जाटों का गुस्सा किस कदर
सरकार और आम जनता का नुकसान कर सकती है, उन्होंने देश और दुनिया को दिखा दिया|
खेती पर निर्भर रहने वाली जातियां ऐसे-ऐसे मांग तो बेशक करेगी, क्योंकि खेती कोई
फायदे का सौदा तो नहीं रहा| और जब सरकार वोट के लिए हर किसी को 27 फीसदी वाले
ओबीसी कोटे में एडजस्ट करने की राजनीतिक कोशिश करती है तो जाट क्यूँ न करे| पटेल, जाट व उत्तर
प्रदेश-बिहार के भूमिहार सहित कई अग्रिम जातियां हैं, वो भी काफी लम्बे अरसे से
ओबीसी में शामिल करने की मांग कर रहें हैं। पटेल और जाट अपने समुदाय के लोगों
के खेतिहर होने के दावे करता है लेकिन, उससे ज्यादा खेतिहर पंजाब-हरियाणा के जाट, यूपी-बिहार के भूमिहार हैं।
ऐसे में अगर जाटों को आरक्षण का फायदा दिया गया तो ये सभी जातियां मैदान में कुदेंगी
और स्थिति को संभालना बिलकुल मुश्किल हो जाएगा। मोदी सरकार के लिए जाटों को
संभालना बड़ी मुश्किल साबित होने वाली है| मान लें की अगर मोदी ने जाटों को ओबीसी
वाले कोटे में आरक्षण दे दी तो क्या जो जातियां पहले से इस कोटे का फायदा उठा रही
है वो क्या चुप बैठे रहेगी? क्या वो यूँ ही अपने हिस्से की नौकरी दूसरों को देना
पसंद करेगी? बिलकुल नहीं!
आरक्षण देश के ज्वलंत
मुद्दों में अहम स्थान रखता है। क्या आरक्षण से सचमुच देश के गरीब, पिछड़ों, शोषितों का भला हुआ है? कितने गरीब इससे लाभान्वित हुए, जिनके सर पर छत नहीं खाने को रोटी
नहीं है?
गरीबी जाति देखकर नहीं आती, जाति के आधार पर किसी को दलित या शोषित कहना बेमानी है, उसका पैमाना आर्थिक आधार पर बनाया जाना चाहिए ! जिस गरीब के घर में दो वक्त की रोटी नहीं, सर छिपाने के लिए छत नहीं, बच्चो को पहनने के लिए कपडे नहीं, उसे आरक्षण नहीं, आर्थिक मदद चाहिए!
गरीबी जाति देखकर नहीं आती, जाति के आधार पर किसी को दलित या शोषित कहना बेमानी है, उसका पैमाना आर्थिक आधार पर बनाया जाना चाहिए ! जिस गरीब के घर में दो वक्त की रोटी नहीं, सर छिपाने के लिए छत नहीं, बच्चो को पहनने के लिए कपडे नहीं, उसे आरक्षण नहीं, आर्थिक मदद चाहिए!
आरक्षण देने के लिए परिवार की निर्धनता
को पैमाना नहीं बनाया गया, बल्कि थोक के भाव से विभिन्न जातियों
को आरक्षण दे डाले गए। सरकार ऐसा कोई आयोग क्यों नहीं बनाती, जो समाज के विभिन्न तबकों की पिछड़ेपन का आंकड़ा
तैयार करे और जो इस पैमाने से बाहर हो उन्हें इसके दायरे बाहर का रास्ता
दिखाए। अगर ऐसा होता भी है तो इससे स्थिति एकदम नहीं सुधर जायेगी। ऐसे में
सरकार सरकारी नौकरियों में वोटबैंक के हिसाब से तैयार किये गएआरक्षण के नियमों को
बदल कर शिक्षा में समानता लाये, उसमें
आरक्षण दे। देश में जिन्हे दलित, महदलित
व पिछड़ा माना गया वे उस ऊंचाई को नहीं हासिल कर पाये जिसका सपना देखा गया था।
जब गरीब के बच्चों को उस स्तर शिक्षा नहीं मिल पाती जो स्तर कान्वेंट
स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का होता है तो वैसे लोगों के लिए आरक्षण का कोई मतलब
नहीं रह जाता। सवाल है, पायलट
बनने के लिए आरक्षण क्यों नहीं दिया जाता? क्या
आरक्षण के बदौलत आये पायलट के जहाज में वही नेता-मंत्री उड़ सकते हैं, जो आरक्षण को निहायती जरूरी बताते हैं? क्या आरक्षण के दम पर आये डॉक्टरों से
वही नेता अपना ईलाज करा सकता है, जो
खुद को पिछड़ों-शोषितों का नेता घोषित करता है? लेकिन
क्या देश चलाने वाले अफसरों के लिए प्रतिभा
से ज्यादा जरूरी उनकी जाती है? आखिर
ये देश आगे कैसे बढ़ेगा? जहाँ पिछड़ा बनने की होड़ लगी हो!
लेखक:- अश्वनी कुमार (पटना), जो एक स्वतंत्र टिप्पणीकार बनना चाहता है.…
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