जैसे ही सत्ता बदलती है, बेरोज़गारों की उम्मीदें उस वक्त आसमान छू रही होती है। देश का
बेरोज़गार युवा वर्ग अखबारों में GDP
के आंकड़े देखकर खुश हो जाता
है की चलो अब देश तो तरक्की कर रहा है और वो इसी तरक्की वाले आकड़ों के दम पर नौकरी
पाने के सपने पाल बैठता है। अक्सर नेताओं के भाषणों में बेरोज़गारी को दूर करने की
महत्वाकांक्षा लाखों युवाओं में जोश भर देती है। ऐसा दिखाया जाता है की वे ही उनके
पालनहार है, वे सभी को चुटकियों में नौकरी दे देंगे। बस कमी
यही है की लोग सत्ता में बैठे निकम्मों की जगह उन्हें दे दें। देश का मतदाता जिसे
चाहे उसे वोट दे, लेकिन वोट डालने के बाद अंधभक्त होने के बजाय उनके
प्रति सख्त रवैया दिखाए। कभी कोई सरकारें जनता को ये क्यों नहीं बताती की उसने
अपने कार्यकाल में कितनी रिक्तियाँ निकली, कितनों को नौकरियां दी और
उन नौकरी पाने वालों में नेताओं के कितने भाई-भतीजे थे? अगर ऐसा होता तो रोज़गार के नाम पर बेरोज़गार युवाओं को इतनी आसानी
से नहीं ठगा जाता, जितनी आसानी से अबतक ठग लिया गया है। लोग आसानी से
तुलना कर पाते की मनमोहन सरकार ने कितनी नौकरियाँ दी, मोदी ने कितनी दी और विकास पुरुष नीतीश कुमार ने कितनी नौकरियां विकसित
की।
सबसे अहम सवाल है की ये
बेरोज़गार हैं कौन? ये कोई डुप्लेक्स बंगले में
रहने वाले अरबपति के बेटे नहीं हैं। इनका बाप न ही किसी फैक्ट्री का मालिक है और न
ही ये किसी सांसद या विधायक के सगे संबंधी होते हैं। ये सरकार द्वारा आंकड़ों
में उलझाया व टोयोटो से चलने की सपने देखता युवा होता है। 5X8 के कमरे में रहने वाला, मकान मालिक द्वारा सताया और
कई बार भूखे सो जाने वाला छात्र होता है, जिसे हम भारत का भविष्य
कहते हैं।
कभी नीतीश कुमार या नरेंद्र
मोदी मिलें तो उनसे पूछियेगा की विकास का मतलब क्या होता है? (ये मैं बिहार चुनाव के नज़रिये से कह रहा हूँ।) अक्सर ये अपने भाषणों में सड़कें बनवा देना, बिजली मुहैया करा देना व दो-तीन कल कारखाने लगा देने को ही विकास
कहते हैं। लेकिन ये सब तो बुनियादी सुविधाएं हैं। उनसे पूछिये की बिहार की
प्रति व्यक्ति आय की राष्ट्रीय आय की तुलना में कितना विकास हुआ? रहन-सहन का स्तर कितना ऊपर उठा? क्या राज्य से पलायन रुक
गया? शिक्षा-स्वास्थ के मामले में स्कूल और अस्पताल
बनवा देने को विकास नहीं कहा जा सकता? मतलब, स्कूलों में प्रति बच्चे पर कितने शिक्षक हैं, जनजाति को कुपोषण से दूर रखने के लिए क्या कदम उठाये गए? ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को विटामिन-न्यूट्रिटियन्स युक्त भोजन
उपलब्ध है भी या नहीं?
विकास के दावे किये जाते
हैं लेकिन खोखले हैं। विकास से बेरोज़गारी को जोड़कर देखने की कोशिश भी मत कीजियेगा
नहीं तो आपको इतनी उपलब्धियाँ बतायी जाएंगी की आप GDP और रुपये की भांति ऊपर निचे
होते रह जायेंगें .......
No comments:
Post a Comment