इस दुनिया की फिजाओं में, प्रकृति की गोद में,
उसकी तन्हाइयों में चले जाने का मन करता है|
भक्ति रस की अनमोल धाराओं में,
राम-कृष्ण के भावनामृत में बह जाने का मन करता
है|
फूलों से भंवरों की
मोहब्बत में,
मेघ से मोर की ख़ुशी
में ढल जाने का मन करता है|
पर क्या
करूं जीवन-बंधन के मोह में, घर-परिवार की खुशियों में,
कुछ क्रांतिकारी सा ना कर पाने का दर्द आप सब से
बांटने का मन करता
है...
इसलिए ही शायद कुछ कहने का मन करता है...
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