मोदी 2.0
को
देश की सबसे जटिल समस्याओं को दूर करने के लिए इतिहास में याद रखा जाएगा ! देश की
राजनीति में जनता की जागरूकता लोकतंत्र की सबसे मजबूत नींव होती है ! बीजेपी की एक
के बाद एक हार वो भी तब जब 6 महीने पहले ही प्रचंड
बहुमत से सत्ता में काबिज हुए हों ! उसके बाद एक के बाद एक फैसले जिसका सपना पिछले
70 सालों से देखा जा रहा था उसे पूरा करने के बावजूद भी जनता पटखनी दे
रही है !
हिंदुत्व
है, भगवा
चोला है और देशवासियों का भरोसा भी ! फिर भी ऐसा क्यों ?
मतलब साफ
है कि लोगों ने केंद्र और राज्य के
चुनावों का अपना पैमाना बना लिया है ! देश को सुरक्षित हाथों में दो और राज्य को
मुफ्त सुविधाएं मुहैया कराने वाले को !
ये
भारत की राजनीति का एक अच्छा संकेत है कि अब चुनाव में सम्भवतः गरीबी, स्वास्थ्य, सड़क, पानी और बुनियादी सुविधाओं पर
नेताओं का जोर ज्यादा रहेगा ! इसका सारा श्रेय मोदी और शाह को जाता है जिन्होंने
राजनीति को बिल्कुल उलट दिशा में मोड़ डाला है !
इसका मतलब ये कतई नही की
बीजेपी के नाम पर जनता किसी राज्य में हर अंधे, चोर चोट्टों और दलालों को वोट
दे दे !
सम्भलना
होगा ! चुनाव सुधार कराना होगा ! अन्यथा जनता सर्वोपरि है !
क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के फीडबैक पर टिकट बांटें !
पैसे देकर टिकट बांटने की व्यवस्था बंद करें !
नचनियों बजनियों को जनता के सिर पर लादने से बचें !
जब पब्लिक सेंटीमेंट में काम कर रहे तो प्रचार की
फिजूलखर्ची क्यों !
मैसेज कॉल की कोइ जरूरत नही ! आपने काम किया जनता खुद वोट
करेगी !
गुंडे मवालियों को पार्टी से बाहर करो !
हर राज्य, क्षेत्र
में गरीबों को चेहरा बनाओ, नेता
बनाओ !
जनता पर सीधा असर करता है !
हर नेता को अपने क्षेत्र में रहना घूमना अनिवार्य करो !
सरकारी दफ्तरों में घूम घूम जनता का काम कराने की आदत
दिलवाओ नेताओं की !
लाव लश्कर से चलने की आदत
बदलो ! आम दिखने वाले नेताओं को तवज्जो दो !
बहुत सारी सुझाव हो सकती है
परन्तु मानेगा कौन !
लेकिन बदलना होगा !
साम्राज्य मिला है तो उपयोग
कीजिये ! 6 महीने
में बेहतरीन शिकारी की तरह टारगेट हिट किया है !
इसी रफ्तार बनी रहनी चाहिए
! भरोसा है देश अगले 4 साल
सही हाथों में है !
मगर समस्त भारतवर्ष में
प्रतिनिधित्व चाहिए तो कार्यशैली बदलनी होगी !
कार्यकर्ताओं के चरण पखारने
होंगे ! व्यवस्था बनानी होगी कि कोई प्रदीप सारंगी ही जनता का प्रतिनिधित्व करे !
ये सत्ता बहुत मुश्किल से
मिले हैं महाशय !
अन्यथा जयचंदों के बीच से
कोई पृथ्वीराज चौहान सत्ता के सिहांसन पर कैसे काबिज हो पाता !
सम्भलना होगा ...
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