिलकर वे उतर गए और मैं खड़े-खड़े 12 घंटे का सफ़र तय करके पटना पहुँचा तब तक सुबह हो चुकी थी...

अविश्मरनीय बात रही की पहले आलम के साथ और अब इन दोनों के साथ खासकर एक बात कॉमन थी की दोनों इस्लाम को मानने वाले थे| मेरी ब्लॉगर यात्रा में सेकुलरिज्म के साथ ये मेरा पहला साक्षात्कार था| क्यूंकि आलम में देशभक्ति का जज्बा दिखा क्योंकि उसकी भैया सेना में थे और वे दम्पति बेधड़क सामाजिक-धार्मिक बुराइयों की अज्ञानता को मिटाने के लिए प्रतिबद्ध थे| ख़ास बात रही की वे महिला मुझे अपने बेटे की उम्र से तुलना करके अपने पास थोड़ी जगह में बिठाया और अपनी बेटे-बेटियों की शैक्षणिक स्थिति की चर्चा की| इस तरह इस यात्रा से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला, धार्मिक बेड़ियों में जकड़ी हुई मानवीय आजादी को पाने की ललक देखी, उनका गुस्सा देखा और उनकी धर्मपरायणता भी देखने को मिली| इसलिए, कुल मिलाकर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ की हमारा भारत सेक्युलर है, आधुनिक है और लिबरल भी है| बस इंसानियत के गद्दरों से नागरिकता का अवार्ड छिना जाना बाकी है...(फिर भी ऐसा हो नहीं सकता, हम जानते हैं...)


लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं... आते रहिएगा...

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