"(मैं अपने इस ब्लॉग में खुद की व्यथा को कलमबद्ध कर रहा हूँ। मेरी शिकायत न तो सिस्टम से है और न ही इस बनाने वालों से. शिकायत है तो सिर्फ इस चलानेवालों से। मैंने अबतक अपनी छोटी सी ज़िंदगी में नेता न होने की बहुत कमी महसूस की और मुझे उम्मीद है की आपने भी कभी न कभी महसूस की होगी)"
सड़कों
पर कचड़े को देखकर इसके जवाबदेह लोगों पर बहुत गुस्सा आता है, मन
करता है की शिकायत कर दूँ,
लेकिन किससे? कौन सुनेगा मेरी! किसके पास फुर्सत है
इसकी! अस्पताल में टिकट खिड़कियों पर घंटों
धुप में खड़ी रहकर अपनी बारी का इंतज़ार करता हूँ, पर कोई ऐसा है जो मिनटों में टिकट लेकर चला जाता है ! त्योहारों में जब मंदिर जाता हूँ, 5-5 घंटे लाइन में धक्के खाता हूँ, पर कोई कार से उतारकर VIP दर्शन करके चला जाता है, क्यों? क्योंकि मैं नेता नहीं हूँ !
सड़क से जाते वक्त कई बार पुलिस द्वारा धकिया दिया जाता हूँ, क्योकि कोई नेता आ रहा होता है, हमारा प्रतिनिधि उस रास्ते से जा रहा
होता है। अपने नेता से मिलने की बहुत चाहत होती है, अपनी समस्याएँ बताकर उनसे आश्वासन लेने की बड़ी कामना होती है, पर क्या करूँ उन्हें हमसे ज्यादा अपनी
पार्टी की चिंता रहती है,
आखिर जनप्रतिनिधि तो पहले पार्टी ने ही
बनाया था जनता ने वोट तो बाद में दिया था।
कभी कभी तो लगता है की वोट ही न डालूँ, जबरदस्ती
थोपे गए गुंडों-मवालियों व अनपढ़ भोंदू नेताओं के बेटों-बेटियों से घृणा होती है, थूकने का मन करता है पर क्या करूँ
लोकतंत्र के प्रति कर्तव्य के बंधन में खुद को बंधा महसूस करता हूँ! डॉक्टर के पास इलाज़ के लिए जाता हूँ, तीन-चार टेस्ट कराने को कहकर टेस्ट
सेंटर की पर्ची थमा दी जाती है, मजबूरी
का ब्लैकमेल करके दो गुने ज्यादा चुकाकर चला आता हूँ ! उसके बाद डॉक्टर की लिखी
दवाइयों में भी न जाने कितने लूट लिया जाता हूँ!
शिकायतों के समाधान के लिए डीएम, कमिश्नर
को चिट्ठी लिखता हूँ, न्यूज से पता चलता ही की चिठ्ठियाँ
कूड़े में पड़ी होती है! न्यूज़ से याद आया, हमारे मीडियातंत्र के पास नेताओं की
गाड़ियों के पीछे भागने से वक्त ही कहाँ मिलता? बुद्धू
नेताओं के गाली-गलौज हेडलाइन बनाकर देश के भविष्य निर्धारण में जुटे ,उन्हें
देश की 40 करोड़ गरीब आबादी की चुनौतियाँ, ठंडे एसी दफ्तरों में रिपोर्टिंग करने
से बेशक सब-कुछ अच्छा ही दिखता है!
हिन्दू-मुसलमान मुद्दे पर नेताओं की मूर्खता देखकर खून खौल जाता है! उससे
भी बड़ी मुर्ख उनकी दिन-रात आरती करने वाली मीडिया होती है। देखकर लगता है, ये देश में दोनों की गृह युद्ध कराकर
ही दम लेंगें ! लाख जहरीले बयानों के बाद
उनका कुछ नहीं होता पर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर
सिर्फ व्यंग करने पर गिरफ्तार कर लिया जाता हूँ! क्योकि मैं नेता नहीं हूँ.…
इसलिए
कमी महसूस होती है नेता न होने की! क्योकि अगर मैं नेता होता तो मेरी हर बात हर
अफसर को माननी पड़ती! कभी किसी लाइन में
इंतज़ार नहीं करना पड़ता! एक बार जनता के
आगे सर झुका लेने से 5 सालों तक जनता मेरे आगे सिर झुका कर
खड़ी रहती! कभी पैसे को लेकर चिंता नहीं
होती, लूटा हुआ पैसा काफी होता
मेरे दो पीढ़ियों के लिए! मंदिरों में
आसानी से मिनटों में दर्शन करके भगवान को खुश करने का ढोंग कर चला आता! रास्ते में पुलिस भीड़ पर लाठियाँ बरसाकर मेरे
लिए रास्ता बना रहा होता! घर पर डॉक्टर चले आते, घर बैठे वकील कोर्ट में मेरा केश लड़ लेता और मीडिया मेरे एसी गाडी के
पीछे लोहिया की तरह मुझ जैसे क्रांतिकारी के विचार जाने के लिए पीछे भाग रही
होती! काश, ऐसी अय्याशी कर पाता तो जीते जी यही धरती मेरे लिए स्वर्ग बन जाती!
लेकिन
मैं कभी-कभी बहुत खुश हो जाता हूँ की मैं नेता नहीं हुँ.... क्योंकि इसके लिए मुझे किसी मजहब के लोगों के
तलवे चाटने पड़ते, नेता बनने के लिए हत्याएं करनी पड़ती, काला धन बनाना पड़ता, बड़े नेताओं की चापलूसी करनी पड़ती, तभी तो उम्मीदवार के रूप में चुना
जाता! मैं खुद पर गर्व करता हूँ की मैं
ऐसा नागरिक हूँ जो किसी की बेड़ियोँ में नहीं जकड़ा, खुलेआम सवाल उठाता हूँ और स्वछन्द लेखन करता हूँ ....
लेखक:- अश्वनी कुमार, पटना जो ब्लॉग पर 'कहने का मन करता है…'(ashwani4u.blogspot.com) के लेखक हैं.… पेज पर आते रहिएगा …
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