16 March 2020

डंडे की ताकत


Image may contain: 2 people, people standing, people walking and outdoorअनुशासन का मूल सख्ती है ! भय इंसान को अनुशासित करने का प्रयत्न करती है ! अनुशासन के बल पर उद्दंडता की समाप्ति की जा सकती है ! दुनिया के तमाम देशों की बेहतरीन सेनाएं अनुशासन के बदौलत ही समस्याओं को आसानी से फतह कर डालती है !

सशस्त्र सेनाओं की ट्रेनिंग के दौरान ट्रेनर के डंडे का बेहद अहम रोल होता है ! यह डंडा तराशता है हमारी फौज को और उन्हें वीरता निडरता से सिंचित करती हैं !
सशस्त्र बलों का तगड़ा अनुशासन और ट्रेनिंग का परचम बॉर्डर पर बिखरता मिलता है ! इन्हें चट्टानों से फौलाद बनाया जाता है !
वीरता की अग्नि में तपकर रियल हीरो की माफिक बैटल्स ग्राउंड में जलवा दिखाते हैं !
सरकार हम पर शासन कैसे करती है ?
सीधी एवं सरल शब्दों में कहें तो पुलिस के माध्यम से !
लोग पुलिस से क्यों डरते हैं ?
लोग पुलिस ने नहीं बल्कि उसके डंडे से डरते हैं, कानून के प्रावधानों से डरते हैं !अराजकता को दूर करने का सबसे साधारण उपाय है सख्ती बरतने का ! कानून एवं उसके प्रावधान, सरकारें डंडे के बल पर नागरिकों पर लागू करती है ! अन्यथा अव्यवस्था का वातावरण कुव्यवस्था को जन्म देगी निश्चित तौर पर हिंसा पर ही समाप्त होती है !

जैसे हम कुत्ते जैसे जानवरों को अगर ट्रेंड कर 'स्निफर डॉग' बना सकते, घोड़े को नियंत्रित कर सशस्त्र दस्ते में शामिल कर सकते, तो मनुष्य जैसे समझदार प्राणी को व्यवस्था के साथ चलने को बेशक बाध्य कर सकते हैं ! मगर बिना भय के प्रीति नहीं होती !
सामान्य तौर पर हम देखें तो अगर बच्चे को डांट-मार ना पड़े तो वे बेशक अनियंत्रित होकर असामान्य व्यवहार करेगा ! आजकल के युवाओं में पनप रही इस गतिविधियों के जिम्मेदार उनके लालन-पालन करने वाले हैं !
चूंकि चाणक्य कहते हैं कि पहले 5 वर्ष बच्चे को खूब दुलारना चाहिए, 5 से 13 वर्ष तक कठोर अनुशासन में सभी संस्कार सिखा दो और फिर मित्रवत व्यवहार करना चाहिए !
जो लोग बच्चे में अनुशासन पैदा करने के प्रयत्न को हिंसा का नाम देते हैं वे निश्चित तौर पर ही किसी पाश्चात्य विकृति का शिकार है ! नहीं तो भारत जैसे विकासशील देश कुल बजट का 20% रक्षा पर क्यों ख़र्चता है ?
दुनिया के तमाम देशों के बीच हथियारों की खरीदी की होड़ क्यों लगी रहती है ?
मतलब शासन का मूल ही अनुशासन है !

प्राचीन राजाओं और आज तक की सरकारें डंडे के बल पर ही शासन करते आएं हैं ! विदेशी आक्रमणकारियों की आततायी बर्बरता ने ही भारतवर्ष जैसे गौरवशाली अतीत को कलंकित किया है !
मगर शासन करने का मूल उद्देश्य मात्र व्यवस्था स्थापित करने से नहीं है बल्कि नागरिकों की जरूरत की पूर्ति हेतु राजस्व संग्रह से भी है !
जिस देश की पुलिस मजबूती से देश के अंदर शांति स्थापित रखती है वह राष्ट्र उतनी ही तेज प्रगति कर सकता है !

भारत के परिपेक्ष में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जहां एक पुलिसकर्मी पर लगभग 663 नागरिकों का दायित्व है !
कुल 130 करोड़ की विशाल आबादी एवं सुदूर भौगोलिक विविधताओं के बावजूद भी हम प्रगति कर रहे हैं तो स्पष्ट है कि हम सभ्य नागरिक होने का दायित्व बखूबी निभा रहे हैं चाहे डंडे के डर से निभा रहे हैं या इंसान होने के नाते मगर निभा जरूर रहे हैं...
धन्यवाद !!!

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