तिरंगे को देशभक्ति का प्रतीक होना कई सवाल छोड़ जाता है| भारत
राष्ट्रराज्य की पहचान तिरंगे से मानी जाती है| विदेशों में नेताओं और राजनयिकों
की पहचान भी तिरंगे से ही है तो वही देशप्रेम की चिताओं में जलने वाले शहीद जवानों
का कफ़न भी| देशद्रोहियों के लिए विरोध जताने का एकमात्र कारगर हथियार तिरंगे को
जलाकर फोटोशूट करवाना है| दुनिया में हर देशों के अपने-अपने झंडे हैं और उनकी अपनी
अलग-अलग उपयोगिता| पर भारत में झंडे या देशप्रेम-राष्ट्रभक्ति को झंडे से जोड़कर
जितना हल्ला मचता है वो किसी और देश में नहीं|
हर बार की भांति इस बार भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तथाकथित
राष्ट्रभक्त इसी तिरंगे के नीचे खड़े होकर देश का गुणगान करेंगे, जिसने तिरंगे के
रंगों को धर्मों के बीच बांटा| केसरिया रंग हिन्दू का है तो हरा मुसलमान का| बीच
में बचे हुए अशोक चक्र को भी तो जातियों ने अपना-अपना घोषित कर रखा है| इन्सालाह भारत तेरे टुकड़े होंगे, भारत की बर्बादी तक जंग
करेंगे जैसे नारे किसी को देशभक्त या शहीद से ज्यादा मूल्यवान बना सकता है| इस
आजाद भारत के डीएनए में इस वैचारिकता का जहर उस परिवेश से आया जिसमें हमारा भारत
पिछले 70 सालों से आजादी का जश्न मना रहा था| पर हम भूल गए की तिरंगे को या भारत
को बांटने की बात करना किसी को जबरदस्ती राष्ट्रवादी बना सकती है... ये हमारे आज
के आजाद भारत की हकीकत है|
फिर बात आती है की क्या तिरंगा देशभक्ति का प्रतीक है? क्या तिरंगे को
जनता के लुटे हुए पैसों से खरीदी गाड़ियों पर लगा देने से वो देशभक्त हो जाता है?
या फिर देश की बर्बादी का समर्थन करने वालों के लिए इस एक दिन झंडे के नीचे आजादी
का जश्न मना लेना उसके देशप्रेम का सबूत बन जाता है? अगर
ऐसा है तो हमारा राष्ट्रीय ध्वज देशभक्ति का प्रतीक कम और अनैतिकता, स्वार्थ और
कुकृत्य के कर्मों का पर्दा ज्यादा लगता है...
कभी असली देशभक्तों से जाकर पूछिए, हमारे वीर जवानों से जाकर सीखिए की
तिरंगे को देशभक्ति और देश के आन-बान-शान का ताज कैसे बचाकर रखा जाता है...
लेखक:- अश्वनी कुमार, जो ब्लॉग पर ‘कहने का मन करता है’ (ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं...
ब्लॉग पर आते रहिएगा...
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