16 March 2020

प्रकृति से पंगा #कोविड19

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हम आधुनिक हैं ! स्मार्ट, इस धरती पर रहने वाले सभी प्राणियों में सबसे स्मार्ट ! हम पहाड़ तोड़ सकते, नदियों का रास्ता बदल सकते, बांध बनाकर पानी रोक सकते, जंगलों को उजाड़ कर आलीशान महलें बना सकते, मूक जानवरों को मिर्च मसाला लगाकर बड़े चाव से खा सकते हैं !
हम इंसान हैं ! इतने शक्तिशाली की शेरों को मार सकते हैं मगर मशीन के सहारे !

बिना बुद्धि का इस्तेमाल कि हम साधारण टिड्डे से भी सामना नहीं कर सकते ! मानवीय चेतना का बेजा दुरुपयोग वह भी प्रकृति के सामन, मगर ध्यान रहे यह प्रकृति तुम्हारे कारण नहीं बल्कि प्रकृति से तुम हो !
प्रकृति शाश्वत है ! हम इसे जितना नुकसान पहुंचाने का प्रयत्न करेंगे उतने गंभीर परिणाम भुगतने होंगे !
आधुनिकता एवं विकासवाद की आड़ में विकसित देशों ने प्रकृति को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ! प्रकृति को नियंत्रण में लेने की कोशिश ने आज दुनिया की लगभग आधी आबादी के ऊपर कोरोना वायरस ने संकट में डाल दिया है !

एक वायरस के कारण 'ग्रेट शहंशाह अमेरिका' में इमरजेंसी लग गयी है ! दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग ग्राउंड 'द ग्रेट चाइना' बर्बादी के कगार पर खड़ा हो गया है ! चीन की अतिबुद्धिमता का दम्भ समूचा संसार भुगत रहा है !
उसके जाहिलपने से यूरोप अघोषित जंग लड़ता दिख रहा है ! पूरे एशिया में खौफ का माहौल है ! प्रकृति के सिर्फ एक चोट से पूरा विश्व कराह उठा है !
अरबों खरबों डॉलर डूब चुके हैं, अर्थव्यवस्था बेहाल हो चुकी है ! जनजीवन बेजान हो चुका है !

क्या यह मनुष्य के उन पापों का प्रायश्चित नहीं जब हम निरीह जानवरों का आशियाना उजाड़ डालते हैं फिर उसे पिंजरे में बंद कर तरह-तरह की लजीज रेसिपी व्यंजनों के नाम से परोस डालते हैं ! खाकर डकार लेता मानव किस आधार पर इंसान कहे जाने का हक रखता है ?
दुनिया के सबसे शक्तिशाली एवं शानदार शिकारी शेर जैसे जानवरों को बाड़े में डाल अदब से चिड़ियाघर (zoo) का नाम देते हैं ! उसे उसकी पारिस्थितिकी, खाद्य श्रृंखला से मनोरंजन मात्र के लिए मशीनों के सहारे विस्थापित कर डालते हैं वह भी बिना सोचे !
क्या हम पेड़ों को काटने से पहले इस अबोहवा में उसके योगदान के बारे में तनिक भी सोचते हैं ?
क्या हमने आसमान में स्वच्छंद विचरण करने वाली पंछियों के बारे में कभी सोचा ? चुंबकीय तरंगों से हमने लगभग समस्त पंछियों का अस्तित्व पर ही संकट पैदा कर दिया है !

अगर किसी आधुनिक मनुष्य से इन सवालों का जवाब बेहद ईमानदारी से देने को कहा जाए तो निश्चित है निरुत्तरता में बेजुबान साबित होगा !
हमने गलत किया है ! बहुत गलत !
इस प्रकृति को हमने नियंत्रित करने का साहस किया है !
उसे अपने इशारों पर चलाने की जुर्रत की है ! यह ठीक वैसा ही है जैसे टहनियों में लगा फल पूरे वृक्ष को अपने अनुसार झूमने को विवश कर रहा हो !
कोरोना वायरस मनुष्य की जघन्य करतूतों की महज बानगी है !

प्रकृति शाश्वत है ! हम प्रकृति से हैं ! हमारी जरूरत है प्रकृति से पूर्ण होती है !
अतः मानव अपने सीमित दायरे में रहकर ही अपनी बुद्धिमता का नंगा नाच करे वही बेहतर होगा !


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