देश के आर्थिक परिदृश्य में बड़े बदलाव की कोशिश भी इन चोरों-बेईमानों
की बुद्धि के आगे नाकाम बनती जा रही है| भारत सरकार और रिज़र्व बैंक के तमाम
पढ़े-लिखे बुद्धिजीवियों का ज्ञान इनलोगों के आगे फेल हो गया| नोटबंदी के फैसले में
प्रधानमंत्री से ज्यादा देश की ईमानदार जनता अपना सुनहरा भविष्य देख रही थी,
गर्मजोशी से बैंकों के आगे लाइन में खड़े रहकर भ्रष्टाचार को मिटा देने को अपना
योगदान समझ रहा था| शुरुआत में भ्रष्टाचारियों की बेचैनी बढ़ी तो देश झूम गया| गंगा
में नोट बहने की बातें आई| सरकार और रिज़र्व बैंक ने रोज नए-नए नियमें बदली, नए
नोटों से बदलाव की बातें आई मोदी ने भावुक होकर समर्थन माँगा तो लगा की देश की
आर्थिक हालत फिर से इसे अच्छे दिनों की तरफ ले जा सकती है|
कालाधन वालों ने, काले कारोबारियों ने और टैक्स चोरों ने सबने मिलकर
देश की उम्मीदों को धराशाई कर दिया| नेता, अफसर सभी दो-चार दिन की छुट्टी लेकर
सारा माल खपा आये| नए नोटों से घूस भी लेना शुरू कर दिया मतलब इन लोगों में बदलाव
की रफ़्तार नोट बदलने से भी ज्यादा तेज़ दिखी| ऊपर से सरकार का 50-50 का फार्मूला इनकी
बची-खुची चिंता से निदान दिला गया| प्रधानमंत्री
और वितमंत्री की काबिलियत में कैशलेस जनता का सपना तो है लेकिन इसी भविष्य की
कैशलेस भारत की व्यवस्था में बेरोजगार युवाओं की एक बड़ी फ़ौज पेटीएम में बैलेंस की
तलाश कर रही होगी| ऊपर से गरीब, निर्धन लोगों की स्कीम, उनके फायदे पर व्यवस्था की
टेढ़ी नज़र होगी वहीँ सरकार का अमला उसे समय-समय पर परेशान करता रहेगा| प्रधानमंत्री
चाहे जितने भी दावे कर लें, गरीबों के लिए गंभीर दिखें लेकिन जमीनी हकीकत उन्हें
अनजान ही बना रखेगी| क्यूंकि ये सरकारी अमला कभी किसी अमीरों, रईसों के लिए बना ही
नहीं| ये मासूम जनता ठगी भी जायेगी और उनके अधिकारों को सिमित भी रखा जाएगा|
गरीब पेटीएम जैसे मोबाइल वोलेट का प्रयोग करेगा ताकि फर्जीवाड़ा रुके,
कालाधन समाप्त हो लेकिन कैसे? इन निर्धन लोगों की अशिक्षा का फायदा हाईटेक
चोर-उचक्के आसानी से उठा लेंगे| इसलिए की एटीएम का पिन पूछ अमीरों, पढ़े-लिखों को
जहाँ ठग लिया जा रहा तो हम इनलोगों के कैशलेस भारत में जीवन, उनकी दिनचर्या कैसे
होगी, सोच नहीं सकते?
भारत के आर्थिक सुधारों की दिशा में सरकार का हर एक कदम उन 40 करोड़
आबादी का भविष्य तय करती है जिसे कभी वोट बैंक में तब्दील कर दिया जाता रहा है तो
कभी राजनीती साधने के नाम पर शोषण कर लिए जाता है| नोटबंदी वाकई एक साहसिक कदम है,
लेकिन सरकार से कहाँ चूक हुई? जिसका फायदा भ्रष्टों ने भरपूर उठाया|
सवाल इसलिए भी आया क्यूंकि किसी ने अमिताभ बच्चन, सलमान,
अम्बानी, लालू जैसे धनकुबेरों को बैंक के बाहर नहीं देखा| किसी ने उफ़ तक नहीं की,
सब मौन साध गए| केजरीवाल, मायावती या ममता का उछलना अपवाद ही रहा| राजनीतिक मतलबों
के लिए आरोप-प्रत्यारोप का मसला दूसरा है लेकिन आर्थिक सुधारों के लिए अरबपतियों
पर कोई असर न पड़ना ही एक सवाल है| क्योंकि सभी को पता है की सबसे ज्यादा कालाधन
कहाँ और किसके पास है? फिर भी...
प्रधानमंत्री की कोशिशों और उनके राष्ट्र के प्रति समर्पण के लिए
बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार...
लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं...
ब्लॉग पर आते रहिएगा...
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